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हाईकोर्ट के आदेश में फंसेगी मुख्यमंत्री गहलोत की चाल, अब विधानसभा अध्यक्ष को बताना पड़ेगा कि 91 विधायकों के इस्तीफे क्यों मंजूर नहीं किए?

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राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस की दो यात्राओं के बीच सत्ताधारी दल के 91 विधायकों के इस्तीफों को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट से नोटिस जारी होने के बाद सियासत एक बार फिर गरमा गई है। हाईकोर्ट ने इस्तीफों पर दो माह बाद भी निर्णय नहीं होने को लेकर विधानसभा अध्यक्ष और सचिव से तीन सप्ताह में जवाब मांगा है। हाईकोर्ट के ‘एक्शन मोड’ में आने से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की रणनीति टेंशन मोड में आ गई है। दरअसल, इस्तीफों की चतुर चाल चलकर गहलोत गुट ने कांग्रेस हाईकमान को राजस्थान में पंजाब मॉडल लागू नहीं करने दिया। यदि इस्तीफे न होते तो एक लाइन का प्रस्ताव पारित कर नया सीएम बनाने की हाईकमान की इच्छा पूरी हो जाती। अब हाईकोर्ट द्वारा जवाब तलब करने से गहलोत सरकार के पेंच फंस गया है। उसके लिए इधर गिरे तो कुआं, उधर गिरे तो खाई वाली स्थिति बन गई है।भाजपा-कांग्रेस की दो यात्राओं के बीच फिर सुर्खियों में 91 विधायकों का इस्तीफे
राजस्थान में एक ओर जहां राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा चल रही है, वहीं भारतीय जनता पार्टी भी गहलोत सरकार के खिलाफ जनाक्रोश यात्रा निकाल रही है। पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पिछले दिनों 51 जनाक्रोश रथों को जयपुर से रवाना किया था। इस बीच विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने 91 कांग्रेस विधायकों को लेकर याचिका दायर कर दी। याचिका में कहा गया कि दो माह बीत जाने के बाद भी विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने विधायकों के इस्तीफों पर कोई फैसला नहीं लिया है। वे न तो इन्हें स्वीकार रहे हैं और न ही अस्वीकार कर रहे हैं, इससे भ्रम की स्थिति बनी हुई है। हाईकोर्ट ने राठौड़ की याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की।हाईकमान पंजाब फार्मूला लागू नहीं करा पाया, ऑब्जर्वर अपमानित होकर लौटे
काबिले गौर है कि गत 25 सितंबर को कांग्रेस हाईकमान के दो आब्जर्वर तत्कालीन प्रदेश प्रभारी अजय माकन और वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे जयपुर आए थे। उन्होंने कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई, जिसकी जानकारी सीएम अशोक गहलोत को पहले ही दे दी गई थी। लेकिन कांग्रेस विधायक हाईकमान द्वारा निर्देशित बैठक में जाने के बजाए समानांतर बैठक में पहुंच गए। तब समानांतर बैठक के सर्वेसर्वा यूडीएच मिनिस्टर शांति धारीलाल और सीएम के करीबी महेश जोशी और धर्मेंद्र राठौड़ थे। इस बैठक में रणनीति के तहत कांग्रेस के 91 विधायकों ने अपने इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को सौंप दिए। ऐसे हालात में केंद्रीय आब्जर्वर कुछ नहीं कर सके और अपमानित होकर उन्हें वापस दिल्ली लौटना पड़ा।

सीएम ने सोनिया से माफी मांगकर इस्तीफों की आड़ में कुर्सी मजबूत कर ली
प्रदेश प्रभारी अजय माकन ने कांग्रेस विधायकों की अनुशासनहीनता की रिपोर्ट हाईकमान को दी और इन्हें लीड करने वाले तीन नेताओं को दोषी मानते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की। नेताओं को नोटिस तो हुई, लेकिन कार्रवाई जीरो ही रही। इस बीच सीएम ने सोनिया गांधी से दिखावे की माफी मांग ली और इस्तीफों की आड़ में सीएम की कुर्सी पर और मजबूती से जम गए। क्योंकि यदि अब हाईकमान गहलोत की इच्छा के विरुध किसी को सीएम बनाने की कोशिश भी करता है तो विधानसभा अध्यक्ष इस्तीफे स्वीकार कर लेंगे और सरकार गिर जाएगी। ऐसे में बची-खुची कांग्रेस के हाथ से एक और राज्य निकल जाएगा।विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर खुद ही की पैरवी
ऐसे हालात में कांग्रेस हाथ पर हाथ धरे बैठी है, लेकिन विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष ने हाईकोर्ट में याचिका दायर करके जबरदस्त चाल चल दी है। राठौड़ ने कहा कि याचिका में न्यायिक दृष्टान्तों को रखा है जिसमें ‘ विधानसभा के अनुच्छेद 190 (3)(2) को और रूल्स 173 (2) के तहत बात रखी है हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका की राठौड़ ने खुद ही पैरवी की। राठौड़ ने कहा कि 91 विधायकों के इस्तीफे के बाद सदन में 108 विधायक रह गए हैं और उनमें से 71 विधायक भाजपा के हैं। ऐसे में वर्तमान सरकार ने बहुमत खो दिया है। उन्होंने बताया कि कोर्ट में प्रस्तुत तथ्यों के आधार पर प्रसंज्ञान लिया गया है। विधानसभा अध्यक्ष और सचिव को नोटिस जारी किए गए हैं और अब पूरे मामले की न्यायालय में विवेचना होगी।कोर्ट ने पूछा विधानसभा की सदस्यता से दिए गए इस्तीफों की अब क्या स्थिति है?
इस पर राजस्थान हाईकोर्ट की ओर से विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी और सचिव को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह में जवाब मांगा है। कोर्ट ने पूछा है कि कांग्रेस के 91 विधायकों के 25 सितम्बर 2022 को विधानसभा की सदस्यता से दिए गए इस्तीफों की अब क्या स्थिति है। हाईकोर्ट के नोटिस के साथ ही राजस्थान में न्यायपालिका और विधायिका के बीच विवादों की फेहरिस्त में एक मामला और जुड़ गया है। न्यायपालिका और विधायिका के बीच हस्तक्षेप को लेकर भी चर्चा चल पड़ी है। क्योंकि इससे पहले भी राजस्थान में विधायिका और न्यायपालिका के टकराव के मामले सामने आए हैं।विधानसभा ने सर्व-सम्मति से फैसला लिया था कि कोर्ट के नोटिस का जवाब नहीं देंगे
बता दें कि 12वीं विधानसभा के दौरान न्याय प्रशासन की मांग पर चर्चा में कुछ सदस्यों ने न्यायपालिका की कार्यप्रणाली की आलोचना की। हालांकि तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष ने इनको अमर्यादित टिप्पणियां मानते हुए हटा दिया था, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स को आधार बनाकर हाईकोर्ट में याचिका दायर हो गई। इस पर कोर्ट ने चर्चा में भाग लेने वाले चार विधायकों, मुख्यसचिव और विधानसभा के सचिव को नोटिस जारी कर दिए। तब विधानसभा अध्यक्ष ने एक सर्वदलीय बैठक बुलाकर इसे न्यायपालिका के कदम को विधायिका में दखल माना। इसके साथ ही सर्व सम्मति से निर्णय लिया गया कि हाईकोर्ट के नोटिस का कोई जवाब ही नहीं दिया जाएगा।

कोर्ट ने आपराधिक मामला दर्ज कर विधायकों को जमानती वांरट पर तलब किया
इसी प्रकार 14 जुलाई 2009 को सदन की कार्यवाही में 8 पीएम नो सीएम को लेकर हुई गरमागरमी की खबर मीडिय़ा में आने पर बाड़मेर के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने इसे सीएम का अपमान मामते हुए चर्चा में भाग लेने वाले विधायक के खिलाफ आईपीसी की धारा 500 और 509 के तहत आपराधिक मामला दर्ज कर जमानती वांरट पर तलब किया। इस पर भी विधानसभा में हंगामा होना ही था। विधानसभा ने मजिस्ट्रेट के खिलाफ ही विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव पेश किया और विशेषाधिकार समिति को भेज दिया, लेकिन बाद में सम्बन्धित मजिस्ट्रेट की आकस्मिक मृत्यृ होने के कारण मामला खत्म हो गया।

 

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