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करौली दंगों के बाद अब जहांगीरपुरी हिंसा में भी सामने आया PFI कनेक्शन, साजिश को अंजाम देने वाले रोहिंग्या मुस्लिमों को केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में बसाया

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कर्नाटक के हिजाब विवाद से लेकर राजस्थान के करौली में दंगों तक और अब राजधानी दिल्ली के जहांगीरपुरी में हुई हिंसा की पड़ताल में एक बात कॉमन निकल आ रही है। इस तरह की इन सारी घटनाओं का पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से कनेक्शन सामने आ रहा है। पीएफआई वही विवादित संगठन है, जिसका दावा है कि इस वक्त देश के 23 राज्यों यह संगठन सक्रिय है। देश में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट यानी सिमी पर बैन लगने के बाद पीएफआई का विस्तार तेजी से हुआ। जहांगीरपुरी मामले में दिल्ली पुलिस टीम पीएफआई की स्टूडेंट विंग जुड़े करीब 20 लोगों पर नजर रखे हुए हैं। हिंसा में पीएफआई की स्टूडेंट विंग से जुड़े लोगों की भूमिका सामने आई है। इस संगठन के लोग बड़ी संख्या में हिंसा से पहले जहांगीरपुरी इलाके में सक्रिय थे। ऐसे में अब जिन लोगों का नाम सामने आ रहा है उन्हें जांच में शामिल किया जा सकता है। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि अगर किसी भी व्यक्ति या संगठन की भूमिका हिंसा में पाई जाती है तो उन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।

तीन संगठनों को मिलाकर बने पीएफआई पर देश विरोधी गतिविधियां करने के आरोप
पॉपुलर फ्रट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई फरवरी 2007 में अस्तित्व में आया। ये संगठन दक्षिण भारत ने तीन मुस्लिम संगठनों का विलय करके बना था। इनमें केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिथा नीति पसराई शामिल थे। कर्नाटक, केरल जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में यह विवादित संगठन ज्यादा सक्रिय है और अब दूसरे राज्यों में पैठ बनाने की कोशिशों में है। पीएफआई की कई शाखाएं भी हैं। इसमें महिलाओं के लिए- नेशनल वीमेंस फ्रंट और विद्यार्थियों के लिए कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया जैसे संगठन शामिल हैं। गठन के बाद से ही पीएफआई पर समाज विरोधी और देश विरोधी गतिविधियां करने के आरोप लगते रहते हैं।

 

PFI ने शोभायात्रा को बाधित कर हिंसा को अंजाम देने की बनाई थी रणनीति
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दो साल पहले हुए दंगे की तरह ही जहांगीरपुरी में भी हिंसा की साजिश रची गई थी। क्राइम ब्रांच की मानें तो इसके लिए न सिर्फ पीएफआई ने फंडिंग की है, बल्कि कई दिन पहले से इसकी साजिश रचना भी शुरू कर दिया था। यही नहीं, हनुमान जन्मोत्सव के एक दिन पहले ही पीएफआई के सदस्यों ने जहांगीरपुरी में बैठक कर शोभायात्रा को बाधित करने और हिंसा को अंजाम देने की रणनीति तैयार की थी। इस बैठक में अंसार, सोनू चिकना और सलीम सहित करीब 25 लोग शामिल हुए बताए जाते हैं। क्राइम ब्रांच इसमें शामिल होने वाले लोगों के बारे में पड़ताल कर रही है।

 

दो साल पहले दिल्ली दंगों में भी फंडिंग करके पीएफआई हुआ था शामिल
फरवरी 2020 में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगे और शाहीन बाग के प्रदर्शन के मामले में पीएफआई की संलिप्तता का पहली बार पता चला था। क्राइम ब्रांच की मानें तो इन दंगों में जिस तरह से पीएफआई के जरिये फंडिंग की गई थी। ठीक उसी तरह से जहांगीरपुरी हिंसा के लिए फंडिंग किए जाने की जानकारी क्राइम ब्रांच को अब तक की जांच में मिली है। इसके बाद गोपनीय तरीके से क्राइम ब्रांच ने फंडिंग के एंगल से भी जांच शुरू कर दी है।

जहांगीपपुरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली से भी बड़ा दंगा कराने की थी साजिश
पुलिस को जांच में 20 से 25 ऐसे लोगों की जानकारी मिली है, जो कि सीएए और एनआरसी के प्रदर्शन के साथ ही उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगे के दौरान सक्रिय रहे थे। इन सभी की लोकेशन 15 अप्रैल को जहांगीरपुरी में मिली है। इसके बाद ही क्राइम ब्रांच की जांच इस दिशा में आगे बढ़ी है। क्राइम ब्रांच के मुताबिक उत्तर-पूर्वी दिल्ली से भी बड़ा दंगा कराने की साजिश जहांगीरपुरी में रची गई थी। इसके लिए पीएफआई के सदस्यों ने कई बैठकें की थीं। इसके बाद उपद्रवियों को हथियार मुहैया कराए गए थे। उपद्रवियों को उम्मीद थी कि शोभायात्रा पर पथराव और फायरिंग करते ही भगदड़ मच जाएगी। इसमें कई लोगों की जान जाएगी और बड़े स्तर पर हिंसा भड़केगी।

 

दिल्ली दंगा मामले में दायर पूरक आरोप पत्र में भी पीएफआई का लिंक उजागर
पुलिस के मुताबिक इसके लिए पीएफआई के करीब 20 सदस्य लोगों को उकसाने के लिए हिंसा वाले दिन जहांगीरपुरी में मौजूद थे। जहांगीरपुरी में 100 से अधिक पीएफआई स्टूडेंट विंग के सदस्य भी रहते हैं। दिल्ली दंगा मामले में पिछले दिनों जो पूरक आरोप पत्र दायर किया गया है। उसमें भी पीएफआई का लिंक उजागर हुआ है। आरोप पत्र में इस संगठन के तार आतंकी डा.सबील अहमद से जुड़े होने की बात कही गई है। सबील अहमद स्काटलैंड के ग्लासगो एयरपोर्ट पर हुए आतंकी हमले का मास्टरमाइंड है। एनआइए ने इसी आरोप पत्र का हवाला देते हुए कहा है कि सबील व अन्य आतंकियों से पीएफआई का संपर्क है।

वोटों के लालच में दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने रोहिंग्या मुस्लिमों को बसाया
अब यह भी साफ होने लगा है कि जहांगीरपुरी में उपद्व करने वाले रोहिंग्या मुसलमानों को दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने ही किस तरह बसाया था। वोटों के लालच में केजरीवाल ने जो जहर बोया, उसका खामियाजा अब दिल्ली को उठाना पड़ रहा है। इस बीच रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर दिल्ली और यूपी सरकार के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है। उत्तर प्रदेश के जल शक्ति मंत्री महेंद्र सिंह का आरोप है कि यूपी सिंचाई विभाग की ज़मीन पर अवैध तरीके से योजना बनाकर केजरीवाल और उनके विधायकों ने रोहिंग्या मुसलमानों को बसा दिया है। अब जब योगी सरकार का बुलडोजर अपनी जमीनों को खाली कराने के लिए दिल्ली में चल रहा है तब केजरीवाल सरकार और उनके अधिकारी मदद नहीं कर रहे हैं। महेंद्र सिंह का आरोप यह भी है कि जिन जमीनों पर कब्जा हटा लिया गया था, वहां फिर रोहिंग्या मुसलमानों को आम आदमी पार्टी के एक विधायक के जरिए बसाने की कोशिश की जा रही है।

करौली में जताई थी हिंसा की आशंका, पर कोई इंतजाम नहीं

दिल्ली से पहले राजस्थान के करौली जिले में हिंदू नव सवंत्सर के मौके पर हुए उपद्रव, हिंसा और आगजनी के पीछे भी पीएफआई की मिलीभगत सामने आ चुकी है। पीएफआई का राजस्थान की गहलोत सरकार को पत्र इस बात का प्रमाण है कि उसे हिंसा होने की पूरी संभावना थी। करौली के आयोजन में हिंसा फैलाने का एक आह्वान सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। दरअसल सोशल मीडिया पर जो लेटर वायरल हो रहा है और जिसमें  हिंदू नववर्ष की आड़ में प्रदेश में हिंसा फैलाने की साजिश रचने की बात कही गई है। हैरान करने वाली बात ये सामने आई है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष मोहम्मद आसिफ ने बयान जारी करते हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री और डीजीपी को हिंसा की आशंका भी जताई थी। बीते शनिवार को राजस्थान के करौली में जुलूस के दौरान जमकर बवाल मचा गया था। हिंदू नववर्ष का जश्न मनाने के लिए एक धार्मिक जुलूस में पथराव हुआ था जिसके बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी।

 

 

 

 

धार्मिक जुलूस के संकरी गली में पहुंचने के बाद छतों से बरसाए गए पत्थर
हैरान करने वाली बात यह है कि सोशल म़ीडिया पर धार्मिक जूलूस में पथराव के जो वीडियो वायरल हो रहे हैं, वो साफ-साफ चुगली खाते हैं कि यहां माहौल अनायास ही खराब नहीं हुआ, बल्कि इसकी सुनियोजित प्लानिंग की गई थी। जुलूस पर पथराव के लिए घरों की छतों पर पहले के ही बड़े-बड़े पत्थर जमा किए गए थे। धार्मिक जुलूस पर तब तक पथराव नहीं किया गया, जब तक वह एक संकरी गली में नहीं पहुंच गया, ताकि जब ऊपर से पथराव हो तो संकरी गली में जमा ज्यादा से ज्यादा लोगों को शारीरिक रूप से गंभीर चोटों आएं।

PFI को कैसे पता चला कि 2 से 4 अप्रैल के बीच हो सकते हैं दंगे
अब करौली घटना के तार कट्टर धार्मिक संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से जुड़ता दिखाई दे रहा हैं। पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया  राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष मोहम्मद आसिफ ने बयान जारी करते हुए राजस्थान के मुख्यमंत्री और डीजीपी को हिंसा की आशंका भी जताई थी। चिट्ठी में इस बात का भी जिक्र किया गया था कि 2-4 अप्रैल तक सूबे के अलग-अलग जिलों, तहसीलों और कस्बों में आरएसएस और उसके संगठनों के जरिए हिंदू नववर्ष के मौके पर भगवा रैली आयोजित की जा रही है। रैलियों मे धार्मिक उन्माद फैलाने और कानून व्यवस्था बिगड़ने की भी बात कही थी। मगर सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर पीएफआई को कैसे पता चला कि 2 से 4 अप्रैल के बीच राजस्थान के करौली समेत कुछ ज़िलों में सांप्रदायिक झगड़े हो सकते हैं?

भाजपा अब इस मुद्दे को लेकर राजस्थान की कांग्रेस सरकार पर हमलावर
वहीं बवाल को बढ़ता देखे करौली में कर्फ्यू लगा दिया गया और इंटरनेट सेवा दूसरे दिन भी बंद रखी गई।  पुलिस ने मामले में अब 40 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है जबकि 7 लोगों को पूछताछ के लिए हिरासत में लिया है। नींद से जागी गहलोत सरकार ने अब  इस मामले की जांच एसआईटी से कराने के निर्णय लिया है। एक तरफ जहां राजस्थान के करौली में हुई को लेकर गहलोत सरकार विपक्ष के निशाने पर आ गई है। भाजपा अब इस मुद्दे को लेकर राजस्थान की कांग्रेस सरकार पर हमलावर हो गई है। 

सवालों में गहलोत सरकार, जानकारी के बावजूद चुप्पी क्यों साधे रही
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का लेटर सामने आने के बाद अब सीएम गहलोत की मुश्किलों में घिरते नजर आ रहे है। बड़ा सवाल ये है कि अगर इस घटना से राजस्थान की गहलोत सरकार अवगत थी तो उन्होंने समय रहते इस हिंसा को रोकने के लिए बड़ा कदम क्यों नहीं उठाया? आखिर क्यों गहलोत सरकार जानकारी होने के बावजूद भी चुप्पी साधे रही?  अब उनकी इस खामोशी पर भाजपा नेता शहजाद पूनावाला ने सवाल उठाए है और राजस्थान की कांग्रेस सरकार पर जोरदार प्रहार किया है।

करौली के उपद्रव के वीडियो और PFI की चिठ्ठी सोशल मीडिया पर वायरल होने के बार लोग राजस्थान सरकार और सीएम अशोक गहलोत को ट्रोल कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि जानकारी के बावजूद गहलोत सरकार आंखें मूंदें क्यों बैठी रही।

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