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लोकसभा चुनाव से पहले CM Mamata Banerjee की मुश्किलें बढ़ीं, अब नेशनल पार्टी की हैसियत खत्म होने से खतरे में TMC की कमाई, इलेक्टोरल बॉन्ड्स से कमाए 528 करोड़ रुपयों पर नियम पड़ेंगे भारी

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केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा तृणमूल कांग्रेस (TMC), नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (NCP) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी यानि CPI का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा समाप्त कर दिया गया है। इसने एनसीपी और सीपीआई पर तो नहीं, लेकिन तृणमूल कांग्रेस पार्टी के लिए राजनीतिक और आर्थिक दोनों तरह का बड़ा खतरा पैदा कर दिया है। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस कमाई के मामले में देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। और इस पार्टी का कमाई का एक बड़ा जरिया बने हैं- इलेक्टोरल बॉन्ड। राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिनने के बाद इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये दान लेने की उसकी एलिजिबिलिटी पर सवाल खड़े हो गए हैं। दरअसल, इसके नियमों में ऐसी तकनीकी बारीकियां हैं, जो उसके इलेक्टोरल बॉन्ड भुनाने पर सवालिया निशान लगा सकती हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि सिर्फ एक राज्य में सत्तासीन तृणमूल कांग्रेस को 2021-22 में इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिये 528 करोड़ रुपए की कमाई हुई थी। इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि 2020-21 में ये कमाई महज 42 करोड़ के आस-पास थी।मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में तृणमूल कांग्रेस का स्टेट पार्टी का दर्जा छिना
देश में फिलहाल तीन तरह की पार्टियां हैं। राष्ट्रीय, राज्य स्तरीय और क्षेत्रीय पार्टियां। चार अप्रैल 2023 से पहले भारत में सात राष्ट्रीय पार्टियां थीं, जबकि राज्य स्तरीय दल 35 और क्षेत्रीय दलों की संख्या करीब साढ़े तीन सौ थी। राष्ट्रीय पार्टी के दर्जे के लिए आयोग की तीन शर्ते होती हैं। पहली, लोकसभा की कुल सीटों में से 2% सीटें कम से कम तीन राज्यों जीतना जरूरी है। दूसरी, चार या ज्यादा राज्यों के विधानसभा चुनाव में कम से-कम 6% वोट हासिल हुआ हो। और तीसरी शर्त के मुताबिक चार या इससे ज्यादा राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी की मान्यता मिली हो। तृणमूल को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा इसी तीसरी शर्त को पूरी करने पर मिला था। टीएमसी को पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और त्रिपुरा में स्टेट पार्टी का दर्जा मिला हुआ था। मगर अब चुनाव आयोग ने मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में तृणमूल कांग्रेस का स्टेट पार्टी का दर्जा छीन लिया है। इसकी वजह से पार्टी अब सिर्फ दो ही राज्यों में स्टेट पार्टी रह गई है और राष्ट्रीय पार्टी बनने की शर्त अब पूरी नहीं करती है।लोकसभा चुनाव से ठीक पहले तृणमूल कांग्रेस की पहचान पर उठे सवाल
इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम की शुरुआत 2018 में हुई थी। तब से अब तक छोटी पार्टी के बावजूद जो इस बॉन्ड्स का बड़ा फायदा ले पाई है, वो तृणमूल कांग्रेस ही है। अब 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उसकी पहचान पर उठे सवाल इस कमाई को भी डेंट पहुंचा सकते हैं। क्योंकि तृणमूल कांग्रेस का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छिन गया है। या यूं भी कह सकते हैं कि कमाई के मामले में देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी अब राष्ट्रीय पार्टी ही नहीं रह गई है। अरुणाचल प्रदेश में आखिरी विधानसभा चुनाव 2019 में हुआ था। इसमें तृणमूल कांग्रेस ने कोई उम्मीदवार ही नहीं उतारा था। टीएमसी ने 2021-22 में 545 करोड़ जुटाए, इसमें 528 करोड़ बॉन्ड्स से कमाए
तृणमूल कांग्रेस ने चुनाव आयोग को जो वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट सौंपी है, उसके मुताबिक 2021-22 में उसने 545 करोड़ रुपए से ज्यादा कमाई की है। इसमें से 528 करोड़ से ज्यादा की कमाई इलेक्टोरल बॉन्ड्स से हुई है। यानी कुल कमाई का 96% से ज्यादा हिस्सा इलेक्टोरल बॉन्ड से ही आया है। इलेक्टोरल बॉन्ड्स की स्कीम 2018 में लॉन्च की गई थी। इलेक्टोरल बॉन्ड कौन खरीद सकता है और कौन सी पार्टी इनके जरिये दान ले सकती है, इसके लिए नियम तय हैं। नियम के मुताबिक जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के सेक्शन 29A के तहत रजिस्टर्ड कोई भी पार्टी इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये दान ले सकती है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि उसने पिछले लोकसभा चुनाव या पिछले किसी विधानसभा चुनाव में कम से कम 1% वोट शेयर हासिल किया हो।टीएमसी को जहां स्टेट पार्टी का दर्जा,वहीं वोट शेयर 1% से भी कम
तृणमूल कांग्रेस के लिए अब ये नियम ही मुश्किल खड़ी कर सकता है। इलेक्टोरल बॉन्ड भुनाने के लिए तृणमूल कांग्रेस की एलिजिबिलिटी सबसे लेटेस्ट चुनावों में उसके परफॉर्मेंस के आधार पर ही देखी जाएगी। 2023 में तृणमूल कांग्रेस ने अब तक दो राज्यों मेघालय और त्रिपुरा के विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार उतारे हैं। मेघालय में पार्टी का वोट शेयर 13.78% है। उसने 59 सीटों में से 5 पर जीत भी हासिल की है, लेकिन दिक्कत ये है कि मेघालय में तृणमूल कांग्रेस को स्टेट पार्टी का दर्जा नहीं हासिल है। त्रिपुरा में तृणमूल कांग्रेस स्टेट पार्टी है, लेकिन यहां पार्टी का वोट शेयर महज 0.88% ही रहा। राज्य की 60 में से एक भी सीट उसने नहीं जीती है।

कोरोना में हर पार्टी का बॉन्ड के जरिये दान घटा पर टीएमसी का बढ़ा था
इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिये होने वाली कमाई के मामले में सबसे तेज ग्रोथ तृणमूल कांग्रेस की है। तृणमूल कांग्रेस की इस ग्रोथ में दो बातें बहुत चौंकाने वाली हैं। पहली तो यह कि 2020-21 में कोविड के दौर में हर पार्टी को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये मिला दान घट गया। इसके बावजूद तृणमूल कांग्रेस को मिला दान भाजपा से करीब दोगुना था। तृणमूल को इलेक्टोरल बॉन्ड से मिला दान सीधे 528 करोड़ रुपए पर पहुंच गया। 2019-20 में उसे महज 100 करोड़ रुपए ही इलेक्टोरल बॉन्ड्स के जरिये मिले थे।स्टेट पार्टी के दर्जे वाले राज्यों के परफॉर्मेंस पर मुश्किल में तृणमूल कांग्रेस
तृणमूल को अभी पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा दो ही राज्यों में स्टेट पार्टी का दर्जा हासिल है। इनमें सबसे हाल में विधानसभा चुनाव त्रिपुरा में हुए हैं। इन चुनावों में तृणमूल कांग्रेस का वोट शेयर 0.88% ही है, यानी 1% से कम। यानी इलेक्टोरल बॉन्ड्स के लिए एलिजिबिलिटी का आधार अगर स्टेट पार्टी के दर्जे वाले राज्यों में लेटेस्ट परफॉर्मेंस को माना गया तो तृणमूल इस क्राइटेरिया से बाहर हो सकती है। हालांकि नियमें यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि अगर किसी भी हालिया विधानसभा चुनाव के मुकाबले पिछले (यानी 2019 के) लोकसभा चुनाव में वोट शेयर ज्यादा था तो किस परफॉर्मेंस को आधार माना जाएगा।जानिए, कैसे और कब खरीदे जाते हैं ये इलेक्टोरल बॉन्ड्स
चुनावी बॉन्ड्स हर तिमाही के पहले 10 दिन खरीदे जा सकते हैं। अप्रैल, जनवरी, जुलाई और अक्टूबर के शुरुआती 10 दिन सरकार द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने के समय तय किए गए हैं। लोकसभा चुनाव के समय-अलग से 30 दिन का समय भी सरकार तय कर सकती है। इलेक्टोरल बॉन्ड्स यूज करना काफी आसान है। ये बॉन्ड 1,000 रुपए के मल्टीपल में पेश किए जाते हैं जैसे कि 1,000, ₹10,000, ₹100,000 और ₹1 करोड़ की रेंज में हो सकते हैं। ये एसबीआई की कुछ शाखाओं पर मिल जाते हैं। कोई भी डोनर जिनका KYC- COMPLIANT अकाउंट हो इस तरह के बॉन्ड को खरीद सकते हैं। और बाद में इन्हें किसी भी राजनीतिक पार्टी को डोनेट किया जा सकता है। इसके बाद रिसीवर इसे कैश में कन्वर्ट करवा सकता है। इसे कैश कराने के लिए पार्टी के वैरीफाइड अकाउंट का यूज किया जाता है। इलेक्टोरल बॉन्ड भी सिर्फ 15 दिनों के लिए वैलिड रहते हैं।

 

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