कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी कार्यकर्ताओं में जान फूंकने और पार्टी को मजबूत करने के लिए ‘भारत जोड़ो यात्रा’ तो निकाल रहे हैं, मगर पार्टी गुटों में बंटकर और कमजोर होती जा रही है। इस यात्रा के बीच में ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव आ गया। पता नहीं किस डर से राहुल गांधी अध्यक्ष बनने की जिम्मेदारी से भाग रहे हैं। उन्होंने जिस ‘घोड़े’ पर अध्यक्ष के लिए दावं लगाया, ऐन मौके पर वह भी बिदक गया है। यही वजह है कि अध्यक्ष के चुनाव दिल्ली में हैं और राजनीतिक पारा राजस्थान का चढ़ा हुआ है। कांग्रेस की सियासत ऐसी उलझी की गांधी परिवार के बेहद करीबी माने जाने वाले सीएम गहलोत ने ही आलाकमान को गच्चा दे दिया है। आलाकमान राजस्थान में भी विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब फार्मूला लागू करना चाहता था, लेकिन गहलोत के इशारे पर उनके समर्थक विधायकों ने इसे बेहद सुनियोजित तरीके से फेल कर दिया।
राजस्थान का सियासी संकट गहराने की सबसे बड़ी वजह अशोक गहलोत और सचिन पायलट का टकराव है। यह इस कदर बढ़ गया है कि गहलोत पायलट की उड़ान रोकने के लिए आलाकमान से भी टकरा गए हैं। दरअसल, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की संभावनाएं प्रबल बनती जा रही हैं। इसके लिए वे सीएम का पद छोड़ने को तैयार हैं, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी पर सचिन पायलट को नहीं देखना चाहते। उन्होंने साफ कह दिया है कि वो सीएम की कुर्सी पार्टी के वफादार के लिए छोड़ेंगे, किसी गद्दार के लिए नहीं। आलाकमान को भी इस बारे में दस बार सोचना चाहिए। दरअसल, दो साल पहले बगावत के चलते गहलोत गुट की नजर में सचिन पायलट इसी श्रेणी में आते हैं।
कांग्रेस पार्टी के नेता ही दबी जुबान से स्वीकार कर रहे हैं कि राजस्थान के सियासी घटनाक्रम और घमासान ने भारत जोड़ो यात्रा के मकसद को गौण कर दिया है। पहले ही यात्रा के बीच गोवा से लेकर गुजरात तक कई बड़े नेता कांग्रेस छोड़कर जा चुके हैं। गुलाम नबी आजाद ने अपनी पार्टी बना ली है। अब राजस्थान की अदावत ने यात्रा को बड़ा नुकसान पहुंचा दिया है, जिसकी भरपाई मुश्किल होगी। वहीं नेताओं को यह डर भी सता रहा है कि क्या राजस्थान कांग्रेस में भी कोई नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह बनने की राह पर आगे बढ़ रहा है। अगर ऐसा होता है कि कांग्रेस पार्टी के लिए उस नुकसान की भरपाई करना असंभव हो जाएगा।
आपको याद ही होगा कि पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले, प्रदेश कांग्रेस कमेटी में तगड़ा घमासान मचा था। नतीजा, पार्टी को कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाना पड़ा। उसके बाद चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस को अलविदा बोलकर अलग पार्टी बना ली। नवजोत सिंह सिद्धू खेमा भी नाराज हो गया। वरिष्ठ नेता सुनील जाखड़ ने भी पार्टी से किनारा कर लिया। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का सूपड़ासाफ हो गया। लेकिन पंजाब मॉडल कांग्रेस आलाकमान को फिर भी प्रिय है। उसी की तर्ज पर आलाकमान राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले सीएम गहलोत को हटाकर सचिन पायलट को सीएम बनाना चाहता है। इसके लिए ही प्रदेश प्रभारी और मल्लिकार्जुन खड़गे पर्यवेक्षक बनकर जयपुर आए। लेकिन आलाकमान का प्लान पहले ही लीक हो गया था। इसी स्क्रिप्ट के तहत गहलोत समर्थिक विधायकों के इस्तीफे के दनादन इस्तीफे आए और केंद्रीय पर्यवेक्षकों की एक न चली।
इस सियासी संकट के बीच सीएम गहलोत और उनके प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट ने चुप्पी साध रखी है, पर कई मंत्री बयानों से सुर्खियों में हैं। गहलोत सरकार के राज्यमंत्री राजेंद्र गुढा बसपा की टिकट पर जीतने के बाद कांग्रेस में शामिल हुए। गुढा ने सियासी घटनाक्रम पर बड़ा बयान देते हुए कहा कि विधायक वन-टू-वन बातचीत को तैयार थे, पर दो-चार लोगों ने जबरदस्ती कुछ विधायकों को कैप्चर कर लिया। मंत्री गुढा ने दावा किया कि विधानसभा अध्यक्ष के घर पर 90-92 विधायक नहीं थे। जब 35-40 विधायक सीएमआर थे, तो स्पीकर के घर 92 कैसे हो गए? विधायकों से वन टू वन बात करेंगे तो असलियत सामने आ जाएगी। उन्होंने कहा कि धारीवाल के बंगले पर की गई नौटंकी गहलोत को भारी पड़ेगी। गुढ़ा ने जोर देकर कहा कि विधानसभा अध्यक्ष को विधायकों के इस्तीफे मंजूर कर लेने चाहिए, ताकि सबको इस नौटंकी का पता लग सके।
खुद को जादूगर कहने वाले गहलोत इस बार अपने बुने हुए इंद्रजाल में फंसे-राठौड़
राजस्थान कांग्रेस में सीएम की कुर्सी के लिए गहलोत और पायलट के बीच मचे घमासान से बीजेपी नेताओं को कांग्रेस और गहलोत पर तंज कसने का मौका मिल गया है। विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ ने सीधे मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि अशोक गहलोत खुद को राजनीति का जादूगर बताते हैं, लेकिन इस बार वे खुद अपने बुने इंद्रजाल में बुरी तरह फंसे हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस में अनुशासनहीनता की पराकाष्ठा हो गई है। बीजेपी तटस्थ होकर पूरे घटनाक्रम को देख रही है। कांग्रेस की ए और बी टीम में संघर्ष चल रहा है। इसका खामियाजा राजस्थान की जनता को भुगतना पड़ रहा है, क्योंकि प्रदेश में विकास कार्य पूरी तरह अवरुद्ध पड़े हैं।
राजस्थान में चार साल से सरकार और कांग्रेस में केवल सियासी ड्रामा, पिस रही जनता
बीजेपी प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह ने कहा कि बीते चार साल से राजस्थान में सरकार और कांग्रेस में केवल सियासी ड्रामा ही चल रहा है। कांग्रेस आलाकमान आज ठगा हुआ सा महसूस कर रहा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस में वर्चस्व का संघर्ष अभी और गति पकड़ेगा। वहीं उन्होंने शांति धारीवाल के एक बयान पर पलवटवार करते हुए कहा कि इस्तीफा दिया है तो मंत्री गाड़ियां लौटाएं। मंत्री सरकारी कामकाज तत्काल बंद करें। सभी ड्रामे आलाकमान पर दबाव बनाने के लिए किए जा रहे हैं। उन्होंने दावा किया कि आलाकमान और गहलोत के बीच खाई बढ़ गई है। प्रदेश की जनता को इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। पिछले 4 साल के कार्यकाल के दौरान राजस्थान में अपराध चरम पर है। महंगाई और बेरोजगारी हावी है। जनता पिस रही है, लेकिन सरकार में सिर्फ हंगामा ही हो रहा है। सिर्फ कुर्सी बचाने के लिए पॉलिटिकल ड्रामा चल रहा है।
सोनिया-राहुल के दूत बनकर अजय माकन और मल्लिकार्जुन को मुंह की खानी पड़ी
इससे पहले सोनिया-राहुल गांधी के दूत बनकर जयपुर आए कांग्रेस प्रदेश प्रभारी अजय माकन और केंद्रीय पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खड़गे को मुंह की खानी पड़ी थी। दरअसल, कांग्रेस थिंक टैंक गहलोत की जगह दूसरे सीएम की जिस नियुक्ति को मामूली बात समझ रहा था, वह अब लोहे के चने चबाने जैसी हो गई है। केंद्रीय नेतृत्व की सीएम अशोक गहलोत से बातचीत के बाद सीएलपी की बैठक के लिए समय और जगह निर्धारित होने के बावजूद गहलोत गुट के कई विधायकों ने इसमें भाग ही नहीं लिया, बल्कि उसी समय समानांतर अपनी बैठक बुला ली। इससे कांग्रेस में अध्यक्ष और राजस्थान में मुख्यमंत्री को लेकर विधायकों से लेकर आलाकमान तक मामला और ज्यादा उलझ गया है।
गहलोत से समय और जगह तय करने के बाद ही दिल्ली से प्रदेश प्रभारी अजय माकन और पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खडगे जयपुर के लिए रवाना हुए थे। गहलोत की जगह राजस्थान के नए मुख्यमंत्री के चयन को लेकर नेता द्वय को हाईकमान ने भेजा था। अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और लग्जरी यात्रा कर रहे राहुल गांधी के निर्देश थे कि हर एक विधायक से व्यक्तिगत स्तर पर बातचीत कर रायशुमारी ली जाए। इस बातचीत के आधार पर सीएम के नाम को तय करें। लेकिन गहलोत समर्थक विधायकों ने पर्यवेक्षकों से मुलाकात ही करने की जरूरत नहीं समझी।
विधायक दल की बैठक में आने से गहलोत गुट के विधायक साफ ही मुकर गए। इतना ही नहीं, आलाकमान के दूतों के सामने इन विधायकों ने तीन शर्तें भी रख दीं। उन्होंने कहा कि इन शर्तों का पालन अनिवार्य रूप से हो, अन्यथा उनके इस्तीफे तैयार हैं। शर्तें न मानने की स्थिति में गहलोत सरकार गिरने की नौबत आ सकती है। गहलोत गुट के विधायकों की शर्तें थीं….पहली तो यह की दो साल पहले संकट के दौरान सरकार बचाने वाले 102 विधायकों यानी गहलोत गुट से ही किसी विधायक को सीएम बनाएं। दूसरी, सीएम तब घोषित हो, जब अध्यक्ष का कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव हो जाए। तीसरी और आखिरी शर्त के मुताबिक जो भी नया मुख्यमंत्री हो, वो गहलोत की पसंद का ही हो।
राजस्थान के कांग्रेस विधायकों ने ही नहीं, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी केंद्रीय पर्यवेक्षकों (अजय माकन और मल्लिकार्जुन खड़गे) को दो टूक जवाब दे दिया। सीएम गहलोत ने साफ-साफ शब्दों में कह दिया कि वह कांग्रेस के वफादार के लिए कुर्सी छोड़ेंगे, गद्दार के लिए नहीं। फिलहाल गहलोत अपना समर्थन दिखाने और शक्ति प्रदर्शन करने के बाद मामले को ठंडा रखना चाहते हैं। उनके समर्थक कह रहे हैं की कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के बाद मुख्यमंत्री का फैसला होना चाहिए। मुख्यमंत्री गहलोत को पार्टी अध्यक्ष बनने की संभावनाओं के बीच पायलट को सीएम बनाए जाने की आस जगी थी। लेकिन गहलोत गुट ने विधायक दल की बैठक का बहिष्कार कर और स्पीकर सीपी जोशी को 70 विधायकों ने इस्तीफे देकर सारे समीकरण उलट दिए।