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पीएम मोदी की पहल से पेटेंट व ट्रेडमार्क फाइलिंग में भारत ने रचा कीर्तिमान, पिछले पांच वर्षों में पेटेंट पंजीकरण में 50 प्रतिशत की वृद्धि, 2022 में 145 पेटेंट दर्ज

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल से आज वैश्विक स्तर पर भारत पेटेंट दाखिल करने में सातवें और ट्रेडमार्क के मामले में पांचवें स्थान पर पहुंच गय है। पिछले पांच साल में अकेले पेटेंट में ही पांच साल में करीब 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेंगलुरू स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) को नए नए आविष्कार और पेटेंट करने के नए कीर्तिमान बनाने के लिए 29 जनवरी 2023 को अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में बधाई दी और कहा कि भारत पेटेंट और ट्रेडमार्क दाखिल कराने के मामले में पिछले पांच साल में विश्व समुदाय में तेजी से बढ़ा है। आईआईएससी बेंगलूर के नाम 2022 में कुल 145 पेटेंट दर्ज किए गए हैं।

पेटेंट दाखिल कराने में भारत विश्व स्तर पर सातवें स्थान पर

भारत में पिछले 11 साल में पहली बार घरेलू पेटेंट फाइलिंग की संख्या विदेशी फाइलिंग से ज्यादा है। यह भारत की बढ़ती वैज्ञानिक शक्ति को दर्शाता है। पेटेंट दाखिल कराने में भारत की रैंक विश्व स्तर पर सातवीं है जबकि ट्रेडमार्क पंजीकरण में यह पांचवें स्थान पर है। पिछले पांच वर्षों में भारत के पेटेंट पंजीकरण में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में भारत की छलांग

ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में भी भारत की रैंकिंग में जबरदस्त सुधार हुआ है और अब यह 40वें स्थान पर पहुंच गया है, जबकि 2015 में भारत ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में 80वें स्थान से भी पीछे था। रोजगार सृजन से लेकर सार्वजनिक स्वास्थ्य तक और राष्ट्रीय सुरक्षा से लेकर औद्योगिक प्रतिस्पर्धात्मकता तक, आरएंडडी देश के आर्थिक विकास और नवाचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह समाज के लगभग हर कोने को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है।

भारत के ‘तकनीक’ का सपना इनोवेटर्स, उनके पेटेंट से पूरा होगा: पीएम मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कहा कि घरेलू पेटेंट फाइलिंग ने देश के विदेशी पेटेंट फाइलिंग को पीछे छोड़ दिया है क्योंकि उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि भारत का तकनीक का सपना अपने नवप्रवर्तकों के बल पर पूरा होगा। उन्होंने नए साल में ‘मन की बात’ की पहली कड़ी में कहा कि यह देश की बढ़ती वैज्ञानिक क्षमताओं को रेखांकित करता है। मोदी ने अतीत में प्रौद्योगिकी के वर्चस्व वाले दशक का वर्णन करने के लिए “तकनीक” का इस्तेमाल किया है और भारत ने इसका अधिकतम लाभ उठाया है। उन्होंने कहा,”मुझे विश्वास है कि भारत का तकनीक का सपना इसके नवप्रवर्तकों और उनके पेटेंट द्वारा पूरा किया जाएगा।”

पेटेंट और ट्रेडमार्क के क्षेत्र में सरकार के सुधारों की वजह से जहां इसमें आवेदन दाखिल करने में प्रगति हुई है वहीं मंजूरी मिलने में भी वृद्धि हुई है।

सात वर्षों में पेटेंट को मंजूरी देने में पांच गुना बढ़ोतरी

उद्योग संवर्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) के सचिव अनुराग जैन ने कहा कि 2016 में जब से सरकार ने बौद्धिक संपदा नीति अपनाई है, सात वर्षों की समय अवधि में पेटेंट को मंजूरी दिए जाने की संख्या में पांच गुना बढ़ोतरी हो गई है। इस अवधि के दौरान पंजीकृत ट्रेडमार्कों की संख्या में भी चार गुना वृद्धि दर्ज की गई है।

ट्रेडमार्कों के लिए पहले 74 फॉर्म होते थे, उसे अब 8 किया गया

सरकार ने देश की आईपीआर (बौद्धिक संपदा अधिकार) व्यवस्था को और सुदृढ़ बनाने के लिए ट्रेडमार्कों तथा पेटेंटों के लिए प्रारूपों की संख्या में कमी लाने सहित उपायों की एक श्रृंखला आरंभ की है। ट्रेडमार्कों में 74 फॉर्म हुआ करते थे, लेकिन अब उन्हें कम करके केवल आठ कर दिया गया है और इसी प्रकार पेटेंटों के लिए सभी प्रकार के फॉर्म को समाप्त कर दिया है और इसके लिए केवल एक ही फॉर्म है।

विजन@2047 को साकार करने के लिए ज्ञान तथा नवाचार प्रेरणादायी कारक

विभिन्न सरकारी विभागों ने अमृत काल के दौरान अगले 25 वर्षों के लिए विजन@2047 आरंभ किया, सबसे महत्वपूर्ण प्रेरणादायी कारक ज्ञान तथा नवाचार होंगे। इससे केवल उन्हीं उद्योगों का अस्तित्व रह पाएगा जो ज्ञान तथा नवाचार में निवेश करेंगे। ज्ञान तथा नवाचार को बचाये रखने के लिए बौद्धिक संपदा एक बहुत ही महत्वपूर्ण टूल बन जाता है। इसका एक और महत्वपूर्ण पहलू स्टार्टअप्स है।

भारत बना तीसरी सबसे बड़े स्टार्टअप इकोसिस्टम

स्टार्टअप्स संबंधी पहल 2016 में लॉन्च की गई थी, छह वर्षों की समय अवधि में हम बढ़कर तीसरी सबसे बड़े स्टार्टअप इकोसिस्टम बन गए हैं। पिछले वर्ष, सृजित किए जाने वाले यूनिकॉर्न की संख्या के मामले में हमने चीन को पीछे छोड़ दिया और हम दूसरे सबसे बड़े देश बन गए।

अब प्रतिदिन रजिस्टर्ड हो रहे 80 स्टार्टअप्स

हम अपने देश में प्रत्येक दिन 80 स्टार्टअप्स के पंजीकृत किए जाने के स्तर तक पहुंच चुके हैं जोकि विश्व में सर्वाधिक है। सरकार द्वारा आरंभ किए गए आईपी जागरूकता के लगभग 400 कार्यक्रमों में करीब 4,300 संस्थानों ने भाग लिया। रचनाशील केंद्रित उद्योगों में आर्थिक उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ एक उत्कृष्ट उद्योग बनाने के लिए कंटेंट को समझने तथा व्यावसायीकरण करने के तरीके को बदलने की क्षमता है जो देश के सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि करती है तथा वैश्विक बाजारों का लाभ उठाती है।

एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया बौद्धिक संपदा

अब हमें युवाओं की सोच में बौद्धिक संपदा (आईपी) के बीज का संचार करने की आवश्यकता है। इसे एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम में शामिल कर दिया गया है। उसके बाद महाविद्यालयों के साथ भी बहुत साझेदारी हैं। लगभग 18 आईपीआर चेयर्स की स्थापना की गई है तथा विभिन्न महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में लगभग 135 आईपीआर प्रकोष्ठों की स्थापना की गई है।

युवा नवोन्मेषकों के हितों की रक्षा करने के लिए कई योजनाएं

भारत में युवाओं की एक बड़ी संख्या है और इसकी पूर्ण क्षमता का अधिकतम उपयोग करने के लिए नवोन्मेषकों तथा सृर्जनकर्ताओं के अधिकारों एवं हितों की रक्षा करने के लिए सहायता उपलब्ध कराने के लिए सरकार द्वारा कई क्रांतिकारी योजनाओं का कार्यान्वयन किया गया है। सरकार एक नवाचार केन्द्र (हब) के रूप में भारत की मजबूत नींव का निर्माण करने और मूल्य सृजन एवं विकास के अगले चरण को प्रोत्साहित करने के लिए बौद्धिक संपदा का लाभ उठाने के लिए प्रौद्योगिकी व रचनात्मक उद्योग सहित सभी क्षेत्रों में युवाओं को प्रोत्साहित करती रही है।

पेटेंट, डिजाइन और व्यापार चिन्ह पर आईपी समुदाय के लिए ओपन हाउस संवाद

‘ज्ञान अर्थव्यवस्था के विकास को उत्प्रेरित करने के लिए इंटरनेट नवाचार (आईपी) पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करने’ पर राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा सम्मेलन- 2022 नई दिल्ली में 15 अक्टूबर 2022 को आयोजित किया गया जिसमें आईपी संबंधी चिंताओं, शिकायतों को दूर करने के साथ ही आईपी पारिस्थितिकी तंत्र में आवश्यक परिवर्तनों पर चर्चा को सुविधाजनक बनाने की इच्छा व्यक्त की गई। इसमें इन्टरनेट नवाचार पेशेवर (आईपी प्रैक्टिशनर्स), आईपी निर्माता – आयोजक (क्रिएटर्स – इन्वेंटर्स) और उद्योग जगत के 120 से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए थे।

चिकित्सीय उल्‍टी (एमिसिस) के लिए उन्नत स्वचालित प्रणाली या उपकरण के उपयोग के लिए पेटेंट प्रदान किया गया

आयुष क्षेत्र लगातार विभिन्न आयुर्वेद उपचारों के लिए प्रौद्योगिकी और नए नवोन्‍मेषों का उपयोग करने का प्रयास कर रहा है। चिकित्सीय उल्‍टी (एमिसिस) के लिए एक उन्नत स्वचालित प्रणाली या उपकरण विकसित किया गया है, जो इस चिकित्सा को सरल और सुविधाजनक बना देगा। भारतीय चिकित्सा प्रणाली के लिए राष्ट्रीय आयोग (एनसीआईएसएम) में बोर्ड ऑफ आयुर्वेद के अध्यक्ष डॉ. बी. श्रीनिवास प्रसाद और आविष्कारक की उनकी टीम को भारत सरकार के पेटेंट नियंत्रक द्वारा चिकित्सीय उल्‍टी के लिए उन्नत स्वचालित प्रणाली या उपकरण विकसित करने के लिए एक पेटेंट प्रदान किया गया।

इस उत्पाद को केएलई आयुरवर्ल्ड के डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम अयुरटेक इनक्यूबेशन सेंटर और बेलगावी, कर्नाटक में केएलई इंजीनियरिंग कॉलेज ने विकसित किया है। प्रौद्योगिकी आईआईसीडीसी 2018 और एनएसआरसीईएल, आईआईएम बैंगलोर में इनक्यूबेट में शीर्ष 10 में थी और डीएसटी और टेक्सास इंस्ट्रूमेंट्स द्वारा सहायता प्राप्‍त थी।

यह उन्नत स्वचालित प्रणाली आयुर्वेद बिरादरी को प्रौद्योगिकी के उपयोग के साथ आयुर्वेद को पढ़ाने और अभ्यास करने में मदद करेगी। आगे चलकर इस आविष्कार के व्यावसायीकरण पर भी ध्यान दिया जा रहा है, ताकि इसे देश के सभी अस्पतालों में इस्तेमाल किया जा सके।

आयुर्वेद में पंचकर्म प्रमुख उपचार पद्धति हैं। पंचकर्म को रोकथाम, प्रबंधन, इलाज के साथ-साथ कायाकल्प उद्देश्य के लिए किया जाता है। वामन (चिकित्सीय उल्‍टी), विरेचना (चिकित्सीय शुद्धिकरण), बस्ती (चिकित्सीय एनीमा), नास्या (नाक के रास्‍ते चिकित्‍सा और रक्तमोक्षना (रक्तस्राव चिकित्सा) पंचकर्म के तहत पांच प्रक्रियाएं हैं।

झींगा पालन को बढ़ावा देने के लिए जलीय कृषि रोगाणु के लिए नया पेटेंट नैदानिक उपकरण

वैज्ञानिकों ने एक सुविधाजनक नैदानिक उपकरण विकसित किया है। यह एक जलीय कृषि रोगाणु का पता लगाता है, जिसे व्हाइट स्पॉट सिंड्रोम वायरस (डब्ल्यूएसएसवी) के रूप में जाना जाता है। आगरकर अनुसंधान संस्थान (एआरआई) के वैज्ञानिकों की ओर से पेप्टाइड-आधारित नैदानिक उपकरण को वैकल्पिक जैव पहचान तत्व के रूप में 31 मार्च 2022 को पेटेंट दिया गया है। एआरआई, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) का एक स्वायत्त संस्थान है।

डब्ल्यूएसएसवी द्वारा झींगे (पेनियस वन्नामेई- प्रशांत महासागरीय सफेद झींगा) को संक्रमित किए जाने के चलते इसका भारी नुकसान होता है। यह उच्च मान का सुपर-फूड, वायरल और बैक्टीरियल रोगाणुओं की एक विस्तृत श्रृंखला को लेकर अतिसंवेदनशील है और इसके संक्रमित होने की आशंका काफी अधिक है। बेहतर पोषण, प्रोबायोटिक, रोग प्रतिरोधक क्षमता, जल, बीज व चारे का गुणवत्ता नियंत्रण, प्रतिरक्षा- प्रेरक पदार्थ और सस्ते टीके उत्पादन को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस क्षेत्र में रोगाणुओं का जल्द और तेजी से पता लगाने वाली तकनीकों से मछली और शेल-फिश पालन में सहायता मिलेगी। इससे देश को विशिष्ट निर्यात राजस्व की प्राप्ति होती है। अमेरिका को झींगे का निर्यात करने वाले देशों में भारत एक अग्रणी आपूर्तिकर्ता है।

महिला वैज्ञानिक को हरित प्रौद्योगिकी के जरिए औषधीय रूप से महत्वपूर्ण कंपाउंड बनाने के लिए पेटेंट प्रदान किया गया

चेन्नई स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- मद्रास के रसायन विज्ञान विभाग में महिला वैज्ञानिक डॉ ई. पून्गुझली को हरित प्रौद्योगिकी विधि के जरिए औषधीय रूप से महत्वपूर्ण बेंजो[बी] थियोफीन नामक एक कंपाउंड को विकसित करने के लिए एक पेटेंट प्रदान किया गया है। यह कंपाउंड दवाओं की एक श्रृंखला जैसे कि रालोक्सिफेन (ऑस्टियोपोरोसिस में उपयोग), जिल्यूटन (अस्थमा में उपयोग) व सेरटाकोंजोल (फंगलरोधी दवा) मौजूद है। इसके अलावा 2-सब्स्टूटेड बेंजो[बी]थियोफीन का एक-चरण संश्लेषण कंपाउंड के खतरनाक औद्योगिक उत्पादन को प्रतिस्थापित कर सकता है।

पारंपरिक ज्ञान का प्राथमिक डेटाबेस है टीकेडीएल

पारंपरिक ज्ञान डिजिटल लाइब्रेरी (टीकेडीएल) 2001 में स्थापित भारतीय पारंपरिक ज्ञान का एक प्राथमिक डेटाबेस है। इसे वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और भारतीय चिकित्सा प्रणाली व होम्योपैथी विभाग (आईएसएम एंड एच, अब आयुष मंत्रालय) द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित किया गया था। टीकेडीएल विश्व स्तर पर अपनी तरह का पहला संस्थान है और यह अन्य देशों के लिए एक अनुकरणीय मॉडल के रूप में कार्य कर रहा है। टीकेडीएल में वर्तमान में आईएसएम से संबंधित मौजूदा साहित्य जैसे आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध, सोवा रिग्पा और योग शामिल है। जानकारी व ज्ञान को पांच अंतरराष्ट्रीय भाषाओं – अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, जापानी और स्पेनिश- में डिजिटल प्रारूप में प्रस्तुत किया गया है। टीकेडीएल दुनिया भर में पेटेंट कार्यालयों को पेटेंट परीक्षकों द्वारा समझने योग्य भाषाओं और प्रारूप में जानकारी प्रदान करता है, ताकि पेटेंट को गलत तरीके से प्राप्त करना संभव न रहे। अब तक, संपूर्ण टीकेडीएल डेटाबेस तक पहुंच की सुविधा दुनिया भर के 14 पेटेंट कार्यालयों को सिर्फ खोज और परीक्षण करने के उद्देश्य से दी गयी है। टीकेडीएल के माध्यम से यह रक्षात्मक संरक्षण, भारतीय पारंपरिक ज्ञान को दुरूपयोग से बचाने में प्रभावी रहा है और इसे एक वैश्विक बेंचमार्क माना जाता है।

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