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मोदी फैक्‍टर से नेपाल के पीएम प्रचंड कम्युनिस्ट से बने शिवभक्त, महाकाल के बाद अब कैलाश मानसरोवर की यात्रा

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सनातन संस्कृति के उपासक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में वह आध्यात्मिक शक्ति है कि हर कोई उनकी ओर खिंचा चला आता है। उनसे मिलने वाला व्यक्ति उनका मुरीद बन जाता है। आज दुनिया के बड़े देश से लेकर छोटे देश के नेता, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री उनसे इस कदर प्रभावित हैं कि प्रशंसा किए नहीं थकते। उनके नेतृत्व से दुनिया इस कदर प्रभावित है कि दर्जनभर से अधिक देशों ने उन्हें अपने सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया है। पिछले दिनों दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन पीएम मोदी का ऑटोग्राफ लेने की हसरत जता चुके हैं। वहीं आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने उन्हें बॉस की उपाधि दी। अब इसी कड़ी में नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्‍प कमल दहल प्रचंड का नाम भी जुड़ गया है। प्रचंड कट्टर माओवादी कम्युनिस्ट हैं। माओवादी आमतौर पर भगवान को नहीं मानते और पूजा में विश्वास नहीं करते। लेकिन 31 मई 2023 को भारत दौरे पर आए प्रचंड पर पीएम मोदी का ऐसा जादू चला कि नई दिल्ली में प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति के साथ बैठक के बाद वे उज्जैन पहुंच गए और महाकाल की पूजा-अर्चना की। वहीं इन दिनों चीन के दौरे पर पहुंचे प्रचंड चीन के शीर्ष नेताओं से मुलाकात के बाद तीर्थयात्रा पर निकल गए। प्रचंड कैलाश मानसरोवर के दर्शन करने पहुंचे और वहां पूजा अर्चना की। यही तो है मोदी फैक्टर, मोदी है तो मुमकिन है!

प्रचंड ने महाकाल के किए दर्शन, पत्नी के स्वास्थ्य के लिए की विशेष पूजा
भारत दौरे पर आए नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड 2 जून 2023 को मध्य प्रदेश के उज्जैन पहुंचे। वहां उन्होंने भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल के दर्शन किए। उज्जैन पहुंचने के बाद महाकालेश्वर मंदिर के पुजारियों ने उनका सत्कार किया और उन्होंने बाबा महाकालेश्वर के दर्शन किए। उन्होंने गर्भ गृह में महाकाल की खास पूजा भी की। रिपोर्टों के अनुसार उन्होंने अपनी बीमार पत्नी के स्वास्थ्य लाभ के लिए विशेष पूजा की। पूजा के दौरान नेपाल के पीएम ने भगवान महाकालेश्वर को नेपाल से लाए 100 रुद्राक्ष और 51 हजार रुपए नकद चढ़ाए।


महाकाल के मंदिर में भगवाधारी बन गए थे प्रचंड
यह मोदी फैक्टर ही है कि हिंदू धर्म में आस्‍था दिखाकर प्रचंड बीजेपी सरकार को यह दिखाना चाहते हैं कि वह चीन के खतरे को देखते हुए भारत से रिश्ते सुधारना चाहते हैं। भारत में अपनी यात्रा के दौरान प्रचंड ने उज्‍जैन जाकर भगवा कपडे़ पहने थे और महाकाल के मंदिर में पूजा की थी। प्रचंड जब माओवादी थे तब उन्‍होंने हिंदू राजतंत्र के खिलाफ ‘क्रांति’ के दौरान कई मंदिरों को तहस-नहस कर दिया था। इस दौरान कई भक्‍त मारे भी गए थे।

प्रचंड कैलाश मानसरोवर के दर्शन करने पहुंचे
चीन के दौरे पर पहुंचे नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्‍प कमल दहल प्रचंड चीन के शीर्ष नेताओं से मुलाकात के बाद तीर्थयात्रा पर निकल गए। प्रचंड कैलाश मानसरोवर के दर्शन करने पहुंचे। प्रचंड इसके लिए तिब्‍बत पहुंच गए। प्रचंड 23 सितंबर को बीजिंग पहुंचे और 30 सितंबर तक यह दौरा चलेगा। इससे पहले अपने भारत दौरे पर महाकाल के दर्शन करने के लिए उज्‍जैन गए थे। प्रचंड वामपंथी राजनीति करते हुए नेपाल की राजनीति में श‍िखर पर पहुंचे हैं और अब उनके शिवभक्‍त होने पर सवाल उठ रहे हैं। यह वही प्रचंड हैं जिनकी पार्टी ने नेपाल में माओवादी आंदोलन के दौरान हिंदू राजा का जमकर विरोध किया था और कई मंदिरों को नष्‍ट कर दिया था। अब वही प्रचंड महाकाल से लेकर पशुपतिनाथ और कैलाश मानसरोवर के दर्शन के लिए पहुंचे। माना जाता है कि कैलाश मानसरोवर पर ही भगवान शिव का वास है। प्रचंड शिवभक्‍त बनकर न केवल नेपाल की हिंदू बहुल जनता को बल्कि मोदी सरकार को भी संदेश दे रहे हैं।

प्रचंड 2008 में पीएम बने तो पहला विदेश दौरा चीन का किया
2008 में प्रचंड जब नेपाल के पहले प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने परंपरा के अनुसार, भारत आने के बजाए चीन जाना चुना। प्रचंड भारत को लेकर कई विवादित बयान भी दे चुके हैं। एक बार उन्होंने कहा था कि भारत नेपाल के बीच पुराने समझौतों को या तो खत्म कर देना चाहिए या उन्हें बदल देना चाहिए। इसके बाद जब वो 2016-17 के बीच प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने कहा था कि अब नेपाल वो नहीं करेगा जो भारत कहेगा। लेकिन अब भारत को लेकर उनके रुख में बदलाव दिखता है।

प्रचंड तीसरी बार पीएम बने तो पहला विदेशी दौरा भारत का किया
प्रचंड दिसंबर 2022 में तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और मोदी फैक्टर की वजह से उन्होंने पहला विदेशी दौरा चीन का नहीं किया। इसके लिए उन्होंने भारत को चुना। उन्होंने 31 मई से 3 जून 2023 तक भारत का दौरा किया। उनके साथ 80 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल भी था। चार दिवसीय यात्रा के दौरान, दोनों देशों के बीच छह परियोजनाओं का शुभारंभ किया गया और सात समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए, जिनमें से अधिकतर ऊर्जा और संयोजकता बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में सहयोग का संवर्धन करते हैं। यह पीएम मोदी का प्रभाव ही है कि प्रचंड ने चीन की जगह भारत दौरे को तरजीह दी। 

प्रचंड ने जिनपिंग को दिया झटका, ठुकरा दिया ये ऑफर
भारत दौरे के करीब तीन माह बाद नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड चीन दौरे पर पहुंचे। इस दौरान दोनों देशों के बीच कई समझौते हुए। लेकिन प्रचंड ने जिनपिंग की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक ग्लोबल सेक्यूरिटी इनिशिएटिव (वैश्विक सुरक्षा पहल) में शामिल होने से इनकार कर दिया। नेपाल के इस कदम को चीन के लिए झटके के तौर पर देखा जा रहा है। चीन की ओर से नेपाल पर यह दबाव बनाया जा रहा था कि वो राष्ट्रपति शी जिनपिंग की वैश्विक सुरक्षा पहल (जीएसआई) और वैश्विक सभ्यता पहल (जीसीआई) में शामिल हो। इसे भी पीएम मोदी की कूटनीतिक जीत के तौर पर देखा जा रहा है। नेपाल का भारत से सदियों से संबंध रहा है लेकिन कम्युनिस्ट नेताओं के उभार के बाद नेपाल का झुकाव चीन की तरफ ज्यादा देखा गया। अब पीएम मोदी की पहल से नेपाल के इस रुख में बदलाव देखा जा रहा है। 

नेपाल ने चीन के नाटो को मंजूरी नहीं दी
चीन के काफी दबाव के बाद भी नेपाल ने जीएसआई को मंजूरी नहीं दी। इसे कई व‍िशेषज्ञ चीन का नाटो मानते हैं। नेपाल के साथ जारी संयुक्‍त बयान में जीएसआई का कोई जिक्र नहीं किया गया। नेपाल ने साफ कर दिया कि जीएसआई एक सैन्‍य गठबंधन है जो उसकी गुटनिरपेक्षता की नीति का व‍िरोध करता है। नेपाल ने चीन के जीडीआई समर्थन किया है। नेपाल और चीन के बयान में बीआरआई का जिक्र है और कहा गया है कि दोनों देश सहयोग को बढ़ाएंगे। चीन बीआरआई के लिए लोन देना चाहता है लेकिन प्रचंड इसके लिए तैयार नहीं हुए।

प्रचंड को संयुक्‍त राष्‍ट्र से बचा सकते हैं पीएम मोदी
प्रचंड के अंदर यह रणनीतिक बदलाव वैश्विक स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी बढ़ते कद की वजह से भी है। प्रचंड की राजनीतिक सफलता और सत्‍ता में बने रहने के लिए मोदी फैक्‍टर बेहद अहम है। प्रचंड पीएम मोदी की वेश्विक नेता की छवि इस कदर प्रभावित हैं कि सत्‍ता में आने के बाद चीन की बजाय पहले भारत की यात्रा की और कई बड़े समझौते किए। प्रचंड के ऐसा करने के पीछे एक बड़ी वजह माओवादी हिंसा है जिसमें उस समय 17 हजार लोग मारे गए थे। प्रचंड और उनके साथियों ने लंबे समय तक नेपाल में गुरिल्‍ला युद्ध किया। अब मानवाधिकारों के उल्‍लंघन की जांच में फंसे हुए हैं और अगर उन्‍हें दोषी पाया गया तो सजा भी हो सकती है। प्रचंड इन सभी गुरिल्‍ला को माफी देना चाहते हैं लेकिन संयुक्‍त राष्‍ट्र इस पर भड़क सकता है। यही वजह है कि वह भारत को खुश करना चाहते हैं ताकि अगर जरूरत पड़े तो नेपाली पीएम को पश्चिमी देशों के कोप से बचाया जा सके।

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