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कांग्रेस शासनकाल में 11 प्रतिभावान वैज्ञानिकों की रहस्यमय मौत का राज क्या है? संगठित तरीके से न्यूक्लियर वैज्ञानिकों को बनाया गया निशाना!

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कांग्रेस शासनकाल में देश के कई परमाणु वैज्ञानिकों की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई। एक के बाद एक वैज्ञानिकों की मौत होती रही और जांच में कुछ भी निकलकर नहीं आया कि इनके लिए जिम्मेदार कौन था। होमी जहांगीर भाभा भारत के एक प्रमुख वैज्ञानिक और स्वप्नदृष्टा थे जिन्होंने भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की कल्पना की थी। उन्होंने मुट्ठी भर वैज्ञानिकों की सहायता से मार्च 1944 में नाभिकीय उर्जा पर अनुसंधान शुरू किया था। उनकी मौत भी 1966 में रहस्यमय तरीके से मौत हुई थी। इसके बाद कई वैज्ञानिकों की रहस्यमय तरीके से मौत हुई जिसमें लोकनाथ महालिंगम, एम पद्मनाभ अय्यर, उमंग सिंह, पार्थ प्रतिम, उमा राव, तीतस पाल, तिरुमला प्रसाद टेंका आदि शामिल हैं। मनमोहन सिंह सरकार के दौरान 2009 से 2013 के बीच देश के कई परमाणु वैज्ञानिकों की रहस्यमय तरीके से मौत हुई, जो कि बड़ा सवाल खड़ा करती है।

कांग्रेस शासन में 2009 से 2013 के बीच 11 वैज्ञानिकों की रहस्यमय मौत

मनमोहन सिंह सरकार के दौरान 2008 से 2013 के बीच देश के कई परमाणु वैज्ञानिकों की रहस्यमय तरीके से मौत हुई। इन सालों में लगभग हर कुछ दिन पर कोई न कोई परमाणु वैज्ञानिक या तो किसी हादसे का शिकार हुआ या उसकी जान ऐसे गई जिसका कारण आज तक किसी को नहीं पता। इस तरह से देश के कुल 11 प्रतिभावान वैज्ञानिक मौत की नींद सो गए, लेकिन क्या यह महज संयोग हो सकता है? या फिर इसके पीछे कोई साजिश थी?

यह स्टोरी टि्वटर यूजर सनातनी हिंदू (@Modified_Hindu9) के ट्वीट्स पर आधारित है।

सोनिया गांधी की अगुवाई वाली यूपीए सरकार में मौतों की सही जांच नहीं

हैरानी की बात है कि उस वक्त सोनिया गांधी की अगुवाई वाली यूपीए के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार ने इन मौतों की सही वजह पता करने की कोई जरूरत नहीं समझी। चूंकि वो कांग्रेस की सरकार का दौर था, लिहाजा मीडिया ने भी इस खबर को एक तरह से दबा दिया। भारत के परमाणु वैज्ञानिकों की रहस्यमय मौत का ये सिलसिला पुराना है। इसके पहले शिकार होमी जहांगीर भाभा बने थे। उनकी कहानी दिल दहला देगी।

इन परमाणु वैज्ञानिकों की हुई रहस्यमय मौत

लोकनाथन महालिंगम: कर्नाटक के कैगा एटॉमिक पावर स्टेशन में काम करने वाले 47 साल के लोकनाथन महालिंगम की पहचान बेहद प्रतिभावान परमाणु वैज्ञानिकों में होती थी। जून 2008 में वो एक दिन अपने घर से मॉर्निंग वॉक के लिए गए और फिर कभी वापस नहीं लौटे। पांच दिन बाद उनका शव बरामद हुआ, डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट जारी होने के पहले ही आनन- फानन में उनका अंतिम संस्कार करवा दिया गया। बताते हैं कि लोकनाथन देश की सबसे संवेदनशील परमाणु सूचनाएं रखते थे। शक जताया गया कि जंगलों में वॉक के दौरान उन्हें तेंदुआ खा गया या उन्होंने खुद ही आत्महत्या कर ली या किसी ने अपहरण करके उनकी हत्या कर दी। पुलिस की जांच किसी नतीजे पर नहीं पहुंची। लेकिन माना जाता है कि उनकी हत्या की गई थी…!

एम पद्मनाभन अय्यर: भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) में इंजीनियर पद्मनाभन का शव 23 फरवरी 2010 को मुंबई के ब्रीच कैंडी में उनके घर में बरामद किया गया था। 48 साल के अय्यर बिल्कुल स्वस्थ और खुशमिजाज हुआ करते थे। पुलिस की जांच में घर में किसी बाहरी का सुराग या फिंगरप्रिंट्स वगैरह नहीं मिली थीं। फोरेंसिक जांच में उनकी मौत का कारण ‘अज्ञात’ यानी unexplained बताया गया। जब काफी समय तक इस मौत का कोई सुराग हाथ नहीं लगा तो 2012 में पुलिस ने मामले की फाइल क्लोज कर दी। हालांकि फोरेंसिक रिपोर्ट आज भी चीख-चीख कर बताती है कि पद्मनाभन अय्यर की मौत सामान्य नहीं थी। जांच में उनके समलैंगिक होने की बात सामने आई थी, लेकिन उससे भी मौत का कोई सुराग नहीं मिल सका…!

केके जोश और अभीश शिवम: भारत की पहली परमाणु पनडुब्बी INS अरिहंत के ये दोनों इंजीनियर बेहद संवेदनशील प्रोजेक्ट्स से जुड़े हुए थे। अक्टूबर 2013 में विशाखापत्तनम नौसैनिक यार्ड के पास पेंडुरुती में उनका शव रेलवे लाइन पर पड़ा मिला था। मौके पर मौजूद लोग इस बात से हैरान थे कि वहां से कोई ट्रेन भी नहीं गुजरी थी। शवों को देखकर भी लग रहा था कि वो ट्रेन से नहीं कटे हैं। केके जोश की उम्र सिर्फ 34 साल थी और अभीश शिवम 33 साल के थे। रेलवे पुलिस की जांच में हत्या का कोई सुराग हाथ नहीं लगा। हैरानी की बात है कि देश के इतने महत्वपूर्ण काम में जुटे इन दो नौजवान वैज्ञानिकों की मौत की जांच कभी किसी बड़ी एजेंसी से नहीं कराई गई…!

उमंग सिंह और पार्थ प्रतिम: ये दोनों युवा वैज्ञानिक 29 दिसंबर 2009 को भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर यानी BARC के रेडिएशन एंड फोटोकेमिस्ट्री लैब में काम कर रहे थे। दोपहर बाद रहस्यमय तरीके से लगी एक आग में झुलकर दोनों की मौत हो गई। फोरेंसिक जांच रिपोर्ट के मुताबिक लैब में ऐसा कुछ नहीं था, जिसमें आग लगने का डर हो। रिपोर्ट में साफ इशारा किया गया था कि मौत के पीछे कोई साजिश है। उमंग मुंबई के रहने वाले थे, जबकि पार्थ बंगाल के।

BARC के तब के डायरेक्टर श्रीकुमार बनर्जी ने फोन करके तब के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन और प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों को घटना की जानकारी दी, लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से तब की सरकार ने इस पर कोई गंभीरता नहीं दिखाई। शक की ढेरों वजहें थीं। इस लैब में कुल 5 वैज्ञानिक काम करते थे, उस दिन बाकी तीन छुट्टी पर थे। उमंग और पार्थ परमाणु रिएक्टरों से जुड़े एक बेहद संवेदनशील विषय पर शोध कर रहे थे। लैब में आग बुझाने में फायर ब्रिगेड को पूरे 45 मिनट लगे थे, क्योंकि आग ऐसी थी जो बार-बार किसी चीज से भड़क रही थी। जबकि किसी सामान्य पदार्थ की आग पानी के संपर्क में आते ही बुझ जाती है। बाद में जब दोनों वैज्ञानिकों के शव निकाले गए तो वो पूरी तरह राख बन चुके थे। यह रहस्य बना रहा कि आग किस चीज की थी, जिसकी गर्मी इतनी थी कि महज थोड़ी देर में दो शरीर पूरी तरह खत्म हो गए…!

मोहम्मद मुस्तफा: कलपक्कम के इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च (IGCAR) के साइंटिफिक असिस्टेंट मोहम्मद मुस्तफा की डेडबॉडी 2012 में उनके सरकारी घर से बरामद की गई थी। सिर्फ 24 साल का तमिलनाडु के कांचीपुरम का रहने वाला यह लड़का तेज़ दिमाग का था। पुलिस रिपोर्ट के मुताबिक मुस्तफा की हथेली की नस कई बार धारदार हथियार से काटी गई थी। एक डेथ नोट भी मिला, लेकिन उसमें भी खुदकुशी की कोई वजह नहीं लिखी थी। पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला और जांच बंद कर दी गई…!

तीतस पाल: BARC में काम करने वाली इस साइंटिस्ट की उम्र सिर्फ 27 साल थी। ट्रांबे के कैंपस में चौदहवीं मंजिल पर अपने फ्लैट के वेंटिलेटर पर लटकती हुई पाई गई थी। पहली नजर में ये खुदकुशी का मामला था। उस दिन 3 मार्च 2010 की तारीख थी। तीतस पाल के पिता ने पुलिस को बताया कि उनकी बेटी कोलकाता में अपने घर से 3 मार्च को ही मुंबई पहुंची थी और सुबह दस बजे उसने ऑफिस ज्वाइन किया था। यह कैसे संभव है कि घर से हंसी-खुशी लौटी उनकी बेटी मुंबई पहुंचते ही शाम तक खुदकुशी कर ले…?

उमा राव: 28 साल तक भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में काम कर चुकीं उमा राव ने 30 अप्रैल 2011 को कथित तौर पर खुदकुशी कर ली। पुलिस जांच में बताया गया कि वो बीमार थीं और उसके कारण डिप्रेशन में चल रही थीं। मुंबई के गोवंडी में दसवें फ्लोर पर उनके फ्लैट में पड़े शव को सबसे पहले नौकरानी ने देखा। उसने पास में ही रहने वाले उनके बेटे को फोन करके बताया। पता चला कि उमा राव ने नींद की गोलियों का ओवरडोज़ लिया था। सुसाइड नोट में उन्होंने डिप्रेशन को ही कारण बताया था। जबकि परिवार, पड़ोसियों और साथ काम करने वाले वैज्ञानिकों का कहना था कि उमा राव में डिप्रेशन के कोई लक्षण हो ही नहीं सकते। वो इतनी उम्र में भी नौजवानों की तरह काम करतीं थीं…!

डलिया नायक: कोलकाता के साहा इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर फिजिक्स की सीनियर रिसर्चर डलिया नायक ने अगस्त 2009 में रहस्यमय हालात में खुदकुशी कर ली। पता चला कि उन्होंने मर्क्यूरिक क्लोराइड पी लिया था। उनकी उम्र सिर्फ 35 साल थी। डलिया की साथी वैज्ञानिक इस घटना से हैरान थीं। उन्हें भरोसा नहीं था कि डलिया के पास खुदकुशी का कोई कारण था। महिला कर्मचारियों ने इस घटना की सीबीआई जांच की मांग की थी। हालांकि इस केस में भी सरकार की उदासनीता के कारण कोई नतीजा नहीं निकला…!

तिरुमला प्रसाद टेंका: सिर्फ 30 साल के तिरुमला प्रसाद इंदौर के राजा रमन्ना सेंटर फॉर एडवांस्ड टेक्नोलॉजी में साइंटिस्ट थे। अप्रैल 2010 में उन्होंने खुदकुशी कर ली। पुलिस को एक सुसाइड नोट मिला, जिसमें अपने सीनियर के हाथों मानसिक तौर पर प्रताड़ित किए जाने की बात लिखी थी। सीनियर के खिलाफ केस भी हुआ, लेकिन कुछ दिन बाद मामला रफा-दफा हो गया। तिरुमला प्रसाद एक महत्वपूर्ण न्यूक्लियर प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। यह सवाल उठा कि प्रताड़ना आखिर क्यों और किस तरह की थी…? लेकिन कोई जवाब नहीं मिला…!

होमी जहांगीर भाभा की मौत के पीछे अमेरिकी साजिश

होमी जहांगीर भाभा की मौत एक विमान हादसे में न हुई होती तो शायद भारत न्यूक्लियर साइंस के क्षेत्र में कहीं बड़ी उपलब्धि हासिल कर चुका होता। सिर्फ 56 साल की उम्र में भारत में न्यूक्लियर एनर्जी प्रोग्राम के जनक होमी जहांगीर भाभा की मौत हो गई। होमी जहांगीर भाभा की मौत एक विमान हादसे में हुई। लेकिन कहा जाता है कि वो विमान हादसा जानबूझकर करवाया गया था। अमेरिका नहीं चाहता था कि भारत का न्यूक्लियर प्रोग्राम आगे बढ़े। इसलिए अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने होमी जहांगीर भाभा जिस प्लेन से जा रहे थे, उसका क्रैश करवा दिया।

24 जनवरी 1966 को होमी जहांगीर भाभा एयर इंडिया के फ्लाइट नंबर 101 से सफर कर रहे थे। मुंबई से न्‍यूयॉर्क जा रहा एयर इंडिया का बोइंग 707 विमान माउंट ब्‍लैंक पहाड़ियों के पास हादसे का शिकार हो गया। इस हादसे में होमी जहांगीर भाभा समेत विमान में सवार सभी 117 यात्रियों की मौत हो गई थी। सीआईए ने भारतीय परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए भाभा की हत्या की साजिश रची थी।

संगठित तरीके से न्यूक्लियर वैज्ञानिकों को निशाना बनाया गया

यह किसी रहस्य से कम नहीं कि 2009 में कांग्रेस के दोबारा सत्ता में आने के बाद एक संगठित तरीके से देश के महत्वपूर्ण न्यूक्लियर वैज्ञानिकों को निशाना बनाया गया। 2013 तक सिर्फ 4 साल में 11 वैज्ञानिकों की रहस्यमय हालात में मौत हो गई। लेकिन न तो सरकार ने और न ही मीडिया ने इसे गंभीरता से लिया।

कैगा न्यूक्लियर प्लांट में पीने के पानी में रेडियोएक्टिव पदार्थ मिलाया

2009 में कैगा न्यूक्लियर प्लांट में पीने के पानी के कूलर में ट्रिटियम नाम का रेडियोएक्टिव पदार्थ पाया गया था। जांच में यह बात सामने आई कि किसी अंदरूनी आदमी ने ही इसे मिलाया था ताकि यहां से पानी पीने वालों की मौत हो सके। अगर वो कामयाब हो गया होता तो रिएक्टर के कई कर्मचारी और वैज्ञानिक मौत की नींद सो चुके होते, लेकिन भारतीय परमाणु कार्यक्रम पर हो रहे तमाम हमलों की तरह यह मामला भी अनसुलझा ही रहा…!

…तो भारत 8 साल पहले ये क्षमता हासिल कर लेता

DRDO और इसरो के तमाम अधिकारी इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि भारत ने जो आज किया है उसकी क्षमता हमने आठ साल पहले ही प्राप्त कर ली थी…! फिर आखिर क्या वजह रही होगी कि तब की कठपुतली मनमोहन सरकार ने न सिर्फ परीक्षण की इजाज़त नहीं दी अपितु पूरा का पूरा प्रोजेक्ट ही बजट न देकर बंद करवा दिया। तब भारत MTR का सदस्य नहीं था और सदस्यता का कोई गंभीर प्रयास भी नहीं किया गया था, तो इसकी भी संभावना नहीं कि विदेश से ऐसी कोई तकनीक खरीदने और दलाली कमाने का लालच रहा होगा…? आप एक चीज़ समझें के ये इतनी महत्वपूर्ण चीज़ थी कि इसके लिए अमेरिका ने पूरा दशक मेहनत कर इसे हासिल किया…!

भारत के लोगों में भरा जा रहा था न्यूक्लिअर बम का डर

इस प्रोजेक्ट को रोकने का सबसे बड़ा कारण था भारत के लोगों में न्यूक्लिअर बम के डर को जिंदा रखना… जिसके लिए साल में चार बार न्यूज़ चैनल आपको हिरोशिमा की राम कथा सुनाते थे… पिछले पांच साल में शायद ही आपने वो कहानी देखी हो। भारत पर न्यूक्लिअर हमला खास कर सीमा से दूर दिल्ली, लखनऊ जैसे किसी नगर में पाकिस्तान सिर्फ अपनी लॉन्ग रेंज मिसाईल से ही कर सकता है। उसकी एयर फोर्स में भारत के इतने भीतर आने की ताक़त नहीं है… हमारी सेना औऱ एयरफ़ोर्स उन्हें नहीं घुसने देंगी…!

पाकिस्तान पर कार्रवाई के नाम पर झुनझुना बजा दिया जाता

जब भी मुम्बई हमले जैसी कोई घटना होती या सेना और देश का जन सामान्य पाक पर कार्यवाही को कहते बस एक झुनझुना बजा दिया जाता…! साहब पाकिस्तान न्यूक्लिअर स्टेट है, उसके पास चेन्नई तक हमला करने की मिसाईल है अगर परमाणु युद्ध हो गया तो…अब पहला हमला तो पाक ही करता क्यों कि हम तो नो फर्स्ट यूज़ वाले थे!

आज भारत ने पाकिस्तान को बताया…हमें रोकने की तुम्हारी औकात नहीं

एंटी सेटेलाइट मिसाईल का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यही है के ये दुश्मन की किसी भी ICBN को अंतरिक्ष में ही नष्ट कर देगा। उसका वॉर हेड अगर ब्लास्ट भी हुआ तो उसका नुकसान नीचे नहीं होगा…! पहले पाकिस्तान में बालाकोट पर हमला कर भारत ने ये समझाया कि तुम्हारी औकात हमें रोक पाने की नहीं और आज भारत ने दुनिया को संदेश दिया कि हम पर अब किसी रास्ते से परमाणु हमला संभव नहीं… डर खत्म, डर की दुकानदारी भी खत्म…!

कांग्रेस सहित विपक्षी दल पाक समर्थक अपने वोट बैंक को खुश करने में लगे रहे

बात वही है आखिर कांग्रेस और उसके सहयोगी सपा, बसपा, ममता, फलाने, ढिमके… इस डर को क्यों बनाये रखना चाहते थे। पाकिस्तान को क्यों इस धमकी को देने लायक बनाये रखना चाहते थे… बड़ी सफाई से ये राजनीतिक दल पाकिस्तान के तलवे चाट यहां बैठे पाक समर्थक अपने वोट बैंक को खुश रखते…! पाकिस्तान राष्ट्रपति परवेज़ मुशरर्फ ने एक बार कहा था हमारे परमाणु हथियार हमने शबेबारात के लिए नहीं रखे हैं। अब पाकिस्तान इस तरह भाषा बोलकर देख ले एक बार।

इसरो बैलगाड़ी से सेटेलाइट ढोता था, नेहरू की सिगरेट हवाई जहाज से आती थी!

एक बात जो सच है वो है इसरो नेहरू की देन था… ये बात अलग है कि जब इसरो बैलगाड़ी और साईकिल से सेटेलाइट ढोता था वहीं नेहरू की सिगरेट हवाई जहाज से आती थी…!

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