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दिवाली पर पीएम मोदी के ‘वोकल फॉर लोकल’ की अपील का असर, मिट्टी के दिए और मूर्ति की बढ़ी मांग से कुम्हारों की हुई कमाई, 400 साल पुरानी पद्धति हुई पुनर्जीवित

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत पिछले साल ‘वोकल फॉर लोकल’ का नारा दिया था। हाल ही में वाराणसी में प्रधानमंत्री मोदी ने इस दिवाली में अपने स्थानीय कामगारों का ख्याल रखने की अपील की थी। उन्होंने कहा था कि जितना अधिक ‘वोकल फॉर लोकल’ होंगे, उतना ही हमारे परिवारों में खुशहाली आएगी। उन्होंने लोगों से धनतेरस से दीवाली तक स्थानीय उत्पादों की खरीदारी का आह्वान किया था। इसके साथ यह भी कहा था कि लोकल का मतलब सिर्फ मिट्टी के दीये नहीं हैं। अब दिवाली के पावन अवसर पर इस अपील का खासा असर देखने को मिल रहा है। सोशल मीडिया पर भी यूजर्स ‘वोकल फॉर लोकल’ हैशटैग के साथ खूब ट्वीट कर रहे हैं और प्रधानमंत्री मोदी की मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोगों के द्वारा दीपावली पर मिट्टी के दीए को खरीदने के लिए चलाए गए जागरूकता अभियान का असर दिखाई देने लगा है। इस बार मिट्टी के दीयों की जमकर खरीदारी हो रही है। 

इसी तरह धनतेरस के दिन बाजारों में उपलब्ध विभिन्न आइटम व डिजाइनों को खरीदने में खासा उत्साह देखा गया। एक तो त्योहार उस पर लुभावने आफर लोगों को बाजार की ओर खींच रहे हैं। मिट्टी के दिए, मिट्टी के भगवान गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति, स्टीकर, झालरें, डिजाइनर दिए आदि खरीदने के लिए भी खूब भीड़ उमड़ी। फड़-पटरी पर उमड़ी भीड़ के कारण शहर में कई जगह जाम भी लगता रहा। मिट्टी के दिए बेचने वालों ने बताया कि लंबे समय बाद इस बार मिट्टी के दीयों के खरीदार अधिक संख्या में देखने को मिल रहे हैं। पारंपरिक दिए और मूर्ति की मांग बढ़ने से कुम्हारों की भी जमकर कमाई हुई है।

मिट्टी के ईको-फ्रेंडली पटाखे

गुजरात के वडोदरा में मिट्टी से पटाखे बनाने वाली 400 साल पुरानी पद्धति को फिर से पुनर्जीवित किया गया है। एक छोटी सी पहल करके इस पारंपारिक पद्धति को अपनाते हुए मिट्टी के ईको-फ्रेंडली पटाखे बनाए जा रहे हैं। ये पर्यावरण के अनुकूल हैं। उपयोग के बाद घुल जाते हैं। साथ ही, ये बच्चों के लिए सुरक्षित हैं। कोई भी इन पटाखों का उपयोग कर सकता है। चार सदियों पुरानी इस कला को पुनर्जीवित करने में प्रमुख परिवार फाउंडेशन नाम के एक एनजीओ ने मदद की है। प्रधानमंत्री मोदी के ‘वोकल फॉर लोकल’ के आदर्श वाक्य ने एनजीओ को इस सदियों पुरानी कला को फिर से जीवंत करने के लिए प्रेरित किया। यह न केवल इस कला रूप को नई पीढ़ी के सामने रखेगा, बल्कि कुछ जरूरतमंद लोगों को रोजगार भी प्रदान करेगा।

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