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बॉलीवुड नगरी में POLITICS की पटकथा: सीएम उद्धव ठाकरे ‘VILLAIN’ बने तो शिंदे हुए बागी, इन सात सवालों से जानिए महाराष्ट्र के सियासी-वार में ‘BAGAWAT’ की सारी कहानी

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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की कार्यशैली के चलते सिर्फ शहरी विकास मंत्री एकनाथ शिंदे ही नहीं, कई और मंत्री व शिवसेना विधायक उनसे नाराज चल रहे थे। शिंदे कोई एक रात में बागी नहीं हुए, बॉलीवुड की नगरी मुंबई में इसकी पटकथा राज्यसभा चुनाव के पहले से लिखी जा रही थी। महाराष्ट्र विधान परिषद चुनाव इस पटकथा का क्लाइमैक्स की ओर ले गए। अब महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार खतरे में है। शिवसेना के कद्दावर नेता एकनाथ शिंदे ने बगावत का बिगुल बजा दिया है। दरअसल, कांग्रेस की सोहबत में शिवसेना का हिंदुत्व के मुद्दे से दूर होते जाना भी शिंदे को खटक रहा था। इसके अलावा मंत्री के रूप में एकनाथ शिंदे के लिए फैसलों पर CM उद्धव ठाकरे रोक लगा देते थे। प्रमुख सचिवों के मार्फत उनके विभागों की फाइलें भी रुकवा दी जाती थीं। इस शीत-युद्ध में अब दोनों पक्ष आमने सामने आ गए हैं।

ठाकरे रोकते थे शिंदे के विभाग की फाइलें, हिंदुत्व से शिवसेना के दूर होने से भी शिंदे नाराज
शिवसेना से बगावत के बाद एकनाथ शिंदे का पहला बयान आया है। उन्होंने कहा कि हम बालासाहेब के सच्चे शिवसैनिक हैं। बालासाहेब ने हमें हिंदुत्व सिखाया है। दरअसल, एकनाथ शिंदे इसलिए भी नाराज थे कि शिवसेना हिंदुत्व के मुद्दे से दूर हो रही है। शिंदे ठाणे नगर निगम का चुनाव अकेले लड़ना चाहते थे, जबकि संजय राउत समेत कुछ नेता उन पर राकांपा के साथ मिलकर लड़ने का दबाव बना रहे थे। इन राजनीतिक मुद्दों से नाराज एकनाथ शिंदे ने विधानसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी (MVA) सरकार के गिरते समर्थन को देखकर विद्रोह कर दिया।

अब सवाल उठने लगा है कि उद्धव सरकार बचेगी या जाएगी? आइये इन सात सवालों के जानते हैं महाराष्ट्र में बगावती माहौल क्यों बना और इसके परिणाम क्या हो सकते हैं…

सवाल-1: एकनाथ शिंदे अचानक बगावत पर क्यों उतरे ?
जवाब – यह सब अचानक नहीं हुआ है, बल्कि उद्धव ठाकरे की कार्यशैली और व्यवहार के चलते नाराजगी पहले से ही चल रही थी। बस सही समय और साथियों का इंतजार था। शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की महाअघाड़ी सरकार बनने के बाद से शिवसेना में संजय राउत, अनिल देसाई और आदित्य ठाकरे की ताकत काफी बढ़ गई। वहीं एकनाथ शिंदे खुद को दरकिनार महसूस कर रहे थे। दरअसल, 2019 में उद्धव ठाकरे ने शिंदे को विधायक दल का नेता बना दिया था। उस वक्त माना जा रहा था कि शिंदे ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन एनसीपी और कांग्रेस से दबाव डलवाकर ठाकरे खुद सीएम बन बैठे। लेकिन ठाकरे कमजोर सीएम साबित हुए। उन्होंने न तो महाराष्ट्र के विकास में और न ही पार्टी को मजबूत करने में कोई महती योगदान दिया। इसके चलते पिछले कुछ दिनों से शिंदे और ठाकरे की दूरियां बढ़ रहीं थीं।

सवाल-2: एकनाथ शिंदे की ठाकरे से नाराजगी की वजह क्या है?
जवाब – सीएम ठाकरे ने जानबूझकर शहरी विकास मंत्री शिंदे की पसंद के अधिकारियों की नियुक्ति नहीं होने दी। इसके अलावा मुंबई की DPR तैयार करते हुए एकनाथ शिंदे ने शहरी विकास मंत्री के तौर पर कुछ फैसले लिए। इन फैसलों को बाद में मुख्यमंत्री ने संबंधित विभाग के सचिव के माध्यम से रोक दिया था। शिंदे ठाणे, रायगढ़ और पालघर जिलों के कुछ IAS और डिप्टी कलेक्टर नियुक्त करना चाहते थे। मुख्यमंत्री ने उनकी नियुक्ति नहीं होने दी। विधान परिषद चुनावों में एकनाथ शिंदे के नंबर एक राजनीतिक पद के बावजूद युवा शिवसेना के पदाधिकारियों को महत्व दिया गया।

सवाल-3: क्या शिंदे की कांग्रेस पार्टी से भी नाराजगी है?
जवाब – शिंदे की कांग्रेस से नाराजगी उनकी पार्टी के हित में जायज ही है। दरअसल, महाराष्ट्र में मोटे तौर पर शिवसेना को मराठा अस्मिता के लिए काम करने वाली हिंदूवादी पार्टी माना जाता है। पवार की एनसीपी को मराठाओं की पार्टी और कांग्रेस की इमेज मुस्लिम समर्थक होने की है। शिंदे का तर्क है कि कांग्रेस की इस इमेज से शिवसेना का वोटबैंक काफी कमजोर पड़ा है। ओवरआल भी कांग्रेस की इमेज को लगातार बट्टा लग रहा है, ऐसे में उसे सहयोगी पार्टी बनाने में शिवसेना को नुकसान ही है।

सवाल-4: एकनाथ शिंदे ने बगावत का अंतिम फैसला कब लिया?
जवाब – शिंदे शिवसेना के उन नेताओं में शामिल हैं, जो कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने के खिलाफ थे। इस खेमे का कहना है कि उद्धव ठाकरे ने सीएम बनने के लिए धुर-विरोधी कांग्रेस से हाथ मिलाकर शिवसेना को काफी नुकसान पहुंचाया है। इसी महीने 10 जून को हुए राज्यसभा चुनाव से ही महाराष्ट्र में उद्धव सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे थे। राज्यसभा की 6 सीटों पर सत्तारूढ़ महाविकास अघाड़ी यानी शिवसेना+कांग्रेस+NCP के 3 और BJP के 3 उम्मीदवार जीत गए। देखा जाए तो महाराष्ट्र विधानसभा में BJP के पास सिर्फ 106 विधायक हैं, निर्दलियों को मिलाकर यह संख्या 113 से ज्यादा हो रही थी, लेकिन राज्यसभा चुनाव में उसे 123 वोट मिले तो एमएलसी चुनाव में 134 वोट मिले हैं। इसका सीधा मतलब हुआ कि BJP ने राज्यसभा चुनाव में सत्तापक्ष के 10 विधायकों को तोड़ा था। वहीं MLC चुनाव में BJP को 134 वोट मिले। यानी BJP के साथ अब तक सत्तापक्ष के 21 विधायक आ गए थे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

सवाल-5: एकनाथ के साथ कौन-कौन से विधायक गए हैं?
जवाब – खबरों के मुताबिक एकनाथ शिंदे के साथ कुल 30 विधायक हैं। मीडिया रिपोर्ट्स में इनमें कई के स्पष्ट नाम भी सामने आ चुके हैं। शिंदे का समर्थन कर रहे विधायकों में अब्दुल सत्तार-औरंगाबाद, शंबुराजे देसाई-सतारा पाटन, प्रकाश अबितकर-राधानगरी कोल्हापुर, संजय राठौड़-यवतमाल, संजय रायमुलकर-मेहकर, संजय गायकवाड़-बुलढाणा, महेंद्र दलवी-अलीबाग, विश्वनाथ भोईर-कल्याण, भरत गोगवाले-रायगढ़, संदीपन भुमरे, प्रताप सरनाइक,-मजीवाड़ा, शाहजी पाटिल, तानाजी सावंत, शांताराम मोरे, श्रीनिवास वनगा, संजय शीर्षसत, अनिल बाबर, बालाजी किन्निकर, यामिनी जाधव, किशोर पाटिल, गुलाबराव पाटिल, रमेश बोरानारे और उदय राजपूत समेत तीस विधायक शामिल हैं।

सवाल-6: कितने विधायक टूटने पर गिर जाएगी उद्धव सरकार?
जवाब – महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों पर 2019 में चुनाव हुए थे। इस चुनाव में बीजेपी 106 विधायकों के साथ राज्य की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। मुख्यमंत्री पद को लेकर शिवसेना ने बीजेपी को धोखा दिया। ऐसे में 56 विधायकों वाली शिवसेना ने 44 विधायकों वाली कांग्रेस और 53 विधायकों वाली NCP के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी सरकार बनाई। इस वक्त एकनाथ शिंदे के साथ करीब 30 विधायक गुजरात के सूरत में ठहरे हुए बताए जा रहे हैं। कुल 170 विधायकों के उद्धव सरकार को समर्थन है, ऐसे में 30 विधायक टूट गए तो ये आंकड़ा गिरकर 140 हो जाएगा। वहीं, बहुमत का आंकड़ा 144 साफ है कि महाविकास अघाड़ी सरकार गहरे संकट में फंस जाएगी।

सवाल-7: ठाकरे सरकार गिरने के बाद क्या हो सकता है ?
जवाब – अगर महाविकास अघाड़ी से 30 विधायक अलग हो जाते हैं तो सरकार अल्पमत में आ जाएगी। ऐसे में विपक्षी दल बीजेपी सदन बुलवाकर अविश्वास प्रस्ताव लाने की कोशिश करेगी। ऐसे हालात में राज्यपाल की भूमिका सबसे अहम होगी। वहीं, अगर सदन में बहुमत साबित करने की बारी आती है तो स्पीकर का रोल सबसे खास हो जाएगा। कर्नाटक और उत्तराखंड जैसे राज्यों में ऐसे हालात होने पर मामले अदालत भी जा चुका है। लेकिन महाराष्ट्र का मामला अलग है, बागी एकनाथ शिंदे की सबसे बड़ी मांग यही है कि बीजेपी के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई जाए। बीजेपी-शिवसेना के गठबंधन से आसानी से सरकार बन सकती है। बैसे बीजेपी के अब तक का ऑफिशियल स्टैंड यही है कि इस मामले से उनका कोई लेना-देना नहीं है। यह शिवसेना और महाविकास अघाड़ी का आपसी झगड़ा है।

महाराष्ट्र में सरकार में बीजेपी आई तो यह हो सकते हैं समीकरण
महाराष्ट्र में तेजी से बदलते सियासी समीकरणों के बीच पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस दिल्ली पहुंच गए हैं। अगर महाराष्ट्र में सरकार बदलती है तो एकनाथ शिंदे को फडणवीस उपमुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। इसके लिए वे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की मंजूरी चाहते हैं। जिससे प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने में कोई राजनीतिक बाधा न आए। इसके अलावा पार्टी के नेता यह भी जानना चाहते हैं कि शिंदे के साथ आने पर मुंबई और ठाणे समेत 14 नगर निगमों में BJP को कितना राजनीतिक फायदा मिलेगा। शिंदे के बेटे श्रीकांत एकनाथ शिंदे कल्याण से सांसद हैं। क्या उन्हें केंद्र में कुछ जिम्मेदारी दी जा सकती है? फडणवीस दिल्ली में आलाकमान से इस पर भी चर्चा करना चाहते हैं।

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