प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सनातन संस्कृति को संरक्षित करते हुए निरंतर प्राचीन आस्था स्थलों का जीर्णोद्धार कर रहे हैं। देशभर में धार्मिक स्थलों पर आने वाले श्रद्धालु-भक्तों का न सिर्फ सफर सुगम और सुरक्षित हो रहा है, बल्कि उन्हें तमाम सुविधाएं भी मिल रही हैं। इससे देशभर में धार्मिक पर्यटन के नया बूम मिल रहा है। प्रयागराज और अयोध्या इसकी ताजा मिसाल हैं। अब मोदी सरकार पावन-पुनीत चारों धामों को जोड़ने के लिए रेल प्रोजेक्ट पर तेजी से काम कर रही है, ताकि सनातन संस्कृति के संवाहक धार्मिक पर्यटन करने वाले लाखों-करोड़ों श्रद्धालु चारों धामों तक आसानी से पहुंच सकें। ऊंचे और बर्फीले पहाड़ों के बीच सरपट दौड़ती ट्रेन का सपना 2027 तक पूरा हो जाएगा। चार धाम रेल प्रोजेक्ट के तहत बन रहे ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेल लाइन बिछाने का 80 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट दिसंबर, 2026 तक पूरा होने की उम्मीद है। इसके बाद श्रद्धालु ट्रेन से रुद्रप्रयाग और कर्णप्रयाग पहुंच सकेंगे। इससे केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम का सफर बेहद आसान हो जाएगा।
पीएम मोदी तीर्थयात्रा पर्यटन के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार पर दे रहे जोर
पिछले एक दशक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने खोई हुई सांस्कृतिक विरासत को फिर से हासिल करने और उनके संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय काम किया है। देश की आर्थिक प्रगति के लिए पर्यटन के महत्व को समझते हुए वे धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थलों के साथ ही विरासत स्थलों के विकास पर खासा जोर दे रहे हैं। धार्मिक स्थलों के विकास से आई तरक्की राम मंदिर निर्माण और उससे पहले काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से भी समझी जा सकती है। जहां प्रभु श्री राम और शिव भक्तों के नित-नए रिकॉर्ड बन रहे हैं। पीएम मोदी तीर्थयात्रा पर्यटन के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार पर जोर दे रहे हैं। सालों से यह धार्मि स्थल बुनियादी सुविधाओं की कमी का सामना कर रहे थे। अब पीएम मोदी के नेतृत्व में सरकार इन स्थलों का पुनरोद्धार कर रही है। पीएम मोदी ना सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी मंदिरों को भव्य बनाने पर जोर दे रहे हैं। साल 2019 में उन्होंने अबू धाबी में भगवान श्रीकृष्ण श्रीनाथजी के पुनर्निर्माण के लिए 4.2 मिलियन डॉलर देने का ऐलान किया था। इसके पहले 2018 में उन्होंने अबू धाबी में बनने वाले पहले हिंदू मंदिर की आधारशिला रखी थी। उन्होंने 16 मई, 2022 को नेपाल के लुंबिनी में नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेर बहादुर देवबा के साथ भारत अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्कृति और विरासत केंद्र का शिलान्यास किया।
ऋषिकेश से 4 घंटे में गौरीकुंड, 5 घंटे में बद्रीनाथ धाम पहुंच सकेंगे
मोदी सरकार चारों धामों को जोड़ने के प्रोजेक्ट पर पूरी स्पीड और स्केल के साथ काम कर रही है। अभी ट्रेन की पहुंच उत्तराखंड में ऋषिकेश तक है। प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक ट्रेन से पहुंचने में करीब 2 घंटे लगेंगे। रुद्रप्रयाग से केदारनाथ बेसकैंप यानी गौरीकुंड जाने के लिए सड़क के जरिए 2 घंटे का सफर करना होगा। वहीं, कर्णप्रयाग स्टेशन पर उतरने के बाद करीब 3 घंटे की रोड जर्नी कर बद्रीनाथ धाम पहुंच सकेंगे। अभी ऋषिकेश से केदारनाथ बेसकैंप और बद्रीनाथ तक बस या कार से जाने में 9 से 12 घंटे लगते हैं। सिखों के पवित्र तीर्थ हेमकुंड साहिब जाने के लिए भी कर्णप्रयाग उतरना होगा। यहां से ढाई घंटे में हेमकुंड साहिब पहुंच सकते हैं।
अभी पहाड़ी रास्तों के कारण आसान नहीं है चार धाम का सफर
अभी चार धाम का सफर उत्तराखंड के चारधाम यानी गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ की यात्रा हरिद्वार से होती है। हरिद्वार से टैक्सी या बस से श्रद्धालुओं का जत्था निकलता है। पहले दिन का पड़ाव यमुनोत्री होता है। इसके बाद गंगोत्री जाते हैं। फिर रुद्रप्रयाग होते हुए केदारनाथ धाम के लिए यात्रा करते हैं। बद्रीनाथ धाम सबसे आखिरी पड़ाव है। अभी अगर हम ऋषिकेश से चारों धाम के लिए सफर शुरू करते हैं, तो यहां से बस या गाड़ी के जरिए यमुनोत्री पहुंचने में करीब 9 घंटे लगते हैं। यमुनोत्री से गंगोत्री के सफर में भी 9 से 10 घंटे का वक्त लगता है। वहीं केदारनाथ जाने के लिए ऋषिकेश से गौरीकुंड पहुंचना होता है। पहाड़ी रास्ता होने की वजह से 220 किमी का ये सफर बस या गाड़ी से तय करने में करीब 8-9 घंटे लगते हैं। इसके बाद गौरीकुंड से 16 से 18 किमी की ट्रैकिंग करके मंदिर तक पहुंचना होता है। ऋषिकेश से बद्रीनाथ की दूरी 286 किमी है। यहां बस से पहुंचने में 11 से 12 घंटे लगते हैं। अगर केदारनाथ से सीधे बद्रीनाथ जाना हो तो 211 किमी के सफर में 8-9 घंटे लगते हैं।
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट से केदारनाथ-बद्रीनाथ का सफर आसान होगा
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद यमुनोत्री और गंगोत्री का सफर तो आसान बनेगा ही। सबसे ज्यादा फायदा केदारनाथ और बद्रीनाथ जाने वाले श्रद्धालुओं को होगा। ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग तक का सफर ट्रेन से महज डेढ़ घंटे में पूरा होगा। रुद्रप्रयाग से बस से गौरीकुंड तक पहुंचने में करीब दो घंटे लगेंगे। यहां से केदारनाथ के लिए ट्रैकिंग शुरू कर सकेंगे। वहीं बद्रीनाथ के लिए ऋषिकेश से कर्णप्रयाग पहुंचना होगा। यहां से बस के जरिए 128 किमी का सफर तय करने में 3 घंटे लगेंगे। चार धाम रेल प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद चारों धाम के लिए सफर और आसान हो जाएगा। यमुनोत्री के लिए डोईवाला से सीधे पलार तक ट्रेन से पहुंच सकेंगे। इसके बाद यमुनोत्री तक पहुंचने के लिए गाड़ी से 38 किमी की दूरी तय करनी होगी। वहीं गंगोत्री के लिए मनेरी तक ट्रेन की पहुंच होगी। मनेरी से गंगोत्री के लिए 84 किमी बस या गाड़ी से जाना होगा।
खराब मौसम और लैंडस्लाइड नहीं रुकेगा भक्तों और श्रद्धालुओं का सफर
केदारनाथ के लिए ऋषिकेश से सोनप्रयाग तक ट्रेन से पहुंच सकेंगे। फिर यहां से गाड़ी या टैक्सी के जरिए 8 किमी की दूरी तय करके गौरीकुंड पहुंचा जा सकेगा। यहां से केदारनाथ के लिए ट्रैकिंग शुरू होगी। वहीं, बद्रीनाथ के लिए ऋषिकेश से ट्रेन से जोशीमठ पहुंच सकेंगे। फिर जोशीमठ से बद्रीनाथ का 40 किमी का सफर ही बचेगा, जिसे टैक्सी या गाड़ी से पूरा कर सकेंगे। अब ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट के चलते खराब मौसम और लैंडस्लाइड सफर नहीं रोक पाएंगे। रेल प्रोजेक्ट पूरा होने पर पहाड़ी रास्तों पर सफर आसान हो जाएगा। कई बार मौसम बिगड़ने या लैंडस्लाइड की वजह से रास्ते बंद हो जाते हैं। उस वक्त ट्रेन भी एक विकल्प होगी। इसी प्रोजेक्ट के तहत ऋषिकेश रेलवे स्टेशन को वर्ल्ड क्लास स्टेशन की तरह डेवलप किया गया है। कुंभ के दौरान हरिद्वार स्टेशन पर भीड़ ज्यादा होने पर यात्रियों ने इसका भी इस्तेमाल किया। यहां से पब्लिक ट्रांसपोर्ट के जरिए हरिद्वार पहुंचना मुश्किल नहीं है।
16 टनल और 35 ब्रिज से गुजरेगा ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट 16 टनल और 35 ब्रिज से गुजरेगा। ट्रेन पहाड़ी इलाकों में रेल प्रोजेक्ट पर काम करना बहुत चैलेंजिंग है। हिमालय के शिवालिक क्षेत्र में तो ये और भी मुश्किल है। इन रेल प्रोजेक्ट्स में दो तरह का कंस्ट्रक्शन सबसे ज्यादा होता है। प्रोजेक्ट के तहत पहाड़ काटकर कुल 16 टनल बनाई जा रही हैं। दर्रे और नदियां पार करने के लिए 35 ब्रिज तैयार किए जा रहे हैं। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट कुल 125 किमी का है। इसमें टनल की लंबाई 104 किमी है। कुल 16 टनल में से जिन टनल की लंबाई 3 किमी से ज्यादा है, उसमें एस्केप टनल बनाई है। एस्केप टनल की टोटल लंबाई 98 किलोमीटर है। इस तरह प्रोजेक्ट में कुल टनल ड्रिलिंग की लंबाई 203 किलोमीटर है। प्रोजेक्ट में 19 बड़े ब्रिज हैं। बाकी छोटे भी हैं। 75% ब्रिज बनकर तैयार हैं। इस साल के आखिर तक ब्रिज बनाने का काम पूरा हो जाएगा। टनल में 90 प्रतिशत खुदाई हो चुकी है और लाइनिंग का काम चल रहा है। ट्रैक बिछाने का काम जल्द ही शुरू हो जाएगा। प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक उम्मीद है कि दिसंबर 2026 तक काम पूरा हो जाएगा।
किसी आपात स्थिति में रेस्क्यू के लिए 12 एस्केप टनल बनाए
हिंदू आस्था के प्रकाशपुंज चारों धामों के इस बड़े रेल प्रोजेक्ट में आपात स्थिति से निपटने के लिए हर इंतजाम किए जा रहे हैं। एस्केप टनल रेलवे ट्रैक टनल के ही पैरेलल एक छोटी टनल बनाई जा रही है। ये हर 350 मीटर की दूरी पर मेन टनल से जुड़ी रहेगी। हर 3 किमी से ज्यादा लंबी टनल में एस्केप टनल बनाई है। इसे सेफ्टी के लिहाज से बनाया गया है। टनल में अगर कभी कोई रेल हादसा होता है, तो इस टनल के जरिए तत्परता से राहत-बचाव कार्य किया जा सकेगा। एस्केप टनल से गाड़ियों के जरिए लोगों तक मदद पहुंचाई जा सकेगी। इसके अंदर एंबुलेंस जैसे व्हीकल आसानी से चलाए जा सकते हैं। इस प्रोजेक्ट में कुल 12 एस्केप टनल बनाई गई हैं। टनल की खुदाई का 90 प्रतिशत काम कर लिया है। रेलवे टनल और एस्केप टनल की कुल लंबाई 202 किमी है। इसमें से 181 किमी की टनल तैयार कर ली गई हैं।
पहाड़ों पर 100km की स्पीड से दौड़ेगी ट्रेन तो पांच घंटे बचेंगे
ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल प्रोजेक्ट को इस तरह डिजाइन किया गया है कि टनल का घुमाव 4 डिग्री से कम ही है। टनल जितनी कम घुमावदार होगी, ट्रेन उतनी ही स्पीड से दौड़ेगी। ज्यादातर हिस्सों में टनल का घुमाव 2.5 डिग्री से ज्यादा नहीं है। इससे ट्रेन आसानी से 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकेगी। कोई भी ट्रेन आराम से रुकते हुए भी 2-3 घंटे में ऋषिकेश से कर्णप्रयाग पहुंच सकती है। सड़क के रास्ते यह सफर करने पर 7-8 घंटे का वक्त लगता है, लेकिन ट्रेन से सफर करने पर 5-6 घंटे बचेंगे। रेलवे ट्रैक ऑलवेदर प्रूफ भी रहेगा। ऋषिकेश के आगे कर्णप्रयाग तक जिस तरह की यंग माउंटेन वाली जियोलॉजी है, उसमें बरसात के वक्त कई बार लैंडस्लाइड होती रहती है। इस वजह से एक-एक हफ्ते तक के लिए रास्ते बंद हो जाते हैं। ऐसे में सभी के लिए ट्रैवलिंग आसान हो जाएगी। रेल रूट के साथ कंपनियां और इन्वेस्टमेंट भी आएगा। नौकरियों के मौके बढ़ेंगे। उत्तराखंड से माइग्रेशन भी कम होगा।
रेल प्रोजेक्ट के लिए जर्मनी से मंगाई एडवांस टनल बोरिंग मशीन
रेल प्रोजेक्ट की सबसे बड़ी टनल 14.7 किमी की है। ये देवप्रयाग से जनासू तक जाती है। इतनी लंबी टनल बनाने के लिए बीच में कोई भी फेस खोलने की जगह नहीं है। इसलिए टनल की खुदाई बोरिंग मशीन (TBM) से करने का फैसला किया। TBM जर्मनी से आई हाई क्वालिटी मशीन है, जिससे खुदाई का काम आसान हुआ है। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग प्रोजेक्ट के दौरान कई वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बने हैं। पूरी दुनिया में मिट्टी में टनल खोदने का काम सबसे तेजी से किया है। एक महीने में 100 मीटर की खुदाई की। TBM ने एक महीने में 550 मीटर की खुदाई की है। ये भी एक वर्ल्ड रिकॉर्ड है। हर दिन औसतन 2.7 मीटर की खुदाई हो रही है। पूरे भारत में टनलिंग की सबसे बड़ी मशीनें इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं। वहीं, ऑटोमेडेट जंबो मशीनें भी काम कर रही हैं। इस ड्रिल जंबो मशीन से इन्वेस्टिगेटिव ड्रिलिंग करते हैं, जिससे अंदाजा लगता है कि 20 मीटर बाद किस तरह की जियोलॉजी मिलने वाली है। TBM से तेजी से खुदाई होती है। इससे 60 मीटर आगे की इन्वेस्टिगेटिव ड्रिलिंग करते हैं। अगर मुश्किल जियोलॉजी होती है तो उस हिसाब से पहले तैयारी कर ली जाती है।