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पीएम मोदी का देश के गरीबों को दिवाली का तोहफा! 80 करोड़ गरीबों को 5 साल और मिलेगा फ्री राशन

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के गरीब लोगों को दिवाली से पहले बड़ा तोहफा दिया है। पीएम मोदी ने 4 नवंबर 2023 को छत्तीसगढ़ के दुर्ग में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा कि केंद्र सरकार 80 करोड़ गरीब परिवार को मुफ्त राशन योजना का फायदा अगले 5 साल तक बढ़ाएगी। उन्होंने कहा कि 2014 में सरकार में आने के बाद से ही उन्होंने देश के गरीबों के कल्याण को सबसे अधिक प्राथमिकता दी। उन्होंने इस दौरान ये भी कहा कि कांग्रेस ने गरीबों को धोखे के सिवाय कभी कुछ नहीं दिया। गरीबों को मुफ्त राशन देने वाली प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना कोविड-19 के दौरान शुरू की गई थी। लेकिन गरीबों की समृद्धि के लिए प्रतिबद्ध प्रधानमंत्री मोदी इस योजना को कई बार आगे बढ़ा चुके हैं।

पीएम ने कहा – गरीबों को भूखे सोने नहीं दूंगा
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जब कोरोना का मुश्किल भरा समय आया था, तब इस देश की गरीब जनता को सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ा था। गरीबों के सामने सबसे बड़ा संकट ये था कि वो खुद क्या खाएं और बच्चों को क्या खिलाएं। उन्होंने कहा कि ऐसे में हमने फैसला किया कि देश के गरीबों को भूखे रहने नहीं दूंगा। गरीबों को दो वक्त का भरपेट भोजन मिले, इसके लिए हमारी सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना शुरू की। जिसे आगे भी जारी रखा जाएगा।

दिसंबर 2023 के बाद भी मिलता रहेगा फ्री राशन
पीएम मोदी ने कोरोना का जिक्र करते हुए कहा कि जब पूरी दुनिया त्राहिमाम कर रही थी। पूरी दुनिया में खाने का संकट पैदा हो गया था। हमने उस समय पीएम गरीब कल्याण योजना शुरु की, जिससे आपको आज भी फ्री में चावल और चने मिल रहे हैं। ये योजना दिसंबर में खत्म हो रही है, लेकिन हम इसे अगले 5 सालों के लिए और बढ़ा रहे हैं। ऐसे में देश के गरीब परिवारों को फ्री राशन की सुविधा दिसंबर बाद भी मिलती रहेगी। पहले इस स्कीम को दिसंबर 2023 तक जारी रखा जाना था।

कांग्रेस गरीबों के हक का पैसा लूटकर तिजोरी भरती रहीः पीएम मोदी
छत्तीसगढ़ के दुर्ग में रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि साल 2014 में सरकार बनाने के बाद से ही उन्होंने देश के गरीबों के कल्याण को सबसे ज्यादा प्राथमिकता दी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस कभी नहीं चाहती कि देश के गरीबों का भला हो। उन्होंने कहा कि कांग्रेस गरीबों को हमेशा गरीब ही बनाए रखना चाहती है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने गरीबों को धोखे के सिवाय कभी कुछ नहीं दिया। जब तक कांग्रेस केंद्र सरकार में रही, वो गरीबों के हक का पैसा लूटकर अपने नेताओं की तिजोरी में भरती रही।

कोरोना काल में 26 मार्च 2020 को शुरू की गई थी योजना
मोदी सरकार ने 26 मार्च, 2020 को लॉकडाउन के प्रभाव से 80 करोड़ गरीबों को बचाने के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के एक हिस्से के रूप में सरकार ने महिलाओं, गरीब वरिष्ठ नागरिकों, किसानों को मुफ्त में अनाज देने और नकद भुगतान करने की घोषणा की। इस पैकेज के तेजी से कार्यान्वयन पर केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से लगातार पैनी नजर रखी गई। राहत के उपाय तेजी से जरूरतमंदों तक पहुंच सके इसके लिए फि‍नटेक और डिजिटल तकनीक का उपयोग किया गया। डीबीटी यह सुनिश्चित करता है कि राशि सीधे लाभार्थी के खाते में ही जमा हो। डीबीटी से धनराशि के कहीं और न जाने की गुंजाइश ही नहीं रहती।

IMF ने की प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की तारीफ
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की तारीफ अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भी की है। आइएमएफ ने कहा है कि कोरोना महामारी के दौरान मोदी सरकार ने जिस तरह से काम किया, वह काफी सराहनीय है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में चलाई गई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की तारीफ करते हुए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा कि इससे देश में गरीबी रोकने में मदद मिली है। इस योजना से कोरोना महामारी के समय में भी समाज के कमजोर वर्गों को लगातार बुनियादी सुविधाएं मिलती रही। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के माध्यम से महिलाओं, गरीब वरिष्ठ नागरिकों और किसानों को मुफ्त में अनाज के साथ नकद सहायता मिली है।

5 साल में 13.5 करोड़ लोग गरीबी से निकले बाहर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की बागडोर संभालने के साथ ही गरीबों के कल्याण के लिए काम करना शुरू कर दिया। सरकारी योजनाओं का शत-प्रतिशत लाभ सीधे गरीबों तक पहुंचाया। उनकी कल्याणकारी नीतियों और योजनाओं ने गरीबों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लाया है। इसका प्रमाण नीति आयोग द्वारा जारी राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक की रिपोर्ट से मिलता है। इस सूचचांक के मुताबिक पिछले पांच सालों में करीब 13.5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले हैं।

देश में गरीब लोगों का प्रतिशत 24.85 से घटकर हुआ 14.96 प्रतिशत

सोमवार (17 जुलाई, 2023) को नीति आयोग के उपाध्यक्ष सुमन बेरी ने “राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांकः एक प्रगति संबंधी समीक्षा 2023” की रिपोर्ट जारी की। आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार के कार्यकाल में दो नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे हुए। इससे पता चलता है कि बहुआयामी गरीबी को कम करने में मोदी सरकार को बड़ी सफलता मिली है। 2015-16 और 2019-20 के बीच देश में गरीबों की संख्या करीब 24.85 प्रतिशत थी, जो अब गिरकर करीब 14.96 प्रतिशत तक पहुंच गई है। यानि कुल 9.89 प्रतिशत की शानदार गिरावट सामने आई है। 

शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी के प्रतिशत में तेज गिरावट

शहरी और ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों में गरीबी के प्रतिशत में गिरावट आई है।  2015-16 और 2019-20 के दौरान शहरी क्षेत्रों में गरीबी 8.65 प्रतिशत से गिरकर 5.27 प्रतिशत हो गई, इसके मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी काफी तेजी से 32.59 प्रतिशत से घटकर 19.28 प्रतिशत हो गई है । यूपी, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में सबसे ज्यादा लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले हैं। उत्तर प्रदेश में 3.43 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से मुक्त हुए जो कि गरीबों की संख्या में सबसे बड़ी गिरावट है। 36 राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों और 707 प्रशासनिक जिलों के लिए बहुआयामी गरीबी संबंधी अनुमान प्रदान करने वाली रिपोर्ट से पता चलता है कि बहुआयामी गरीबों के अनुपात में सबसे तीव्र कमी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, ओडिशा और राजस्थान राज्यों में हुई है। 

India records a dramatic decline in #poverty headcount ratio from 24.85% to 14.96% in past 5️⃣ years.

UP, Bihar, and MP have recorded steepest decline in number of #MPI poor. #Amritkaal #ViksitBharat #DeshBadalRahaHai
#PovertyDecline #MPI pic.twitter.com/mKYHqeHVWr

— NITI Aayog (@NITIAayog) July 17, 2023

2030 से काफी पहले एसडीजी लक्ष्य हासिल करेगा भारत

मोदी सरकार गरीबी उन्मूलन की दिशा में तेजी से काम कर रही है। इसका असर भी दिखाई दे रहा है। एमपीआई मूल्य 0.117 से लगभग आधा होकर 0.066 हो गया है। वर्ष 2015-16 से 2019-21 के बीच गरीबी की तीव्रता 47 प्रतिशत से घटकर 44 प्रतिशत हो गई है, जिसके फलस्वरूप भारत 2030 की निर्धारित समय सीमा से काफी पहले एसडीजी लक्ष्य 1.2 (बहुआयामी गरीबी को कम से कम आधा कम करने का लक्ष्य) को हासिल करने के पथ पर अग्रसर है। इससे सतत और सबका विकास सुनिश्चित करने और वर्ष 2030 तक गरीबी उन्मूलन पर सरकार का रणनीतिक फोकस और एसडीजी के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

गरीबी सूचकांक के सभी 12 मापदंडों में उल्लेखनीय सुधार

गरीबी उन्मूलन की दिशा में यह सफलता स्वच्छता, पोषण, रसोई गैस, वित्तीय समावेशन, पेयजल और बिजली तक गरीबों की बढ़ती पहुंच से मिली है। मोदी सरकार ने इस दिशा में काफी काम किया है। इसका परिणाम है कि बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) के सभी 12 मापदंडों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है। पोषण अभियान और एनीमिया मुक्त भारत जैसे प्रमुख कार्यक्रमों ने स्वास्थ्य में अभावों को कम करने में योगदान दिया है, जबकि स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) और जल जीवन मिशन (जेजेएम) जैसी पहलों ने देशभर में स्वच्छता संबंधी सुधार किया है। स्वच्छता अभावों में इन प्रयासों के प्रभाव के परिणामस्वरूप तेजी से और स्पष्ट रूप से 21.8 प्रतिशत अंकों का सुधार हुआ है।

मोदी सरकार की योजनाओं ने बदली महिलाओं और गरीबों की जिंदगी

प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के माध्यम से सब्सिडी वाले रसोई गैस ने महिलाओं के जीवन को सकारात्मक रूप से बदल दिया है, और रसोई गैस की कमी में 14.6% अंकों का सुधार हुआ है। सौभाग्य, प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई), प्रधानमंत्री जनधन योजना (पीएमजेडीवाई) और समग्र शिक्षा जैसी पहलों ने भी बहुआयामी गरीबी को कम करने में प्रमुख भूमिका निभाई है। विशेष रूप से बिजली के लिए अत्यन्त कम अभाव दर, बैंक खातों तक पहुंच तथा पेयजल सुविधा के माध्यम से उल्लेखनीय प्रगति प्राप्त करना नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाने और सभी के लिए एक उज्ज्वल भविष्य बनाने के लिए सरकार की अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

आइए देखते हैं हाल ही में जारी संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) की नवीनतम रिपोर्ट में किस तरह भारत में गरीबी दूर करने में सफलता मिली है… 

यूएन ने की मनमोहन और मोदी सरकार में गरीबों पर तुलनात्मक स्टडी
इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी और फिर मनमोहन सरकार तक गरीबी हटाओ के नारे के साथ सिर्फ चुनाव ही जीतती रही हैं। गरीबी के उत्थान और उनके कल्याण के लिए कांग्रेस सरकारों ने कभी गंभीरता के साथ कोई कार्यक्रम नहीं चलाए। यही वजह है कि कांग्रेस सरकारों के दौरान देश के करोड़ों लोग गरीबी और महंगाई के कुचक्र में फंसे रहे। संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) की नवीनतम रिपोर्ट में भारत का जिक्र करते हुए बताया गया कि कांग्रेस की मनमोहन सरकार के दौरान साल 2005-2006 में जहां 55% लोग गरीबी रेखा से नीचे थे, वहीं साल मोदी सरकार के कार्यकाल में 2021 तक ही गरीबी के आंकड़े घटकर 16% ही रह गए। पीएम मोदी के शत-प्रतिशत सैचुरेशन और हर योजना को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने के विजन के चलते ही गरीबी सूचकांक में भारत का प्रदर्शन बेहतर हुआ है।पीएम मोदी के विजन से पहले कार्यकाल में ही घट गए करोड़ों गरीब
संयुक्त राष्ट्र ने 11 जुलाई को दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश भारत की गरीबी को खत्म करने में उल्लेखनीय उपलब्धियों की मुक्त कंठ से सराहना की। इसे संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (ओपीएचआई) ने संयुक्त रूप से जारी वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) की नवीनतम रिपोर्ट में बताया गया कि कैसे भारत में पिछले एक दशक में गरीबों के आंकड़ों में आशातीत कमी आई है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में मनमोहन सरकार के दौरान देश में 64.45 करोड़ गरीब थे। मई 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही नरेन्द्र मोदी गरीब कल्याण के प्रति निरंतर समर्पित रहे। गरीबों के वास्तविक उत्थान की उनकी सोच का ही सुपरिणाम है कि 2016 में भारत में गरीबों की संख्या घटकर 37 करोड़ ही रह गई।सबसे गरीब राज्यों और वंचित जाति समूहों में गरीबी में गिरावट सबसे तेज
इसके अलावा रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में सभी संकेतकों में उल्लेखनीय गिरावट आई है। इसमें भी सबसे गरीब राज्यों और वंचित जाति समूहों में गरीबी में गिरावट सबसे तेज दर्ज की गई है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि गरीबी के विभिन्न दरों वाले देशों ने अपने वैश्विक एमपीआई मूल्य को आधा कर दिया है। जबकि ऐसा करने वाले 17 देशों में पहली अवधि में 25 प्रतिशत से कम गरीबी दर थी, वहीं भारत और कांगो में तो शुरुआती दर 50 प्रतिशत से ऊपर थी। इस ” तरह भारत उन 19 देशों में शामिल था, जिन्होंने एक अवधि के दौरान अपने वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक के (एमपीआई) मूल्य को आधा कर दिया था। रिपोर्ट में कोरोना काल के कारण अध्ययन की मुश्किलों का भी जिक्र है।

भारत इसी साल चीन को पीछे छोड़कर बना सबसे अधिक आबादी वाला देश
संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2023 में भारत 142.86 करोड़ लोगों की आबादी के साथ चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया। रिपोर्ट में कहा गया, ‘भारत में विशेष रूप से गरीबी में उल्लेखनीय कमी दिखी। यहां डेढ़ दशक की अवधि के भीतर 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले। रिपोर्ट बताती है कि गरीबी से निपटा जा सकता है। भारत में 2005-2006 से 2019-2021 के दौरान 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले। 2005-2006 में जहां गरीबों की आबादी 55.1 प्रतिशत थी, वह 2021 में घटकर 16.4 प्रतिशत हो गई।सभी संकेतकों में कमी, पोषण और बाल मृत्यु दर के आंकड़े भी हुए बेहतर
यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक मनमोहन सिंह की सरकार के दौरान में भारत में लगभग 64.5 करोड़ लोग गरीबी की सूची में शामिल थे, यह संख्या 2015-2016 में घटकर लगभग 37 करोड़ और 2019-2021 में कम होकर 23 करोड़ हो गई। रिपोर्ट के अनुसार भारत में सभी संकेतकों के अनुसार गरीबी में गिरावट आई है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में पोषण संकेतक के तहत बहुआयामी रूप से गरीब और वंचित लोग 2005-2006 में 44.3 प्रतिशत थे जो 2019-2021 में कम होकर 11.8 प्रतिशत हो गए। इस दौरान और बाल मृत्यु दर 4.5 प्रतिशत से घटकर 1.5 प्रतिशत हो गई।

गरीबों में खाना पकाने के ईंधन की उपलब्धता बढ़ी
यह मोदी सरकार की पीएम उज्ज्वला योजना का ही असर है, जो रिपोर्ट में साफ नजर आता है। रिपोर्ट के अनुसार जो खाना पकाने के ईंधन से वंचित गरीबों की संख्या भारत में 52.9 प्रतिशत से गिरकर 13.9 प्रतिशत हो गई है। वहीं स्वच्छता से वंचित लोग जहां 2005-2006 में 50.4 प्रतिशत थे उनकी संख्या 2019-2021 में कम होकर 11.3 प्रतिशत रह गई है। पेयजल के पैमाने की बात करें तो उक्त अवधि के दौरान बहुआयामी रूप से गरीब और वंचित लोगों का प्रतिशत 16.4 से घटकर 2.7 हो गया। बिना बिजली के रह रहे लोगों की संख्या 29 प्रतिशत से 2.1 प्रतिशत और बिना आवास के गरीबों की संख्या 44.9 प्रतिशत से गिरकर 13.6 प्रतिशत रह गई है।भारत ने गरीबी सूचकांक मूल्य को आधा करने में हासिल की सफलता
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के अलावे कई अन्य देशों ने भी अपने यहां गरीबों की संख्या में कमी की है। गरीबी कम करने में सफलता हासिल करने वाले देशों की सूची में 17 देश ऐसे हैं जहां उक्त अवधि की शुरुआत में 25 प्रतिशत से कम लोग गरीब थे। वहीं भारत और कांगो में उक्त अवधि की शुरुआत में 50 प्रतिशत से अधिक लोग गरीब थे। रिपोर्ट के अनुसार भारत उन 19 देशों की लिस्ट में शामिल है जिसके जिन्होंने आलोच्य अवधि के दौरान अपने वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) मूल्य को आधा करने में सफलता हासिल की।

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