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हिमाचल में खड़गे की बेइज्जती! सीएम सुखविंदर सुक्खू ने गांधी परिवार का धन्यवाद किया, खड़गे का नाम तक नहीं लिया, राहुल और प्रतिभा सिंह ने भी की अनदेखी

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हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी ने काफी रस्सा-कसी के बाद मुख्यमंत्री का नाम तो तय कर लिया और सुखविंदर सिंह सुक्खू ने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली। लेकिन जिस तरह से अलग-अलग गुट से मुख्यमंत्री पद के दावेदार सामने आए उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यह असंतोष अभी थमने वाला नहीं है और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए इन सब को एकजुट रखना आसाना नहीं होगा। लेकिन खड़गे इसमें कितना सक्षम होंगे यह भी एक सवाल है क्योंकि हिमाचल में शपथ ग्रहण समारोह के अवसर पर कांग्रेस अध्यक्ष की जिस तरह से अनदेखी राहुल गांधी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने की उससे तो ऐसा नहीं लगता कि पार्टी में उनकी कोई हैसियत है। इससे यह भी जाहिर होता है कि वह केवल प्रॉक्सी अध्यक्ष हैं। यह कोई नई बात नहीं है, ये तो सबको पता है कि कांग्रेस में तो ‘परिवार’ ही सबकुछ है। हिमाचल में खड़गे की बेइज्जती केवल यहीं नहीं हुई। इससे पहले जब सुखविंदर सिंह सुक्खू का मुख्यमंत्री के तौर पर नाम तय हुआ उसके बाद उन्होंने जो बयान दिया था उसमें भी खड़गे का जिक्र तक नहीं किया गया। सुक्खू ने हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपने के लिए सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और समूचे गांधी परिवार को धन्यवाद दिया, लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम तक नहीं लिया। हिमाचल में खड़गे की यह हालत भी देखने को मिली कि मंच पर बिना गांधी फैमिली के बैठे वह खुद नहीं बैठे। अब इससे समझा जा सकता है कि कांग्रेस में वह किस स्तर के अध्यक्ष हैं। अंदरखाने यह भी कहा जा रहा है कि खड़गे पर गुजरात और दिल्ली की हार की वजह से इस्तीफा देने का दबाव पड़ रहा है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उनसे अभी इस्तीफा नहीं लिया जाएगा। गांधी परिवार अगले साल होने वाले राजस्थान, छत्तीसगढ़ सहित नौ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव तक अथवा 2024 के लोकसभा चुनाव का इंतजार करेगा और उचित समय पर उनसे इस्तीफा लिया जाएगा। इससे पहले गैर गांधी परिवार से कांग्रेस के अध्यक्ष रहे सीताराम केसरी को 1998 में तो बेइज्जत करके पद से हटाया गया था और उसके बाद सोनिया गांधी इस पद पर काबिज हुई। यह देखना दिलचस्प होगा कि गांधी परिवार खड़गे की विदाई किस तरह करती है।

सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा, गांधी परिवार का शुक्रगुजार हूं, खड़गे का नाम तक नहीं लिया

हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद सुखविंदर सिंह सुक्खू ने शनिवार को कहा कि वह उन्हें मुख्यमंत्री चुनने के लिए कांग्रेस और गांधी परिवार के शुक्रगुजार हैं। सुक्खू ने कहा कि मुझे यह मौका देने के लिए मैं कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार का शुक्रगुजार हूं। श्रीमती सोनिया गांधी जी का, श्री राहुल गांधी जी का, श्रीमती प्रियंका गांधी जी का व्यक्तिगत तौर पर आभारी हूं कि मैं एक आम परिवार के उठकर मैंने अपनी राजनीतिक जीवन की शुरुआत की है। मुझे एनएसयूआई का अध्यक्ष राजीव गांधी जी ने बनाया, युवा कांग्रेस का अध्यक्ष मुझे सोनिया गांधी जी ने बनाया, प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष मुझे सोनिया गांधी जी ने बनाया। एक साधारण परिवार के उठकर राजनीति की जो सीढ़ियां मैंने चढ़ी हैं, उसमें गांधी परिवार का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस योगदान के लिए मैं उनका व्यक्तिगत तौर से धन्यवाद करता हूं। सुखविंदर सिंह सुक्खू ने यहां भी कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे का नाम तक नहीं लिया।

बकरीद में बचेंगे तो मुहर्रम में नाचेंगेः खड़गे

कांग्रेस अध्‍यक्ष पद के उम्‍मीदवार घोषित होने के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे से जब पूछा गया कि क्या 2024 में सबसे पुरानी पार्टी उन्हें या राहुल गांधी को अपने प्रधानमंत्री पद के लिए मैदान में उतारेगी या वह उम्‍मीदवार होंगे? इस पर खड़गे ने जवाब देते हुए कहा एक कहावत है-“बकरीद में बचेंगे तो मुहर्रम में नाचेंगे”। पहले इन चुनावों को खत्म होने दो और मुझे अध्यक्ष बनने दो, फिर हम देखेंगे। खड़गे इस बयान देते समय भी गलती कर बैठे। दरअसल मुहर्रम का महीना उत्सव का महीना नहीं है, तो उसमें नाचने की बात बेमानी है। इसको लेकर उनकी आलोचना भी हुई थी। लेकिन उनके कहे का भाव निकाला जाए तो उनकी पीड़ा समझी जा सकती है। दरअसल उनके कहने का आशय यह था कि बकरीद में हलाल होने से बच गए तो आगे देखेंगे। लेकिन उसके बाद भी पार्टी में उनकी बेइजज्जती होती रही है। राजस्थान कांग्रेस में असंतोष और विद्रोह के दौरान वह प्रभारी बन कर गए थे लेकिन लौटे तो बेइज्जती करवाकर। देखना यह है कि इस तरह और कितनी बेइज्जती झेल कर इस पद पर बने रहते हैं।

मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने चुनौतियां

मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष बनने के बाद उनके सामने कई चुनौतियां हैं। अभी पार्टी ने गुजरात विधानसभा और दिल्ली एमसीडी में हार झेली है। इसके बाद खड़गे के लिए बड़ी चुनौती राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव होंगे। अगले साल इन राज्यों में चुनाव हैं। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पिछली बार कांग्रेस ने चुनाव जीतकर सत्ता संभाली थी। ऐसे में खड़गे को ऐसी रणनीति बनानी होगी, जिससे कम से कम ये दोनों राज्य कांग्रेस के हाथ से न जाएं। अगर इसमें वो विफल रहते हैं, तो उनको चुने जाने पर तमाम सवाल उठ सकते हैं। इसके बाद 2024 की चुनौती भी खड़गे के सामने है। फिलहाल पीएम नरेंद्र मोदी की जनता के बीच छवि बहुत ताकतवर नेता की है। वहीं, कांग्रेस राहुल गांधी को पीएम पद के लिए प्रोजेक्ट करती रही है। मोदी के खिलाफ राहुल को किस तरह खड़गे पीएम पद के लिए मुकाबले में मजबूत बनाएंगे, इस पर भी सबकी नजर है।

खड़गे के लिए राजस्थान कांग्रेस की अंदरूनी उठा-पटक को शांत करना प्राथमिकता

माना जा रहा है कि नए अध्यक्ष बने मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए सबसे बड़ी प्राथमिकता, राजस्थान में कांग्रेस की अंदरूनी उठा-पटक को शांत करना होगी। ऐसा इसलिए, क्योंकि राजस्थान में सत्ता संभालने के चार साल पूरे करने जा रही कांग्रेस पार्टी में लगातार अंदरूनी खींचतान चलती रही है। साल 2020 में असंतुष्टों के एक ग्रुप की करीब महीने भर तक रिजॉर्ट में बाड़ाबंदी से लेकर, पिछले महीने केंद्रीय पर्यवेक्षकों के साथ विधायक दल की मीटिंग के पैरेलल मीटिंग के बाद विधायकों के सामूहिक इस्तीफा प्रकरण तक, राजस्थान में कांग्रेस आपस की ही जंग में उलझी दिखाई दी है। फिलहाल सचिन पायलट को सीएम दावेदार बताने वाले कांग्रेसी विधायक और नेताओं ने ‘रणनीतिक चुप्पी’ साधी हुई है, लेकिन इस शांति में कुछ अजीब सा है, जिसे कांग्रेस नेतृत्व भी महसूस ज़रूर कर रहा होगा।

खड़गे के नेतृत्व संभालने के बाद राजस्थान में संकेतों की सियासत शुरू

राजस्थान कांग्रेस में सबसे ताजा सियासी दांवपेच का दौर सिंतबर में शुरू हुआ था जब अशोक गहलोत का नाम कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए आया था। हालांकि ये पक्का नहीं था, लेकिन माहौल बना कि ‘एक व्यक्ति एक पद’ के सिद्धान्त के हिसाब से गहलोत को सीएम कुर्सी छोड़नी पड़ेगी। कांग्रेस के ही कुछ नेताओं की मानें, तो अब जब गहलोत किसी और दूसरे पद पर हैं ही नहीं तो राजस्थान में सीएम बदलने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है। हालांकि संगठन स्तर पर फेरबदल होना लाजिमी है।

केंद्रीय पर्यवेक्षक बनकर राजस्थान गए खड़गे बैरंग लौटे

गहलोत के अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी की चर्चा के बीच मल्लिकार्जुन खड़गे, अजय माकन के साथ केंद्रीय पर्यवेक्षक बनकर राजस्थान गए थे। हालांकि तय कार्यक्रम के हिसाब से ‘वन लाइन रिजॉल्यूशन’ पास कराना तो दूर, पर्यवेक्षकों की विधायक दल से मीटिंग ही नहीं हो सकी और उन्हें बैरंग लौटना पड़ा। देखने में ये कांग्रेसी केंद्रीय नेतृत्व को एक तरह की चुनौती जैसा लगा था जिसके लिए गहलोत कई बार मीडिया के सामने सोनिया गांधी से माफी भी मांग चुके हैं। लेकिन, अध्यक्ष बनते ही खड़गे ने जो 47 सदस्यों की स्टीयरिंग कमेटी बनाई है उसमें गहलोत समर्थक 4 नेता, भंवर जितेंद्र सिंह, रघु शर्मा, हरीश चौधरी और रघुवीर मीणा को शामिल किया गया।

खड़गे की तस्वीर अभी भी कांग्रेस मुख्यालय के आधिकारिक होर्डिंग बोर्ड से गायब

अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस को मल्लिकार्जुन खड़गे के रूप में 24 साल बाद एक गैर-गांधी अध्यक्ष मिल गया है और वह चुनावी राज्यों में चुनाव प्रचार में उतरे भी हैं, इसके बाद भी पार्टी में गांधी परिवार का प्रभुत्व साफ दिखाई पड़ रहा है। एआईसीसी के शीर्ष नेता के बदल जाने के एक महीने बाद भी खड़गे की तस्वीर अभी भी कांग्रेस मुख्यालय के आधिकारिक होर्डिंग बोर्ड से गायब है। यही नहीं, खड़गे की तस्वीर को अभी तक पार्टी के प्रमुख पदाधिकारियों के कमरों में भी जगह नहीं मिली है। ऐसा तो तब भी नहीं था जब सोनिया गांधी ने नेतृत्व की भूमिका निभाई और जब राहुल गांधी महासचिव और बाद में पार्टी प्रमुख बने थे।

इस तरह बेइज्जत कर हटाए गए थे कांग्रेस के अंतिम गैर गांधी अध्यक्ष सीताराम केसरी

नवभारतटाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के वरिष्ठ कांग्रेस नेता सीताराम केसरी 1996 से 1998 तक इस पार्टी के अध्यक्ष रहे। केसरी महज 13 साल की उम्र से ही स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने लगे थे। 1930 से 1942 के बीच सीताराम केसरी स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेने के चलते कई बार जेल गए। साल 1973 में बिहार कांग्रेस समिति के अध्यक्ष बने और 1980 में कांग्रेस के कोषाध्यक्ष बने। 1967 में सीताराम केसरी कटिहार लोकसभा सीट से सांसद बने। इसके बाद केसरी 1971 से 2000 तक पांच बार राज्यसभा के सदस्य चुने गए। गांधीवादी विचार के समर्थक सीताराम केसरी इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में मंत्री भी रहे। इतना लंबे राजनीतिक अनुभव वाले सीताराम केसरी को बेरुखी के साथ पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाया गया था। कहा जाता है कि सोनिया गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के लिए सीताराम केसरी के साथ बेहद खराब बर्ताव किया गया था। 14 मार्च 1998 ही वह तारीख है जिस दिन कांग्रेस के नेताओं ने सीताराम केसरी को बेइज्जत किया और उन्हें पार्टी के अध्यक्ष पद से हटाया।

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