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पेगासस मामले में SC विशेषज्ञ कमिटी को नहीं मिले जासूसी के पुख्ता सबूत, क्या हंगामा करने वाले राहुल गांधी मांगेंगे माफी?

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पेगासस जासूसी मामले में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बेटे राहुल गांधी सहित विपक्ष के तमाम नेताओं को तगड़ा झटका लगा है। इस मुद्दे पर विपक्ष का झूठ बेनकाब हो गया है। पेगासस जासूसी मामले की जांच करने वाली विशेषज्ञ कमिटी ने अपनी तरफ से जांचे गए किसी भी मोबाइल में पेगासस स्पाइवेयर होने की पुष्टि नहीं की है। कमिटी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसे लोगों की तरफ से कुल 29 फोन दिए गए। 5 में मालवेयर होने का अंदेशा पाया गया, लेकिन यह तय नहीं हो पाया कि यह पेगासस ही है।

पिछले साल 15 याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर पेगासस स्पाईवेयर के माध्यम से जासूसी किए जाने का अंदेशा जताते हुए जांच की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 27 अक्टूबर, 2021 को सच्चाई जांचने के लिए 3 सदस्यीय तकनीकी कमिटी बनाई थी। कमिटी की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस आर वी रवींद्रन को नियुक्त किया गया था। अब कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा है कि जांच में जासूसी के पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं।

पिछले साल संसद का मानसून सत्र शुरू होने के ठीक एक दिन पहले अखबारों में पेगासस जासूसी मामले से सनसनी फैल गया था और राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों द्वारा संसद में गतिरोध उत्पन्न कर दिया था। उस समय बीजेपी के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने इस विवाद के पीछे मोदी विरोधी ताकतों का हाथ बताते हुए दावा किया था कि राहुल गांधी उन मुद्दों को उठाने के चैंपियन हैं, जिनमें अंतरराष्ट्रीय ताकतों का निहित स्वार्थ होता है। जहां राफेल विरोध के पीछे हथियारों की लॉबी काम कर रही थी, वहीं पेगासस प्रोजेक्ट के पीछे विदेशी मीडिया सिंडिकेट काम कर रहा है।

मालवीय ने विपक्षी दलों पर विदेशी ताकतों के इशारों पर काम करने का आरोप लगाया था। इस आरोप के ठोस आधार भी थे, क्योंकि यह खबर सबसे पहले अमेरिकी अखबार ‘वाशिंगटन पोस्ट‘ में प्रकाशित हुई। इस खबर में दावा किया गया कि इजरायल के पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके 50 देशों के हजारों लोगों के फोन की निगरानी की गई। लेकिन ना तो कोई सूची दी गई और ना ही प्रमाण दिया गया कि किस फोन में ये सॉफ्टवेयर डाला गया। दरअसल इस विवादे के पीछे अंतरराष्ट्रीय नेक्सस काम कर रहा था।

मोदी सरकार के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय साजिश
मोदी सरकार को निशाना बनाने के लिए एमनेस्टी इंटरनेशनल और फोर्बिडन स्टोरीज़ दोनों ने पेगासस को हथियार बनाया। एमनेस्टी इंटरनेशनल के बाद पेरिस स्थित संस्था ‘फोर्बिडन स्टोरीज़’ ने पेगासस जासूसी मामले की फोरेंसिक जांच शुरू की, जो अरबपति समाजसेवी जॉर्ज सोरोस के संस्थान ‘ओपन सोसायटी फाउंडेशन’ की सहायता से चलती है। जॉर्ज सोरोस कश्मीर में अनुच्छेद 370 समाप्त करने से लेकर सीएए जैसे मुद्दों पर मोदी सरकार की खुलकर आलोचना कर चुके हैं। वहीं चीन अपने प्रोपेगेंडा को आगे बढ़ाने के लिए वैश्विक मीडिया सिंडिकेट को लगातार पैसे खिला रहा है। जून 2021 में द डेली कॉलर ने एक रिपोर्ट में खुलासा किया था कि चाइना डेली ने नवंबर 2016 से द वाशिंगटन पोस्ट (4.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर) समेत कई प्रमुख अमेरिकी प्रकाशनों को लाखों अमेरिकी डॉलर की फंडिंग की है।

विदेशी कंपनियों के लिए लॉबिंग
कांग्रेस और उसके नेताओं का इतिहास रहा है कि वो विदेशी कंपनियों के लिए लॉबिंग करते रहे हैं। इसके लिए वे एक सोची-समझी रणनीति के तहत काम करते हैं। राफेल डील हो या विदेशी वैक्सीन कंपनियों को भारत में प्रवेश दिलाना हो, राहुल गांधी ने हमेशा विदेशी कंपनियों के लिए लॉबिंग की है। राहुल गांधी ने राफेल की प्रतिस्पर्धी कंपनी के इशारे पर राफेल डील के खिलाफ माहौल बनाया। डील रद्द करने के लिए हर मुमकिन कोशिश की। मोदी सरकार पर इस डील से जुड़ी जानकारियों को साझा करने का दबाव डाला। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी के मंसूबों पर पानी फेर दिया। अब कमिटी की रिपोर्ट आने के बाद सोशल मीडिया पर लोग सवाल कर रहे हैं कि पेगासस स्पाईवेयर मामले को लेकर हंगामा कर लोकसभा को स्थगित करके देश के करोड़ों रुपये को बर्बाद करने वाले राहुल गांधी क्या अब देश से माफी मांगेंगे?

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