बिहार विधानसभा चुनावों में तेजस्वी यादव की सत्ता में वापसी की राह में कई चुनौतियां हैं। चुनाव में एक साथ उतरने को तैयार महागठबंधन के घटक दलों ने एक-दूसरे की पसंदीदा सीटों की सूची देखने भर के लिए तो सहमति बनी, लेकिन महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को सीएम कैंडिडेट बनाने पर सहमति नहीं दी है। महागठबंधन के नेताओं ने तय किया कि विधानसभा चुनाव में महागठबंधन जनता के बीच जाने के लिए एक कॉर्डिनेशन कमेटी का गठन करेगा। तेजस्वी यादव को इस कॉर्डिनेशन कमेटी का चेयरमैन बनाया गया है। भले ही तेजस्वी को कॉर्डिनेशन कमेटी की कमान दे दी गई, लेकिन महागठबंधन के चेहरे के तौर पर तेजस्वी के नाम का ऐलान नहीं हो पाने से उनका मामला अटक गया है। इस बीच तेजस्वी यादव दो तरफा सियासी चुनौतियों से घिरे हुए हैं। एक तरफ एनडीए के निशाने पर तेजस्वी हैं, तो दूसरी तरफ असदुद्दीन ओवैसी से लेकर प्रशांत किशोर से भी उन्हें दो-दो हाथ करने पड़ रहे हैं। इसके अलावा कांग्रेस ने भी तेजस्वी यादव की सियासी टेंशन बढ़ा रखी है। ऐसे में सवाल उठता है कि ओवैसी से लेकर पीके तक के सियासी चक्रव्यूह को तेजस्वी यादव कैसे तोड़ पाएंगे?
तेजस्वी को मुख्यमंत्री फेस के रूप में भी सहमति नहीं मिली
तेजस्वी यादव बिहार की सियासत में खुद को स्थापित करने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। लेकिन उनकी राह में कई सियासी बाधाएं है। ओवैसी से लेकर पीके तक के सवाल तेजस्वी यादव के लिए चुभने वाले हैं। ऐसे में आरजेडी के लिए चुनौती बढ़ती जा रही है। इन बढ़ती सियासी पेचीदगियों के बीच गुरुवार को विरोधी दल के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव के सरकारी आवास पर महागठबंधन के घटक दलों की हुई बैठक हुई। इसमें सभी सहयोगी दल न्यूनतम साझा कार्यक्रम के तहत सदन से सड़क तक साझा संघर्ष करने को सहमत हुए। लालू यादव और तेजस्वी यादव को उम्मीद थी कि महागठबंधन की इस बैठक में तेजस्वी को मुख्यमंत्री फेस के रूप में भी सहमति मिल जाएगी। लेकिन गठबंधन के नेताओं ने इस मुद्दे पर विचार-मंथन करने की जरूरत ही नहीं समझी। अब तेजस्वी यादव की उम्मीद पांच जुलाई को संभावित अगली बैठक से है।तेजस्वी के लिए मुस्लिम और दलित वोट बैंक को साधना मुश्किल
बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश बढ़ने के साथ ही राजनीतिक एजेंडा सेट किए जाने लगे हैं। बिहार में एनडीए की अगुवाई कर रहे नीतीश कुमार सत्ता में बने रहने के समीकरणों को फिर से अपनी ओर मोड़ने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। दरअसल, तेजस्वी यादव के लिए इस बार मुस्लिम और दलित वोट बैंक को साधना और पार्टी के भीतर मतभेदों को सुलझाना बहुत मुश्किलभरा होता जा रहा है। इसके अलावा बिहार की सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए तेजस्वी के लिए सबसे बड़ी चुनौती एनडीए है। नीतीश कुमार के अगुवाई वाले एनडीए में जेडीयू, बीजेपी, एलजेपी, जीतनराम मांझी की HAM और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी और कई मजबूत और जनाधार वाले नेता शामिल हैं। इस तरह एनडीए एक मजबूत गठबंधन और समीकरण के सहारे तेजस्वी यादव के अगुवाई वाले आरजेडी को घेर रखा है। बिहार का चुनावी मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच माना जा रहा है। महागठबंधन में आरजेडी और कांग्रेस सहित वामपंथी दल भी शामिल हैं, लेकिन एनडीए के निशाने पर तेजस्वी यादव हैं।
ओवैसी के चलते गड़बड़ा रहे हैं तेजस्वी यादव के सियासी समीकरण
मुस्लिम सियासत का आक्रामक चेहरा माने जाने वाले असदुद्दीन ओवैसी बिहार में पूरे दमखम के साथ चुनाव में उतरने की तैयारी की है। इसकी झलक दिल्ली चुनाव में ही दिख गई थी। दिल्ली में जिस तरह से ओवैसी के टारगेट पर केजरीवाल रहे हैं, उसी तरह से बिहार में उनके निशाने पर तेजस्वी यादव रहते हैं। मुस्लिम बहुल वाले सीमांचल में ओवैसी ने 2020 के चुनाव में पांच सीटें जीतकर तेजस्वी यादव के सत्ता में वापसी करने की उम्मीदों को बड़ा झटका दिया था। मुस्लिम दबदबे वाले सीमांचल के इलाके की सीटों पर ओवैसी का सियासी आधार है और बिहार में मुस्लिम वोट आरजेडी का परंपरागत रहा है, लेकिन AIMIM के चलते तेजस्वी यादव का गेम गड़बड़ाता हुआ नजर आ रहा है।
AIMIM महागठबंधन के खिलाफ मुस्लिम कैंडिडेट उतारेगी
बिहार के विधानसभा उपचुनावों में भी ओवैसी अपनी उपस्थिति से आरजेडी का खेल गोपालगंज सीट पर बिगाड़ चुके हैं। इस बार के चुनाव में दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर ओवैसी ने महागठबंधन के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतारने की तैयारी की है, जिसमें ज्यादातर मुस्लिम कैंडिडेट होंगे। मुस्लिम प्रत्याशी के उतारने से सबसे ज्यादा चुनौती आरजेडी की बढ़ने वाली है। इस तरह राजनीतिक जानकारों के मुताबिक ओवैसी के चुनाव मैदान में पूरे दमखम से उतरने से इस बात की संभावना बन रही है कि तेजस्वी यादव के समीकरण बिगड़ सकते हैं।
राजद के वोटबैंक में सैंध से PK बढ़ा रहे तेजस्वी की टेंशन
AIMIM के औवेसी के अलावा चुनावी रणनीतिकार से सियासी पिच पर उतरे प्रशांत किशोर भी तेजस्वी यादव के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनते जा रहे हैं। प्रशांत किशोर जन सुराज नाम से अपनी पार्टी बना ली है और 2025 के विधानसभा चुनाव पूरे दमखम के साथ लड़ने की तैयारी में हैं। आरजेडी को घेरने के लिए विरोधी लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल और पॉलिटिक्स की याद दिलाते हैं। इसे काउंटर करना तेजस्वी यादव के लिए भी आसान नहीं रहता। इस तरह से पीके के सवाल तेजस्वी यादव को ज्यादा परेशान कर रहे हैं। पीके अक्सर तेजस्वी को नवीं फेल बताकर मजाक उड़ाते नजर आते हैं, तो साथ ही लालू प्रसाद यादव के बेटे होने का तंज कसते हैं। पीके की नजर उसी वोट बैंक पर है, जिस पर आरजेडी खड़ी है। प्रशांत किशोर दलित, मुस्लिम और अति पिछड़ा वर्ग के वोट बैंक पर नजर गढ़ाए हुए हैं, जिससे तेजस्वी यादव की सियासी टेंशन बढ़ रही है।
इस बार सहयोगी कांग्रेस भी कर रही आरजेडी को परेशान
बिहार में कांग्रेस भी अलग से आरजेडी और तेजस्वी की टेंशन बढ़ा रही है। पिछले दो दशकों से कांग्रेस बिहार में आरजेडी के सहारे राजनीति करती रही है, लेकिन इस बार लालू यादव की पकड़ से बाहर निकलकर अपनी खोए हुए सियासी आधार को पाना चाहती है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक कांग्रेस को खोया आधार मिले ना मिले, लेकिन आरजेडी का खेल जरूर बिगड़ सकता है। दरअसल, कांग्रेस की नजर भी उसी दलित और मुस्लिम वोटों को साधने की है, जो आरजेडी का कोर वोटबैंक माना जाता है। इसके अलावा सीट शेयरिंग को लेकर भी कांग्रेस लोकसभा चुनाव के आधार पर बंटवारा चाहती है, लेकिन आरजेडी बहुत ज्यादा देने के मूड में नहीं है।
बिहार में कोई छोटा-बड़ा भाई नहीं, सब बराबर हैं – कांग्रेस
इससे भी दोनों के बीच चुनाव आते-आते मतभेद बढ़ सकते हैं। यह इससे भी समझा जा सकता है कि कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावारु ने बिहार में महीने भर रहने के बावजूद लालू यादव से नहीं मिले। कांग्रेस के सहप्रभारी शाहनवाज आलम भी अलग ही राह पर हैं और बिहार में मुस्लिम डिप्टी सीएम बनाने की मांग उठा रहे हैं। इसके अलावा कन्हैया कुमार बिहार की सियासत में सक्रिय हो गए हैं और चंपारण से पदयात्रा शुरू कर दी है। आरजेडी बिहार में कन्हैया के एक्टिव होने पर अभी तक अपना वीटो पावर लगा रखा था, लेकिन अब कांग्रेस ने लालू यादव के परवाह किए बगैर उन्हें सक्रिय कर दिया है। कांग्रेस ने जिस तरह नजरें बदली हैं, वो तेवर आरजेडी को परेशान कर रहे हैं। इतना ही नहीं कांग्रेस नेता साफ कह रहे हैं कि बिहार में कोई छोटा और बड़ा भाई नहीं है बल्कि बराबर हैं। तेजस्वी यादव की चिंता अभी तक जन सुराज पार्टी के सूत्रधार पीके (प्रशांत किशोर) बढ़ाए हुए थे, लेकिन अब केके (कृष्णा अल्लावरु और कन्हैया कुमार) भी छकाने लगे हैं।बिहार चुनाव से ऐन पहले भाई तेज प्रताप ने भी अपनाए बगावती तेवर
आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को पार्टी और विरोधी नेताओं से ही नहीं, अपने घर में भी मुश्किलों से जूझना पड़ रहा है। बिहार विधानसभा चुनाव से ऐन पहले लालू यादव ने अपने ‘लाल’ से नाता तोड़ लिया। लालू-राबड़ी के बेटे तेज प्रताप यादव ने अपना रिलेशनशिप वाला शिगुफा क्या छोड़ा, उससे लालू समेत सारी पार्टी ही असहज हो गई। उन्हें लगा कि इससे चुनाव में विरोधियों को अच्छा मौका मिल जाएगा। इसलिए सीने पर पत्थर रखकर आखिरकार लालू प्रसाद यादव को कड़ा फैसला लेना ही पड़ा। तेज प्रताप यादव को पार्टी से परिवार से निकाले जाने की घोषणा करते हुए लालू के जो सोशल मीडिया पोस्ट किया, उसमें भी यह बात स्पष्ट हो रही है। लालू यादव ने अपने बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को पार्टी से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया। जिसके बाद उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं। सवाल यह है कि तेज प्रताप यादव का अगला कदम क्या होगा, क्या वे नई पार्टी बनाएंगे या किसी अन्य दल में शामिल होंगे, या फिर निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे। इस बीच लालू यादव की बहू ऐश्वर्या ने दावा किया कि उनके पति तेज प्रताप यादव को पार्टी से निष्कासित करना आगामी बिहार विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर किया गया एक ‘नाटक’ है। भाजपा और अन्य दलों ने भी लालू के इस कदम को चुनाव के लिए उठाया गया राजनीतिक स्टंट करार दिया है। यह तय है कि तेज प्रताप को लेकर लालू-तेजस्वी को विधानसभा चुनाव में नुकसान उठाना पड़ेगा।
पत्नी ऐश्वर्या बोली- बिहार विधानसभा चुनाव के लिए लालू का नाटक
बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन चुनावी तैयारियों से पहले ही लालू यादव के कुनबे में बम फूट गया है। लालू प्रसाद ने अपने बड़े बेटे तेजप्रताप यादव को कथित रूप से ‘गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार’ के कारण छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया और उनके साथ सभी पारिवारिक संबंध भी तोड़ दिए। इस बीच तेज की पत्नी ऐश्वर्या ने संवाददाताओं से बात करते हुए अपने ससुराल वालों पर एक ऐसे व्यक्ति से उनकी शादी कराकर जीवन बर्बाद करने का आरोप लगाया, जिसका व्यवहार ‘असामान्य’ है। ऐश्वर्या ने यह भी जोर देकर कहा, ‘इस परिवार का यह नाटक चुनावों को ध्यान में रखकर किया गया है। मुझे नहीं लगता कि कोई दरार है। वे सभी मिले हुए हैं। मुझे यकीन है कि कल भी राबड़ी देवी (ऐश्वर्या की सास) ने तेजप्रताप के आंसू पोंछकर और यह आश्वस्त करके उन्हें सांत्वना देने की कोशिश की होगी कि सभी चीजें सुलझ जाएंगी।’ तेजप्रताप और ऐश्वर्या ने 2018 में शादी की थी, लेकिन बाद में ऐश्वर्या ने शारीरिक और भावनात्मक यातना का आरोप लगाते हुए ससुराल छोड़ दिया।
तेज प्रताप खुद बताया, 12 साल से लड़की के साथ रिलेशनशिप में हैं
दरअसल, लालू यादव के कुनबे में इस सुलगते विवाद को चिंगारी भी खुद तेज प्रताप यादव ने ही दिखाई है। तेज प्रताप के फेसबुक पेज से दो दिन पहले ही घोषणा की गई थी कि वो एक युवती के साथ 12 साल से रिश्ते में हैं। यह पोस्ट तेजी से वायरल होने लगी तो उन्होंने कुछ घंटों बाद ही इस पोस्ट हटा दिया और एक्स प्लेटफार्म पर दावा किया कि उनका फेसबुक पेज हैक हो गया था। जब ऐश्वर्या से इस पोस्ट के बारे में पूछा गया तो उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा, ‘तो, वह (तेजप्रताप) खुद कह रहे हैं कि वह किसी और के साथ रिश्ते में हैं। क्या यह बात उनके परिवार वालों को नहीं पता थी। लालू जी, राबड़ी जी और तेजस्वी जी ने मेरी शादी ऐसे व्यक्ति से क्यों करवाई? मेरी जिंदगी बर्बाद हो गई है।’
तेज प्रताप की हरकतों से पहले भी हुई लालू परिवार की किरकिरी
लालू यादव के इस फैसले को चुनाव से जोड़कर देखने वालों के भी अपने तर्क हैं। तर्क यह भी दिए जा रहे हैं कि पहले भी कई बार तेज प्रताप ने ऐसी हरकतें की हैं, जिनसे पार्टी और लालू परिवार की किरकिरी हुई है। लेकिन कभी कोई सख्त कदम नहीं उठाया गया। उदाहरण होली के समय सिपाही सें ठुमका लगाने की बात से लेकर मुख्यमंत्री आवास के बाहर हंगामा, जगदानंद सिंह के एक फैसले के खिलाफ कोर्ट जाने की धमकी तक के दिए जा रहे हैं। बीजेपी साफ-साफ लालू के फैसले को चुनाव से पहले स्टंट बता रही है। सत्ताधारी एनडीए के सबसे बड़े घटक भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता नितिन नवीन ने लालू यादव के तेज प्रताप यादव को आरजेडी से निकालने के फैसले को पूरी तरह से राजनीतिक स्टंट बताया है।
लालू यादव ने शुरू से ही तेज प्रताप की गलतियों को पनाह दी
कभी तेजस्वी को ‘अर्जुन’ और खुद को ‘कृष्ण’ बताने वाले तेज प्रताप यादव आज राजद और लालू परिवार से निकाल दिए गए। मां के सम्मान के लिए पत्नी को छोड़ने का दावा करने वाले तेज प्रताप यादव को उनके पिता लालू प्रसाद यादव ने ही पार्टी और परिवार से बेदखल कर दिया। बिहार की राजनीति में दशकों से काबिज लालू परिवार में शुरू हुए झंझावत अब किस करवट मुड़ेगा? यह कहना अभी मुश्किल है। लेकिन लालू यादव ने जिस तरह से तेज प्रताप यादव को निकाला है, उससे खुद लालू यादव पर भी सवालिया निशान उठने लगे हैं। ‘लालू के लाल’ तेज प्रताप यादव ने पूर्व में कई ऐसे काम किए, जिसने राजद की मुश्किलें बढ़ाई। लेकिन तब कार्रवाई के बजाए लालू यादव अपने लाल को पनाह देते रहे। जानकारों का कहना है कि लालू परिवार में शुरू से ही तेज प्रताप यादव उस मनमर्जी वाले बच्चे की तरह रहे, जो सामाजिक-राजनीतिक मान-मर्यादाओं को ताक पर रखते हुए केवल अपनी मर्जी के साथ जीना पसंद करता है।
लालू-तेजस्वी विधानसभा से तेज प्रताप की सदस्यता रद्द कराएं
तेज प्रताप यादव को लेकर जेडीयू ने आरजेडी पर हमला बोला है। जेडीयू के प्रवक्ता नीरज कुमार ने तेज प्रताप यादव की सदस्यता रद्द करने की मांग उठाई है। एक बयान में नीरज कुमार ने कहा कि तेज प्रताप यादव लालू प्रसाद यादव के बेटे हैं और अनुशासनहीनता उन्होंने पहली बार नहीं की है। जेडीयू नेता नीरज कुमार ने आगे कहा, “दरोगा प्रसाद राय जो इस राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रहे हैं, जिनका सम्मान है। उनकी पोती ऐश्वर्या राय जो मिरांडा हाउस में पढ़ी, उसके साथ जब जुल्म हो रहा था तो इनका (लालू यादव) ट्वीट खामोश था। आज आई वॉश कर रहे हैं। उन्होंने लालू प्रसाद के बड़े बेटे को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि यदि तेज प्रताप यादव ने गुनाह किया है। आप (लालू) पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, विधानमंडल के नेता तेजस्वी यादव हैं, तो तेजस्वी यादव विधानसभा को लिखें कि तेज प्रताप यादव सदस्यता को निरस्त किया जाए, नहीं तो माना जाएगा कि आप पूरे तौर पर इस मामले में चूहा-बिल्ली का खेल खेल रहे हैं।चुनाव को देखते हुए मर्यादा और सीमाएं लांघना याद आया- लोजपा
भाजपा नेता दानिश इकबाल ने तेज प्रताप की पत्नी ऐश्वर्या का नाम लिए बिना कहा कि बिहार की एक बेटी का अपमान पूरे लालू परिवार ने किया। लालू यादव ने संस्कार सही दिया होता तो आज ये नौबत नहीं आती। उन्होंने कहा कि परवरिश की कमी साफ झलकती है। वहीं, चिराग पासवान की अगुवाई वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने तंज करते हुए कहा है कि चुनाव को देखते हुए इनको मर्यादा और सीमाएं लांघना याद आ रहा है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के मुताबिक लालू यादव के घर के अंदर जो राजनीतिक नूरा-कुश्ती चल रही है, ये तेज प्रताप एपिसोड उसका ही परिचायक है। बिहार में एनडीए सरकार की अगुवाई कर रही जनता दल (यूनाइटेड) राजीव रंजन ने कहा है कि ऐश्वर्या के साथ जो महापाप उस परिवार ने किया, उस समय लालू यादव की चेतना क्यों नहीं जाग रही थी? ये शुद्ध अनैतिकता है। उन्होंने कहा कि चुनाव के समय लोगों को गुमराह करने के लिए तेज प्रताप को दिखावे के लिए पार्टी और परिवार से निकालने की बात कही गई है। जेडीयू प्रवक्ता ने यह भी कहा कि देखिएगा, चुनाव के बाद ये परिवार में जैसे थे वैसे ही रहेंगे और पार्टी में भी वैसे ही उनकी वापसी हो जाएगी। उन्होंने कहा कि बेटियों का सम्मान बिहार की संस्कृति रही है और महिलाएं चुनाव में इसका जवाब देंगी।
Former Minister Tej Pratap Yadav Tweets, “With the infinite grace and blessings of Shri Banke Bihari Ji, I have got the good fortune of becoming the elder father on the arrival of the newborn baby (the birth of a son).. Hearty congratulations and best wishes to younger brother… pic.twitter.com/BlvDrxdyF6
— IANS (@ians_india) May 27, 2025
अब तेज प्रताप यादव के पास चुनावी ऑप्शन क्या है?
इससे पहले जब तेज प्रताप यादव किसी वजह से नाराज होते थे तो उनके पास एनडीए से जुड़ी पार्टियों का ऑप्शन होता था। मगर, इस बार हालात अलग है। लालू यादव ने खुद से उनको पार्टी से बेदखल किया है। इस बार पहले वाले हालात नहीं है। इतना तो साफ हो गया है कि आरजेडी के टिकट पर तेज प्रताप यादव चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। अब देखना यह है कि तेज प्रताप क्या भाई के खिलाफ नई पार्टी बनाते हैं या फिर आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनावी समर में उतरेंगे। अगर, वो निर्दलीय चुनाव लड़े तो हो सकता है कि तेज प्रताप के खिलाफ वहां पर महागठबंधन अपना कैंडिडेट ही न दे। ताकि, तेज प्रताप की राह को आसान बनाया जा सके।
चुनाव लड़े तो तेज प्रताप को अपने 5 संगठनों से मिलेगी मदद
धर्म समर्थक सेवक संघ: 2017 में तेज प्रताप ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का मुकाबला करने के लिए धर्म समर्थक सेवक संघ (DSS) नाम का संगठन बनाया। उन्होंने ट्विटर पर DSS का एक टीजर भी लॉन्च किया था।
यदुवंशी सेना: तेज प्रताप ‘यदुवंशी सेना’ का गठन कर चुके हैं। बिहार में यादव समुदाय की आबादी 12 प्रतिशत है। इसके जरिए उन्होंने यादव समुदाय के युवाओं को अपने साथ जोड़ा था।
तेज सेना: तेज प्रताप यादव ने 28 जून 2019 को ‘तेज सेना’ नाम के संगठन का गठन किया था। तब उन्होंने युवाओं से अपनी सेना में शामिल होने की अपील की थी।
लालू-राबड़ी मोर्चा: अप्रैल 2019 में तेज प्रताप यादव ने राष्ट्रीय जनता दल के कामकाज से नाराज होकार लालू-राबड़ी मोर्चा नाम से समानांतर राजनीतिक संगठन बनाया था। लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी के भीतर आंतरिक दरार के तौर पर देखा गया था।
छात्र जनशक्ति परिषद: तेज प्रताप यादव ने सितंबर 2021 में छात्र जनशक्ति परिषद नाम के एक नए छात्र संगठन की स्थापना की। राजद के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के साथ हुए विवाद के बाद बनाए थे।