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पहली बार जारी हुई ग्लोबल माइनॉरिटी रिपोर्ट, भारत को बताया अल्पसंख्यकों के लिए सबसे बेहतरीन देश, दुनिया को दिखाया आईना

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भारत में अल्पसंख्यकों की दशा और दिशा को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खूब सवाल उठाये जाते हैं। एक एजेंडे की तहत भारत और मोदी सरकार को बदनाम करने की कोशिश की जाती है। लेकिन पहली बार जारी ग्लोबल माइनॉरिटी रिपोर्ट ने भारत के खिलाफ जारी प्रोपेगेंडा और दुनिया को आईना दिखाया है। रिपोर्ट के मुताबिक अल्पसंख्यकों के लिए भारत सबसे बेहतरीन देश हैं। भारत के संविधान में जिस प्रकार अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक प्रचार के लिए विशेष प्रावधान है। ऐसे प्रावधान किसी और देश में नहीं है। इस रिपोर्ट में वैश्विक अल्पसंख्यक सूचकांक भी जारी किया गया है, जिसमें भारत को टॉप रैंक दी गई है, जबकि अमेरिका को चौथा स्थान मिला है। 

पूर्व उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडु, आईजीएनसीए के अध्यक्ष राम बहादुर राय और परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने मंगलवार (29 नवंबर, 2022) को संयुक्त रुप से ग्लोबल माइनॉरिटी रिपोर्ट को जारी किया। पटना स्थित सेंटर फार पालिसी एनलिसिस (सीपीए) ने इस रिपोर्ट को तैयार किया है। जिसमें दस लाख से अधिक आबादी वाले 110 देश का अध्ययन किया गया है। यह रिपोर्ट उन चिंताओं को भी दर्शाती है जिनका विभिन्न धार्मिक समुदायों और संप्रदायों को विभिन्न देशों में सामना करना पड़ता है।

रिपोर्ट में भारत को राज्य की धार्मिक तटस्थता, राज्य समावेशिता सूचकांक और वैश्विक अल्पसंख्यक सूचकांक पर 100 में से 100 अंक दिए गए हैं, सोमालिया को तीनों मापदंडों पर सबसे नीचे रखा गया। अफगानिस्तान को राज्य की ओर से भेदभाव सूचकांक में सबसे ऊपर पर रखा गया है। दक्षिण कोरिया, जापान, पनामा और संयुक्त राज्य अमेरिका वैश्विक अल्पसंख्यक सूचकांक में शीर्ष पांच रैंकिंग में भारत के साथ शामिल हुए हैं।

रिपोर्ट जारी करने के बाद पूर्व उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडु ने कहा कि यह रिपोर्ट दुनिया में अल्पसंख्यकों के हालात समझने में सहायक सिद्ध होगी। अभ तक ऐसी रिपोर्ट सिर्फ विकसित देश ही जारी किया करते थे और दूसरे देश पर कीचड़ उछालने का कार्य करते थे। विकसित देश दूसरों को उपदेश दे रहे थे, लेकिन कभी अपने अंदर नहीं झांका कि उनके यहां क्या हो रहा है। यह रिपोर्ट दुनिया को सच्चाई दिखाने का एक प्रयास है। यह रिपोर्ट तर्क और तथ्य के आधार पर दुनिया के हालात को बयां करती है। उन्होंने कहा कि अब भारत सहित दुनिया में इस रिपोर्ट पर चर्चा होगी। कोई भी रिपोर्ट तथ्य-आधारित, विश्लेषणात्मक होनी चाहिए, लेकिन हम देख रहे हैं कि ‘भारत को कोसने का प्रयास वर्षों से चल रहा है और दुर्भाग्य से कुछ भारतीय भी इसमें शामिल हो गए हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के संविधान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक प्रचार के लिए विशेष प्रावधान हैं। दुनिया के किसी अन्य संविधान में धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के प्रचार के लिए ऐसा विशेष प्रावधान नहीं हैं। कई अन्य देशों के विपरीत भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां किसी भी धर्म के किसी भी संप्रदाय पर कोई प्रतिबंध नहीं है। इसमें कहा गया है कि भारत की अल्पसंख्यक नीति को उसके समावेशी चरित्र और विभिन्न धर्मों और उनके संप्रदायों के संबंध में गैर-भेदभावपूर्ण प्रकृति के कारण संयुक्त राष्ट्र द्वारा अन्य देशों के लिए एक मॉडल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

शोध संगठन सेंटर फार पालिसी एनलिसिस के कार्यकारी अध्यक्ष दुर्गा नंद झा ने कहा कि पहली बार एक अफ्रीकी-एशियाई या ‘गैर-पश्चिमी’ देश ने इस तरह की रिपोर्ट तैयार की है। कहते हैं कि इस रिपोर्ट का महत्व पहली अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट होने में निहित है जो देशों को उनके संबंधित धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति उनके दृष्टिकोण के आधार पर ग्रेड देता है। इस रिपोर्ट में कुछ मानकों पर विभिन्न देशों का अनुक्रमण किया गया है। यह सभी धर्मवादियों के हित में है क्योंकि सभी देशों में किसी भी धर्मवादी का बहुमत नहीं है। यदि किसी धर्म के अनुयायी कुछ देशों में बहुसंख्यक हैं, तो वे कुछ देशों में अल्पमत में हैं।

गौरतलब है कि इससे पहले USCIRF ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसे भारत सरकार ने ‘गलत और पक्षपाती’ कहते हुए खारिज कर दिया था। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता, अरिंदम बागची ने आरोप लगाया था कि USCIRF में लगातार तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने की प्रवृत्ति है जो भारत, इसके संवैधानिक ढांचे, बहुलता और मजबूत लोकतांत्रिक प्रणाली के बारे में उनकी समझ की कमी को दिखाता है।

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