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इतिहास में दबी हिंदुओं पर अत्याचार की कहानी बताती है फिल्म ‘रजाकार’, हैदराबाद नरसंहार देख रोंगटे खड़े हो जाएंगे

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फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने कश्मीर में हिंदुओं का नरसंहार के सच को सामने लाया था और अब देश की आजादी के समय हैदराबाद में हिंदुओं के नरसंहार पर फिल्म ‘रजाकार’ बनी है। कांग्रेस के करीब 60 साल के शासनकाल में जिस सच को देशवासियों से दबाया और छिपाया गया वह फिल्मों के माध्यम से अब लोगों के सामने आई है। फिल्म ‘रजाकार’ हैदराबाद के सातवें निजाम मीर उस्मान अली खान के शासन के दौरान हिंदुओं के ‘मूक नरसंहार’ के बारे में है। फिल्म की कहानी भारत की आजादी के बाद 1948 के आसपास हैदराबाद के भारत में विलय के दौरान हिंदुओं पर अत्याचार के इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म में गुंडरामपल्ली, पारकाला, भैरनपल्ली गांवों में हिंदुओं पर हुए अत्याचारों को दिखाया गया है। फिल्म के प्रोड्यूसर गुडूर नारायण रेड्डी हैं।

हिंदुओं पर अन्याय का सच दिखाती ‘रजाकार’
‘द कश्मीर फाइल्स’ के बाद हिंदुओं पर हुए अन्याय का सच दिखाती एक और फिल्म है। ये फिल्म भारत के इतिहास की सच्ची घटना पर आधारित है। फिल्म ‘रजाकार’ में कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को हिंदुस्तान को अंग्रेजों से स्वतंत्रता तो मिली, लेकिन हैदराबाद आजाद नहीं हो पाया था। वहां निजाम का शासन था, एक इस्लामी शासन जिसने बर्बरता की हद पार कर दी। फिल्म इतिहास के पन्नों में दबी हैदराबाद नरसंहार की कहानी को बयां करती है। फिल्म का ट्रेलर देखकर ही रोंगटे खड़ हो जाते हैं।

हिंदुओं के खिलाफ बर्बरता से रूह कांप जाए
ट्रेलर कि बात करें तो, फिल्म के 1 मिनट 43 सेकेंड के ट्रेलर में ऐसे कई बर्बर सीन हैं, जिन्हें देखकर रूह कांप जाए। इसमें दिखाया गया है कि कैसे निजाम के शासन को कायम रखने के लिए कासिम रिजवी ने हर घर पर इस्लामी झंडा लगाने का आदेश दिया। ट्रेलर में ‘रजाकार’ बार-बार यह कहते हुए दिखते हैं कि हैदराबाद इस्लामी राज्य है। इसमें एक डायलॉग है, ‘चारों तरफ मस्जिदें बनाई जानी चाहिए। हिन्दुओं का जनेऊ काट कर आग लगा दिया जाना चाहिए।’

फिल्म ‘रजाकार’ 6 भाषा में रिलीज
छह भाषाओं में प्रदर्शित होनेवाली यह फिल्म स्वतंत्र भारत में हैदराबाद के विलय के पूर्व वहां निजाम के हिंदुओं पर अत्याचारों, पाकिस्तान के नापाक इरादों और सरदार वल्लभभाई पटेल के इसके भारत में विलय की सफलता को प्रदर्शित करती है। बेहतरीन निर्देशन और अभिनय से सुसज्जित यह फिल्म 15 मार्च 2024 को हुई।

रजाकार ने हिंदुओं पर अत्याचार की हदें पार की
निजाम के शासन काल में हैदराबाद राज्य में ‘रजाकार’ एक अर्धसैनिक बल थे। 1938 में मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन नेता बहादुर यार जंग द्वारा गठित इस अर्धसैनिक बल का आजादी के समय कासिम रिजवी की लीडरशिप में खूब विस्तार हुआ। तत्कालीन हैदराबाद के भारतीय संघ में एकीकरण के बाद कासिम रिजवी को जेल में डाल दिया गया था। बाद में, उन्हें पाकिस्तान जाने की इजाजत दे दी गई, जहां उन्हें शरण दी गई। ‘रजाकार’ फौजी की वेशभूषा में रहते थे और हिन्दुओं पर अत्याचार करने के लिए उनकी खूब आलोचना हुई थी।

रजाकारों का आतंक, हत्या, लूटपाट, बलात्कार
1948 में कासिम रिजवी मजलिस-ए- इत्तेहादुलमुस्लिमीन का अध्यक्ष था। मजलिस- एतिहाद-उल-मुस्लिमीन आज के एआईएमआईएम का पूर्ववर्ती संगठन था। यह संगठन चाहता था कि हैदराबाद का विलय पाकिस्तान में हो। हिंदू बहुल हैदराबाद के नागरिक भारत में रहने के इच्छुक थे। निजाम की निजी फौज के तौर पर मजलिस-ए- इत्तेहादुल मुस्लिमीन के सशस्त्र दस्ते के रूप में रजाकारों की फौज खड़ी की गई। यह हैदराबाद में घूम-घूम कर आतंक मचाने लगी और जजिया इकट्ठा करने लगी। रजाकारों की फौज गांव-गांव जाकर लूटपाट कर रही थी, निर्दोष हिंदुओं की हत्या कर रही थी और महिलाओं की इज्जत लूट रही थी।

हैदराबाद निजाम ने 396 दिन तक किए मूक नरसंहार
यह फिल्म भारतीय स्वतंत्रता के बाद 15 अगस्त 1947 से 17 सितंबर 1948 यानी 396 दिन के दौरान हुए मूक नरसंहार पर आधारित है। भारत तो आजाद 1947 में हो गया था। हालांकि हैदराबाद को आजाद होने में करीब एक साल लग गए। इसमें सबसे बड़ा योगदान सरदार वल्लभ भाई पटेल का है। अगर वह नहीं होते तो हैदराबाद निजाम और रजाकारों से आजाद नहीं हो पाता। फिल्म रजाकर हैदराबाद के 7वें निज़ाम मीर उस्मान अली पाशा के द्वारा किए गए अत्याचारों के बारे में है। इस फिल्म में दिखया गया है कि कासिम रिजवी ने करीब 2 लाख से अधिक रजाकारों सेना के साथ मिलकर कैसे करीब 3 लाख से ज्यादा परिवारों को मारा, बलात्कार और अत्याचार किया। फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि हैदराबाद के निजाम किस तरह से अपनी रियासत को भारत की जगह एक इस्लामिक देश बनाना चाहते थे।

मैं इस्लाम का रक्षक हूं और हिंदुओं का भक्षक हूंः हैदराबाद निजाम
आजादी से पहले हैदराबाद एक ऐसा रजवाड़ा था जिसका निजाम एक मुसलमान था परंतु राज्य में बहुमत हिंदुओं का था। निजाम हिंदुओं से नफरत करते था। अपनी एक कविता में निजाम ने लिखा है: ‘मैं पासबाने दीन हूं, कुफ्र का जल्लाद हूं।’ अर्थात मैं इस्लाम का रक्षक हूं और हिंदुओं का भक्षक हूं। निजाम के अंतर्गत हैदराबाद में 13 प्रतिशत ही मुसलमान थे परंतु उच्च पदों पर 88 प्रतिशत मुसलमान थे। इसी तरह 77 प्रतिशत हाकिम मुसलमान थे। हैदराबाद की आमदनी का 97 प्रतिशत हिंदुओं से वसूला जाता था। इसके बावजूद निजाम हिंदू विरोधी था। उसके हरम में 360 स्त्रियां थीं। उनमें से अधिकतम ‘काफिर’ अर्थात् गैर मुस्लिम थीं। निजाम को खुश करने के लिए उसके अधीनस्थ अफगानिस्तान से चुरा कर लाई गई 10-12 साल की गैर-मुस्लिम लड़कियां भी खरीद कर लाते थे। मुसलमान निजाम हैदराबाद को पाकिस्तान में मिलना चाहता था। परंतु हैदराबाद पाकिस्तान से बहुत दूर था और चारों तरफ से भारत से घिरे द्वीप की भांति था।

पटेल के आपरेशन पोलो से हैदराबाद का भारत में विलय
हिंदुओं पर रजाकारों के इस आतंक के बाद सरदार पटेल ने हैदराबाद में भारतीय सेना भेजने का निर्णय लिया। इसे आपरेशन पोलो नाम दिया गया और 13 सितंबर को यह अभियान शुरू किया गया। भारतीय सेना ने मात्र 5 दिन में ही इस अभियान को निपटा दिया। यह सरदार पटेल की सैन्य बुद्धि और कूटनीति का ही परिणाम था। इस प्रकार हैदराबाद का विलय भारत में हो गया। मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमान के मुखिया कासिम रिजवी और हैदराबाद के प्रधानमंत्री लायक अली पाकिस्तान भाग गए।

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