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चिदंबरम ने माना- राहुल मामले में नहीं मिल रहा जनता का समर्थन, देखिए कैसे कांग्रेस-मुक्त हो रहा देश

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‘सारे मोदी चोर हैं’ बयान पर सूरत कोर्ट से दोषी ठहराए जाते ही कानून के अनुसार कांग्रेस नेता राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म हो गई। सूरत कोर्ट से मौका दिए जाने पर भी नाखून कटाकर शहीद होने की कोशिश में राहुल गांधी ने माफी मांगने से इनकार कर दिया। जबकि राहुल गांधी इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में तीन बार माफी मांग चुके हैं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बेटे राहुल गांधी को ‘पीड़ित दिखाओ और कांग्रेस बचाओ’ अभियान के तहत वकीलों की फौज होते हुए भी पार्टी ने विक्टिम कार्ड खेलने की कोशिश की।

राहुल गांधी को अयोग्य ठहराने जाने पर प्रियंका गांधी वाड्रा सहित पार्टी के तमाम नेताओं ने मोदी सरकार के खिलाफ नैरेटिव बनाने के लिए देश भर में धरना प्रदर्शन और सत्याग्रह किया। दिल्ली सहित अन्य जगहों पर काले कपड़ों में विरोध प्रदर्शन किया गया। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि राहुल गांधी ने अपने भाषण में जिस तरह से पिछड़ी जाति का अपमान किया है, उससे पार्टी को आम लोगों का समर्थन नहीं मिल रहा है। कांग्रेस के सीनियर लीडर पी चिदंबरम ने यह स्वीकार भी किया है कि राहुल गांधी को लेकर पार्टी को आम लोगों का समर्थन नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने माना कि राहुल के समर्थन में लोग सड़कों पर नहीं उतर रहे हैं।

इंडिया टुडे के राजदीप सरदेसाई के साथ बातचीत में जब चिदंबरम से पूछा गया कि राहुल गांधी के अयोग्य होने के बाद जनता उनके समर्थन में आंदोलन करने क्यों नहीं आ रही है। तो उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय से लोग प्रदर्शन करने सड़क पर नहीं उतर रहे हैं। सीएए मामले में भी सिर्फ मुसलमानों ने प्रदर्शन किया। हैरानी है कि दूसरे देशों की तरह लोग यहां प्रदर्शन करने नहीं आ रहे हैं। ये निराशाजनक है कि राहुल मामले में भी लोगों में कोई गुस्सा नहीं दिख रहा है।

मोदी सरनेम मामले से पहले तीन बार माफी मांग चुके राहुल गांधी पार्टी के लिए बोझ बन गए हैं। सोनिया गांधी के बेटे राहुल गांधी पर मानहानि के 6 केस दर्ज हैं और वह सात मामलों में जमानत पर हैं। कांग्रेस की निगेटिव राजनीति को लोग नकारने लगे हैं। आइए जानते है कि किस तरह उनके नेतृत्व में कांग्रेस मुक्त होने की दिशा में पार्टी आगे बढ़ रही है…

सोनिया-राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस मुक्त भारत की ओर पार्टी
वर्तमान में भले ही मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष हैं लेकिन ये सभी जानते हैं कि मनमोहन सिंह की तरह उनका भी संचालन रिमोट कंट्रोल से हो रहा है। पार्टी के लिए गांधी परिवार ही सब कुछ है। पार्टी के सभी नेताओं के लिए सर्वेसर्वा सोनिया गांधी और राहुल गांधी ही हैं। जिस राहुल गांधी के लिए पार्टी के नेता फिलहाल धरना-प्रदर्शन में लगे हैं उनके नेतृत्व में पार्टी 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही पतन की ओर है। लोकसभा-विधानसभा से लेकर नगर निकायों के चुनावों तक में पार्टी को लगातार मुंह की खानी पड़ रही है। 2014 के बाद से अब तक 8 साल में 53 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, इनमें से 44 में कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस अब देश के कुछ राज्यों तक में सिमट कर रह गई है। इनमें भी सिर्फ दो राज्य राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही उसकी पूर्ण बहुमत की सरकार और कांग्रेसी मुख्यमंत्री हैं। झारखंड में पार्टी छोटे सहयोगी दल की भूमिका में है। राहुल गांधी के कारण पार्टी के सैकड़ों जनाधार वाले नेता पार्टी छोड़कर बाहर जा चुके हैं।

2014: कुल 8 चुनाव, कांग्रेस ने सिर्फ एक जीता, उसमें भी सत्ता संभाल नहीं पाए
गुजरात के सीएम के बाद पीएम मोदी इसी साल देश के प्रधानमंत्री बने। 2014 में 8 राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए। इनमें हरियाणा, जम्मू कश्मीर, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम शामिल हैं। इन 8 राज्यों में से केवल अरुणाचल में कांग्रेस सरकार बना सकी. यहां की 60 में से 42 सीटों पर पार्टी ने जीत दर्ज की. लेकिन जुलाई 2016 में मुख्यमंत्री पेमा खांडू समेत 33 विधायक पार्टी की जन-विरोधी नीतियों से परेशान होक बीजेपी में आ गए और राज्य की सत्ता बीजेपी के पास आ गई।

2015: दो राज्यों में हुए चुनाव, दिल्ली में कांग्रेस का सूपड़ासाफ, बिहार में मिली सत्ता गंवा दी
अगले साल 2015 में बिहार और दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए। दिल्ली में तो कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। 70 विधानसभा सीटों में से एक पर भी कांग्रेस नहीं जीत सकी। उसी साल बिहार में भी चुनाव हुए। कांग्रेस ने आरजेडी और जेडीयू के साथ गठबंधन कर 41 सीटों पर चुनाव लड़ा। इसमें किसी तरह 27 सीटें तो जीत लीं, लेकिन महागठबंधन की सरकार चलाने का सलीका नहीं आया। कांग्रेस की हठधर्मिता के चलते जुलाई 2017 में नीतीश कुमार की जेडीयू ने गठबंधन तोड़ दिया और बीजेपी के साथ मिलकर बिहार में सशक्त सरकार बना ली।

2016: पांच राज्यों में चुनाव, सिर्फ एक में मिली जीत और सत्ता
2016 में असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में चुनाव हुए। असम और केरल में कांग्रेस की सरकार थी। चुनाव हुए तो कांग्रेस के हाथ से असम और केरल निकल गया। केवल छोटे-से पुडुचेरी में कांग्रेस की जीत हुई और सरकार बनी।

2017 : सात राज्यों में चुनाव, पंजाब में मिली जीत
2017 में 7 राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए. इनमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर, गोवा, गुजरात और हिमाचल प्रदेश शामिल है। पीएम मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत का असर हुआ और कांग्रेस ने हिमाचल और मणिपुर में सत्ता गंवा दी। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात में पीएम मोदी के नेतृत्व के चलते बीजेपी को शानदार जीत मिली। गोवा में कांग्रेस आपसी गुटबाजी के चलते सरकार ही नहीं बना पाई। सिर्फ पंजाब में कांग्रेस जीत सकी।

2018 : इस साल हुए 9 चुनाव, कांग्रेस दो राज्यों में सत्ता हासिल करने के बाद संभाल नहीं पाई
2018 में मार्च में त्रिपुरा, नागालैंड, मिजोरम और मेघालय में चुनाव हुए। कांग्रेस एक भी राज्य में नहीं जीत सकी। इसके बाद मई में कर्नाटक में चुनाव हुए, जहां जनता दल (सेक्युलर) के साथ मिलकर सरकार बनाई। लेकिन बगावत के कारण सालभर में ही सरकार गिर गई और बीजेपी सत्ता में आ गई। दिसंबर में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में चुनाव हुए। तेलंगाना छोड़कर तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी, लेकिन मध्य प्रदेश में 13 महीने में ही बगावत के कारण कांग्रेस की सरकार गिर गई।

2019 : लोकप्रिय और प्रभावशाली नरेन्द्र मोदी को ज्यादा ताकत से दोबारा प्रधानमंत्री बनाया
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जन कल्याणकारी योजनाओं के चलते लोकप्रियता सातवें आसमान पर पहुंच गई। इसी साल लोकसभा के भी चुनाव हुए। देश की जनता ने उन्हें और ज्यादा ताकत देकर दोबारा प्रधानमंत्री बनाया। कांग्रेस 52 सीटें ही जीत सकी। लोकसभा के अलावा 7 राज्यों- आंध्र प्रदेश, अरुणाचल, हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा और सिक्किम में विधानसभा चुनाव हुए। 7 में से 5 में कांग्रेस नहीं जीत सकी। झारखंड और महाराष्ट्र में कांग्रेस ने सरकार को समर्थन दिया। झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के साथ तो महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार में है।

2020 : इस साल हुए दोनों विधानसभा चुनावों में कांग्रेस बुरी तरह हारी
इस साल दिल्ली और बिहार में चुनाव हुए। लगातार दूसरी बार दिल्ली में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत सकी। हालात यह रहे कि 70 में से 63 सीटों पर तो कांग्रेस प्रत्याशियों की जमानत ही जब्त हो गई। बिहार में कांग्रेस ने आरजेडी के साथ गठबंधन किया, लेकिन ये गठबंधन भी बुरी तरह हार गया।

2021 : पांच में से चार राज्यों में जनता ने कांग्रेस को बुरी तरह नकारा
इस साल पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव हुए। चार राज्यों में कांग्रेस हार गई। बंगाल में तो पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली। पुडुचेरी में जहां कांग्रेस सत्ता में थी, वहां से भी हार गई। तमिलनाडु में कांग्रेस ने द्रमुक समेत कई पार्टियों के साथ मिलकर में चुनाव लड़ा और 25 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे, जिसमें से 18 जीतकर आए। तमिलनाडु में कांग्रेस सरकार में सहयोगी है।

2022 : पांच राज्यों में चुनाव पांचों में हारी कांग्रेस, चार में बीजेपी की डबल इंजन सरकारें
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चल रहा बीजेपी का विजय रथ इस साल भी पूरी स्पीड के साथ दौड़ा। जनता ने प्रधानमंत्री के आह्वान पर डबल इंजन की सरकारों पर भारी बहुमत के साथ जिताया और बताया की पीएम मोदी के नेतृत्व में उसे पूरा विश्वास है। इस साल उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा में विधानसभा चुनाव हुए। 1985 के बाद पहली बार था जब कांग्रेस यूपी की सभी सीटों पर उतरी, लेकिन मात्र 2 सीटें ही जीत सकी। उसके कई प्रत्याशी जमानत तक नहीं बचा पाए। बाकी सभी राज्यों में भी कांग्रेस की हालत बेहद खराब ही रही। पंजाब में कांग्रेस अपनी सत्ता नहीं बचा सकी और 18 सीटों पर आकर सिमट गई। महाराष्ट्र में कांग्रेस का महाविकास अघाड़ी के साथ बेमेल गठबंधन भी टूट गया।

2023: त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में कांग्रेस का निराशाजनक प्रदर्शन
इस साल 2023 के शुरू में पूर्वोत्तर के भी तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में नतीजे बीजेपी गठबंधन के पक्ष में रहे। जहां त्रिपुरा और नागालैंड में बीजेपी की शानदार वापसी हुई, वहीं मेघालय में बीजेपी के समर्थन से मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा की एनपीपी सरकार फिर से सत्ता में वापसी की। नागालैंड में 37 और त्रिपुरा में 33 सीटों के साथ बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिली हैं। इन तीनों राज्यों में कांग्रेस का प्रदर्शन एकदम निराशाजनक रहा।

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