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राहुल गांधी ने चोर बोलकर पूरे ओबीसी समाज का किया अपमान, गांधीवाद को तिलांजलि देकर कांग्रेसियों ने सिखों और ब्राह्मणों का नरसंहार कर पूरे समाज को दी सजा

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वर्षों के संघर्ष और बलिदान के बाद भारत पर अंग्रेजी शासन का अंत हुआ और लोकतंत्र की स्थापना हुई। लेकिन अंग्रेज जाते-जाते औपनिवेशिक मानसिकता वाले एक व्यक्ति को आजाद भारत का उत्तराधिकारी बनाने में सफल रहे, ताकि आगे भी भारत उनके बताये रास्ते पर चल सके। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू उसी रास्ते का अनुसरण किया। उन्होंने देश में छद्म लोकतंत्र की स्थापना की। बाद में चलकर उनकी पुत्री इंदिरा गांधी और उनके वारिसों ने इसे छद्म राजतंत्र में बदल दिया। देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था और शासन प्रणाली में एक परिवार का वर्चस्व कायम हो गया। इस परिवार ने गांधीवाद का चोला ओढ़कर भारतीय लोकतंत्र का चीरहरण करना शुरू किया। आजादी के बाद ऐसे कई मौके आए जब इस परिवार ने गांधीवादी विचारधारा को भी तिलांजलि दे दी। इसका खामियाजा पूरे समाज को भुगतना पड़ा है। 

‘सत्य और अहिंसा’ के रास्ते पर नहीं चलते कांग्रेसी

दरअसल गांधीवादी विचारधारा के दो आधारभूत सिद्धांत हैं- सत्य और अहिंसा। कांग्रेस इस विचारधार का सबसे बड़ा झंडाबरदार होने और इसके बताये रास्ते पर चलने का दावा करती है। लेकिन इसके दो मूल सिद्धांतों पर अमल नहीं करती है। कांग्रेस की पूरी राजनीति सत्य और अहिंसा के विपरीत असत्य और हिंसा की मदद से चलती है। झूठे और बेबुनियाद आरोप कांग्रेस की असत्यवादी राजनीति के हथियार बन गए हैं। 2014 से पहले इस हथियार के बल पर कांग्रेस ने गैर-कांग्रेसी पार्टियों का दमन किया। उन्हें कभी एकजुट होकर लड़ने का मौका नहीं दिया। साम, दाम, दंड और भेद की नीति पर चलते हुए उन्हें आपस में ही लड़ाती रही और कमजोर विपक्ष का राजनीतिक फायदा उठाती रही। लेकिन 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद कांग्रेस का एकाधिकारवादी राजनीति का अंत हो गया। मोदी सरकार को सत्ता से बेदखल करने के लिए कांग्रेस ने फिर असत्यवादी हथियारों का इस्तेमाल करना शुरू किया।

‘असत्य’ के हथियार से पूरे ओबीसी समाज पर हमला

2019 के आम चुनाव से पहले कांग्रेस के तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भगोड़े नीरव मोदी और राफेल डील मामले में झूठे आरोप लगाकर जनता को खूब गुमराह करने की कोशिश की। यहां तक कि नीरव मोदी की आड़ में प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधने के चक्कर में पूरे ओबीसी समाज का अपमान कर दिया। 2019 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 11 अप्रैल को कर्नाटक के कोलार में एक रैली के दौरान अपने भाषण में राहुल गांधी ने कहा था कि चोरों का सरनेम मोदी है। सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है, चाहे वह ललित मोदी हो या नीरव मोदी हो चाहे नरेन्द्र मोदी। राहुल गांधी के इस विवादित बयान से आहत गुजरात में सूरत पश्चिम के विधायक पूर्णेश मोदी ने 13 अप्रैल, 2019 को कोर्ट में मानहानि का केस दर्ज कराया। पूर्णेश का कहना था कि राहुल गांधी ने हमारे समाज को चोर कहा था। चुनावी सभा में हमारे खिलाफ आरोप लगाए गए, जिससे हमारी और समाज की भावनाओं को ठेस पहुंची।

राहुल के ‘असत्य’ की हार, पीएम मोदी के ‘सत्य’ की जीत 

आजादी के बाद से ही चली आ रही कांग्रेस की परंपरा का अनुसरण करते हुए राहुल गांधी ने एक भगोड़े नीरव मोदी के आर्थिक अपराध की सजा पूरे ओबीसी समाज को दी। यह मुद्दा भी 2019 के आम चुनाव के दौरान जनता की अदालत में पहुंचा। देश की जनता ने इस मामले में अपना बड़ा फैसला सुनाया। जनता ने राहुल गांधी के झूठे आरोपों को खारिज कर दिया और ‘असत्य’ की करारी हार हुई। प्रधानमंत्री मोदी को प्रचंड और 2014 से भी ज्यादा जनादेश देकर उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया। जनता की अदालत में सत्य की जीत हुई। इसके बाद 23 मार्च, 2023 को सूरत की अदालत में फिर ‘असत्य’ की हार हुई और कोर्ट ने राहुल गांधी को पूरे ओबीसी समाज पर हमले का दोषी करार दिया। इस मामले में कोर्ट ने दो साल की सजा सुनाई। हालांकि राहुल को कोर्ट से तुरंत जमानत मिल गई, लेकिन अब उनकी संसद सदस्यता भी चली गई है। रिप्रेजेंटेशन ऑफ द पीपल एक्ट 1951 के सेक्शन 8 (3) के मुताबिक 2 साल की सजा होने के बाद टेक्निकली संसद की सदस्यता खत्म हो जाती है। 

जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है- राजीव

गौरतलब है कि कांग्रेस और उसके नेता गांधी जी के अंहिसा के बताये रास्ते पर चलने दावा करते है। लेकिन वास्ताव में वो कभी इस रास्ते पर नहीं चलते हैं। किसी एक की गलती की सजा पूरे समाज को देते हैं। ऐसा ही 1984 में देखने को मिला, जब 31 अक्टूबर को नई दिल्ली के सफदरगंज रोड स्थित इंदिरा गांधी के आवास पर सुबह 9:30 बजे उनके अंगरक्षकों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने गोली मार कर हत्या की थी। हत्या तो बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने की थी, लेकिन इसकी सजा पूरे देश के सिखों को मिली। कांग्रेस के अघोषित अध्यक्ष राहुल गांधी के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिख विरोधी हिंसा का यह कहकर बचाव किया था कि, ‘जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो आसपास की धरती हिलती है।’

हिंसक कांग्रेसियों ने पूरे सिख समाज को दी सजा

1984 का दंगा स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा और क्रूर दंगा था, जिसकी रूह को हिला देने वाली घटनाएं आज भी लोगों को कंपा देती हैं। इस दंगे में करीब 2,733 लोगों को जान से मार दिया गया था। यह खौफनाक दंगा कांग्रेसी प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में हुआ था और कांग्रेसी नेताओं ने ही करवाया था। कांग्रेस नेता और पंजाब के मुख्यमंत्री रहे अमरिंदर सिंह ने स्वीकार किया था कि सिख दंगों की जिम्मेदार कांग्रेस है और दंगों में 5 कांग्रेसी नेता शामिल थे, जिसमें अर्जुन दास, ललित माकन, सज्जन कुमार, एचकेएल भगत शामिल हैं। दिल्ली में जगदीश टाइटलर, एच के एल भगत और अन्य कांग्रेसी नेताओं ने दंगे भड़काए, वह बात किसी से छुपी नहीं है। कांग्रेसी सरकारों ने आरोपियों पर कार्रवाई करने के बजाय उन्हें बचाने का काम किया था।

पीएम मोदी ने 84 के सिख दंगों के पीड़ितों के जख्मों पर लगाया मरहम

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केंद्र की सत्ता में आने के बाद 1984 के सिख दंगों के पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगाने और आरोपियों को सजा दिलाने का काम शुरू किया। प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता संभालते ही सिख दंगों की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया और पीड़ित परिवारों को इंसाफ दिलाया। इसी क्रम में मोदी सरकार ने दंगा पीड़ितों को एक और बड़ी राहत दी। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने 05 अगस्त, 2021 को सिख दंगा पीड़ितों के लिए एक पुनर्वास पैकेज की घोषणा की। इसमें प्रत्येक मृतक के आश्रितों को 3.50 लाख रुपये और घायलों को 1.25 लाख रुपये देने, मृतकों के विधवाओं और बुजुर्ग परिजनों को 2500 रुपये मासिक पेंशन देने का प्रावधान शामिल था। यह पेंशन उन्हें जीवनभर मिलेगी। इससे पहले 2014 में मोदी सरकार ने 1984 के दंगों में मारे गए लोगों को राहत देने की योजना शुरू की थी। 2021-22 के केंद्रीय बजट में इसके लिए 4.5 करोड़ रुपये का प्रावधान भी किया गया था।

कांग्रेसियों ने पूरे ब्राह्मण समाज को दी सजा

कांग्रेसियों ने गांधीवाद को तो 1948 में ही लात मार दी थी। 1984 की तरह 1948 में भी गांधी जी की हत्या के बाद भयंकर दंगा हुआ था। आजादी के 75 साल के बाद आज की युवा पीढ़ी को याद नहीं होगा कि गांधी जी की हत्या के बाद देश में भयानक नरसंहार हुआ था। गांधी जी की हत्या नाथूराम गोडसे ने की थी, लेकिन कांग्रेसियों ने इसकी सजा गोडसे की जाति के लोगों यानि पूरे चितपावन ब्राह्मणों को दी थी। उस दौरान महाराष्ट्र में हजारों चितपावन ब्राह्मणों का नरसंहार किया गया था। यह आजादा भारत का पहला नरसंहार था, जो तत्कालीन कांग्रेस नेताओं के इशारे पर हुआ था। इसकी शुरुआत 31 जनवरी से 3 फरवरी, 1948 तक पुणे में ब्राह्मणों पर हमले के साथ हुई और देखते-देखते इसकी आग पूरे राज्य में फैल गई। ब्राह्मणों के घरों को जलाया गया। उन पर जानलेवा हमला किया गया। इसमें हजारों ब्राह्मणों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। यहां तक कि कांग्रेसियों ने ब्राह्मणों का सामूहिक बहिष्कार किया था। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इस नरसंहार को दबाने की पूरी कोशिश की थी। भारत के अखबारों में इस नरसंहार की खबरें दबा दी गई थी। लेकिन विदेशी अख़बारों में इस पर रिपोर्ट छापी गई थी, जो आज गांधी जी के अनुयायी बताने वाले कांग्रेसियों के रक्तचरित्र का प्रमाण देती है। 

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