प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन में गरीबों के सपने सच हो रहे हैं। लेकिन उनकी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि जो कभी सपने में भी सोचे नहीं गए थे, वे अब हकीकत बन रहे हैं। गरीबों और वंचितों को वो हक और सम्मान मिल रहा है, जिसकी इससे पहले उन्होंने कल्पना तक नहीं की थी। झोंपड़ी में रहने वाला कभी राष्ट्रपति भवन में रहने का सपना नहीं देखता, लेकिन आज मोदी सरकार में सब मुमकिन हो रहा है। एक आदिवासी शिक्षिका द्रोपदी मुर्मू को पहले राज्यपाल और अब देश के सर्वोच्च पद के लिए उम्मीदवार बनाकर प्रधानमंत्री मोदी ने ग़रीबों का हौसला बढ़ाया है। उन्हें सपना देखने और उसे पूरा करने के लिए प्रेरित किया है। उन्होंने विश्वास दिलाया है कि मौजूदा केंद्र सरकार उनके सपनों को पूरा करने के लिए तत्परता से काम कर रही है।
कभी नहीं सोचा था उम्मीदवार बनाया जाएगा-द्रौपदी मुर्मू
दरअसल भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना प्रत्याशी घोषित किया है। 21 जून की देर शाम बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए के प्रत्याशी के तौर पर द्रौपदी मुर्मू के नाम की घोषणा की, तब द्रौपदी ओडिशा के मयूरभंज के अपने गांव माहूलडिहा में अपने घर पर थीं। घोषणा से पहले तक उन्होंने सोच नहीं होगा कि वो देश के सबसे बड़े पद के लिए सत्ता पक्ष की तरफ़ से प्रत्याशी बनाई जाने वाली हैं। अपनी उम्मीदवारी की घोषणा के बाद द्रौपदी मुर्मू ने स्थानीय मीडिया से कहा कि मैं आश्चर्यचकित हूं और ख़ुश भी क्योंकि मुझे राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाया गया है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मुझे इस पद का उम्मीदवार बनाया जाएगा।
झोपड़ी से रायसीना हिल की ओर सफर
द्रौपदी मुर्मू की बेटी इतिश्री ने बताया कि शाम को एक कॉल आया, शायद प्रधानमंत्री मोदी का था। उन्होंने जो भी कहा हो, लेकिन मां उसके बाद चुप हो गईं। आंखों में आंसू थे, कुछ भी बोल न सकीं। थोड़ी देर बाद बस धन्यवाद कह पाईं और वो भी बहुत मुश्किल से। इतिश्री ने आगे बताया कि मां ने उनसे कहा कि यह सपने जैसा है। झोपड़ी से सर्वोच्च पद तक का दावेदार बनने तक का सफर सिर्फ सपना ही हो सकता है। आदिवासी समुदाय के लोग ऐसा सपना तक नहीं देखते हैं। बाद में मीडिया से बात करते हुए द्रौपदी मुर्मू ने कहा कि यह क्षण मेरे, आदिवासी और महिलाओं के लिए ऐतिहासिक है। किसी समय एक शिक्षक के रूप में काम कर चुकीं आदिवासी महिला मुर्मू पहली बार रायसीना हिल की सीढ़ियां चढ़ेंगी।
शिव मंदिर में झाड़ू लगाने के बाद पूजा
द्रौपदी मुर्मू बुधवार को ओडिशा के रायरंगपुर में स्थित शिव मंदिर में पहुंचीं। यहां उन्होंने खुद झाड़ू से मंदिर की साफ-सफाई की और स्वच्छता का संदेश भी दिया। वे आदिवासी पूजा स्थल जहिरा भी पहुंचीं। इसके पहले बुधवार सुबह ही केंद्र सरकार ने द्रौपदी मुर्मू को जेड प्लस कैटेगरी की सुरक्षा दे दी है और अब सीआरपीएफ के जवान उनकी सुरक्षा में तैनात होंगे। द्रौपदी मुर्मू का एक वीडियो भी सामने आया है। इसमें उन्हें मंदिर के आंगन में झाड़ू लगाते हुए देखा जा सकता है।
#WATCH | Odisha: NDA’s presidential candidate Draupadi Murmu sweeps the floor at Shiv temple in Rairangpur before offering prayers here. pic.twitter.com/HMc9FsVFa7
— ANI (@ANI) June 22, 2022
गरीब आदिवासी परिवार में संघर्षमय जीवन
20 जून, 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में जन्मी द्रौपदी मुर्मू ने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया है। उनका परिवार बहुत गरीब था। शादी के कुछ समय बाद ही उन्होंने पति और अपने दोनों बेटों को खो दिया। घर चलाने और बेटी को पढ़ाने के लिए मुर्मू ने एक शिक्षक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की और फिर उन्होंने ओडिशा के सिंचाई विभाग में एक कनिष्ठ सहायक यानि क्लर्क के पद भी नौकरी की। पति और दो बेटों को खो चुकी द्रौपदी मुर्मू के पास बस एक बेटी इति मुर्मू है, जिसे उन्होंने नौकरी से मिलने वाले वेतन से घर खर्च चलाया और बेटी इति को पढ़ाया लिखाया।
आइए देखते हैं किस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने गरीबों, वंचितों और गुमनाम लोगों को राष्ट्रपति भवन में आमंत्रित कर सम्मान दिलाया है, जिसके बारे में किसी ने सोचा तक नहीं था…
पीएम मोदी के अथक प्रयासों का असर पद्म पुरस्कारों में साफ नजर आया। राष्ट्रपति भवन का ऐतिहासिक दरबार हॉल में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति समेत देश की सबसे ताकतवर हस्तियों की मौजूदगी में तालियों की गड़गड़ाहट के बीच जब नंगे पांव देश के ये रियल हीरो पद्म सम्मान ग्रहण करने के लिए आगे बढ़े, तो एक अद्भुत समा नजर आया।
हरेकला हजब्बा
संतरे बेच कर इस साधारण से दिखने वाले शख्स ने असाधारण काम किया। अपनी मेहनत से गांव में बनवाया गया उनका स्कूल, सैकड़ों बच्चों की जिंदगी को शिक्षा की रोशनी से भर रहा है। उनका स्कूल ‘हजब्बा आवारा शैल’ यानि हजब्बा का स्कूल नाम से जाना जाता है।
तुलसी गौड़ा
लोग इन्हें ‘जंगल की इनसाइक्लोपीडिया’ के नाम भी जानते हैं। तुलसी गौड़ा कभी स्कूल नहीं गईं, लेकिन जंगल में पाए जाने वाले पेड़-पौधों, जड़ी-बूटियों की उनकी जानकारी लोगों को हैरान कर देती है। इलाके के लोग उन्हें ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ फॉरेस्ट’ कहा जाता है। हलक्की जनजाति से ताल्लुक रखने वाली तुलसी गौड़ा ने 12 साल की उम्र से अबतक करीब 30 हजार पौधे लगाए हैं और अब भावी पीढ़ी को भी पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रही हैं।
राहीबाई सोमा पोपेरे
देश के कृषि वैज्ञानिक भी ‘सीड मदर’ राहीबाई सोमा पोपेरे का लोहा मानते हैं। महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में पोपरे ने जैविक खेती की मिसाल कायम की है। 57 साल की पोपेरे स्वयं सहायता समूहों के जरिए 50 एकड़ जमीन पर 17 से ज्यादा देसी फसलों की खेती करती हैं। दो दशक पहले उन्होंने बीजों को इकट्ठा करना शुरू किया। उनकी इस पहल की कई बार सराहना हो चुकी है।
उषा चौमार
उषा चौमार राजस्थान के उन रत्नों में शामिल हैं, जिन्हें पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित होने वाली उषा चौमर कभी मैला ढोने का काम करती थीं, आज वो हर किसी के लिए मिसाल हैं। 7 साल की उम्र से मैला ढोने वाली ऊषा चौमार की कहानी देश के करोड़ों लोगों को प्रेरित करने वाली है, ऊषा चौमार ने मैला ढोने की कुप्रथा के खिलाफ संघर्ष किया और एक नई मिसाल कायम की।
योगगुरु स्वामी शिवानंद को मिला पद्मश्री अवार्ड
वाराणसी के 126 वर्षीय स्वामी शिवानंद को भारतीय जीवन पद्धति और योग के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। स्वामी शिवानंद जब पुरस्कार लेने पहुंचे तो उन्होंने सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को दंडवत प्रणाम किया। स्वामी शिवानंद का ये भाव देखकर प्रधानमंत्री मोदी भी अपनी कुर्सी से उठकर उनके सम्मान में झुक गए और उन्हें प्रणाम किया। इसके बाद स्वामी शिवानंद ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भी दंडवत प्रणाम किया। राष्ट्रपति कोविंद ने उन्हें हाथ पकड़कर उठाया और अवार्ड देकर सम्मानित किया। देखिए वीडियो-