कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश राज में एक अंग्रेज के द्वारा की गई थी। स्थापना से लेकर आज तक कांग्रेस पर अंग्रेजी मानसिकता हावी है। हालांकि महात्मा गांधी ने राम राज्य की परिकल्पना के साथ कांग्रेस का भारतीयकरण करने की कोशिशें कीं, लेकिन उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी जवाहर लाल नेहरू की पाश्चात्य विचारधारा ने उनकी कोशिशों पर पानी फेर दिया। इसके बाद नेहरू के वारिस गांधी जी के आदर्शों को सामने रखकर नेहरू की विचारधारा को आगे बढ़ाते रहे। उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने गांधी जी के आदर्शों की हत्या करने के साथ ही हमेशा देशहित के खिलाफ काम किया है। गांधी जी भगवान राम में अटूट आस्था रखते थे। लेकिन कांग्रेस ने पहले भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल खड़ा किया और मंदिर निर्माण को अटकाया। अब मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए राम मंदिर के निमंत्रण को ठुकरा दिया। आइए देखते हैं कांग्रेस ने कब-कब प्रमुख कार्यक्रमों का बहिष्कार कर हिन्दू धर्म और देश विरोधी मानसिकता का परिचय दिया है…
10 जनवरी, 2024 : राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार
कांग्रेस ने 22 जनवरी को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के निमंत्रण को ठुकरा कर एक बार फिर साबित कर दिया है कि वो सनातन धर्म का कट्टर विरोधी है। वह हिन्दुओं को अपमानित करने और मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है। कांग्रेस ने 10 जनवरी, 2024 को एक वक्तव्य जारी कर स्पष्ट कर दिया कि पार्टी आलाकमान सोनिया गांधी, राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सांसद अधीर रंजन चौधरी समेत कांग्रेस के तमाम बड़े नेता अयोध्या नहीं जाएंगे। पिछले महीने राम जन्मभूमि ट्रस्ट की ओर से कांग्रेस के इन नेताओं को अयोध्या में नवनिर्मित भव्य राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने के लिए निमंत्रण मिला था। लेकिन कांग्रेस ने राजनीतिकरण का आरोप लगाकर बाकायदा एक वक्तव्य जारी किया, जिसमें यह कहा गया कि बीजेपी और आरएसएस ने वर्षों से अयोध्या में राम मंदिर को एक राजनीतिक परियोजना बना दिया है। एक अर्धनिर्मित मंदिर का उद्घाटन केवल चुनावी लाभ के लिए किया जा रहा है।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव (संचार) श्री @Jairam_Ramesh जी का वक्तव्य- pic.twitter.com/K22nOQNqr5
— Congress (@INCIndia) January 10, 2024
9 सितंबर, 2023: जी-20 समिट के दौरान रात्रिभोज का बहिष्कार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जी-20 के सफल आयोजन से पूरा देश खुशी से झूम रहा था। पूरा विश्व भारतीय कूटनीति की तारीफ कर रहा था। लेकिन ऐसे समय में कांग्रेस अपनी संकुचित और मोदी विरोधी मानसिकता से बाहर नहीं निकल सकी थी। जी-20 समिट के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विदेशी मेहमानों के लिए रात्रिभोज का आयोजन किया था। राष्ट्रपति की ओर से कांग्रेस के कई नेताओं को निमंत्रण भेजा गया था और यह सरकारी कार्यक्रम था। लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को आमंत्रित न किए जाने का बहाना बनाकर कांग्रेस ने रात्रिभोज का बहिष्कार किया। जबकि देश की सबसे बड़ी और सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी सहित किसी भी दल के अध्यक्ष को आमंत्रित नहीं किया गया था। कांग्रेस शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने इस भोज में हिस्सा नहीं लिया। कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों की तरफ से कहा गया कि सुरक्षा कारणों से दिल्ली एयरपोर्ट पर उनके विमानों के उतरने में दिक्कत थी, जिसका सरकार की ओर से खंडन भी कर दिया गया था। यहां तक कि कांग्रेस ने इंडी गठबंधन के घटक दलोंं के मुख्यमंत्रियों के शामिल होने पर तंज कसा था।
28 मई, 2023: नए संसद भवन के उद्घाटन का बहिष्कार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 28 मई, 2023 को नई संसद का उद्घाटन किया था। कांग्रेस सहित 19 विपक्षी पार्टियों ने इसका बहिष्कार किया था। इन पार्टियों का कोई भी नेता नई संसद के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल नहीं हुआ था। इस दौरान कांग्रेस और विपक्षी दलों ने बहिष्कार के लिए बहाना बनाया कि संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों होना चाहिए। यहां तक कि नए संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार को लेकर सामूहिक पत्र जारी करते हुए जो सवाल उठाए गए, उससे उनकी मानसिकता का पता चला। उस पत्र में कहा गया था कि प्रधानमंत्री का नए संसद भवन का उद्घाटन करना संवैधानिक नहीं है और ये राष्ट्रपति का अपमान है। लेकिन कांग्रेस भूल गई कि राष्ट्रपति अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होता है, जबकि प्रधानमंत्री जनता का निर्वाचित प्रतिनिधि है। कांग्रेस ने देश के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री के खिलाफ अभियान चलाकर जन भावनाओं और देश के लोकतंत्र का अपमान किया। प्रधानमंत्री मोदी ने ऑस्ट्रेलिया का उदाहरण देकर कांग्रेस और तमाम विपक्षी दलों को लोकतंत्र का पाठ पढ़ाया।
पीएम मोदी ने नई संसद भवन का बहिष्कार करने वाले दलो पर साधा निशाना#NewParliament #SengolAtNewParliament #Sengol #PMModi #Khabardar @SwetaSinghAT pic.twitter.com/xzKnZvDSsP
— AajTak (@aajtak) May 25, 2023
29 जनवरी, 2021 : कांग्रेस द्वारा राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार
कोरोना महामारी के साये में और सख्त COVID-19 प्रोटोकॉल के बीच 29 जनवरी, 2021 को संसद का बजट सत्र शुरू हुआ। बजट सत्र की शुरूआत राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करने के साथ हुई। कांग्रेस सहित देश के 19 विपक्षी दलों ने कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों के प्रति एकजुटता प्रकट करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अभिभाषण का बहिष्कार किया। बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि राष्ट्रपति राजनीतिक मतभेदों से ऊपर हैं। वह संवैधानिक प्रमुख हैं। उनके संबोधन में उनका सम्मान करना लोकतंत्र का स्वस्थ अभ्यास है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि विपक्ष विशेष रूप से कांग्रेस, जिसने इस देश पर 50 साल तक शासन किया, ने इसका बहिष्कार किया।
रविशंकर प्रसाद का विपक्ष पर निशाना, कहा- राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार दुर्भाग्यपूर्ण@JournoPranay#RaviShankarPrasadhttps://t.co/a7NOc7mpxb
— ABP News (@ABPNews) January 29, 2021
10 दिसंबर, 2020: नए संसद भवन के भूमि पूजन समारोह का बहिष्कार
कांग्रेस ने 10 दिसंबर, 2020 को नए संसद भवन के शिलान्यास समारोह का बहिष्कार किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शीर्ष राजनेताओं, उद्योगपतियों और विदेशी दूतों की उपस्थिति में नए संसद भवन की आधारशीला रखी थी। राज्यसभा में विपक्ष के तत्कालीन नेता गुलाम नबी आजाद और लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी दोनों को समारोह में आमंत्रित किया गया था, लेकिन वे शामिल नहीं हुए। कांग्रेस ने उस समय भी राष्ट्रपति, किसान और केंद्र के नए कृषि कानूनों का हवाला देकर समारोह से दूरी बनाई। कांग्रेस ने सिर्फ पूजा किए जाने पर आपत्ति जताई और कहा कि इससे पहले सर्वधर्म प्रार्थना होनी चाहिए। कांग्रेस नेता राशिद अल्वी ने कहा, ‘अगर पीएम भूमि पूजन कर रहे हैं तो मैं उनसे दूसरे धर्मों के नेताओं को भी आमंत्रित करने का आग्रह करूंगा। ताकि देश में रहने वाले हर शख्स को नई संसद भवन के लगाव महसूस हो।’
नए संसद भवन के ‘भूमि पूजन’ पर विपक्ष के सवाल- बस पूजा क्यों, सब धर्मों की प्रार्थनाएं होंhttps://t.co/6p4uGI2bZY via @NavbharatTimes
— NBT Hindi News (@NavbharatTimes) December 7, 2020
5 अगस्त, 2020 : राम मंदिर भूमि पूजन समारोह को अशुभ बताकर बहिष्कार
कई शताब्दियों के संघर्ष और धैर्य के बाद 5 अगस्त, 2020 को श्री राम जन्म भूमि मंदिर के निर्माण के कार्य का शुभारंभ अयोध्या में हुआ। प्रधानमंत्री मोदी ने विधिवत भूमि पूजन किया। अयोध्या में राम भूमि पूजन को लेकर दुनिया भर में हिंदुओं के बीच उत्साह का माहौल था। लेकिन शताब्दियों से जिन आसुरी शक्तियों ने निर्माण के कार्य में बाधा पहुंचाते रहे थे, उन्होंने उस समय भी अपनी क्षीण शक्ति से उसका विरोध किया। कांग्रेस-लिबरल गैंग, जो कह रहा था कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कारण मंदिर का ताला खुला और श्रीराम मंदिर के निर्माण में अपने योगदान का दम भर रहा था। उसी कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने श्रीराम मंदिर के निर्माण कार्य को ही अन्याय कह दिया। कांग्रेस सांसद कुमार केतकर ने 2 अगस्त को जी न्यूज पर एक चर्चा के दौरान भगवान श्रीराम को काल्पनिक बताया। राहुल गांधी के करीबी कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने भूमि पूजन के शुभ मुहूर्त पर ही सवाल उठा दिया। यानी राम मंदिर के निर्माण कार्य में अड़चन डालने की उनकी कोशिशें जा रहीं।
30 जून, 2017: GST लागू होते वक्त संसद के सत्र का बहिष्कार
देश की आर्थिक आजादी की नयी कहानी लिखने वाला वस्तु एवं सेवा कर यानि जीएसटी एक जुलाई, 2017 को लागू किया गया था। लेकिन इसके लागू होने की प्रक्रिया में विपक्ष के कई दल रोड़े अटकाते रहे हैं। ‘वन नेशन, वन टैक्स’ की नीति देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए है, देश में पूंजी निवेश बढ़ाने के लिए है, जनता की सहूलियत के लिए है। लेकिन जीएसटी को लागू करने के लिए कांग्रेस ने 30 जून, 2017 की आधी रात को संसद की विशेष बैठक के बहिष्कार की घोषणा कर दी। कांग्रेस ने दलील यह दी कि 1947 में आजादी, 1972 में आजादी की सिल्वर जुबली और 1997 में आजादी की गोल्डन जुबली के कार्यक्रम आधी रात को सेंट्रल हॉल में आयोजित हुए थे। यानि आधी रात को संसद में जो भी कार्यक्रम हुए हैं वह आजादी से जुड़े हुए हैं और जीएसटी को इस तरह लागू करना वह संसद की गरिमा के खिलाफ है। लेकिन विरोध करते हुए कांग्रेस यह शायद भूल गई कि 29 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेश वाले देश में वन नेशन, वन टैक्स लागू करना ही अपने आप में मील का पत्थर है। यह भी आर्थिक आजादी की ही रात थी। लेकिन कांग्रेस सहित तमाम विपक्ष ने तो जैसे अपना सिद्धांत ही बना लिया है किसी भी स्तर पर जाकर विरोध करना है।
2004-09 तक कांग्रेस ने कारगिल विजय दिवस का बहिष्कार किया
1999 में कारगिल युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की जीत की याद में हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। यह दिन भीषण युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों द्वारा की गई बहादुरी और बलिदान का सम्मान करता है। पाकिस्तान के खिलाफ इस सफल ऑपरेशन को ऑपरेशन विजय नाम दिया गया था। UPA सरकार ने 2004 से 2009 तक कारगिल विजय दिवस नहीं मनाया। उसने इस दिन की अहमियत नहीं समझी। मोदी सरकार में IT राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कारगिल विजय दिवस के मौके पर बताया कि उन्होंने UPA सरकार की देश के प्रति सेवा की सच्चाई जाहिर की। मंत्री ने राज्यसभा में उठाए सवाल की कॉपी शेयर करते हुए लिखा-क्या आप जानते हैं 2004-2009 कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए ने 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस नहीं मनाया या सम्मान नहीं किया, जब तक कि मैंने संसद में ServingOurNation पर जोर नहीं दिया।
Did u know 2004-2009 Cong led UPA did not celebrate or honor #KargilVijayDiwas on July26 till I insistd in #Parliament #ServingOurNation pic.twitter.com/kDEg4OY1An
— Rajeev Chandrasekhar 🇮🇳 (@Rajeev_GoI) July 25, 2017
मई 1998 : पोखरण परमाणु परीक्षण पर कांग्रेस ने साधी चुप्पी
भारत ने 1998 में 11-13 मई को एक के बाद एक 5 परमाणु परीक्षण कर के पूरी दुनिया को चौंका दिया। अमेरिका के सीआईए से लेकर पाकिस्तान तक हतप्रभ रह गए। कुल 5 परमाणु उपकरणों की जबरदस्त टेस्टिंग की गई। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के इस साहसिक फैसले पर कांग्रेस ने दस दिनों तक चुप्पी साध रखी थी। परमाणु परीक्षण के कुछ ही दिनों बाद सोनिया गांधी ने बयान दिया था कि असली ताकत संयम दिखाने में होती है, शक्ति के प्रदर्शन में नहीं। बाद में सोनिया गांधी ने संयम को भारत की कमजोरी बना दिया। चीन और पाकिस्तान आधुनिक हथियार से लैस हो रहे थे। सीमाओं पर आधारभूत ढांचे को मजबूत कर रहे थे। लेकिन कांग्रेस की यूपीए सरकार हाथ पर हाथ धरी बैठी रही।
हमारे पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद जी और अब द्रौपदी मुर्मू जी के अभिभाषण का बहिष्कार किया।
2004 के बाद 2009 तक कांग्रेस ने कारगिल विजय दिवस का बहिष्कार किया।
मई 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार के नेतृत्व में हुए पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद 10 दिन तक कांग्रेस ने कोई… pic.twitter.com/ALNQrI7r43
— BJP LIVE (@BJPLive) January 11, 2024
24 अप्रैल, 1951 : सोमनाथ मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार
भारत की संविधान सभा ने भारत को धर्मनिरपेक्ष घोषित नहीं किया था। यहां तक कि संविधान के मूल प्रति में भगवान राम और अन्य देवी-देवताओं की तस्वीरों को जगह दी गई है। लेकिन देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अघोषित रूप से देश को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना दिया। उन्होंंने सोमनाथ मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार किया। यहां तक कि देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के समारोह में शामिल होने पर आपत्ति जताई थी। जब सोमनाथ मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो रही थी, तो जवाहरलाल नेहरू ने 24 अप्रैल, 1951 को उस समय सौराष्ट्र के प्रमुख को लिखा था कि ‘इस कठिन समय में इस समारोह के लिए दिल्ली से मेरा आना संभव नहीं है। मैं इस (हिन्दू) पुनरुत्थानवाद से बहुत परेशान हूं, मेरे लिए बहुत कष्टकारक है कि मेरे राष्ट्रपति, मेरे कुछ मंत्री और आप सोमनाथ के इस समारोह से जुड़े हुए हैं और मुझे लगता है कि ये मेरे देश की प्रगति के अनुरूप नहीं है, इसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे।
#WATCH दिल्ली: बीजेपी सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा,” जब सोमनाथ मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो रही थी, तो जवाहरलाल नेहरू जी ने 24 अप्रैल, 1951 को उस समय सौराष्ट्र के प्रमुख को लिखा था कि ‘इस कठिन समय में इस समारोह के लिए दिल्ली से मेरा आना संभव नहीं है। मैं इस पुनरुत्थानवाद से बहुत… pic.twitter.com/oI10kJB3FP
— ANI_HindiNews (@AHindinews) January 11, 2024