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दिखने लगा मेक इन इंडिया का जलवा, भारत से 9 बिलियन डॉलर के मोबाइल फोन होंगे एक्सपोर्ट

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के महत्वाकांक्षी कार्यक्रमों में से एक ‘मेक इन इंडिया’ ने पिछले आठ सालों में विनिर्माण अवसंरचना, निवेश, नवोन्मेषण और कौशल विकास में उल्लेखनीय प्रगति की है। प्रधानमंत्री मोदी के कुशल और गतिशील नेतृत्व में ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम ने देश को एक अग्रणी वैश्विक विनिर्माण और निर्यातक के रूप में पहचान दिलाई है। भारत आज मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात के मामले में बड़ी उपलब्धि हासिल कर रहा है। चालू वित्तीय वर्ष के सात महीने में मोबाइल फोन का निर्यात दोगुना से अधिक होने के बाद अब 9 बिलियन डॉलर के निर्यात होने की उम्मीद जतायी जा रही है।

इंडिया सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (ICEA) के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2022 में लगभग 87 बिलियन डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स का निर्माण स्थानीय स्तर पर किया गया था, जिसके वित्त वर्ष 2023 में बढ़कर 100 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है। वित्त वर्ष 26 तक भारत 300 अरब डॉलर का कुल इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग हासिल करने की योजना बना रहा है।

इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर के मुताबिक इस वित्तीय वर्ष में मोबाइल फोन निर्यात 9 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। वित्त वर्ष 2026 तक लक्षित 120 बिलियन डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में, मोबाइल फोन 60 बिलियन डॉलर का हो सकता है। उद्योग के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल-सितंबर की अवधि में इलेक्ट्रॉनिक्स सामानों का निर्यात वित्त वर्ष 2022 में 6.5 बिलियन डॉलर से 54 प्रतिशत बढ़कर 10.2 बिलियन डॉलर हो गया।

मोदी सरकार मेक इन इंडिया के तहत मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। आइए देखते हैं किस तरह इसके बेहतर नतीजे सामने आ रहे हैं… 

भारत मैन्यूफैक्चरिंग की दुनिया में लगातार आगे बढ़ रहा है- पीएम मोदी

मोदी सरकार में भारत ने मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात के मामले में बड़ी उपलब्धि हासिल की है। चालू वित्तीय वर्ष में अप्रैल से अक्टूबर के बीच मोबाइल फोन का निर्यात दोगुना से अधिक होकर पांच अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर गया है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में यह 2 अरब 20 करोड़ डॉलर था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी भारत की इस उपलब्धि पर प्रसन्नता व्यक्त की। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर के एक ट्वीट को शेयर करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत मैन्यूफैक्चरिंग की दुनिया में लगातार आगे बढ़ रहा है।

5.8 बिलियन डॉलर के मोबाइल फोन का निर्यात

जिस रफ्तार से मोबाइल फोन का निर्यात हो रहा है, उससे यह उम्मीद की जा रही है कि पूरे वित्त वर्ष 2022 के आंकड़े को दिसंबर की शुरुआत में ही पार कर लिया जाएगा और वित्तीय वर्ष 2023 को यह 8.5-9 बिलियन डॉलर की सीमा को भी पार कर लेगा। वहीं भारत ने वित्त वर्ष 2022 में 5.8 बिलियन डॉलर के मोबाइल फोन का निर्यात किया है। उद्योग निकाय इंडिया सेल्युलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन के मुताबिक, जैसे-जैसे निर्यात बढ़ रहा है, भारत ने वित्त वर्ष 2022 में मोबाइल आयात पर निर्भरता को भी लगभग 5 प्रतिशत तक कम कर दिया है, जो 2014-15 में 78 प्रतिशत के उच्च स्तर पर था। वहीं अब भारत का लक्ष्य 2025-26 तक 60 बिलियन डॉलर के सेल फोन का निर्यात करना है। 

बहुत कारगर साबित हो रही है पीएलआई योजना

मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना यानि पीएलआई बहुत कारगर साबित हो रही है। इस दूरदर्शी पीएलआई योजना ने पूरी दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल फोन कंपनियों को आकर्षित किया है। आज भारत से होने वाले मोबाइल फोन के निर्यात में एप्पल और सैमसंग कंपनियां 90 प्रतिशत से अधिक का योगदान करती हैं। इनमें एप्पल जैसी बड़ी कंपनी भी अपने परिचालन का विस्तार करने और भारत में नए आधार स्थापित करने के लिए प्रयास कर रही हैं।

मोदी सरकार में मोबाइल फोन के निर्यात में लगातार वृद्धि 

गौरतलब है कि शुरुआत में भारत से मुख्य तौर पर साउथ एशिया,अफ्रीका, मिडिल ईस्ट और ईस्टर्न यूरोप के देशों को मोबाइल फोन निर्यात किया जाता था। लेकिन अब कंपनियों का ध्यान यूरोप और एशिया के कॉम्पिटिटिव मार्केट पर है। पहले मोबाइल फोन निर्यात के मामले में काफी पीछे हुआ करता था। वर्ष 2016-17 में देश से केवल 1 प्रतिशत से अधिक ही मोबाइल फोन उत्पादन का निर्यात हुआ करता था, लेकिन आईसीईए के आंकड़ों के अनुसार यह प्रतिशत 2021-22 में बढ़कर लगभग 16 प्रतिशत तक पहुंच गया। वहीं ऐसी संभावनाएं जतायी जा रही हैं कि साल 2022-2023 में उत्पादन का लगभग 22 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा।

मैन्युफैक्चरिंग के मामले में भारत दुनिया में नंबर वन

सबसे कम मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट वाले देशों की लिस्ट में भारत दुनिया में नंबर वन हो गया है। चीन और वियतनाम भारत से पीछे दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। जबकि भारत का पड़ोसी बांग्लादेश छठे स्थान पर है। दिलचस्प बात यह है कि दुनिया के सबसे सस्ते और कम लागत से सामान बनाने वाले देशों में भारत को 100 में से 100 अंक मिला है। इससे भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को जहां बुस्ट मिलेगा, वहीं विदेशी कंपनियां भी भारत का रूख कर सकती है।

सस्ती मैन्युफैक्चरिंग लागत के मामले में 100 प्रतिशत स्कोर

दरअसल यूएस न्यूज एंड वर्ल्ड ने एक सर्वे रिपोर्ट जारी किया, जिसमें 85 देशों में से भारत समग्र सर्वश्रेष्ठ देशों की रैंकिंग में 31वें स्थान पर है। इसके अलावा, सूची ने भारत को ‘ओपन फॉर बिजनेस’ श्रेणी में 37 वें स्थान पर रखा गया है। हालांकि, ‘open for business’ की उप-श्रेणी के तहत भारत ने सबसे सस्ती मैन्युफैक्चरिंग लागत के मामले में 100 प्रतिशत स्कोर किया। यूएस न्यूज एंड वर्ल्ड रिपोर्ट ने 73 मापदंडों पर देशों का मूल्यांकन किया है। इन खूबियों को 10 सब-सेगमेंट्स में बांटा गया था। इनमें साहसिक, चपलता, उद्यमिता, बिजनेस के लिए खुला, सामाजिक मकसद और जीवन की गुणवत्ता शामिल है।

चीन की जगह भारत बना विदेशी कंपनियों की पहली पसंद

इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दुनिया भर में कम्पनियां कम लागत के साथ भरोसेमंद मैन्युफैक्चरर के तौर पर उभरे भारत का रुख कर रही है। पहले कम मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट के लिए दुनिया भर के देशों की पहली पसंद चीन और वियतनाम थे। ‘ओपन फॉर बिजनेस’ सेगमेंट में चीन को 17वां स्थान मिला है। लेकिन सस्ती मैन्युफैक्चरिंग कॉस्ट के मामले में चीन भारत से पिछड़कर दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। बीते कुछ बरसों में कपड़ों और फुटवियर मैन्युफैक्चरर्स को आकर्षित करने वाला वियतनाम मैन्युफैक्चरिंग लागत में भारत-चीन के बाद तीसरे नंबर पर है।

भारत को ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग का हब बनाने की कोशिश

सर्वे के इन नतीजों से भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को काफी बढ़ावा मिल सकता है। मोदी सरकार भारत को ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग का हब बनाने की लगातार कोशिश कर रही है। कोरोना की पहली लहर के दौरान लॉन्च किए गए आत्मनिर्भर भारत अभियान से इस मिशन की शुरुआत हो गई थी। इसके लिए विदेशी कंपनियों को लुभाने का दांव चला गया। compliance का बोझ घटाने से भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बड़ा फायदा मिला। प्रॉडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) जैसी स्कीम्स के ज़रिए दुनिया की बड़ी बड़ी कंपिनयों ने भारत में मैन्युफैक्चरिंग की शुरुआत भी की। 

मोदी सरकार ने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बनाया आकर्षक

कोरोना के बाद जिस तरह से वैश्विक समीकरण बदले हैं और भारत ने अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को आकर्षक बनाया है, उससे सर्विस के साथ-साथ ये सेक्टर मिलकर एक ऐसा कॉम्बो बना सकते हैं कि भारत को ग्रोथ के लिए दमदार डबल इंजन मिल सकता है। सर्विसेज में ग्रोथ की वजह भारत में अंग्रेजी बोलने वाली सस्ती मैनपावर है जो आगे भी इसी तरह काम करती रहेगी और देश की ग्रोथ में योगदान करेगी। 

दुनिया की दिग्गज इकॉनमी बनने का मार्ग प्रशस्त

पिछले कुछ बरसों में चीन ने अपनी मैन्युफैक्चरिंग के दम पर तरक्की की है तो भारत की ग्रोथ का आधार सर्विस सेक्टर रहा है। इस बीच भारत ने मैन्युफैक्चरिंग में चीन को पीछे छोड़ दिया है, तो फिर भारत को दुनिया की दिग्गज इकॉनमी बनने से कोई नहीं रोक सकता। इसके बाद ‘बैक ऑफिस ऑफ वर्ल्ड’ के साथ साथ ‘वर्ल्ड फैक्ट्री’ का तमगा भी भारत को मिल सकता है।

 

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