देश की इस पुरानी राजनीतिक पार्टी में यूं तो असंतोष और बगावत का सिलसिला काफी पुराना है, लेकिन 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से कांग्रेस नेताओं का पार्टी छोड़ने का सिलसिला बहुत तेज हुआ है। इसका कारण कांग्रेस पर गांधी परिवार की पकड़ का कमजोर होना, गांधी परिवार के समझ से परे फैसले और वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी और अनादर करना है। नरेन्द्र मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत का विजन देने और प्रधानमंत्री बनने के बाद न सिर्फ बीजेपी का विस्तार हुआ है, बल्कि कांग्रेस के कई बड़े नेता हाथ का साथ छोड़कर भाजपा के साथ जुड़ रहे हैं। हालात इतने बदतर हैं कि पिछले आठ साल में आठ पूर्व मुख्यमंत्री ही कांग्रेस से किनारा कर चुके हैं। आलाकमान ने राजस्थान में भी ऐसे ही हालातों की जमीन तो तैयार कर ही दी है।
पंजाब में अमरिंदर को हटाकर चन्नी को सीएम बनाने के राहुल के फैसले को जनता ने नकारा
खास बात यह है कि इनमें से अधिकांश मुख्यमंत्रियों ने तेजी से भारत के राज्यों में सत्तासीन हो रही भाजपा का ही दामन थामना उचित समझा। पिछले साल अस्टूबर में लंबे समय तक पंजाब के मुख्यमंत्री रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर अपनी पार्टी बनाई थी। हाल ही में उन्होंने अपनी इस पार्टी का बीजेपी में विलय कर दिया है। पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का चन्नी को सीएम बनाने का फैसला किसी के गले नहीं उतरा। पंजाब की जनता ने भी इसे पूरी तरह नकार दिया और कांग्रेस को ऐतिहासिक हार का स्वाद चखाया। राहुल-प्रियंका के फैसले और सिद्धू की मनमानी से पंजाब में कांग्रेस की हैसियत जीरो की हो गई है।राहुल गांधी बेहद अपरिपक्व नेता और बचकाना व्यवहार करने वाले व्यक्ति-आजाद
कैप्टन अमरिंदर के अलावा पिछले महीने ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस से किनारा कर अपनी नई पार्टी का गठन किया। आजाद कांग्रेस के उस ग्रुप-23 का हिस्सा रहे हैं, जो कांग्रेस आलाकमान पर सवाल उठाता रहा है। गुलाम नबी ने इस्तीफे के दौरान यह भी आरोप लगाया कि पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी बेहद अपरिपक्व नेता हैं और बहुत ही बचकाने व्यवहार करते हैं। आजाद ने आरोप लगाया कि अब सोनिया गांधी नाममात्र की ही नेता रह गई हैं, क्योंकि पार्टी के सारे फैसले राहुल गांधी के ‘सिक्योरिटी गार्ड और निजी सहायक’ करते हैं। आजाद से पहले जी-23 के कुछ और वरिष्ठ नेता भी कांग्रेस को अलविदा कह गए थे।कर्नाटक के कृष्णा बोले-राहुल की पार्ट टाइम राजनीति से कांग्रेस की वापसी नहीं होगी
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एसएम कृष्णा ने कांग्रेस के छोड़ने के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर जमकर सियासी तीर दागे हैं। भाजपा में शामिल हुए कृष्णा ने कहा है कि राहुल की पार्ट टाइम राजनीति की राह से कांग्रेस की सियासी वापसी नहीं होगी। राहुल की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस को अपना राजनीतिक स्थान फिर से हासिल करना है तो फिर उसे गांधी परिवार के वंशवादी नेतृत्व का मोह छोड़ना होगा। कृष्णा ने राहुल गांधी के बीच-बीच में सरकार पर हमले की रणनीति की आलोचना करते हुए कहा कि हिट एंड रन की राजनीति से वे कांग्रेस का भला नहीं कर सकते।महाराष्ट्र में नारायण राणे से किया वादा सोनिया गांधी ने नहीं निभाया, हाथ का साथ छोड़ दिया
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे 2017 में ही तमाम अटकलों को सही साबित करते हुए कांग्रेस से नाता तोड़ चुके हैं। उन्होंने पार्टी छोड़ने के साथ विधान परिषद की सदस्यता से भी इस्तीफा देते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस आलाकमान ने उनके किया वादा नहीं निभाया। कांग्रेस को अलविदा कहने का ऐलान करते हुए राणे ने कहा था, ‘मैंने 12 साल पहले जब शिव सेना छोड़कर कांग्रेस का दामन थामा था, तब सोनिया गांधी और उनके राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ने मुझे मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था। मैडम (सोनिया गांधी) ने ते मुझसे दो बार कहा था कि मुझे सीएम बनाया जाएगा, लेकिन वे दोनों इससे मुकर गए।’ राणे ने कहा कि कांग्रेस के कर्ता-धर्ता पार्टी को आगे ले जाने के इच्छुक नहीं हैं। इससे पहले वे शिव सेना में थे और 1999 में छह महीने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे।
गोवा कांग्रेस अपने संस्थापकों के आदर्श और सिद्धांत के विपरीत कर रही काम-फ्लेरियो
गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फलेरियो ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को दिए अपने त्यागपत्र में लिखा कि “वर्तमान स्थिति को देखते हुए पार्टी का कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा है।” मैंने पार्टी को जोड़ने का पूरा प्रयास किया, लेकिन हाईकमान की नजरअंदाजी हर बार भारी पड़ी है। हालात यह हैं कि कांग्रेस अब अपने संस्थापकों के हर आदर्श और सिद्धांत के विपरीत काम कर रही है। गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री की तरह गुजरात के मुख्यमंत्री रहे शंकर सिंह बाघेलाल 2017 में कांग्रेस का साथ छोड़कर बाहर निकल गए। इसके अलावा एक दिन के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे जगदम्बिका पाल, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे विजय बहुगुणा भी कांग्रेस का दामन छोड़ चुके हैं।
दरअसल, कांग्रेस आलाकमान तिकड़ी की मनमानी के चलते पूर्व मुख्यमंत्री ही नहीं, कई और कद्दावर नेता भी कांग्रेस को अलविदा कह चुके हैं और यह सिलसिला जारी है। पार्टी का जहाज सियासत के समंदर में हिचकोले खा रहा है। कांग्रेस का कुनबा लगातार बिखरता जा रहा है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कार्यशैली से नाराज होकर कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं की लंबी कतार है। कांग्रेस से एक के बाद एक कई युवा नेताओं के पार्टी छोड़ने या आलाकमान से नाराजगी से यह सवाल उठना जायज है कि क्या वाकई बिना जनाधार वाले नेता तानाशाही कर रहे हैं।आइए डालते हैं एक नजर…
घुटन-उपेक्षा महसूस कर रहे कई नेताओं ने छोड़ी कांग्रेस
कांग्रेस पार्टी के अंदर युवा नेता घुटन और उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि पार्टी उनकी योग्यता और क्षमता के मुताबिक भूमिका नहीं दे रही है। हाइकमान की हिटलरशाही और मनमर्जियों से पार्टी में सियासी घमासान मचा हुआ है। इसलिए नेता अब अन्य विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। इसी का नतीजा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद कैप्टन अमरिंदर सिंह और आरपीएन सिंह ने पार्टी को अलविदा कह दिया। राहुल गांधी के बेहद करीबियों में शुमार किए जाने वाले पांच युवा नेताओं में से तीन अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। जब राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे तब पांच नेताओं का अक्सर जिक्र होता था। ये पांच नेता हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा। हालांकि भले ही सचिन पायलट और मिलिंद देवड़ा अभी कांग्रेस के साथ दिख रहे हैं, लेकिन कुछ चीजें बड़े घटनाक्रम की तरफ भी इशारा करती हैं। महाराष्ट्र में मिलिंद देवड़ा बीते कुछ साल से लगातार कांग्रेस की मौजूदा स्थिति पर सवाल उठाते हुए चिंता जाहिर करते रहे हैं और कुछ मौकों पर तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ भी कर चुके हैं।
कांग्रेस में सच बोलने वालों को किया जाता है परेशान
कांग्रेस में आलाकमान के प्रति निष्ठा रखने वाले नेताओं को अहम जिम्मेदारियां मिलती हैं, जबकि जमीन से जुड़े नेताओं को दरकिनार किया जाता है। जो भी नेता पार्टी की नकारात्मक राजनीति के खिलाफ कुछ बोलने की हिम्मत करता है, उसकी आवाज दबा दी जाती है। इस कारण कई दिग्गज नेता पार्टी को अलविदा कर चुके हैं।
आरपीएन सिंह
राहुल गांधी की कोर टीम में शामिल उत्तर प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता आरपीएन सिंह यानी रतनजीत प्रताप नारायण सिंह मंगलवार, 25 जनवरी को बीजेपी में शामिल हो गए। बीजेपी में शामिल होने के बाद पूर्व केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह ने कहा कि यह मेरे लिए एक नई शुरुआत है। इसके लिए मैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व और मार्गदर्शन में राष्ट्र निर्माण में अपने योगदान के लिए तत्पर हूं। कुशीनगर के सैंथवार के शाही परिवार से आने वाले आरपीएन सिंह पूर्वांचल में एक बड़ा चेहरा माने जाते हैं। आरपीएन सिंह कांग्रेस के सबसे भरोसेमंद और अनुभवी नेताओं में से एक थे और उनके बीजेपी का दामन थाम लेने से राहुल गांधी को बड़ा झटका लगा है।ज्योतिरादित्य सिंधिया
मध्य प्रदेश में जनाधार वाले लोकप्रिय युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस की अनदेखी के कारण हाल ही में बीजेपी में शामिल हो गए हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ राज्य के कई अन्य विधायक और युवा नेता भी बीजेपी का दामन थाम चुके हैं। इससे राज्य में कांग्रेस काफी कमजोर हो गई है।
जितिन प्रसाद
राहुल गांधी की कोर कमेटी में शामिल जितिन प्रसाद ने 9 जून, 2021 को कांग्रेस को जोरदार झटका दिया और बीजेपी में शामिल हो गए। यूपी में बड़े ब्राह्मण चेहरों में शामिल जितिन प्रसाद को योगी आदित्यनाथ के कैबिनेट में प्राविधिक शिक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है।खुशबू सुंदर
अभिनेत्री से राजनेता बनीं खुशबू सुंदर ने हाल ही में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे पत्र में खुशबू ने आरोप लगाया कि पार्टी में ऊपर बैठे जिन लोगों का जमीनी स्तर पर कोई जुड़ाव नहीं है और वे तानाशाही कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मेरी तरह जो लोग काम करना चाहते हैं उन्हें दबाया जा रहा है। अपने पत्र में खुशबू सुंदर ने लिखा कि कांग्रेस के 2014 लोकसभा चुनाव हार जाने के बावजूद उन्होंने पार्टी ज्वाइन की थी, लेकिन यहां काम करने वाले लोगों की अनदेखी की जाती है।
संजय झा
इसके पहले कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय झा ने एक न्यूज वेबसाइट को दिए इंटरव्यू और लेख के जरिए कांग्रेस की कार्यशैली पर सवाल खड़ा किया था। पार्टी की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से कांग्रेस प्रवक्ता पद से हटा दिया गया। टाइम्स ऑफ इंडिया के अपने लेख और द प्रिंट को दिए इंटरव्यू में उन्होंने यह भी कहा था कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव है। संजय झा ने दावा किया कि पार्टी के पास एक आंतरिक मजबूत तंत्र नहीं है। उन्होंने लिखा है कि पार्टी के अंदर सदस्यों की बात नहीं सुनी जाती है। अपने लेख में झा ने यह भी कहा कि पार्टी सरकार के विफल होने पर लोगों को शासन का कोई वैकल्पिक विवरण प्रस्तुत नहीं कर सकती।
हेमंत बिस्वा शर्मा
असम के लोकप्रिय नेता हेमंत बिस्वा शर्मा को भी मजबूर होकर पार्टी से निकलना पड़ा। यहां के बुजुर्ग कांग्रेसी नेता तरुण गोगोई के साथ मतभेदों के कारण उन्हों हाशिए पर डाल दिया गया था। 2001 से 2015 तक कांग्रेस के विधायक हेमंत बिस्वा शर्मा 2016 में बीजेपी में आ गए। राज्य में कांग्रेस को हराने में इनका अहम योगदान रहा है। हेमंत बिस्वा शर्मा अभी असम सरकार में मंत्री हैं।प्रियंका चतुर्वेदी
कांग्रेस की एक तेजतर्रार युवा प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी को भी पार्टी नेतृत्व की अनदेखी के कारण बाहर होना पड़ा। उन्हें पार्टी में दुर्व्यवहार का भी सामना करना पड़ा। आखिर में वे शिवसेना में शामिल हो गईं।वाईएस जगन मोहन रेड्डी
वाईएस जगन मोहन रेड्डी वर्तमान में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। इनके पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी दो बार राज्य के सीएम रह चुके हैं। 2009 में वाईएस राजशेखर रेड्डी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु के बाद लोगों ने जगन मोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाने की मांग की लेकिन पार्टी आलाकमान ने इसे ठुकरा दिया। आखिर में पार्टी से नाराज होकर इन्होंने 2010 में अलग पार्टी बना ली और आज राज्य में इनकी सरकार है।सुष्मिता देव
अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष और सिलचर से पूर्व सांसद सुष्मिता देव ने अगस्त, 2021 में पार्टी छोड़ दिया है। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की करीबी सुष्मिता देव ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को इस्तीफा देकर ट्विटर पर कांग्रेस की ‘पूर्व सदस्य’ लिख दिया। कांग्रेसी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके संतोष मोहन देव की बेटी सुष्मिता असम चुनाव के समय से ही कांग्रेस नेतृत्व से नाराज चल रही थी।अशोक तंवर
हरियाणा में कांग्रेस के बड़े और युवा चेहरों में शुमार दिग्गज नेता अशोक तंवर भी 23 नवंबर, 2021 को पार्टी छोड़ टीएमसी में शामिल हो गए। राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले अशोक तंवर जाने से हरियाणा में कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा।अदिति सिंह
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली से विधायक अदिति सिंह ने पार्टी का हाथ छोड़ बड़ा झटका दिया। अदिति को राहुल-प्रियंका का करीब माना जाता था। लेकिन अदिति कांग्रेस के कार्यकलाप और पार्टी की नीतियों से नाराज चल रही थीं।
मिलिंद देवड़ा
महाराष्ट्र के युवा नेता मिलिंद देवड़ा ने हाल में ही मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। हालांकि उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी है, लेकिन पार्टी आलाकमान के रवैये से नाराज चल रहे हैं।
कर्ण सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह
नेतृत्व संकट से जूझ रही कांग्रेस को अब एक और झटका लगा है। जम्मू कश्मीर के कद्दावर कांग्रेस नेता कर्ण सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी है। मंगलवार को उन्होंने पार्टी से इस्तीफा देने का ऐलान किया है। विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि, जम्मू-कश्मीर से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर उनके विचार पार्टी के साथ नहीं मिलते हैं। उन्होंने पार्टी पर जमीनी वास्तविकताओं से अनजान रहने का भी आरोप लगाया।
I hereby tender my resignation from the Indian National Congress.
My position on critical issues vis-à-vis Jammu & Kashmir which reflect national interests do not align with that of the Congress Party. @INCIndia remains disconnected with ground realities. @INCJammuKashmir pic.twitter.com/g5cACgNf9y
— Vikramaditya Singh (@vikramaditya_JK) March 22, 2022
कश्मीर में बदलती जनभावनाओं और आकांक्षाओं के अनुकूल काम करने की जरूरत
विक्रमादित्य सिंह ने कहा-वर्ष 2018 में कांग्रेस में शामिल होने के बाद मैंने कई मुद्दों और घटनाओं के समर्थन में खुलकर अपने विचार व्यक्त किए हैं, जो कांग्रेस पार्टी के रुख से मेल नहीं खाते हैं। इसमें पीओजेके में बालाकोट हवाई हमला, जम्मू कश्मीर में ग्राम रक्षा समितियों (वीडीसी) का पुन: सशक्तीकरण, अनुच्छेद 370 और 35 ए को निरस्त करने, लद्दाख यूटी का गठन, गुपकार गठबंधन की निंदा, जम्मू-कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया आदि का समर्थन शामिल है। पूर्व एमएलसी ने कहा कि वह हमेशा जम्मू-कश्मीर के लोगों के हित में और विशेष रूप से राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए उनके साथ खड़े रहे हैं। भारत तेजी से विकसित होने वाला देश है। बदलती जनभावनाओं और आकांक्षाओं के अनुकूल काम करने की जरूरत है। इसके लिए पार्टी का उचित नेतृत्व और गतिशीलता जरूरी है।