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पीएम मोदी ने डूबते संस्थान का किया कायाकल्प, कांग्रेस के भ्रष्टाचार ने DRDO को बना दिया था जर्जर

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कांग्रेस ने 60 साल तक राज कर देश को खोखला करने के साथ ही भ्रष्टाचार के गर्त में धकेल दिया। भ्रष्टाचार दीमक की तरह देश की संस्थाओं को खोखला करता रहा। इन्हीं संस्थाओं में एक था रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO)। कांग्रेस सरकार की कार्यशैली का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि डीआरडीओ की स्थापना 1958 में हुई और 1980 में इसने विधिवत काम शुरू किया। यानी स्थापना के 22 साल बाद इसने काम करना शुरू किया। बात यहीं खत्म नहीं होती। बाद के सालों में यहां एक द्वंद चलता रहा। एक धड़ा इस संस्थान की उपयोगिता सिद्ध करना चाहता था तो दूसरा धड़ा दीमक की तरह इसे चाटने में लगा हुआ था। इस भ्रष्टाचार और धांधली में कांग्रेस की सरकारों का पूरा सहयोग मिल रहा था। उसके बाद साल 2014 आया और कांग्रेस के भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता ने सत्ता की बागडोर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपी। पीएम मोदी ने देश के विकास में काम आने वाली संस्थाओं को फिर से खड़ा करने का संकल्प लिया और इस जर्जर संस्थान की ओर ध्यान देना शुरू किया और पिछले नौ साल में इसका कायाकल्प कर दिया।

पीएम मोदी ने सत्ता संभालते ही DRDO पर ध्यान दिया

मोदी सरकार आने के बाद इस जर्जर संस्थान की ओर ध्यान देना शुरू किया गया। पीएम मोदी ने DRDO को गर्त से निकालने की जिम्मेदारी तत्कालीन रक्षा मंत्री दिवंगत मनोहर पर्रिकर को सौंपी। पर्रिकर ने इस संस्थान को फिर से जिंदा करने के लिए एस. क्रिस्टोफर को DRDO का डायरेक्टर जनरल नियुक्त किया और साथ ही युवा मिसाइल वैज्ञानिक जी एस रेड्डी को अपना तकनीकी सलाहकार नियुक्त किया। दोनों का कार्यकाल दो साल का था। पुराने चीफ को ये कहकर विदाई दी गई कि संस्थान को अब युवा ऊर्जा की जरूरत है।

बालाकोट एयर स्ट्राइक में DRDO ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका

कितनी दुखद बाद है कि जिस संस्थान की स्थापना 1958 में हुई उसकी सेवाएं देश को 50 साल तक मिल ही नहीं पाई। यह संभव तभी हो पाया जब पीएम मोदी ने इसका कायाकल्प किया। DRDO की तकनीकी सेवाएं देश को 2017 के बाद मिलनी शुरू हुई। बालाकोट एयर स्ट्राइक में संस्थान ने महती भूमिका निभाई थी और सेटेलाइट को मार गिराने का सफल परीक्षण किया। संस्थान अब भ्रष्टाचार और राजनीतिक दबाव से मुक्त हुआ है। ये मोदी सरकार का असर है कि एक डूबते संस्थान को उसने संजीवनी दे दी।

कांग्रेस ने 60 साल तक DRDO को पंगु बनाकर रखा

कांग्रेस ने 60 साल तक DRDO में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देकर उसे खत्म करने का काम किया। जो संस्थान कारगिल जैसे युद्ध में देश के काम आ सकता था, उसे आज़ादी के बाद इतने साल तक पंगु बनाकर रखा गया। गौसल अहमद खान जैसी प्रतिभाओं पर झूठे आरोप लगाकर देश को मिलने वाली उपलब्धियों को पहले ही मार दिया। कांग्रेस को इस बात का श्रेय अवश्य मिलना चाहिए।

कांग्रेस ने मेधावी वैज्ञानिकों को भी काम नहीं करने दिया

सन 2009 में अमेरिका से एक मेधावी उत्साही वैज्ञानिक डॉ गौसल अहमद खान वापस भारत आए। ये युवा वैज्ञानिक DRDO से जुड़कर देश के सेना के लिए काम करना चाहता था। अहमद खान ने DRDO में सीनियर साइंटिस्ट के पद के लिए आवेदन किया। उसके बाद के सालों में उनके सपने कांच की तरह टूटकर बिखर गए। इन आठ सालों में उन्हें अपना काम ढंग से नहीं करने दिया गया। जिस बात से अहमद परेशान थे, वह था इस संस्थान में वर्षों से चला आ रहा भ्रष्टाचार।

अहमद ने भारतीय सेना के लिए तैयार किया था प्रोग्राम

गौसल अहमद ने भारतीय सेना के लिए एक प्रोग्राम तैयार किया था। इस प्रोग्राम की मदद से सियाचिन में तैनात भारतीय सेना को जलवायु अनुकूलन के लिए मनोवैज्ञानिक ढंग से तैयार कर रहे थे। लेकिन अहमद को उनका काम ही नहीं करने दिया जा रहा था। जब उन्होंने संस्थान में हो रहे भ्रष्टाचार पर आवाज़ उठाई तो उनके खिलाफ ही झूठे आरोप लगा दिए गए। दुखी होकर अहमद ने अमेरिका जाने का फैसला कर लिया। डेवलपिंग वर्ल्ड साइंटिस्ट अवार्ड से सम्मानित एक भारतीय वैज्ञानिक तिल-तिल कर जीता रहा। कौन था जिम्मेदार।

पीएम मोदी की पहल से अब एक मजबूत संस्थान बन चुके डीआरडीओ की उपलपब्धियों पर एक नजर-

डीआरडीओ के स्वदेशी ‘पावर टेक ऑफ शाफ्ट’ का तेजस पर सफल उड़ान परीक्षण

बेंगलुरु में हल्के लड़ाकू विमान तेजस पर ‘पावर टेक ऑफ’ (पीटीओ) शाफ्ट का सफल उड़ान परीक्षण किया गया। पीटीओ एक महत्वपूर्ण उपकरण होता है जो विमान के इंजन से गियरबॉक्स तक ऊर्जा पहुंचाता है। पीटीओ शाफ्ट का पहला सफल परीक्षण एलसीए तेजस लिमिटेड सीरीज प्रोडक्शन (एलएसपी)-3 विमान पर किया गया। इस सफल परीक्षण के साथ, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने जटिल हाई-स्पीड रोटर तकनीक को साकार करके एक बड़ी तकनीकी उपलब्धि हासिल की है, जो केवल कुछ देशों ने हासिल की है। पीटीओ शाफ्ट को डीआरडीओ के चेन्नई स्थित ‘कॉम्बैट व्हीकल रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट’ द्वारा स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित किया गया है। इस सफलता ने देश की अनुसंधान क्षमता को प्रदर्शित किया है।

DRDO ने किया VSHORADS मिसाइल का सफल परीक्षण, जेट-हेलीकॉप्टर तक को हवा में करेगा ढेर

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) को 14 मार्च 2023 को बड़ी सफलता मिली। DRDO ने ओडिशा के चांदीपुर में बहुत कम दूरी की वायु रक्षा प्रणाली (VSHORADS) मिसाइल के लगातार दो सफल परीक्षण किए। इसकी खासियत यह है कि ये एक मैन पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम (MANPAD) है, जिससे कम दूरी पर कम ऊंचाई वाले हवाई खतरों को बेअसर करने में सहायता मिलेगी। हाई स्पीड वाले मानव रहित हवाई टारगेट पर यह मिसाइल सिस्टम सेना के लिए काफी कारगर साबित होगी। परीक्षण के दौरान मिसाइल सिस्टम ने अपने सभी मानकों को पूरा किया। नई तकनीकों से लैस मिसाइल सशस्त्र बलों को और तकनीकी बढ़ावा देगी। इस सिस्टम को डीआरडीओ प्रयोगशालाओं और भारतीय इंडस्ट्री पार्टनर्स की मदद से अनुसंधान केंद्र, हैदराबाद की तरफ से स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित किया गया है।

डीआरडीओ ने साढ़े तीन साल में निजी कम्पनियों को तकनीक हस्तांतरण के 670 करार किए

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने पिछले लगभग साढ़े तीन साल में देश की 670 निजी कम्पनियों को अपने यहां विकसित रक्षा उत्पाद तकनीक हस्तांतरित की है। निजी क्षेत्र की मदद से रक्षा उत्पादन तेजी से बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने 19 अगस्त 2019 से डीआरडीओ को तकनीकी हस्तांतरण निजी कम्पनियों को भी करने की अनुमति दी थी। डीआरडीओ देश की सशस्त्र सेनाओं के उपयोग के लिए रक्षा उत्पाद डिजाइन व विकसित करता है। इनके सफलतापूर्वक उत्पादन परीक्षण के बाद इनके बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए तकनीक देश की निजी कम्पनियों को हस्तांतरित की जाती है। इसके लिए निजी कम्पनी व डीआरडीओ तकनीक हस्तांतरण के लाइसेंस अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर करते हैं। इसके बाद तकनीक निजी कम्पनी को हस्तांतरित की जा सकती है।

परमाणु आपात स्थिति में काम आएगी डीआरडीओ की तकनीक से विकसित दवा

रेडियोलॉजिकल और परमाणु आपात स्थिति के लिए डीआरडीओ की प्रौद्योगिकी से विकसित एक महत्वपूर्ण दवा को भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) से मंजूरी मिल गई है। प्रौद्योगिकी विकास कोष (टीडीएफ) के तहत ‘प्रशियन ब्लू’ नामक एक अघुलनशील फॉर्मूलेशन की दवा विकसित की गई। टीडीएफ को मुख्य रूप से रक्षा अनुप्रयोग के लिए स्वदेशी अत्याधुनिक प्रणालियों का निर्माण करके आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए लॉन्च किया गया था। इस दवा को दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड एलाइड साइंसेज (आईएनएमएएस) की प्रौद्योगिकी के आधार पर विकसित किया गया है। आईएनएमएएस रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (डीआरडीओ) की प्रयोगशाला है।

डीआरडीओ में 55 मिशन मोड परियोजनाएं

मिशन मोड (एमएम) परियोजना श्रेणी के तहत डीआरडीओ में उच्च प्राथमिकता वाली परियोजनाएं शुरू की जाती हैं। वर्तमान में, 55 एमएम (मिशन मोड) परियोजनाएं चल रही हैं जैसे एंटी-एयर फील्ड हथियार, ठोस ईंधन डक्टेड रैमजेट टेक्नोलॉजी, सतह से हवा मिसाइल, एंटी-शिप मिसाइल, लंबी दूरी के रडार, लड़ाकू वाहन, उच्च सहनशक्ति स्वायत्त पानी के नीचे वाहन, पनडुब्बियों के लिए लड़ाकू सूट, पनडुब्बी पेरिस्कोप आदि।

DRDO वैज्ञानिकों ने बनाया बिना केमिकल इस्तेमाल वाला सैनिटाइजर कैबिनेट

डीआरडीओ हैदराबाद के डिफेंस लेबोरेटरी, रिसर्च सेंटर इमारत (RCI) ने UVC सैनिटाइजर कैबिनेट विकसित किया है। खास बात ये कि अल्ट्रा वॉयलेट किरणों की तकनीक से लैस ये कैबिनेट आपके इस्तेमाल किए हुए N-95 मास्क, मोबाइल फोन्स, आईपैड, लैपटॉप, करेंसी नोट, चेक बुक के पन्ने और कई अहम चीजों को बिना केमिकल के इस्तेमाल के सैनिटाइज करता है। UVC सैनिटाइजर कैबिनेट बैंकिंग सेवा में कार्यरत लोगों के लिए भी काफी उपयोगी बताई जा रही है। WHO गाइडलाइन के मुताबिक कोरोना वायरस कुछ घंटों तक नोट या फिर कागजों पर टिका रह सकता है। ऐसे में बैंककर्मी बिना झिझक के ग्राहकों के लिए नोट कैबिनेट के जरिए सैनिटाइज कर पाएंगे। इसके बाद इसे फिर से ग्राहकों के लिए जारी किया जा सकता है।

देश को स्वावलंबन की राह पर मजबूती से आगे बढ़ाने में डीआरडीओ की अहम भूमिका

देश को स्वावलंबन की राह पर मजबूती से आगे बढ़ाने में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की अहम भूमिका रही है। चाहे रक्षा तकनीक के मामले में देश को आगे ले जाने की बात हो या फिर कोविड के दौरान पीपीई किट, सैनिटाइजर, वेंटिलेटर, उन्नत अस्पतालों आदि का निर्माण, डीआरडीओ की पहल हमेशा प्रशंसनीय रही है। वहीं सैन्य क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों का निर्माण करने वाला यह अव्वल संगठन है। इनमें एयरोनाटिक्स, युद्धक वाहन, इंजीनियरिंग प्रणालियां, मिसाइलें, नौसेना प्रणाली, एडवांस कंप्यूटिंग तथा रक्षा क्षेत्र की अन्य प्रौद्योगिकियां शामिल हैं।

डीआरडीओ की उपलब्धियां

रक्षा प्रौद्योगिकी में मिसाल : आज यदि दुनिया का कोई भी देश भारत की तरफ नजर उठाकर नहीं देखता है, तो इसका श्रेय काफी हद तक डीआरडीओ को भी जाता है। इसने रक्षा क्षेत्र में भारत को स्वावलंबी बनाने में काफी योगदान किया है। अग्नि और पृथ्वी सीरीज की मिसाइलों का उत्पादन हो या फिर हल्के लड़ाकू विमान तेजस, मल्टी बैरल राकेट लांचर पिनाका, वायु रक्षा प्रणाली आकाश, रडार और इलेक्ट्रानिक युद्ध प्रणालियों की एक विस्तृत सीरीज विकसित करने में सर्वप्रमुख भूमिका इसी की रही है। ब्रह्मोस मिसाइल को इसने रूस के साथ मिलकर तैयार किया, जो रडार को चकमा दे सकने वाला सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। डीआरडीओ ने हाल के वर्षों में अनेक उपलब्धियां हासिल की हैं। इनमें आइएनएस विक्रमादित्य पर लाइट कांबैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) की लैंडिंग, हाइपरसोनिक टेक्नोलाजी डेमांस्ट्रेशन व्हीकल (एचएसटीडीवी) का परीक्षण, लेजर गाइडेड एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल (एटीजीएम)आदि शामिल हैं।

आकाश-एनजी : नयी पीढ़ी की सतह से हवा में मार करने वाली इस मिसाइल का सफल परीक्षण किया गया। इसमें मल्टीफंक्शन रडार, कमांड, कंट्रोल एंड कम्युनिकेशन जैसी प्रणाली को शामिल किया गया है। यह हवा में किसी टारगेट को तीव्रता से मार गिराने में सक्षम है।

आकाश प्राइम मिसाइल : उन्नत संस्करण की इस मिसाइल का आइटीआर, चांदीपुर से सफल परीक्षण किया गया। सटीकता को बढ़ाने के लिए इसमें स्वदेशी निर्मित रेडियो फ्रीक्वेंसी सीकर को जोड़ा गया है।

शार्ट स्पैन ब्रिजिंग सिस्टम-10एम : सैनिकों की तेज आवाजाही को सुनिश्चित करने के लिए यह सिस्टम छत वाली सड़क तैयार करता है।

उन्नत चैफ टेक्नोलाजी : भारतीय वायुसेना के एयरक्राफ्ट को दुश्मन के रडार और मिसाइल के खतरों से बचाने के लिए डीआरडीओ द्वारा इस तकनीक को विकसित किया गया है। यह इलेक्ट्रानिक काउंटर मीजर टेक्नोलाजी है, जिसका दुनियाभर में नेवल शिप को दुश्मन के राडार से बचाने के लिए किया जाता है।

लांग रेंज बम : स्वदेश निर्मित लांग रेंज बम का एरियल प्लेटफार्म से डीआरडीओ और आइएएफ द्वारा परीक्षण किया गया। फाइटर एयरक्राफ्ट से इसे जमीन पर एक्यूरेसी के साथ लांच किया जा सकता है।

स्मार्ट एंटी-एयरफील्ड वीपन : डीआरडीओ और आइएएफ द्वारा स्मार्ट एंटी-एयरफील्ड वेपन का परीक्षण किया गया, इससे दुश्मन के रडार, बंकर, टैक्सी ट्रैक और रनवे आदि को निशाना बनाया जा सकता है। यह भार में हल्का, लेकिन इस श्रेणी के अन्य हथियारों के मुकाबले अधिक प्रभावी है।

सुपरसोनिक मिसाइल असिस्टेड टारपीडो सिस्टम : डीआरडीओ द्वारा विकसित यह अगली पीढ़ी का मिसाइल आधारित स्टैंडआफ टारपीडो डिलीवरी सिस्टम है। इसे एंटी-सबमरीन युद्ध क्षमताओं को बढ़ाने के लिए विकसित किया गया है। इससे नौसेना की क्षमता में वृद्धि होगी और रक्षा आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।

मैन पोर्टेबल एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल : इस मिसाइल का परीक्षण डीआरडीओ ने जनवरी 2022 में किया था। भारत में विकसित की गई एंटी-टैंक एक कम वजन वाली मिसाइल है। इसे मैन पोर्टेबल लॉन्चर से लॉन्च किया जाता है।

हेलिना मिसाइल : अप्रैल 2022 में एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल ‘हेलीना’ लॉन्च की गई। इस मिसाइल का अलग-अलग उच्च-ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हेलीकॉप्टर की मदद से दो बार सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया। यह उड़ान परीक्षण डीआरडीओ, भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना ने संयुक्त रूप से आयोजित किए थे।

कोविड काल में सराहनीय योगदान : कोविड महामारी से लड़ने में भी डीआरडीओ का सक्रिय और सराहनीय योगदान रहा है। इसने पीपीई किट, सैनिटाइजर्स, मास्क, यूवी सिस्टम, वेंटिलेटर के महत्वपूर्ण भाग आदि उपलब्ध कराए, जिससे देश बहुत कम समय में पर्याप्त मात्रा में वेंटिलेटर निर्माण में सक्षम हो सका। कोरोना मरीजों के लिए ‘2-डीआक्सी-डी-ग्लूकोज’ नामक औषधि को डीआरडीओ द्वारा ही विकसित किया गया।

आइजीएमडीपी : इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (आइजीएमपीडी) प्रसिद्ध विज्ञानी डा. एपीजे अब्दुल कलाम के दिमाग की उपज था। इसका उद्देश्य मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भरता बनाना था। आइजीएमडीपी को औपचारिक रूप से 26 जुलाई, 1983 को भारत सरकार की मंजूरी मिली। हालांकि अंतरराष्ट्रीय संस्थान एमटीसीआर (मिसाइल टेक्नोलाजी कंट्रोल रिजम) ने विकास कार्यक्रम के लिए तकनीक तक भारत की पहुंच पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद भारतीय विज्ञानियों ने इस बाधा को पार करते हुए डा. कलाम के नेतृत्व में परियोजना पर काम जारी रहा। फिर भारत ने स्वदेशी पृथ्वी, त्रिशूल, आकाश और नाग मिसाइलों का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।

डीआरडीओ तीनों सेनाओं की जरूरतों के लिए करती है अनुसंधान कार्य

डीआरडीओ भारत के रक्षा प्रणालियों के डिज़ाइन और उनके विकास के लिए कार्य करने वाला एक संगठन है। यह भारत की तीनों सेनाओं (जल, थल, नभ) की रक्षा हेतु आवश्यकताओं के अनुसार हथियारों और विभिन्न लड़ाकू विमानों का अनुसंधान और उत्पादन करती है। डीआरडीओ मिलिट्री टेक्नोलॉजी के बहुत से स्थानों पर भी कार्य करती है जैसे एरोनॉटिक्स, अर्मामेंट्स, कॉम्बैट व्हीकल्स आदि। DRDO द्वारा विकसित किये गए उत्पादों और तकनीकी की सूची काफी बड़ी है। इसके द्वारा Air borne telemetry receiving system, Bhima, biomedical devices for internal use, Kaveri engine आदि। DRDO का उद्देश्य भारत को WorldClass science और technology का मजबूत आधार देकर उसे आगे बढ़ाना है। डीआरडीओ का उद्देश्य मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भरता बनाना है।

डीआरडीओ की मुख्य संस्थाएं

एडवांस्ड सिस्टम्स लैब्रटोरी – हैदराबाद
एडवांस्ड नूमेरिकल रिसर्च एण्ड एनलिसिस ग्रुप (anurag ) – हैदराबाद
अर्नमेंट्स रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट ईस्टैब्लिश्मन्ट – पुणे
सेंटर फॉर ऐरबोर्न सिस्टम – बेंगलुरू
एरियल डेलीवेरी रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट ईस्टैब्लिश्मन्ट – आगरा
सेंटर फॉर आर्टिफिसियल इन्टेलिजन्स एण्ड रोबाटिक्स – बेंगलुरू
सेंटर फॉर फायर एक्सप्लोसिव एण्ड एनवायरनमेंट सैफ्टी – दिल्ली
कम्बैट वीइकल रिसर्च एण्ड डेवलपमेंट ईस्टैब्लिश्मन्ट – चेन्नई
डिफेन्स फूड रिसर्च लैब्रटोरी – मैसूर
ऐरोनोटिकल डेवलपमेंट ईस्टैब्लिश्मन्ट – बेंगलुरू
टर्मिनल बलिस्टिक रिसर्च लैब्रटोरी – चंडीगढ़

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