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आज जब दुनिया Organic की बात करती है, नैचुरल की बात करती है और जब ‘Back to Basic’ की बात होती है, तो उसकी जड़ें भारत से जुड़ती दिखाई पड़ती हैं : पीएम मोदी

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि खेती से जुड़ी समस्याएं विकराल नहीं होनी चाहिए। इनके लिए बड़े कदम उठाने का यह सही समय है। हमें अपनी खेती को केमिस्ट्री की लैब से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ना ही होगा। कम लागत ज्यादा मुनाफा, यही तो प्राकृतिक खेती है। आज के औद्योगिक युग में हमारे पास टेक्नोलॉजी की ताकत है, कई तरह के साधन हैं, मौसम की जानकारी है। ऐसे में खेती की दुनिया में बहुत कुछ किया जा सकता है। केंद्र सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं। खेती के साथ-साथ पशुपालन, मधुमखी पालन, मत्स्यपालन, सौर ऊर्जा, बायोफ्यूल्स जैसे आय के अनेक वैकल्पिक साधनों से किसानों को निरंतर जोड़ा जा रहा है।

किसानों की आय को बढ़ाने के लिए अनेक कदम उठाए
प्रधानमंत्री गुजरात में चल रहे प्राकृतिक खेती के राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन में वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज़ादी के अमृत महोत्सव में आज समय अतीत के अवलोकन का और उनके अनुभवों से सीख लेकर नए मार्ग बनाने का भी है। आजादी के बाद के दशकों में जिस तरह देश में खेती हुई, जिस दिशा में बढ़ी, वो हम सब उसके साक्षी रहे हैं। अब आज़ादी के 100वें वर्ष तक का जो हमारा सफर है, वो नई आवश्यकताओं, नई चुनौतियों के अनुसार अपनी खेती को ढालने का है। बीते 6-7 साल में बीज से लेकर बाज़ार तक, किसान की आय को बढ़ाने के लिए एक के बाद एक अनेक कदम उठाए गए हैं।

जब मिट्टी ही जवाब दे जाएगी तब क्या होगा?
पीएम मोदी ने कहा कि गांवों में भंडारण, कोल्ड चेन और फूड प्रोसेसिंग को बल देने के लिए लाखों करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। ये तमाम प्रयास किसान को संसाधन दे रहे हैं, विकल्प दे रहे हैं, लेकिन इन सबके साथ एक महत्वपूर्ण प्रश्न हमारे सामने है। जब मिट्टी ही जवाब दे जाएगी तब क्या होगा? जब मौसम ही साथ नहीं देगा, जब धरतीमाता के गर्भ में पानी सीमित रह जाएगा तब क्या होगा? आज दुनिया भर में खेती को इन चुनौतियों से दोचार होना पड़ रहा है। ये सही है कि केमिकल और फर्टिलाइज़र ने हरित क्रांति में अहम रोल निभाया है। लेकिन ये भी उतना ही सच है कि हमें इसके विकल्पों पर भी साथ ही साथ काम करते रहना होगा।

कैमिस्ट्री की लैब से निकलकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जुड़ें
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि गुजराती में एक कहावत है कि “ पानी आवे ते पहेला पाल बांधो”। इसका तात्पर्य ये कि इलाज से परहेज़ बेहतर। इससे पहले की खेती से जुड़ी समस्याएं भी विकराल हो जाएं, उससे पहले बड़े कदम उठाने का ये सही समय है। हमें अपनी खेती को कैमिस्ट्री की लैब से निकालकर नेचर यानि प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ना ही होगा।जब मैं प्रकृति की प्रयोगशाला की बात करता हूं तो ये पूरी तरह से विज्ञान आधारित ही है। जो ताकत खाद में, फर्टिलाइजर में है, वो चीज, वो तत्व प्रकृति में भी मौजूद है। हमें बस उन जीवाणुओं की मात्रा धरती में बढ़ानी है, जो उसकी उपजाऊ शक्ति को बढ़ाते हैं।

कम लागत, ज्यादा मुनाफा, यही तो प्राकृतिक खेती है
उन्होंने कहा कि कई एक्सपर्ट कहते हैं कि इसमें देसी गायों की भी अहम भूमिका है। जानकार कहते हैं कि गोबर हो, गोमूत्र हो, इससे आप ऐसा समाधान तैयार कर सकते हैं, जो फसल की रक्षा भी करेगा और उर्वरा शक्ति को भी बढ़ाएगा। बीज से लेकर मिट्टी तक सबका इलाज आप प्राकृतिक तरीके से कर सकते हैं। इस खेती में ना तो खाद पर खर्च करना है, ना कीटनाशक पर। चाहे कम सिंचाई वाली ज़मीन हो या फिर अधिक पानी वाली भूमि, प्राकृतिक खेती से किसान साल में कई फसलें ले सकता है। यही नहीं, जो गेहूं-धान-दाल या जो भी खेत से कचरा निकलता है, जो पराली निकलती है, उसका भी इसमें सदुपयोग किया जाता है। यानी, कम लागत, ज्यादा मुनाफा। यही तो प्राकृतिक खेती है।जितना जड़ों को सींचते हैं, उतना ही पौधे का विकास होता है
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज दुनिया जितना आधुनिक हो रही है, उतना ही ‘back to basic’ की ओर बढ़ रही है। इसका मतलब है अपनी जड़ों से जुड़ना! इस बात को आप सब किसान साथियों से बेहतर कौन समझता है? हम जितना जड़ों को सींचते हैं, उतना ही पौधे का विकास होता है। भारत तो एक कृषि प्रधान देश है। खेती -किसानी के इर्द-गिर्द ही हमारा समाज विकसित हुआ है, परम्पराएँ पोषित हुई हैं, पर्व-त्योहार बने हैं। जब हमारी सभ्यता किसानी के साथ इतना फली-फूली है, तो कृषि को लेकर, हमारा ज्ञान-विज्ञान कितना समृद्ध रहा होगा? कितना वैज्ञानिक रहा होगा?

‘Back to Basic’ की जड़ें भारत से जुड़ती दिखाई हैं
पीएम मोदी ने कहा कि ऐसे कई श्लोक हैं, जिनमें प्राकृतिक खेती के सूत्रों को बहुत ही सुंदरता के साथ पिरोया गया है। आज जब दुनिया Organic की बात करती है, नैचुरल की बात करती है और जब ‘Back to Basic’ की बात होती है, तो उसकी जड़ें भारत से जुड़ती दिखाई पड़ती हैं। आत्मनिर्भर भारत तभी संभव है, जब कृषि आत्मनिर्भर बने, एक-एक किसान आत्मनिर्भर बने। ऐसा तभी हो सकता है, जब अप्राकृतिक खाद और दवाइयों के बदले हम मां भारती की मिट्टी का संवर्धन गोबर-धन से करें, प्राकृतिक तत्वों से करें।

खेत में आग लगाने से धरती उपजाऊ क्षमता खोती है
प्रधानमंत्री मोदी ने चेताया कि नया सीखने के साथ हमें उन गलतियों को भुलाना भी पड़ेगा जो खेती के तौर-तरीकों में आ गई हैं। जानकार ये बताते हैं कि खेत में आग लगाने से धरती अपनी उपजाऊ क्षमता खोती जाती है। हम देखते हैं कि जिस प्रकार मिट्टी को जब तपाया जाता है, तो वो ईंट का रूप ले लेती है। लेकिन फसल के अवशेषों को जलाने की हमारे यहां परंपरा सी पड़ गई है। इसी तरह, एक भ्रम ये भी पैदा हो गया है कि बिना केमिकल के फसल अच्छी नहीं होगी। जबकि सच्चाई इसके बिलकुल उलट है। आज औद्योगिक युग में तो हमारे पास टेक्नालजी की ताकत है, कितने साधन हैं, मौसम की जानकारी है! अब तो हम कितना कुछ कर सकते हैं।

प्राकृतिक खेती को जनांदोलन बनाने का संकल्प लें
पीएम मोदी ने आह्वान किया कि आइये, आजादी के अमृत महोत्सव में मां भारती की धरा को रासायनिक खाद और कीटनाशकों से मुक्त करने का संकल्प लें। दुनिया को स्वस्थ धरती, स्वस्थ जीवन का रास्ता दिखाएँ। आज देश ने आत्मनिर्भर भारत का सपना संजोया है। ऐसा तभी हो सकता है जब अप्राकृतिक खाद और दवाइयों के बदले, हम मां भारती की मिट्टी का संवर्धन, गोबर-धन से करें, प्राकृतिक तत्वों से करें। हर देशवासी, हर जीव, के हित में प्राकृतिक खेती को हम जनांदोलन बनाएंगे।

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