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क्या जेल में बंद व्यक्ति मंत्री बना रह सकता है, सुप्रीम कोर्ट के सामने बड़ा सवाल

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क्या गिरफ्तार हुआ, जेल में बंद व्यक्ति मंत्री बना रह सकता है? सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर ये सवाल पहुंचा है। इस बार मामला मनी लॉन्ड्रिंग केस में ईडी द्वारा गिरफ्तार तमिलनाडु के मंत्री सेंथिल बालाजी का है। याचिकाकर्ता ने उन्हें मंत्री पद से हटाने की मांग की है। मद्रास हाई कोर्ट से सेंथिल बालाजी को मंत्री पद से हटाने का आदेश न मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर उन्हें हटाने की मांग की है और हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट अगर इस मामले में सुनवाई कर फैसला देता है तो भविष्य के लिए ऐसे मामलों में व्यवस्था तय हो जाएगी और गिरफ्तारी और जेल के बावजूद व्यक्ति को बिना पोर्टफोलियो के मंत्री बनाए रखने की बढ़ती प्रवृत्ति पर रोक लगाई जा सकेगी। इससे पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के करीबी सत्येंद्र जैन जेल में रहते हुए नौ महीने तक मंत्री बने रहे और उन्होंने मंत्री पद की सैलरी भी उठाई। वहीं महाराष्ट्र में नबाब मलिक भी जेल जाने के बाद मंत्री पद पर काबिज रहे। पश्चिम बंगाल में ज्योति प्रिय मल्लिक गिरफ्तारी के बाद भी मंत्री बने हुए हैं। 

जेल में बंद सेंथिल बालाजी 5 महीने से मंत्री पद पर बरकरार
जेल में बंद तमिलनाडु सरकार के मंत्री सेंथिल बालाजी पांच महीने से मंत्री पद पर बरकरार हैं। तमिलनाडु की स्टालिन सरकार में मंत्री सेंथिल बालाजी को ‘नौकरी के बदले नकदी’ से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में 14 जून को गिरफ्तार किया गया था। वे अब भी तमिलनाडु सरकार में मंत्री हैं। हालांकि, उनके पास कोई विभाग नहीं है। इससे पहले उन्हें सुप्रीम कोर्ट से झटका लग चुका है। 7 अगस्त 2023 को शीर्ष अदालत ने बालाजी की गिरफ्तारी को चुनौती देने संबंधी याचिकाएं खारिज कर दी थी। सेंथिल और उनकी पत्नी मेगाला ने मद्रास हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें हिरासत में लेने के ईडी के अधिकार को बरकरार रखा गया था।

बिना विभाग के मंत्री बने हुए हैं सेंथिल बालाजी
न्यायिक हिरासत में जेल में बंद तमिलनाडु के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी को मंत्री पद से हटाने की मांग करने वाली याचिका में कहा गया है कि राज्यपाल सेंथिल बालाजी के बिना पोर्टफोलियो के मंत्री बनाए रखने से सहमत नहीं थे। लेकिन राज्य सरकार ने बालाजी के मंत्रालय उनके खराब स्वास्थ्य को देखते हुए दूसरे मंत्रियों को पुर्नआवंटित कर दिया और उन्हें बिना पोर्टफोलियो के मंत्री बना रहने दिया।

अनुच्छेद 154 व 163 तहत मंत्रियों को हटाने का प्रावधान
राज्यपाल की ओर से 29 जून को पत्र जारी कर सेंथिल बालाजी को तत्काल प्रभाव से मंत्री पद से हटा दिया। राज्यपाल ने ऐसा संविधान के अनुच्छेद 154 व 163 में मिली शक्तियों के तहत ऐसा किया। याचिका में कहा गया है कि उसी दिन देर रात राजभवन से एक और पत्र जारी हुआ जिसमें सेंथिल बालाजी को तत्काल प्रभाव से पद से हटाने के आदेश को फिलहाल टाल दिए जाने की बात कही गई और कहा गया कि गृहमंत्रालय को एडवोकेट जनरल से राय लेने की सलाह दी गई है। याचिका में कहा गया है कि ऐसा करना मनमाना, अवैधानिक और संविधान के खिलाफ है, राज्यपाल अपना आदेश वापस नहीं ले सकते क्योंकि यहां पर वह पदेन अधिकारी है।

राज्यपाल सीधे नहीं कर सकते किसी मंत्री को बर्खास्त
संविधान कहता है कि राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करेंगे और मुख्यमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करेंगे। किसी मंत्री की बर्खास्तगी के मामले में राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर ही काम करेंगे। सुप्रीम कोर्ट भी पूर्व फैसलों में कह चुका है कि ऐसे मामलों में राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर काम करेंगे। ऐसे में राज्यपाल सीधे किसी मंत्री को बर्खास्त नहीं कर सकते है। संभवतः इसी वजह से राज्यपाल ने सेंथिल बालाजी को पद से हटाने का फैसला टाल दिया।

सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्व आदेश पर मद्रास हाई कोर्ट ने की चर्चा
मद्रास हाई कोर्ट ने याचिका में मांगी गई राहत पर आदेश देने के बजाए मुख्यमंत्री को सलाह दी है कि वह न्यायिक हिरासत में रह रहे सेंथिल बालाजी को बिना पोर्टफोलियो के मंत्री बनाए रखने पर निर्णय लें। दरअसल मद्रास हाई कोर्ट ने पांच सितंबर को रवि की याचिका व कुछ अन्य लोगों की याचिका पर एक साथ फैसला सुनाया था। उस फैसले में हाई कोर्ट ने मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था, सुशासन, सार्वजनिक नैतिकता और संवैधानिक नैतिकता पर विस्तार से विचार किया था। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्व आदेश पर भी चर्चा की है।

जेल जाने के बाद भी कई मंत्री पदों पर रहे बरकरार
सेंथिल बालाजी से पहले महाराष्ट्र में नबाब मलिक और दिल्ली में सत्येन्द्र जैन जैसे कई मामलों में जेल जाने के बावजूद मंत्री पद काफी दिनों तक बरकरार रखा गया था। जबकि सरकारी कर्मचारियों के मामले में गिरफ्तारी के बाद स्वत: निलंबित होने का कानूनी प्रविधान है।

सत्येंद्र जैन जेल में रहते हुए नौ महीने तक मंत्री पद रहे
मनी लॉन्ड्रिंग केस में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा 30 मई 2022 को गिरफ्तार किए जाने के बाद सत्येंद्र जैन तिहाड़ जेल में रहते हुए भी वह नौ महीने तक मंत्री पद पर बने रहे। सत्येंद्र जैन से सीएम अरविंद केजरीवाल ने मनीष सिसोदिया के जेल जाने के बाद इस्तीफा लिया था। जेल में रहते हुए उनका मसाज वाला वीडियो वायरल हुआ था। यह वीडियो की वजह से वह सुर्खियों में बने रहे। उनका यह वीडियो काफी विवादित रहा।

सत्येंद्र जैन ने जेल में रहते हुए नौ महीने मंत्री की सैलरी ली
सत्येंद्र जैन ने जेल में रहते हुए 9 महीने तक मंत्री पद की सैलरी ली। चंडीगढ़ के आरटीआई एक्टिविस्ट एचसी अरोड़ा ने आरटीआई के माध्यम से यह जानकारी हासिल की। दिल्ली के एक मंत्री को प्रति माह 72,000 रुपये का वेतन मिलता है, जिसमें वेतन और तीन प्रकार के भत्ते शामिल हैं। एक मंत्री को किराया-मुक्त आवास, प्रति माह 3,000 यूनिट तक बिजली, एक चालक-चालित कार और प्रति माह 700 लीटर तक पेट्रोल और अन्य लाभ भी मिलते हैं। जुलाई 2022 में, दिल्ली विधानसभा ने मंत्रियों के वेतन और तीन भत्तों को 72,000 रुपये से बढ़ाकर 1.7 लाख रुपये करने के लिए एक विधेयक पारित किया था।

महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक जेल जाने के बाद भी मंत्री बने रहे
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मुंबई अंडरवर्ल्ड की गतिविधियों से जुड़े धन शोधन के एक मामले में 23 फरवरी 2022 को उद्धव ठाकरे सरकार में मंत्री नवाब मलिक को गिरफ्तार किया। गिरफ्तारी के बाद विपक्षी दल भाजपा ने नवाब मलिक से इस्तीफे की मांग शुरू कर दिया। लेकिन, एनसीपी ने कहा कि मलिक मंत्री पद से इस्तीफा नहीं देंगे। एनसीपी नेता छगन भुजबल ने कहा कि केवल आरोप मात्र से नवाब मलिक के इस्तीफे का सवाल ही नहीं उठता। और वे जेल में रहते हुए मंत्री पद पर बरकरार रहे। नवाब मलिक की गिरफ्तारी के चार महीने बाद उद्धव सरकार गिर गई थी और 30 जून 2022 को फ्लोर टेस्ट से पहले ही उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।

नवाब मलिक पर पहले भी लग चुका भ्रष्टाचार का आरोप, देना पड़ा था मंत्री पद से इस्तीफा
यह पहली बार नहीं था कि नवाब मलिक पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। इससे पहले साल 2005-2006 में प्रसिद्ध समाजसेवी अन्ना हजारे ने नवाब मलिक के खिलाफ माहिम स्थित जरीवाला चाल पुनर्विकास योजना में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। इसको लेकर हजारे मुंबई के आजाद मैदान में धरने पर बैठे थे। उसके बाद मलिक को तत्कालीन विलासराव देशमुख की सरकार से इस्तीफा देना पड़ा था। करीब 12 साल के बाद सुप्रीम कोर्ट से मलिक को राहत मिली थी।

पश्चिम बंगाल में ज्योति प्रिय मल्लिक गिरफ्तारी के बाद भी मंत्री
राशन वितरण घोटाले के सिलसिले में पश्चिम बंगाल के राज्य मंत्री ज्योति प्रिय मल्लिक की 27 अक्टूबर को गिरफ्तारी के बाद भी पश्चिम बंगाल मंत्रिमंडल में किसी भी फेरबदल नहीं किया गया है। यानि वे अभी भी मंत्री पद पर बने हुए हैं। मल्लिक के पास वर्तमान में ममता बनर्जी सरकार में वन मामले और गैर-पारंपरिक और नवीकरणीय ऊर्जा विभाग हैं। उन्होंने 2011 से 2021 तक खाद्य आपूर्ति मंत्री के रूप में कार्य किया, इस अवधि के दौरान राशन वितरण में कथित अनियमितताएं हुईं।

मौजूदा कानून में दोषी, सजा होने पर ही सांसद-विधायक अयोग्य
मौजूदा कानून में तो दोषी ठहराए जाने और सजा होने पर ही सांसद या विधायक अयोग्य होता है और उसकी सदस्यता जाती है। कानून की नजर में सदस्य और मंत्री में अंतर नहीं है, अगर कोई सदस्य रह सकता है तो मंत्री भी रह सकता है। मंत्रियों की नियुक्ति की संवैधानिक व्यवस्था देखी जाए तो राज्यपाल ही नियुक्ति करता है और राज्यपाल ही बर्खास्त करता है। ऐसे में सवाल यह कि क्या राज्यपाल को जेल में बंद दागी मंत्री को पद से बर्खास्त करने का अधिकार है।

नियम कानूनों की शून्यता का उठा रहे फायदा
ऐसा क्या है कि सेंथिल बालाजी, सत्येंद्र जैन और नवाब मलिक जेल में होने के बावजूद मंत्री पद पर काबिज हैं और सत्ताधारी दल सीना ठोंक कर उनकी तरफदारी करते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो इसके पीछे नियम कानूनों की शून्यता है। जेल में बंद दागी मंत्री को पद से हटाने के बारे में कानून मौन है। इस बारे में ना तो कोई कानून है और ना ही कंडक्ट रूल में कुछ कहा गया है। यह ग्रे एरिया है जिसका लाभ भ्रष्टाचारी उठा रहे हैं।

सरकारी कर्मचारी के लिए कानून, सांसदों-विधायकों के लिए कानून नहीं
देखा जाए तो एक सरकारी कर्मचारी अगर दो चार दिन जेल में रहता है तो वह निलंबित हो जाता है, लेकिन एक मंत्री नौ महीने जेल में होने के बावजूद पद पर काबिज रहता है। इस अजीब संवैधानिक स्थिति पर लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीपी आचारी कहते हैं कि इस बारे में कोई कानून या नियम नहीं हैं। सरकारी कमर्चारी के बारे में कंडक्ट रूल में है कि जेल जाने पर वह निलंबित रहेगा लेकिन मंत्री के जेल जाने पर उसे पद से इस्तीफा देना होगा या वह पद से हटा दिया जाएगा कानून में ऐसी कोई बात नहीं कही गई है।

कानून बने या फिर अदालत व्यवस्था दे
इस संबंध में स्पष्टता आनी चाहिए और सुप्रीम कोर्ट को यह मुद्दा तय करना चाहिए। देखा जाए तो इस स्थिति से निबटने के दो ही तरीके हैं या तो कानून बने या फिर अदालत व्यवस्था दे। कोर्ट किसी मुद्दे को तब तक परिभाषित नहीं करता या व्यवस्था नहीं देता है जब तक उसके सामने कोई मामला नहीं आता है। तो अब गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में है और देखना है कि कोर्ट इस पर क्या फैसला करता है।

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