प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के करोड़ों कामगारों और मजदूरों के जीवन में खुशहाली लाने के लिए कई नीतिगत फैसले लिए। ये फैसले ऐसे हैं, जिन्हें कांग्रेस की सरकारों ने दशकों से लटकाए रखा था। प्रधानमंत्री मोदी ने श्रम कानूनों को सरल बनाकर, जहां श्रमिकों को कानूनों के जाल से मुक्ति दिलाई, वहीं देश के संगठित और असंगठित क्षेत्र के कामगारों के अधिकारों को सुनिश्चित किया।
जटिल श्रम कानूनों से मिली मुक्ति
हमारे देश में श्रम कानून अत्यंत जटिल हैं। अभी तक 44 प्रकार के श्रम कानून हैं, जिनके बीच सामंजस्य बिठाना भी कई बार कठिन हो जाता है। ये सभी कानून अलग-अलग विषयों से संबद्ध हैं। कुछ श्रम कानून मजदूरी दर से संबंधित हैं, तो कुछ अन्य सामाजिक सुरक्षा से। इसके साथ कुछ श्रम कानून हैं, जो औद्योगिक सुरक्षा एवं श्रम कल्याण से जुड़े हुए हैं और अन्य कानून औद्योगिक संबंधों से जुड़े हुए हैं।
श्रम संहिता से सरल हुआ कानून
कानूनी जटिलता को कम करने के लिए 44 श्रम कानूनों को 4 श्रम संहिताओं में समाहित किया गया है-
1. वेतन या मजदूरी श्रम संहिता
2. औद्योगिक संबधों की श्रम संहिता
3. सामाजिक सुरक्षा व कल्याण की श्रम संहिता
4. व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति पर श्रम संहिता
मजदूरी श्रम संहिता तो संसद में पारित हो चुकी है। इसके अलावा मोदी सरकार तीन अन्य श्रम संहिताओं को भी संसद में पेश कर चुकी है। सरकार इन श्रम संहिताओं को एक बड़े सुधार के रूप में प्रस्तुत कर रही है।
न्यूनतम मजदूरी में समानता
‘मजदूरी संहिता’ विधेयक पारित होने के बाद से केंद्र सरकार को पूरे देश के लिए एक वैधानिक मजदूरी दर तय करने का अधिकार मिल गया। अब न्यूनतम मजदूरी के प्रावधान पूरे देश में समान रूप से लागू होंगे, जिससे सभी कामगारों को बिना किसी क्षेत्रीय भेदभाव के न्यूनतम मजदूरी पाने का प्रावधान आ जायेगा। पहले राज्य सरकारें अपने-अपने राज्य में मजदूरी दर निर्धारित करती थीं। जिससे न्यूनतम मजदूरी में काफी असमानताएं होती थी। लेकिन अब मोदी सरकार ने सभी क्षेत्रों के कर्मचारियों के लिए न्यूनतम मजदूरी और समय पर वेतन भुगतान को सुनिश्चित कर दिया है। इस संहिता के प्रावधान संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों में लागू किए गए हैं।
मजदूरी संहिता के प्रमुख प्रावधान :
- मजदूरी संहिता के तहत न्यूनतम वेतन के निर्धारण के लिए एक ही मानदंड तय किया गया है।
- न्यूनतम मजदूरी में हर पांच साल बाद संशोधन का प्रावधान किया गया है।
- मज़दूरी की सीमा को 18,000 रुपये से बढ़ाकर 24,000 रुपये प्रतिमाह कर दिया गया है।
- नियोक्ताओं को अपने कर्मचारियों को नकद, चेक, सीधे कर्मचारी के खाते में मज़दूरी का भुगतान करने की अनुमति दी गई है।
औद्योगिक संबंधों को लेकर कई एक्ट हैं, जैसे औद्योगिक विवाद एक्ट 1947, श्रम संघ कानून 1926 और औद्योगिक रोजगार एक्ट 1946। इन कानूनों को जोड़कर एक संहिता बनायी गयी है, जिसे औद्योगिक संबंध संहिता कहा गया है।
सामाजिक सुरक्षा से संबंधित संहिता में कर्मचारी भविष्य निधि एवं अन्य प्रावधान कानून, कर्मचारी राज्य बीमा निगम कानून, भवन एवं अन्य निर्माण मजदूर कानून एवं कर्मचारी मुआवजा कानून इत्यादि शामिल हैं। इन सभी कानूनों को तीसरी आचार संहिता में शामिल करने का फैसला किया गया है।
चौथी श्रम संहिता में औद्योगिक सुरक्षा एवं श्रम कल्याण संबंधित कानून शामिल किए गए हैं, जिनमें से प्रमुख हैं, फैक्ट्री एक्ट, माइंस (खान) एक्ट, बंदरगाह मजदूर (सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कल्याण) एक्ट, इन सबको औद्योगिक सुरक्षा एवं कल्याण संहिता में शामिल करने की योजना है।
सरल कानून, पालन आसान
प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि श्रम कानूनों के सरलीकरण का मकसद कानूनों के अनुपालन में सुविधा और ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ को बेहतर करना है, ताकि रोजगार में वृद्धि हो।