भारत और चीन के बीच मौजूदा तनाव को सुलझाने के लिए सैनिक-कूटनीतिक कोशिशें चल रही हैं। लेकिन पिछले एक महीने से लद्दाख के गलवान घाटी और पेंगांग झील के पास गतिरोध बना हुआ है। दोनों देश के हज़ारों सैनिकों के अभी एक-दूसरे के सामने ही तैनात रहने की संभावना है। इसी बीच मोदी सरकार ने जहां अपने मित्र देशों को सीमा विवाद के बारे में अपडेट दिया है, वहीं चीन को उसी की भाषा में जवाब देने के लिए सीमा पर सेना को और अधिक मजबूत करना शुरू कर दिया है। भारत ने चीन को पेश की एक नई चुनौती
भारत ने अपनी पहली माउंटेन स्ट्राइक कोर तैयार करने की घोषणा कर चीन को एक नई चुनौती पेश कर दी है। अभी की जानकारी के मुताबिक, इस कोर में ब्रिगेड से थोड़े बड़े इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स होंगे जो बहुत तेजी से कार्रवाई करने के लिए तैयार किए जाएंगे। इनके पास जबरदस्त गोलाबारी की क्षमता के साथ बहुत कम समय में किसी तैनाती के लिए ज़रूरी एयर सपोर्ट होगा। साथ ही इनमें बख्तरबंद गाड़ियां, सिग्नल, कम्यूनिकेशन के लिए ज़रूरी सारे साजो-सामान होंगे। ऐसे 11 आईबीजी अरुणाचल प्रदेश के लिए होंगे यानि चीनी सीमा पर तैनाती के लिए।
80 हजार जवान और अफसर
रक्षा मंत्रालय की योजना के अनुसार 80 हजार जवानों की यह विशेष फोर्स चीनी सीमा वाले ऊंचे इलाकों में रहकर लड़ने में पारंगत होगी और वायु शक्ति से भी लैस होगी। इसके तहत चार माउंटेन डिवीजन बनेंगे, जिनमें 20-20 हजार कार्मिक होंगे। मोटे तौर पर 80 हजार की इस कोर में करीब 10 हजार अफसर भी होंगे। रक्षा सूत्रों के अनुसार चीन अपनी तरफ इस तरह की फोर्स खड़ी कर रहा है और उसका कार्य हमसे काफी आगे बढ़ चुका है।
इस कोर के जवानों को चीन की 4047 किलोमीटर लंबी सीमा के करीब तैनात किया जाएगा। इसलिए जवानों को ऊंचे इलाकों में रहकर लड़ने की ट्रेंनिग दी जाएगी। कुछ हद तक इस किस्म की ट्रेनिंग आईटीबीपी के जवानों को भी दी जाती है। सेना में माउंटेन कोर के जवानों को भी ऐसी ट्रेनिंग दी जाती है लेकिन उनकी संख्या सीमित है।
यह फोर्स जरूरत पड़ने पर कुछ ही मिनटों में चीनी सेना को मुहतोड़ जवाब देने में समक्ष होगी। यह मिसाइल से लेकर सभी किस्म के अत्याधुनिक हथियारों से लैस होगी। इसके पास वायु शक्ति भी होगी। जवानों को पैराशूट से उतारने में भी दक्ष बनाया जाएगा। यानि वे जमीनी एवं हवाई युद्ध लड़ने में सक्षम होंगे। कोर के पास फाइटर एवं ट्रांसपोर्ट तीनों किस्म के विमान होंगे।
भारतीय सेना ने पिछले साल सितंबर में लद्दाख में एक बड़ा सैनिक अभ्यास किया था जिसका नाम था चांगथांग प्रहार। इसमें भारतीय सेना ने टैंकों, तोपखाने, पैराट्रुपर्स और बख्तरबंद गाड़ियों के साथ इस इलाक़े में भी दिन और रात में लड़ने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया था। चांगथांग उत्तर पश्चिमी तिब्बत का एक बड़ा पठार है जो लद्दाख तक आता है यानि नाम से संदेश स्पष्ट था। भारतीय सेना की तैयारी और तेवर दोनों ही हिमालय में किसी भी आपातकाल के लिए पर्याप्त हो चुके हैं। चीन की खीझ की यही वजह है। चीन के अभी के रुख से यह साफ हो गया है कि कूटनीतिक स्तर पर चर्चाएं अभी लंबी चलेंगी लेकिन जमीन पर सेनाओं के बीच तनाव कम नहीं होगा।
#LtGenRanbirSingh, #ArmyCdrNC visited Eastern Ladakh & witnessed Integrated Exercise of all Arms in Super High Altitude Area; complimented all ranks for outstanding display of war fighting capability under challenging conditions.@adgpi @SpokespersonMoD @PIB_India pic.twitter.com/HZEFAj1wkT
— NorthernComd.IA (@NorthernComd_IA) September 17, 2019
LAC पर इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने से चीन की बढ़ी परेशानी
मोदी सरकार माउंटेन कोर और सेना को बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने के लिए भी लगातार प्रयास कर रही है। इसके लिए सीमा पर सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है, ताकि कम समय में सेना को सीमा पर तैनात किया जा सके। चीन ने पूरी एलएसी के पास तक बहुत अच्छी सड़कों का जाल तैयार कर लिया है। उसकी फीडर सड़कें तो एलएसी के बहुत ज्यादा करीब तक पहुंचती हैं। दूसरी तरफ भारत ने कुछ साल पहले ही एलएसी पर इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम करना शुरू किया है लेकिन इस पर भी चीन को आपत्ति है क्योंकि इसका अर्थ एलएसी पर उसके सबसे ताकतवर हथियार के कुंद हो जाने का खतरा है। इस साल अप्रैल में लद्दाख में चीनी सैनिकों के अचानक आक्रामक हो जाने का मुख्य कारण चीन का यही डर है।