Home समाचार मध्यप्रदेश में फसाद के पीछे कौन ?

मध्यप्रदेश में फसाद के पीछे कौन ?

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मंगलवार को मध्य प्रदेश के मंदसौर में जिस तरह से हंगामा होता दिख रहा है उसके पीछे बड़ी साजिश दिख रही है। अपनी मांग के लिए मध्यप्रदेश के किसान कभी इतने  उत्तेजित नहीं हुए, और न ही कभी किसानों पर गोली चलने का इतिहास रहा है। इस बार भी गोली चलाने से सीआरपीएफ इनकार कर रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि गोली चलायी किसने? आंदोलन में हिंसा भड़कने के इस मामले में पर्दे के पीछे कौन है? किसने लिखी है ये पटकथा।

मंगलवार को मंदसौर-नीमच रोड पर लोगों की एक बड़ी तादाद ने चक्का जाम किया। इस दौरान कुछ ट्रकों और बाइक को आग के हवाले भी किया गया। पुलिस और सीआरपीएफ ने भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन इसी दौरान पथराव शुरू कर दिया गया। उसके बाद फायरिंग शुरू हो गयी। करीब पांच किसानों की मौत हो चुकी है और कई घायल हैं। फायरिंग के बाद जिला कलेक्टर ने धारा 144 लगाई और फिर इलाके में कर्फ्यू लगा दिया गया।

आंदोलन करने वाले किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से सोमवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बातचीत की थी जिसमें उन्होंने किसानों की कुछ मांगों को स्वीकार किया और कुछ पर विचार करने का आश्वासन दिया था। बताया जा रहा है कि किसानों की मुख्य मांग है जमीन अधिग्रहण से जुड़े राज्य सरकार के एक कानून में हटाई गई मुआवजे की उस धारा को वापस लेना जिससे किसानों के कोर्ट जाने के अधिकार पर बंदिश लग सकती है।

मुख्यमंत्री से सोमवार शाम की मुलाकात के बाद भारतीय किसान संघ और किसान सेना ने आंदोलन को वापस लेने का एलान भी कर दिया था। लेकिन कुछ दूसरे संगठन के रुख के बाद आंदोलन में हिंसा का रंग शामिल होता दिखा है।

केंद्र की मोदी सरकार हो या बीजेपी शासित राज्यों की सरकारें, उनकी प्राथमिकताओं में समाज के गरीब, किसान और वंचित वर्ग सबसे ऊपर हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद साफ कर चुके हैं कि किसानों के जमीन अधिग्रहण में उनके हितों के साथ किसी भी हाल में सरकार कोई समझौता नहीं होने देगी।

वैसे देश कुछ में किसान आंदोलन की हकीकत एक अलग तरह से भी सामने आई है। कुछ ही दिन पहले दिल्ली के जंतर-मंतर पर तमिलनाडु के किसानों का जो धरना बताया जा रहा था उसके बारे में आई जानकारियों ने किसान आंदोलन की असलियत पर भी सवाल उठा दिया था।

तस्वीरों के जरिए और मीडिया रिपोर्ट से ये पता चला कि दरअसल वो किसान थे ही नहीं। एक सुनियोजित तरीके से उन्हें दिल्ली भेजा गया था ताकि केंद्र की मोदी सरकार पर किसान विरोधी होने का ठप्पा लगाया जा सके। मोदी सरकार की किसान समर्थक नीतियों से दरअसल उसके विरोधियों की नींद उड़ी है, और वो सरकार विरोधी माहौल बनाने की अलग साजिश में भी लगे हैं। मंदसौर की घटना के पीछे अगर कोई साजिश का चेहरा है तो उसे सामने लाना जरूरी है।

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