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मोदी राज में अदरक, केसर और हल्दी का निर्यात 192 प्रतिशत बढ़ा, दुनिया भर में बढ़ी भारतीय मसालों की मांग

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वर्ष 2014 में केंद्र की सत्ता संभालने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के अन्नदाताओं के कल्याण के लिए काम करने लगे। किसानों के लिए मोदी सरकार की योजनाओं का असर अब दिखने लगा है। खेती से जुड़े लोगों का जीवन बेहतर हो, इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी निरंतर काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री का लक्ष्य किसानों की आय को दोगुनी करना है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार एक के बाद एक योजनाएं बनाकर उसे धरातल पर उतार रही है। इन योजनाओं का असर अब भारतीय मसाला कारोबार में भी दिखने लगा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सुचारू और संगठित नीति के कारण भारतीय मसालों की मांग विश्व भर में बढ़ी है और निर्यात में जबरदस्त उछाल आया है। पीएम मोदी के आठ साल के कार्यकाल में हल्दी, अदरक और केसर के निर्यात में 192 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अप्रैल-मई 2013 में इन तीनों मसालों का निर्यात जहां 260 करोड़ रुपये का हुआ था वहीं अप्रैल-मई 2022 में यह बढ़कर 761 करोड़ रुपये हो गया।

मसाला उन कृषि उत्पादों में आता है जिनके उपयोग से भोजन को सुगन्धित और स्वादिष्ट, बनाया जाता है। भारत में पाई जाने वाली गुणवत्ता पूर्वक मिट्टी में सभी प्रकार के मसालों की खेती होती है। भारत में उगाये गये मसालों का स्वाद भारत में ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इनके अद्भुत स्वाद और सुगंध की वजह से भारत में मसालों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा हल्दी उत्पादक देश

वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान देश में कुल 9,38,955 टन हल्दी का उत्पादन हुआ था, जिसमें से दिसंबर 2019 तक 1,01,500 टन का निर्यात हुआ था। पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा हल्दी का उत्पादन भारत में ही होता है, जोकि कुल वैश्विक उत्पादन का करीब 60 से 70 फीसदी है। वित्त वर्ष 2020-21 में हल्दी का निर्यात 15 फीसदी बढ़ने का अनुमान जताया गया था।

हल्दी के निर्यात में 42 प्रतिशत वृद्धि से किसानों को लाभ

हल्दी अपनी प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले गुणों की वजह से महामारी के दौर में काफी लोकप्रिय हुई है। इस वजह से उसकी निर्यात मांग भी बढ़ी है। वित्त वर्ष 2020-21 की पहली छमाही के दौरान मात्रा के आधार पर निर्यात में 42 फीसदी की उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। यह मसाला की खेती करने वाले किसानों के लिए बहुत ही कारगार साबित हो रही है। इससे किसानों की आमदनी बढ़ी है और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार देखने को मिल रहा है। कोविड महामारी के दौरान हल्दी और काली मिर्च आदि का उपयोग करके बनाया जाने वाला सुनहरा दूध इम्यूनिटी बढ़ाने (Immunity Booster) के लिए सबसे अधिक खोजे जाने वाले व्यंजनों में शामिल हो गया है।

औषधीय गुणों से भरपूर हल्दी

हमारे दैनिक जीवन में हल्दी का महत्वपूर्ण स्थान है। हल्दी मसाले वाली फसल है, इसका उपयोग हमारे देश में अनेक रूपों में किया जाता है। औषधीय गुण होने के कारण इसका उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में, पेट दर्द व ऐंटिसेप्टिक व चर्म रोगों के उपचार में किया जाता है। यह रक्त शोधक होती है। कच्ची हल्दी चोट सूजन को ठीक करने का काम भी करती है। जीवाणु नाशक गुण होने के कारण इसके रस का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन में भी किया जाता है। प्राकृतिक एवं खाद्य रंग बनाने में भी हल्दी का उपयोग होता है।

दुनियाभर में बढ़ी हल्दी की मांग

दुनियाभर में कोरोना वायरस महमारी की वजह से इम्युनिटी बूस्ट करने की सलाह दी जा रही है। यही कारण है कि हल्दी को इम्युनिटी बूस्टर के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है और इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। भारत में हल्दी निर्यात के लिए मध्य पूर्व के देशों, अमेरिका, यूरोप और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों से हल्दी की मांग बढ़ी है। इसके अलावा यूनाइटेड किंग्डम, जर्मनी, और हॉलैन्ड के रिटेल चेन्स में भी हल्दी की मांग बढ़ी है। अब स्टारबक्स भी हल्दी दूध बेच रहा है, जिसके बाद यह ट्रेन्ड वैश्विक स्तर पर बढ़ा है। ताजा हल्दी की मांग में करीब 5 गुना तक इजाफा हुआ है।

किसानों को कम लागत में अच्छे भाव मिलने की संभावना

हल्दी का इतना अधिक उपयोग होने के कारण इसकी बाजार मांग भी अधिक है जिससे किसानों को इसके अच्छे भाव मिलने की सम्भावना अधिक होती है। भारत में हल्दी की खेती प्राचीन काल से ही की जा रही है। किसान इसकी खेती कम खर्च में करके अधिक आय प्राप्त कर सकते हैं। विश्व में हल्दी के उत्पादन में भारत का मुख्य स्थान है जिसके कारण इसका निर्यात भी किया जाता है। देश के सभी राज्यों में इसकी खेती होती है, दक्षिण भारत और उड़ीसा में इसका उत्पादन मुख्य रूप से होता है।

हल्दी की खेती

हल्दी की खेती छह या सात महीने होती है। एक बीघे में हल्दी के दो कुंतल बीज लग जाते हैं, जो हमें 1500 से 1800 रुपए कुंतल मिलता है। चार से पांच पानी लगाने पड़ते हैं। पेड़ से पेड़ की दूरी एक फीट रखते हैं और लाइन से लाइन की दूरी भी एक फीट होती है। एक बीघे में अंत तक 6000 हजार से 7000 रुपए की लागत आती है। एक बीघे में कच्चा माल लगभग 25 से 30 क्विंटल निकल आता है जिसका रेट 2500 से 3000 के बीच होता है। एक बीघे में लगभग 1 लाख रुपये रुपये की आमदनी हो सकती है।

हल्दी की खेती के लिए उपयुक्त भूमि

हल्दी की खेती के लिए रेतीली और दोमट भूमि अधिक उपयुक्त होती है। इसे बगीचे में व अर्ध छायादार स्थानों में भी लगाया जा सकता है। भूमि अच्छी जल निकासी वाली होना चाहिए, भारी भूमि में पानी का निकास ठीक ढंग से न होने पर हल्दी की गाँठों का फैलाव ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है। इसके कारण गाठें या तो चपटी हो जाती है या फिर सड़ जाती हैं। इसकी खेती मुख्यतः गर्म तथा नम जलवायु युक्त उष्ण स्थानों में होती है।

हल्दी की उन्नत किस्में

देश में स्थित विभिन्न अनुसंधान केंद्रों के द्वारा अधिक उपज देने वाली रोग-रोधी क़िस्में विकसित की गई हैं, जिनमें रोमा, सुरमा, रंगा, रश्मि, पीतांबरा, कोयम्बटूर, सुवर्णा, सुगना, शिलांग, कृष्णा, गुन्टूर एवं मेघा आदि क़िस्में प्रमुख हैं।

भारत अदरक का सबसे बड़ा उत्पादक देश

भारत दुनिया में अदरक का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो सालाना 1.5 से 2 मिलियन टन के बीच उत्पादन करता है, जो कुल वैश्विक उत्पादन का 40-50% है। अदरक स्वाद बढ़ाने के साथ हीं औषधीय गुणों से भरपूर है। भारत चीन से लगभग दोगुना उत्पादन करता है और हम एक बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पाद का उत्पादन करते हैं। इसका उपयोग मसालों के रूप में सब्जी, अचार आदि में किया जाता है। कोरोना महामारी के बाद विश्व भर से भारतीय अदरक की मांग लगातार बढ़ी है। भारतीय अदरक की गुणवत्ता चीन के अदरक से अच्छी मानी जाती है। अगर अदरक की खेती को सही तरीके से किया जाए तो भोजन के जायके बढ़ाने के साथ-साथ आपके जेब के जायके बढ़ाने में भी अदरक पूरी तरह सक्षम है।

अदरक का निर्यात

भारतीय अदरक का एक बड़ा हिस्सा एशियाई और अफ्रीकी देशों को निर्यात किया जाता है। इसके साथ ही इंडोनेशिया, बांग्लादेश, वियतनाम, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, मोरक्को, तुर्की और मिस्र भारत से प्रमुख आयातक हैं। इन देशों के अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और यूरोपीय बाजारों में काफी अच्छी मात्रा में निर्यात किया जा रहा है। इन क्षेत्रों में जल्द ही निर्यात की मात्रा में सुधार करने की एक बड़ी संभावना है, क्योंकि भारतीय अदरक की गुणवत्ता काफी अच्छी है जिसे लोग पसंद कर रहे हैं।

अदरक से सोंठ भी बनाया जाता है

घरेलू बाजार में ज्यादातर ताजा अदरक का सेवन किया जाता है। उत्पाद का लगभग 10-15% सोंठ में परिवर्तित किया जाता है, जिसका अधिकांश भाग विभिन्न देशों को निर्यात किया जाता है। कोविड -19 महामारी शुरू होने के बाद, दुनिया भर में अदरक की मांग काफी बढ़ गई है। यह अदरक के स्पष्ट स्वास्थ्य लाभों के कारण है, साथ ही इसे एक प्रतिरक्षा बूस्टर माना जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और साथ ही यूरोपीय देशों जैसे क्षेत्रों में उनकी खपत में बड़ी वृद्धि हो रही है और गुणवत्ता वाले भारतीय अदरक इन बाजारों में तेजी से अपनी पहुंच बना रहे हैं।

अदरक उत्पादन में वृद्धि

पिछले सीजन की तुलना में भारतीय अदरक का उत्पादन बढ़ा है और पिछले पांच वर्षों में उत्पादन में तेजी से वृद्धि देखी गई है। इस सीजन में मौसम की स्थिति अच्छी है, इसलिए इस सीजन में अच्छी मात्रा की उम्मीद की जा रही है। उत्तरी भारत में यदि केरल, तमिलनाडु और उत्तराखंड के तर्ज पर खेती की जाए तो और अधिक लाभ कमाया जा सकता है। क्षेत्र के हिसाब से यदि उन्नत बीजों का चयन किया जाए तो 150 से 200 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक फसल प्राप्त किया जा सकता है। भारतीय अदरक का मौसम अक्टूबर के मध्य में शुरू होता है और लगभग अप्रैल तक चल सकता है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय अदरक की मांग तेज गति से बढ़ रही है।

भारत केसर का उत्पादन करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश

अफगानिस्तान और ईरान के बाद भारत केसर उत्पादन और निर्यात के मामले में तीसरा सबसे बड़ा देश है। लाल सोना के नाम से मशहूर केसर की खेती मई में शुरू होती है और अक्टूबर तक फसल पककर तैयार हो जाती है। भारत में लगभग 5,000 हेक्टेयर में इसकी खेती होती है। अफगानिस्तान में तालिबान संकट के बाद भारत से निर्यात होने वाले केसर की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में आसमान छू रही है। जिस केसर की कीमत कुछ समय पहले तक 1.4 लाख रुपए प्रति किलो तक थी, वह अब लगभग दोगुने भाव पर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बिक रही है।

भारत में जम्मू-कश्मीर सबसे बड़ा उत्पादक राज्य

जम्मू-कश्मीर कृषि विभाग के अनुसार प्रदेश में औसतन 17 मिट्रिक टन (170 क्विंटल) केसर की पैदावार हर साल होती है। 160,000 फूलों से लगभग एक किलो केसर निकलता है और प्रदेश के 16,000 किसान परिवार इसकी खेती से जुड़े हुए हैं। प्रदेश में इस समय लगभग 3,700 हेक्टेयर क्षेत्र में केसर की खेती हो रही और इससे लगभग 32,000 किसान जुड़े हैं। जम्मू और कश्मीर के मुख्यतः चार जिलों- पुलवामा, बडगाम, श्रीनगर और किश्तवाड़ में केसर की खेती होती है। पुलवामा जिले का पंपोर सबसे अच्छी गुणवत्ता वाला केसर उगाने के लिए जाना जाता है। केसर का उपयोग भोजन, इत्र, रंगों और दवाओं आदि के लिए किया जाता है।

जम्मू-कश्मीर में पैदावार भी बढ़ी

जम्मू-कश्मीर में केसर की पैदावार भी पिछले सालों में काफी बढ़ी है। इसमें राष्ट्रीय केसर मिशन महती भूमिका है। पहले प्रति हेक्टेयर लगभग 1.8 किलोग्राम केसर ही निकलता था जो अब बढ़कर लगभग 4.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पहुंच गया है। कश्मीर घाटी के केसर और सूखे मेवे घाटी में उत्पादित केसर का केवल 10% घरेलू बाजार में उपयोग किया जाता है।

केसर की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

केसर की खेती का फसल चक्र 3 से 4 महीने का होता है और यह 15-20 सेमी की ऊंचाई तक पहुंच सकता है। केसर की खेती के लिए अच्छी-खासी धूप की जरूरत होती है। ठंड और गीले मौसम में इसकी फसलों को नुकसान पहुंच सकता है। यही वजह है कि गर्म मौसम वाली जगह इसकी खेती सबसे सबसे बेहतर मानी जाती है। इसकी खेती के लिए अम्लीय से तटस्थ, बजरी, दोमट और रेतीली मिट्टी का उपयोग किया जाता है। केसर की खेती के लिए मिट्टी का पीएच स्तर 6 से 8 होना चाहिए।

केसर की इंडोर फार्मिंग

केसर की इंडोर फार्मिंग के लिए एक अंधेरे बंद कमरे की जरूरत होती है। इस कमरे में रोशनी बिल्कुल भी नहीं पहुंचनी चाहिए। फार्मिंग के लिए केसर को लगभग 3 माह तक बंद अंधेरे कमरे में रखा जाता है। इसके बाद केसर खेती के लिए तैयार हो जाती है। इसके लिए 20 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है।

केसर की इंडोर फार्मिंग के लाभ

इंडोर केसर की खेती एक छोटे से कमरे में की जा सकती है। इससे किसानों को हर दिन खेत की रखवाली की आवश्यकता नहीं होती, इससे समय और श्रम दोनों बचते हैं। इस तरह की खेती में जंगली जानवरों और कीटों का भी कोई खतरा नहीं रहता है। केसर की इंडोर फार्मिंग का एक बहुत बड़ा लाभ यह भी है कि इसे सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती। बस केसर का कार्म निकालकर उसे बांसिया लोहे के बने हुए प्लेयर में रखना होता है। इंडोर फार्मिंग का एक अन्य लाभ यह है कि इससे केसर की फसल को मौसम की मार से बचाया जा सकता है।

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