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देखिए भारतीय किसान यूनियन का दोगलापन, 2008 में एमएसपी पर उपज बेचने का किया था विरोध, खुले बाजार में गेहूं बेचने की मांगी थी अनुमति

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आज पंजाब और हरियाणा के किसान मंडी से बाहर किसानों को अपनी उपज बेचने की अनुमति के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। किसानों की दलील है कि मंडी के बाहर उपज की खरीद-बिक्री से मंडी का अस्तित्व खत्म हो जाएगा और किसानों को उद्योगपतियों और कॉर्पोरेट की मनमानी का शिकार होने पड़ेगा। लेकिन पंजाब और हरियाणा के इन्हीं किसानों ने 2008 में उस समय सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया था, जब तत्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार ने कॉर्पोरेट द्वारा किसानों से उपज खरीदने पर प्रतिबंध लगा दिया था।

तत्कालीन सांसद शरद जोशी और हरियाणा के भारतीय किसान यूनियन के नेता भूपिंदर सिंह मान के नेतृत्व में किसानों ने 2 अप्रैल, 2008 को प्रदर्शन किया था। इस दौरान किसानों ने एमएसपी पर उपज बेचने का विरोध किया था। उस समय प्रदर्शन कर रहे किसानों की दलील थी कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमत 1,600 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ी है, तो सरकार उन्हें अपनी उपज एमएसपी पर बेचने के लिए मजबूर कर रही है। उस समय गेहूं का एमएसपी 1000 प्रति क्विंटल था।

प्रदर्शन में शामिल सैकड़ों किसानों ने चंडीगढ़ के सेक्टर 34 में इकट्ठा होकर सेक्टर 17 के परेड ग्राउंड तक रैली निकाली थी। इस दौरान किसानों को संबोधित करते हुए पूर्व सांसद शरद जोशी ने कहा कि केंद्र सरकार खाद्य सुरक्षा को लेकर ज्यादा चिंतित नजर आ रही है, लेकिन उसे किसानों की परेशानियों का कोई ख्याल नहीं है।

शरद जोशी ने सवाल किया कि सरकारी एजेंसियों को कम दरों पर उपज बेचकर किसानों को क्यों नुकसान उठाना चाहिए। उन्होंने कहा कि नियम के तहत किसानों को खुले बाजार में अपनी उपज बेचने की अनुमति मिलनी चाहिए, ताकि किसानों को उचित मूल्य मिल सके। 

इस दौरान किसानों को संबोधित करते हुए भूपिंदर सिंह मान ने कहा कि केंद्र सरकार हरियाणा और पंजाब से गेहूं की कुल पैदावार 250 लाख मीट्रिक टन तक पहुंचाने की उम्मीद कर ही है। उन्होंने कहा कि 600 रुपये प्रति क्विंटल के नुकसान पर गेंहूं बिकने से दोनों राज्यों के किसानों को 1500 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। उन्होंने अपनी मांगों को लेकर अंदोलन जारी रखने की बात कही।

लेकिन अब हैरानी हो रही है कि जो किसान एमएसपी पर उपज बेचने का विरोध कर रहे थे और खुले बाजार में अपनी उपज बेचने की मांग कर रहे थे, आज 12 साल बाद इसके ठीक विपरीत फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी की गारंटी की मांग कर रहे हैं। साथ ही खुले बाजार में उपज बेचने की अनुमति देने का विरोध कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर किसानों के रूख में बदलाव क्यों आया है ? 

आइए देखते हैं किस तरह झूठा दावा कर किसानों को गुमराह किया जा रहा है- 

झूठ- किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य न देने के लिए साजिश के तहत कृषि बिल लाया गया है।

सच्चाई – न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को लेकर सरकार ने स्पष्ट किया है यह कोई साजिश नहीं है। कृषि बिल का न्यूनतम समर्थन बिल से कोई लेना-देना नहीं है। किसानों को एमएसपी मूल्य मिलता रहा है और मिलता रहेगा।

झूठ- किसानों का कहना है कि कृषि बिल किसान विरोधी है। 

सच्चाई – कृषि बिल को किसान विरोधी दावों को लेकर सरकार का कहना है कि किसान अब अपनी फसल कहीं भी और किसी को भी बेच सकता है। नये बिल के आने के बाद से किसानों के पास कंपनियों के साथ जुड़कर ज्यादा मुनाफ कमाने का मौका है।

झूठ- किसान की जमीन पूंजीपतियों को दी जाएगी। किसानों को पूंजीपतियों के मुताबिक फसल का उत्पादन करना पड़ेगा। बाजार से बाहर उपज बेचने पर उचित मूल्य नहीं मिलेगा।

सच्चाई – किसानों की ज़मीन पूंजीपतियों को दिए जाने के झूठ पर सरकार ने कहा है कि नये कृषि बिल के तहत किसानों की ​ज़मीन की बिक्री, लीज़ और गिरवी रखना पूरी तरह से निषिद्ध है। करार फसलों का होगा, न कि ज़मीन का।

झूठ- किसानों का कहना है कि मंडी से बाहर उपज की ज्यादा खरीद-बिक्री होगी, जिससे मंडियो का महत्व कम हो जाएगा और धीरे-धीरे मंडियों का अंत हो जाएगा।

सच्चाई – नये कृषि बिल में मंडियों को लेकर भी कई प्रावधान हैं। सरकार का कहना है कि मंडी व्यवस्था पहले की तरह ही जारी रहेगी।

 

 

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