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एमएसपी पर कानून बना तो दो साल के अंदर दिवालिया हो जाएगा देश, किसान नेता ने कानून बनाने की मांग को बताया खतरनाक

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तीन कृषि कानूनों की वापसी के बाद किसानों का धरना खत्म होने की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन किसान संगठन अब आंदोलन जारी रखते हुए एमएसपी पर कानून बनाने को लेकर अड़ गए हैं। उनका कहना है कि सरकार को एमएसपी पर कानून बनाना चाहिए ताकि किसान अपनी फसलों को उचित दामों पर बेच सकें। वहीं केंद्र के तीन कृषि कानूनों के अध्ययन के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से बनाए पैनल के सदस्य और किसान नेता अनिल घनावत ने किसान संगठनों की इस मांग को देश के लिए काफी खतरनाक बताया है। 

इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, शेतकारी संगठन के नेता घनावत ने कहा, ‘एमएसपी चाहे केंद्र दे या राज्य, वह जल्द ही दिवालिया हो जाएगा। यह बहुत खतरनाक मांग है और लंबे समय तक पूरी नहीं की जा सकती। अगर इन्हें मान लिया जाता है तो दो साल के अंदर ही देश दिवालिया हो जाएगा।’

घनावत ने चेताया कि इस मांग को मानने से आर्थिक बोझ बढ़ाने के साथ ही देश में नई मांगों की बाढ़ आ जाएगी और स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी। उनके मुताबिक, अगर सरकार अभी 23 फसलों पर एमएसपी की मांग को मान लेती है, तो बाद में दूसरे किसान भी अपनी फसलों को लेकर इसी तरह की मांग करेंगे। हर दूसरे दिन किसी न किसी राज्य में विरोध प्रदर्शन होंगे। एक बार आप किसी फसल पर एमएसपी दे देंगे, तो दूसरी फसलों पर भी देना पड़ेगा।

किसान नेता ने कहा कि सरकार के पास सारे फसल खरीदने और उन्हें बेचने के लिए बुनियादी ढांचा भी नहीं है। ऐसे में अगर एमएसपी की सूची में और फसलें जुड़ जाएंगी तो सरकार उन्हें कैसे खरीदेगी और कहां रखेगी। उन्होंने कहा कि जहां तक मेरी जानकारी है। कोई भी देश ऐसा नहीं करता है, वे सब्सिडी देते हैं लेकिन एमएसपी नहीं और निश्चित तौर पर इतनी फसलों के लिए नहीं। किसान अब आसानी से झुकने वाले नहीं हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे एमएसपी पर कानून बनवाने में कामयाब हो जाएंगे। सरकार तीन कृषि कानूनों पर उनकी मांगों के आगे झुक गई। इसलिए सरकार एमएसपी पर भी झुकेगी।

गौरतलब है कि इससे पहले तीन कृषि कानूनों का समर्थन करते हुए अनिल घनावत ने कहा था कि यह इतिहास में पहली बार था कि किसानों को बाजार की स्वतंत्रता दी गई थी। इससे किसानों की वित्तीय स्थिति में सुधार करने में मदद मिलती, लेकिन कानून निरस्त होने से अब आने वाली कोई भी सरकार इस तरह के सुधार को पेश करने की हिम्मत नहीं कर सकेगी। यह न तो किसानों के पक्ष में है और न ही देश के पक्ष में।

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