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तेल पर कांग्रेस का गजब पाखंड: योगी राज में 95.28 रुपये लीटर, तो गहलोत राज में 116.34 रुपये लीटर बिक रहा पेट्रोल

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कांग्रेस सहित मोदी विरोधी दल तेल की कीमतों को लेकर देश भर में रोना रो रहे थे। लेकिन जैसे ही मोदी सरकार ने पेट्रोल और डीजल के दामों में बड़ी कटौती करने का फैसला किया। तेल की कीमतों को लेकर इन दलों के हकीकत देश के लोगों के सामने आ गई। कई राज्यों में कांग्रेस सहित मोदी विरोधी दलों की सरकार है, वहां अब राज्य सरकारें तेल की कीमतों में कमी का फायदा आम लोगों तक पहुंचाने को तैयार नहीं है। इन राज्यों की दलील है कि अगर उन्होंने वैट कम करके पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी की तो उनका बजट बिगड़ जाएगा। 

पेट्रोल-डीजल की कीमतें कब कम करेंगी कांग्रेस और मोदी विरोधी दलों की सरकारें

आपको बताते हैं कि कैसे पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लेकर कांग्रेस और कई मोदी विरोधी दल, देश के आम लोगों को धोखा देने में जुटे हैं। इनकी कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर है। मोदी सरकार के खिलाफ ये तेल की कीमतों को लेकर सड़कों पर विरोध की नौटंकी करते हैं। लेकिन जब बारी अपने राज्यों में तेल की कीमतों को कम कर लोगों को राहत देने की आती है तो दुम दबा लेते हैं। 

एक्साइज ड्यूटी में कमी का मोदी सरकार का फैसला 
पेट्रोल  5 रुपये 
डीजल 10 रुपये

 

बीजेपी शासित राज्यों ने घटाए वैट कम हुई कीमतें 

  • कुल 16 राज्यों ने वैट में कमी की 
  • 7 केंद्र शासित प्रदेशों ने भी वैट घटाया
  • मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में वैट में कमी
  • गुजरात और असम ने भी घटाया वैट

कांग्रेस-विपक्ष की सरकार वाले कई राज्यों का कमी से इनकार

महाराष्ट्र दिल्ली पश्चिम बंगाल तमिलनाडु
तेलंगाना आंध्र प्रदेश केरल
मेघालय अंडमान-निकोबार झारखंड छत्तीसगढ़
पंजाब राजस्थान

पेट्रोल डीजल की कीमतों के मामले में सबसे बुरी हालत कांग्रेस के राज वाले राज्य राजस्थान की है। यहां आम लोग गहलोत सरकार को यूपी जैसे राज्यों से सीखने की नसीहत दे रहे हैं। राजस्थान में देश का सबसे महंगा पेट्रोल मिल रहा है और लोगों की परेशानियों को लेकर गहलोत सरकार की बेरूखी पर लोग गुस्से में है। कांग्रेस सरकार की नीतियों पर हमला बोला जा रहा है।

बीजेपी ने भी मोदी विरोधी दलों पर बोला हमला 

बीजेपी मे मोदी विरोधी दलों पर हमला बोलते हुए कहा है कि केंद्र सरकार के एक्साइज ड्यूटी कम करने के फैसले के बाद कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की जिन राज्यों में सरकारें हैं वहां तेल के कीमतों में कमी क्यों नहीं हो रही। आखिर ये राज्य केंद्र सरकार के एलान से अलग कटौती का फैसला क्यों नहीं कर रहे, ताकि लोगों को राहत मिल सके। 

मोदी विरोध के लिए आम लोगों का विरोध 

मोदी विरोध के लिए आम लोगों को परेशान कर रही कांग्रेस और कई दूसरे विरोधी दलों की सरकार के फैसले से किस तरह, इन राज्यों में तेल की कीमतों में आग लगी है और कैसे आम आदमी इस गंदी राजनीति में पिस रहा है उसकी एक बानगी देखिए। 

पेट्रोल के दाम (रुपये) डीजल के दाम (रुपये)
दिल्ली 103.97 86.67
मुंबई 109.98 94.14
कोलकाता  104.67 89.79
चेन्नई  101.40 91.43
लखनऊ 95.28 86.80

उत्तर प्रदेश में जहां सीएम योगी की सरकार है वहां सबसे सस्ता तेल और राजस्थान के जयपुर और श्रीगंगानगर जहां कांग्रेस की गहलोत सरकार का राज है वहां सबसे महंगा मिल रहा है पेट्रोल और डीजल। 

राजस्थान में बिक रहा है सबसे महंगा पेट्रोल-डीजल

पेट्रोल और डीजल की कीमतों के नाम पर राजस्थान में आम जनता से वसूली में जुटी है गहलोत सरकार । लोग परेशान हैं, लेकिन गहलोत सरकार वैट और सेस में कमी करने को तैयार नहीं है। राजस्थान सरकार डीजल पर 26 फीसदी वैट और 1.75 रुपए सेस वसूल रही है। जबकि पेट्रोल पर 36 फीसदी वैट और 1.50 रुपए प्रति लीटर सेस वसूल किया जा रहा है।

तेल की कीमतों के नाम पर पुराना है कांग्रेस का नाटक

कांग्रेस के पूर्व और भावी अध्यक्ष राहुल गांधी पेट्रोल और डीजल की कीमत को लेकर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। लेकिन वो अपने ट्वीट के माध्यम से यूपीए शासन काल में गरीबों के साथ हुए अन्याय और अमीरों को तरजीह देने की पोल खोल रहे हैं। उन्होंने अपने ट्वीट में एक खबर शेयर किया है, जिसमें लिखा है, “हवाई जहाज के ईंधन से भी महंगा है, आपकी कार-बाइक में इस्तेमाल होने वाला पेट्रोल”। राहुल गांधी शायद भूल गए थे कि यूपीए शासन में हवाई जहाज के ईंधन की कीमत पेट्रोल और डीजल की कीमत से कम थी। सात साल बाद उन्होंने इस मद्दे को उठाकर अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है।

 

दरअसल 2004 में आम आदमी के नाम पर चुनाव जीतकर सत्ता में आई मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने गरीबों के साथ सबसे बड़ा विश्वासघात किया था। भीषण महंगाई ने गरीबों की कमर तोड़ दी थी, वहीं अमीर मालामाल हो रहे थे। खाद्य पदार्थों की कीमत आसमान छू रही थी। 2011 में हवाई जहाज के ईंधन की कीमत पेट्रोल की कीमत से कम थी। जहां एक लीटर हवाई जहाज के ईंधन की कीमत 56.5 रुपये थी, वहीं पेट्रोल 63 से 68 रुपये प्रति लीटर बिक रहा था।

गौरतलब है कि मई 2004 में यूपीए 1 जब सत्ता में आई और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 33.71 रुपये प्रति लीटर थी। वहीं नरेन्द्र मोदी ने मई 2014 में सत्ता संभाली तो पेट्रोल दिल्ली में 71.41 रुपये प्रति लीटर बिक रहा था। यानि पेट्रोल की कीमत दस साल के यूपीए शासन के अंतराल में 38 रुपये बढ़ चुकी थी।

यूपीए के शासन में सरकार ने जानबूझकर महंगाई को बढ़ने दिया। महंगाई इस कारण नहीं बढ़ी कि कहीं कोरोना जैसी महामारी आ गयी थी या फसल नष्ट हो गई, ऐसी कोई बात नहीं थी। सरकार ने अमीरों और कालाबाजारियों को फायदा पहुंचाने की कोशिशें कीं। कमॉडिटी एक्सचेंज किया, जमाखोरों को बढ़ावा दिया, बड़े-बड़े उद्योगपतियों को रिटेल में काम करने दिया और एफसीआई की बजाय इन लोगों को सारी चीजें कंट्रोल करने की छूट दीं और गेहूं का आयात किया, इन सभी कारणों से महंगाई बढ़ी।

आइए देखते हैं ‘तेल का खेल’, जिसमें मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने जनता के साथ किस तरह विश्वासघात किया था… 

देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी देखी जा रही है। इससे जहां तेल उपभोक्ता पेरशान है, वहीं इस पर सियासत भी खूब हो रही है। लेकिन आम लोगों को पता नहीं है कि तेल की कीमत क्यों बढ़ी है। कीमत बढ़ने की वजह जानकर आपके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी। आपको जानकर हैरानी होगी कि इस बढ़ोतरी के लिए कांग्रेस के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती यूपीए सरकार जिम्मेदार है।

सब्सिडी के बदले तेल कंपनियों को आयल बांड्स

दरअसल पूर्ववर्ती यूपीए शासन में तेल की कीमतों को लेकर खूब राजनीति होती थी, उसका खामियाजा मौजूदा केंद्र सरकार और आम उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ रहा है। पूर्व में कच्चे तेल के महंगा होने पर उसका पूरा बोझ आम जनता पर नहीं डाला जाता था, बल्कि सब्सिडी दी जाती थी। इस सब्सिडी की राशि के बदले तेल कंपनियों को आयल बांड्स जारी किए जाते थे। इन बांड्स की परिपक्वता अवधि 10 से 20 वर्ष होती थी। ये बांड्स परिपक्व हो रहे हैं और इनका भुगतान अब शुरू होगा।

1.31 लाख करोड़ रुपये का आयल बांड्स जारी हुआ था

पूर्व की सरकारों की तरफ से जारी 1.31 लाख करोड़ रुपये के आयल बांड्स का भुगतान मौजूद और आगामी केंद्र सरकार को इस वर्ष अक्टूबर से लेकर मार्च 2026 के बीच करना होगा। वित्त मंत्रालय के मुताबिक इस वर्ष अक्टूबर और नवंबर में पांच-पांच हजार करोड़ रुपये के बांड्स के भुगतान का बोझ केंद्र सरकार को उठाना है। एक दशक पहले केंद्र सरकार की तरफ से जारी इन मूल्यों के दो बांड्स के लिए अब मूल व ब्याज के तौर पर 20 हजार करोड़ रुपये का भुगतान करना है।

केंद्र सरकार पर आयल बांड्स के भुगतान का बोझ

वर्ष बांड्स का भुगतान
2021 20 हजार करोड़ रुपये
2023 22 हजार करोड़ रुपये
2024 40 हजार करोड़ रुपये
2025 20 हजार करोड़ रुपये
2026 37 हजार करोड़ रुपेय

बांड्स के भुगतान से तेल की कीमतों में बढ़तोरी

वर्ष 1996-97 के बाद से केंद्र सरकार ने तेल कंपनियों के घाटे की भरपाई के लिए आयल बॉड्स जारी करने का फॉर्मूला निकाला था। वर्ष 2004 में आई यूपीए सरकार ने एक नया फॉर्मूला निकाला था, जिसके तहत वह कुछ बोझ आम जनता पर डालती थी और कुछ बोझ बतौर आयल बांड्स तेल कंपनियों को जारी कर दिए जाते थे। आयल बांड्स जारी कर तत्कालीन यूपीए सरकार ने फौरी तौर पर तो ग्राहकों के लिए दाम स्थिर रखकर राहत दे दी थी और तेल की सियासत पर विराम लगा दिया था, लेकिन अब उसका भुगतान आम ग्राहकों की जेब से होना है। इसकी वजह से तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है और उपभोक्ताओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

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