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मुनव्वर राणा का विवादित ट्वीट, लिखा-भारत में 100 करोड़ जानवर और 35 करोड़ इंसान,सोशल मीडिया पर लताड़ के बाद दी सफाई

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तथाकथित बुद्धिजीवियों का दम अब धर्मनिरपेक्षता के मुखौटे में घुटने लगा है। यही वजह है कि वे मोदी राज में अपना मुखौटा उतार कर अपना असली चेहरा दिखा रहे हैं। उनमें हिन्दुओं और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ कितना जहर भरा हुआ है, इसका अंदाजा उनके बयान और उनके लिखे शब्दों से लगाया जा सकता है। ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवियों में उर्दू के मशहूर और विवादित शायर मुनव्वर राणा भी शामिल है। उन्होंने फिर से एक विवादित ट्वीट किया है। मुनव्वर राणा ने भाजपा नेता संबित पात्रा को सम्बोधित करते हुए भारत में रहने वाले लोगों को लेकर लिखा है कि भारत में 35 करोड़ इंसान और 100 करोड़ जानवर रहते हैं। इसके साथ ही लिखा है, “मैं झूठ के दरबार में सच बोल रहा हूँ, हैरत है कि सर मेरा क़लम क्यूँ नहीं होता।”

सोशल मीडिया पर लोगों ने लगाई लताड़

मुनव्वर राणा के इस ट्वीट के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने उन्हें खूब ट्रोल किया। कई ट्विटर यूजर्स ने लिखा कि शायर साहब का धंधा बंद हो गया तो आजकल एजेंडा चलाने वाले गैंग में शामिल हो गए हैं। 


पड़ी लताड़ तो दी सफाई

जब ट्विटर पर लोगों ने मुनव्वर राणा की लताड़ लगायी, तो उन्हें अपनी गलती और लोगों के आक्रोश का अहसास हुआ। इसके बाद राणा ने एक ट्वीट कर सफाई दी, जिसमें उन्होंने ट्वीट को तोड़ मरोड़ कर हव्वा बनाने का आरोप लगाया। 

अपने आकाओं की खोली पोल

मुनव्वर राणा ने इस ट्वीट से अपने गैंग के आकाओं की पोल खोल दी है, जिन्होंने करीब 60 साल तक गरीबी हटाने के नाम पर देश पर राज किया। जब देश में 100 करोड़ लोग बीपीएल है, जो हर बुनियादी हुक़ूक़ से महरूम हैं। तो मुनव्वर राणा जैसे तथाकथित बुद्धिजीवियों को गांधी परिवार को पत्र लिखकर सवाल पूछना चाहिए कि 100 करोड़ बीपीएल के लिए कौन जिम्मेदार है ? मुनव्वर राणा जैसे लोगों को आज गरीबी दिखाई दे रही है। जब अपने आकाओं से पुरस्कार ले रहे थे, क्या उस समय गरीबी और गरीब नहीं थे ? पुरस्कार पाने की लालसा ने ऐसे शायरों और बुद्धिजीवियों की आंखों पर पर्दा डाल दिया था। आज मोदी सरकार को श्रेय दिया जाना चाहिए, जिसने इनकी आंखों से पर्दा हटाकर कांग्रेस शासन की नाकामियों को देखने पर मजबूर कर दिया है। कांग्रेस की नाकामियों के कारण ही देश की जनता ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाकर उनके हाथों में देश की बागडोर सौंपी है।

जहरबयानी में जुटे मुनव्वर राणा 

इससे पहले भी मुनव्वर राणा कई बार अपनी हरकतों और ट्वीट को लेकर सुर्खियों में आ चुके हैं। जब तबलीगी जमात के कारण कोरोना के मामलों में अचानक भारी तेजी आ गई, तो मुनव्वर राणा जैसे लोग खामोश रहे। कोरोना से लड़ने के लिए इनकी तरफ से ऐसी कोई पहल नहीं, जो यह विश्वास दिलाए कि देश से कोरोना को समाप्त करने को लेकर ये गंभीर हों। यहां तक कि इस स्थिति में भी ये मजहब के पहलुओं को ढूंढ़ने में लगे रहे।

असहिष्णुता के नाम पर लौटाया साहित्य अकादमी पुरस्कार

साहित्यकारों की एक छोटी जमात ने देश में ऐसा समां बांधा मानो पूरे देश में असहिष्णुता का माहौल है। इन्होंने साहित्यकार कलबुर्गी की हत्या और दादरी में अखलाक के मारे जाने को असहिष्णुता के माहौल का प्रतीक बताया। कलबुर्गी की हत्या के बहाने हंगामा खड़ा किया गया कि देश में वैचारिक आजादी खतरे में है। ये साहित्यकार असहिष्णुता का राग छेड़ते हुए साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने लगे। इनमें मुनव्वर राणा भी शामिल थे।

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