कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान महाराष्ट्र में वीर सपूत विनायक दामोदर सावरकर पर देश के साथ धोखा देने का आरोप लगाया था। अब सावरकर के पोते ने राहुल गांधी के नाना पंडित जवाहरलाल नेहरू पर सवाल खड़े किए हैं। साथ ही सावरकर के पोते रंजीत सावरकर ने नेहरू पर गंभीर आरोप लगते हुए ‘भारत विभाजन’ का जिम्मेदार भी ठहराया है। उन्होंने कहा कि नेहरू ने भारत को धोखा दिया और 1960 तक ब्रिटिश एजेंट के रूप में काम किया और आजादी के बाद भी नेहरू 12 साल तक अंग्रेजों को गुप्त सूचनाएं भेजते रहे। उन्होंने 9 मई से 12 मई 1947 तक एडविना माउंटबेटन के साथ शिमला में बिताया जहां उन्हें हनीट्रैप किया गया। एडविना ने नेहरू को भारत के विभाजन के लिए राजी कर लिया, जिसके कारण लाखों लोगों की मौत हुई, 1 लाख महिलाओं का बलात्कार हुआ और 1 करोड़ लोगों का विस्थापन हुआ। रंजीत सावरकर ने मोदी सरकार से की गुजारिश की है कि इस मामले की जांच करने के लिए नेहरू और एडविना के बीच लिखे गए सभी पत्रों को प्राप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार से बात करे। रंजीत सावरकर ने राहुल गांधी से इन आरोपों पर जवाब देने को भी कहा है।
A Maharashtrian gentleman wants #RahulGandhi to stay in this cellular Jail room for just one day with same dress, food, no toilet, steel shackles. #VeerSavarkar lived in this condition for 11 years. His great-grandfather had to apologise to run away Nabha jail within days. Watch pic.twitter.com/PTNeanhoa6
— Ratan Sharda ?? रतन शारदा (@RatanSharda55) November 19, 2022
राहुल गांधी के वीर सावरकर पर दिए बयान के बाद महाराष्ट्र के एक सज्जन चाहते हैं कि राहुल गांधी इस सेलुलर जेल के कमरे में सिर्फ एक दिन के लिए एक ही पोशाक, भोजन, बिना शौचालय, स्टील की बेड़ियों के साथ रहें। वीर सावरकर 11 साल तक इसी अवस्था में रहे। उनके परदादा नेहरू को कुछ ही दिनों के भीतर नाभा जेल से भागने के लिए माफी मांगनी पड़ी।
Ranjit Savarkar (Grandson of Veer Savarkar) made sensational accusations on Nehru-
1. Nehru betrayed India, worked as British agent till 1960
2. He spent 9th May – 12th May 1947 at Shimla with Edwina Mountbatten where she honey trapped him
— ST⭐R Boy (@Starboy2079) November 23, 2022
सावरकर के पोते ने नेहरू को बताया देशद्रोही
सावरकर के पोते रंजीत सावरकर ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन की पत्नी एंडविना और पंडित नेहरू के बीच हुए पत्रचारों को अंग्रेजों से वापस मांगा जाए और उसे सार्वजनिक किया जाए। उन्होंने कहा, “इससे पता चलेगा कि जिसे देश चाचा नेहरू कहता है, उसने देश के साथ कैसे धोखा किया।” यही नहीं स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू पर आरोपों की झड़ी लगाते हुए रंजीत सावरकर ने कहा कि पंडित नेहरू 9 मई से 12 मई 1947 के बीच अकेले हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला गए थे वे वहां चार दिनों तक रहे। रंजीत ने आगे कहा, “उस दौरान एडविना के ब्रिटिश सरकार को लिखे पत्रों में कहा गया था कि मैंने पंडित नेहरू को अपना अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है।” व्यक्तिगत संबंधों को लेकर एडविना के पत्र में उल्लेखित बातों का जिक्र करते हुए रंजीत सावरकर ने कहा, पंडित नेहरू बहुत व्यस्त हैं। इसलिए वे ‘नर्वस ब्रेकडाउन’ के करीब पहुंच रहे हैं। उन्होंने मेरे साथ चार दिन बिताए। हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए हैं और यह दोस्ती लंबे समय तक चलेगी।” रंजीत सावरकर ने यह कहा कि एडविना ने अपने पत्र में लिखा था कि ‘पंडित नेहरू मेरे काबू में आ गए हैं’।
हम जिन्हें चाचा नेहरू कह रहे थे, वे एडविना को लव लेटर लिख रहे थे
वीर सावरकर के पोते रणजीत सावरकर ने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने हनी ट्रैप में फंसकर जल्दबाजी में भारत के विभाजन का फैसला किया था, जिससे 20 लाख से अधिक हिंदुओं और सिखों का कत्ल हुआ। मीडिया से वार्तालाप में रणजीत सावरकर ने कहा, “एक महिला के लिए पंडित नेहरू ने भारत का विभाजन किया था। नेहरू को हनीट्रैप में फंसाकर भारत का विभाजन किया गया। 12 वर्षों तक नेहरू भारत के बारे में गोपनीय जानकारियां ब्रिटिश सरकार को देते रहे। हम उन्हें चाचा नेहरू कह रहे थे, वे एडविना को लव लेटर लिख रहे थे।”
Why not simply say
Mountbatten used his wife to HONEYTRAP Nehruhttps://t.co/pRmqF2ozVL
— anirudh rakshit (@anirudh_rakshit) September 28, 2022
नेहरू और एडविना स्वीमिंग पूल में एक साथ देखे गए
भारत आने के बाद लॉर्ड माउंटबेटन ने जब गवर्नमेंट हाउस में पहली गार्डेन पार्टी दी तो लोग ये देख कर दंग रह गए कि जवाहरलाल नेहरू एडविना के कदमों पर ज़मीन पर बैठ कर डांस शो का आनंद उठा रहे हैं। हालांकि कुर्सियों की कमी पड़ जाने की वजह से भारत के भावी प्रधानमंत्री ने ऐसा किया था, लेकिन लोगों की नज़र से ये छिप नहीं सका कि आखिर नेहरू एडविना के ही पैरों के पास क्यों बैठे। पार्टी के तुरंत बाद एडविना अपनी बेटी पामेला के साथ नेहरू के घर गईं थीं। दिलचस्प बात ये थी कि इस बार लॉर्ड माउंटबेटन उनके साथ नहीं थे। लॉर्ड वेवेल के जमाने से ही नेहरू गवर्नमेंट हाउस के स्वीमिंग पूल में तैरने जाया करते थे, लेकिन तब कोई इस बारे में बात नहीं करता था। लेकिन जब एडविना माउंटबेटन भी इस स्वीमिंग पूल में नेहरू के साथ तैरती हुई देखी जाने लगीं तो लोगों ने इन दोनों के संबंधों के बारे में बातें करनी शुरू कर दी और असलियत सामने आ गई।
"नेहरूंनी एका बाईसाठी भारताची फाळणी मान्य केली आणि १२ वर्षे भारताची गुप्त माहिती ब्रिटिशांना दिली. नेहरू-एडवीना पत्रव्यवहार ब्रिटिशांकडे मागावा आणि ते सर्व जाहीर करावं. त्यानंतरच जनतेला कळेल की, ज्यांना आपण चाच नेहरू म्हणतो त्या नेत्याने देशाची कशी फसवणूक केली.”
रणजित सावरकर..? pic.twitter.com/1Oflw1KPIz— राऊ.. (@AAKspeaks) November 18, 2022
नेहरू लेडी माउंटबेटन से ज्यादा प्रभावित थेः अबुल कलाम आज़ाद
कांग्रेस नेता अबुल कलाम आज़ाद की आंखों से भी नेहरू-एडबिना के संबंध छिप नहीं सके थे और उन्होंने अपनी किताब ‘इंडिया विन्स फ़्रीडम’ में लिखा, “नेहरू माउंटबेटन से तो मुतासिर हैं ही, लेकिन उससे कहीं ज़्यादा वो लेडी माउंटबेटन से मुतासिर हैं।” वहीं सलमान रुश्दी के चाचा शाहिद हमीद ने 31 मार्च, 1947 को अपनी डायरी में लिखा था कि माउंटबेटन दंपत्ति के भारत पहुंचने के 10 दिनों के भीतर ही एडविना और नेहरू की नज़दीकियों पर भौंहें उठना शुरू हो गई हैं। रेडक्रॉस के एक समारोह में खींची गई तस्वीरों से भी यह साफ हुआ कि किस तरह एडवीना नेहरू को प्यार से निहार रही हैं।
एडविना की बेटी पामेला हिक्स भी नेहरू से खास प्रभावित थीं और उन्होंने यह बात अपनी किताब‘डॉटर ऑफ एम्पायर’में बताई है। उन्होंने बीबीसी से बात करते हुए बताया था कि उनकी माँ एडविना और नेहरू एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे।
— मनोज कुमार#३ह (@manojak82118538) November 14, 2022
एडविना की बेटी पामेला हिक्स भी नेहरू की मुरीद
नेहरू की आकर्षक शख़्सियत का असर न सिर्फ़ माउंटबेटन दंपत्ति पर पड़ा, बल्कि उनकी 17 साल की बेटी पामेला हिक्स भी उनसे बहुत प्रभावित हुई थीं। अपनी किताब ‘डॉटर ऑफ़ एम्पायर’ में पामेला लिखती हैं, “जब नेहरू ने पहली बार मुझसे हाथ मिलाया था मैं तभी से उनकी आवाज़, कपड़े पहनने के तरीके, सफ़ेद शेरवानी और उसके बटनहोल में लगे लाल गुलाब और उनकी गर्मजोशी की मुरीद हो गई थी।” पामेला ने कहा, “मेरी माँ और पंडितजी एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे। पुराना मुहावरा ‘सोलमेट’ उन पर पूरी तरह लागू होता था। मेरे पिता बहुर्मुखी थे, जबकि मेरी मां अपने-आप में ही रहना पसंद करती थीं।””वो बहुत लंबे समय तक विवाहित रहे थे और एक दूसरे के बहुत नज़दीक साथी भी थे लेकिन इसके बावजूद मेरी मां अकेलेपन की शिकार थीं। तभी उनकी मुलाक़ात एक ऐसे शख़्स से हुई जो संवेदनशील, आकर्षक, सुसंस्कृत और बेहद मनमोहक था। शायद यही वजह थी कि वो उनके प्यार में डूब गई।”
भारत का पहला 'लिव इन रिलेशनशिप' नेहरू एडविना का था।
बंटवारे में सब कुछ गँवाकर लोग शरणार्थी कैम्प में पड़े है।
चिचा मुआयना करने आए – एडविना का हाथ थाम करके।
Unique Love in Relationship ? pic.twitter.com/F1lorSVSXz— चीकू (@poiuyt23451) November 22, 2022
नेहरू को एडविना का हाथ पकड़ने से परहेज़ नहीं
भारत में राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद लोगों की नज़र एडविना और नेहरू पर थी। नेहरू के जीवनीकार स्टेनली वॉलपर्ट अपनी किताब ‘नेहरू-अ ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ में लिखते हैं, “मैंने एक बार नेहरू और एडविना को ललित कला अकादमी के उद्घाटन समारोह में देखा था। मुझे ये देख कर आश्चर्य हुआ था कि नेहरू को सबके सामने एडविना को छूने, उनका हाथ पकड़ने और उनके कान में फुसफुसाने से कोई परहेज़ नहीं था।” “माउंटबेटन के नाती लॉर्ड रेम्सी ने एक बार मुझे बताया था कि उन दोनों के बीच महज़ अच्छी दोस्ती थी, इससे ज्यादा कुछ नहीं। लेकिन खुद लॉर्ड माउंटबेटन एडविना को लिखी नेहरू की चिट्ठियों को प्रेम पत्र कहा करते थे। उनसे ज़्यादा किसी को अंदाज़ा नहीं था कि एडविना किस हद तक अपने ‘जवाहार’ को चाहती थीं।”
रूसी मोदी ने देखा था नेहरू को एडविना को अपनी बाहों में भरते
नेहरू की एक और जीवनी लिखने वाले एमजे अकबर बताते हैं कि इस बारे में उन्हें सबसे सशक्त प्रमाण टाटा स्टील के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रह चुके रूसी मोदी ने दिया था। अकबर अपनी किताब ‘नेहरू-द मेकिंग ऑफ़ इंडिया’ में लिखते हैं, “1949 से 1952 के बीच रूसी के पिता सर होमी मोदी उत्तर प्रदेश के राज्यपाल हुआ करते थे। नेहरू नैनीताल आए हुए थे और राज्यपाल मोदी के साथ ठहरे हुए थे। जब रात के 8 बजे तो सर मोदी ने अपने बेटे से कहा कि वो नेहरू के शयन कक्ष में जा कर उन्हें बताएं कि मेज़ पर खाना लग चुका है और सबको आपका इंतज़ार है।” जब रूसी मोदी ने नेहरू के शयनकक्ष का दरवाज़ा खोला तो उन्होंने देखा कि नेहरू ने एडविना को अपनी बाहों में भरा हुआ था। नेहरू की आंखें मोदी से मिलीं और उन्होंने अजीब सा मुंह बनाया। मोदी ने झटपट दरवाज़ा बंद किया और बाहर आ गए। थोड़ी देर बाद पहले नेहरू खाने की मेज़ पर पहुंचे और उनके पीछे-पीछे एडविना भी वहां पहुंच गईं।”
नेहरू लंदन में हवाईअड्डे से होटल जाने के बजाए एडविना के घर पहुंच गए
नेहरू और एडविना की मुलाकातों का सिलसिला भारत की आजादी के बाद भी जारी रहा। नेहरू जब भी राष्ट्रमंडल शिखर सम्मेलन में भाग लेने लंदन जाते, एडविना के साथ कुछ दिन ज़रूर बिताते। उन दिनों लंदन में भारतीय उच्चायोग में काम करने वाले खुशवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा ‘ट्रूथ, लव एंड लिटिल मेलिस’ में लिखा है, “नेहरू के विमान ने जब हीथ्रो के रनवे को छुआ तो काफ़ी रात हो चुकी थी। अगली सुबह जब मैं दफ़्तर पहुंचा तो मेरी मेज़ पर कृष्ण मेनन का नोट रखा हुआ था कि मैं उनसे तुरंत मिलूं।” “मेरी मेज़ पर ही ‘द डेली हैरल्ड अख़बार’ पड़ा हुआ था जिसके पहले पन्ने पर ही नेहरू और लेडी माउंटबेटन की तस्वीर छपी थी, जिसमें वो अपना नाइट गाउन पहने हुए नेहरू के लिए अपने घर का दरवाज़ा खोल रही थीं। उसके नीचे कैप्शन था, ‘लेडी माउंटबेटन्स मिड नाइट विज़ीटर।” ख़बर में ये भी लिखा गया था कि लॉर्ड माउंटबेटन इस समय लंदन में नहीं हैं। जब मैं मेनन के पास पहुंचा तो वो मुझ पर दहाड़े, ‘तुमने आज का हैरल्ड देखा? प्रधानमंत्री तुमसे बहुत नाराज़ हैं।’ मैंने कहा, ‘मेरा इससे कोई लेना-देना नहीं। मुझे क्या पता था कि पंडितजी हवाईअड्डे से अपने होटल जाने के बजाए माउंटबेटन के घर जा पहुंचेंगे।”
एडविना के बिस्तर के आसपास मिले नेहरू के प्रेम पत्र
1960 में जब एडविना माउंटबेटन का बोर्नियो में निधन हुआ तो उनके बिस्तर के आसपास नेहरू के कई प्रेम पत्र पाए गए। बाद में ये सारे पत्र लॉर्ड माउंटबेटन के पास पहुंचाए गए। पामेला हिक्स बताती हैं, “अपनी वसीयत में भी मेरी माँ ने नेहरू के लिखे सारे ख़त मेरे पिता के लिए छोड़े थे. एक पूरा सूटकेस इन ख़तों से लबालब भरा हुआ था। मैं उन दिनों ‘ब्रॉडलैंड्स’ में अपने पिता के साथ रह रही थी।”
नेहरू-एडविना के पत्रों और माउंटबेटन की डायरी छिपाने पर ब्रिटिश सरकार करती है 6 लाख पाउंड से अधिक खर्च
एडविना माउंटबेटन और उनके पति लॉर्ड माउंटबेटन से जुड़े दस्तावेजों और पत्रों को गुप्त रखने के लिए ब्रिटेन सरकार काफी पैसा खर्च कर रही है। WION की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि माउंटबेटन और उनकी पत्नी एडविना के इन पत्रों और डायरियों को (खास कर भारत के विभाजन के आसपास) को यूके सरकार गुप्त रखना चाहती है। उसे डर है कि इसे सार्वजनिक करने से भारत विभाजन और एडविना के रिश्तों के राज सामने आ सकते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि एंड्रू लोनी नाम के एक लेखक ने उन दस्तावेजों को देखने की मांग की है, मगर ब्रिटिश सरकार लेखक को उन तक पहुंचने से रोकना चाहती है। यूके सरकार को डर है कि यदि वे दस्तावेज सार्वजनिक किए गए तो वे भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन के बीच के संबंधों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
नेहरू की इन महिलाओं से भी थी नजदीकियां
श्रृद्धा माताः श्रृद्धा माता आकर्षक काया वाली सुंदर महिला थीं। वो संस्कृत में विद्वान थीं। युवा संन्यासिन श्रृद्धा माता बनारस रहा करती थीं। बाद में वो दिल्ली शिफ्ट हो गईं। एक बार उन्होंने नेहरू से मिलने का मन बनाया। लेकिन पूर्व पीएम ने उनमें दिलचस्पी नहीं दिखाते हुए मिलने से मना कर दिया। फिर जब एक बार उनकी मुलाकात नेहरू से हुई तो मिलने का ये सिलसिला जारी रहा। वह रात में सीधे प्रधानमंत्री हाउस आ जाया करती थीं जब, नेहरू अपना काम निपटा चुके होते थे। बाद में वह गायब हो गईं और बेंगलुरु से प्रधानमंत्री हाउस में उनके पत्रों का एक बंडल भेजा गया, जो नेहरू ने उन्हें लिखे थे, साथ में एक डॉक्टर का पत्र आया कि ये पत्र उन्हें उस महिला से मिले हैं, जो यहां चर्च अस्पताल में एक बच्चे को जन्म देने आई थी। कहा जाता है कि उनका नेहरू पर प्रभाव भी दिखने लगा था। बाद में कुछ समय गायब रहने के बाद श्रृद्धा माता उत्तर भारत लौटीं और जयपुर में रहने लगीं। वहां सवाई मानसिंह ने उन्हें आलीशान किला दिया। श्रृद्धा माता का जिक्र बाद में खुशवंत सिंह ने भी अपनी किताब में किया। वह उनसे जब मिले तो श्रृद्धा माता ने उनसे नेहरू के करीबी का दावा किया।
पद्मजा नायडूः पद्मजा सरोजिनी नायडू की बड़ी बेटी थीं। नेहरू के निजी सचिव रहे मथाई लिखते हैं, 1946 जब मैं उनसे इलाहाबाद में मिला, तब वह नेहरू के घर को संभालने में लगी हुईं थीं। फिर दिल्ली आकर पद्मजा यही काम करने लगीं। वह हमेशा नेहरू के बगल के कमरे में रहना चाहती थीं। इंदिरा को उनका आना अच्छा नहीं लगता था। न ही उनका वहां लंबा ठहरना। इसी दौरान नेहरू की लेडी माउंटबेटन से भी नजदीकियां रहीं। बात 1947 के जाड़ों की है जब नेहरू को लखनऊ आना था। तब सरोजिनी नायडू उत्तर प्रदेश की राज्यपाल थीं। अचानक ये खबर जंगल में आग की तरह फ़ैल गई कि नेहरूजी पद्मजा को शादी के लिए प्रोपोज करेंगे। नेहरू लखनऊ तो गए लेकिन साथ में लेडी माउंटबेटन थीं। ये बात पद्मजा को नागवार गुजरी। एक बार जब उन्होंने नेहरू के बेडरूम में एडविना के दो फोटोग्राफ देखे तो काफी उदास हो गईं और तुरंत वहां अपनी एक छोटी सी फोटो लगा दी। 1948 में पद्मजा हैदराबाद से सांसद चुनी गईं। दिल्ली आने पर प्रधानमंत्री हाउस में ठहरीं, नेहरू के बगल के कमरे में। मथाई ने लिखा है कि वह नेहरू से शादी करना चाहती थीं लेकिन जब उन्हें लगा कि नेहरू के जीवन में केवल वही नहीं बल्कि कई स्त्रियां हैं। तो वह टूट से गईं। कहा जाता है कि इंदिरा के विरोध के चलते नेहरू ने उनसे शादी नहीं की।
मृदुला साराभाईः मृदुला साराभाई नेहरू के बहुत करीब थीं। हालांकि 1946 तक नेहरू उनमें दिलचस्पी खो चुके थे। वह कांग्रेस की समर्पित कार्यकर्ता थीं। मृदुला गुजरात के प्रसिद्ध उद्योगपति और धनाढ्य साराभाई परिवार की बेटी थीं। एम ओ मथाई ने अपनी किताब रिमिनिसेंस ऑफ द नेहरू एज के हवाले से लिखा है कि मृदुला ने कश्मीर में शेख अब्दुल्ला के साथ काम किया। देशविरोधी गतिविधियों के लिए मृदुला को जेल में भी डाला गया।
UNSC पर नेहरू ने की इतिहास की सबसे बड़ी ग़लती, अमेरिका ने 1950 में दिया था ऑफर
1950 के दशक जैसा सुनहरा मौका भारत और हिंदी के लिए दोबारा शायद ही आए। सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट हिंदी को अपने आप संयुक्त राष्ट्र की भाषा बना देती और पूरी दुनिया हिंदी में भी रुचि लेने लगती। लेकिन प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की गलती की वजह से यह नहीं हो सका। कांग्रेस नेता और पूर्व संयुक्त राष्ट्र के अंडर-सेक्रेटरी जनरल शशि थरूर ने 2004 में एक इंटरव्यू में कहा था कि नेहरू ने 1953 में UNSC में स्थायी सीट का ‘अमेरिका का भारत को दिया ऑफर खारिज’ कर दिया था और कहा था कि इसकी बजाय चीन को ये सीट देनी चाहिए। अपनी किताब, ‘नेहरू – द इनवेंशन ऑफ इंडिया’ में भी थरूर ने लिखा है कि नेहरू ने सुझाव दिया था कि ये सीट, जो तब तक ताइवान के पास थी, बीजिंग को ऑफर की जानी चाहिए। नेहरू ने कथित तौर पर कहा था कि “सीट ताइवान द्वारा खराब विश्वसनीयता से ली गई थी।” इतिहासकार एंटन हार्डर की मार्च 2015 की ‘Not as the Cost of China’ नाम से रिपोर्ट से पता चलता है कि अमेरिका ने 1950 की शुरुआत में भारत पर स्थायी सीट के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया था, जिससे वो चीन की जगह ले ले।
नेहरू ने भारत के बजाए चीन को दिला दी थी UN की स्थायी सीट
इतिहासकार एजी नूरानी ने अमेरिका और रूस के UNSC ऑफर पर नेहरू के एक 1955 नोट का भी हवाला दिया था। इस नोट में, नेहरू ने स्वीकार किया था कि अमेरिका ने “अनौपचारिक रूप से” सुझाव दिए थे, लेकिन भारत उस समय “सुरक्षा परिषद में घुसने के लिए उत्सुक” नहीं था। नोट कुछ इस प्रकार है- “अनौपचारिक तौर पर, अमेरिका की तरफ से सुझाव दिए गए कि चीन को संयुक्त राष्ट्र में लिया जाना चाहिए, लेकिन सुरक्षा परिषद में नहीं, और भारत सुरक्षा परिषद में उसकी जगह ले ले। हम निश्चित रूप से इसे स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि इसका मतलब है चीन से तनाव पैदा होना और ये चीन जैसे महान देश का सुरक्षा परिषद में नहीं होना गलत होगा। इसलिए, हमने ये सुझाव देने वालों को स्पष्ट कर दिया है कि हम इस सुझाव से सहमत नहीं हो सकते। हमने इससे भी आगे बढ़कर कहा है कि भारत इस स्टेज पर सुरक्षा परिषद में प्रवेश करने के लिए उत्सुक नहीं है, भले ही एक महान देश के रूप में वो वहां होना चाहिए। पहला कदम जो होना चाहिए वो ये कि चीन अपनी सही जगह ले और फिर भारत के सवाल पर अलग से विचार किया जा सकता है।”
ध्यान से देखो कांग्रेस के टुकड़े पर पलने वाले नेहरू के चमचों
नेहरू को रोल्स रोयल माऊंटबेटन नें भेंट में दी थी जिसमें बैठकर नेहरू ओर एडवीना दोनों घूमते थे pic.twitter.com/rGhxsSi8HB— Chaudhari Dhiren #प्रशासक समिति 100℅ Follow Back (@ChaudhariDhir13) November 20, 2022