प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्वोत्तर को भारत की ‘अष्टलक्ष्मी’ का नाम दिया था और साल 2025 इस बात का गवाह बना है कि कैसे केंद्र सरकार की नीतियों ने इस विजन को धरातल पर उतारा है। मोदी सरकार के ‘लुक ईस्ट’ से ‘एक्ट ईस्ट’ और अब ‘फास्ट ट्रैक डेवलपमेंट’ के मंत्र ने पूर्वोत्तर राज्यों को देश की मुख्यधारा की विकास यात्रा में सबसे आगे खड़ा कर दिया है। पूर्वोत्तर राज्यों (NER) के लिए यह साल केवल घोषणाओं का नहीं, बल्कि बड़े निवेश, अत्याधुनिक तकनीक और सांस्कृतिक गौरव के पुनर्जागरण का वर्ष रहा है।

आइए देखते हैं मोदी सरकार के नेतृत्व में 2025 में पूर्वोत्तर ने कैसे सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए।
लॉजिस्टिक्स: मोदी सरकार ने दी पूर्वोत्तर को ‘ग्रिड’ की शक्ति
कनेक्टिविटी को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की संवेदनशीलता का ही नतीजा है कि आज पूर्वोत्तर ‘नेशनल लॉजिस्टिक्स ग्रिड’ का हिस्सा बनने जा रहा है। जुलाई 2024 में 71वीं नॉर्थ ईस्ट काउंसिल (NEC) की बैठक में जो निर्देश दिए गए थे, उन्हें 2025 में अमलीजामा पहनाया गया। सिक्किम ने अपनी राज्य लॉजिस्टिक्स नीति अधिसूचित कर दी है, जबकि नागालैंड और मेघालय में यह प्रक्रिया अंतिम चरण में है। केंद्र सरकार की इस पहल से अब पूर्वोत्तर का सामान न केवल देश के कोनों तक, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया के बाजारों तक तेजी से पहुंचेगा।

राइजिंग नॉर्थईस्ट: 4.48 लाख करोड़ रुपये का ऐतिहासिक निवेश
प्रधानमंत्री मोदी के ‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य में पूर्वोत्तर की भूमिका को केंद्र में रखते हुए मई 2025 में नई दिल्ली में ‘राइजिंग नॉर्थ ईस्ट इन्वेस्टर्स समिट’ का आयोजन हुआ। सरकार के प्रयासों से बड़े कॉरपोरेट घरानों और विदेशी निवेशकों ने 4.48 लाख करोड़ रुपये के निवेश के प्रस्ताव दिए। यह इस क्षेत्र के इतिहास में निजी निवेश का सबसे बड़ा आंकड़ा है, जो मोदी सरकार पर निवेशकों के भरोसे को दर्शाता है। यह आंकड़ा बताता है कि अब निवेशक पूर्वोत्तर को सिर्फ ‘खूबसूरत वादियों’ के तौर पर ही नहीं, बल्कि एक ‘इकोनॉमिक पावरहाउस’ के रूप में भी देख रहे हैं।

NEST क्लस्टर: टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बड़ी छलांग
3 नवंबर 2025 को आईआईटी गुवाहाटी में ‘नॉर्थ ईस्ट साइंस एंड टेक्नोलॉजी क्लस्टर’ (NEST) का उद्घाटन हुआ। 22.98 करोड़ रुपये की लागत से बना यह क्लस्टर पीएम मोदी के ‘डिजिटल इंडिया’ अभियान को पूर्वोत्तर के गांवों तक ले जा रहा है। यहां सेमीकंडक्टर, AI और बांस तकनीक जैसे भविष्य के क्षेत्रों पर काम शुरू हो चुका है, जिससे स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के नए द्वार खुले हैं। अब यहां के युवा सिलिकॉन वैली के सपने यहीं रहकर पूरे कर सकेंगे।
पारंपरिक शक्ति बांस और अगरवुड को मिला ग्लोबल मार्केट
मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर के ‘ग्रीन गोल्ड’ यानी बांस और बेशकीमती ‘अगरवुड’ को विश्व स्तर पर पहचान दिलाई है। सरकार के हस्तक्षेप से अगरवुड का सालाना एक्सपोर्ट कोटा छह गुना बढ़ा दिया गया है। असम और त्रिपुरा में बन रहे अगरवुड क्लस्टर्स के साथ-साथ कार्बी आंगलोंग और मोकोकचुंग में बांस की अत्याधुनिक इकाइयां स्थापित की गई हैं। लगभग 4,000 कारीगरों को सीधे फॉर्मल मार्केट से जोड़कर उनकी आय में रिकॉर्ड बढ़ोतरी की गई है।

विरासत को सम्मान: 150 उत्पादों के लिए GI टैगिंग
स्थानीय हुनर को वैश्विक सम्मान दिलाने के प्रधानमंत्री मोदी के संकल्प के तहत, मंत्रालय ने पूर्वोत्तर के 150 विशिष्ट उत्पादों को GI टैग दिलाने का बीड़ा उठाया है। कृषि, हैंडलूम और हस्तशिल्प से जुड़े इन उत्पादों की पहचान सुरक्षित होने से यहां के स्थानीय बुनकरों और किसानों को बिचौलियों से मुक्ति मिलेगी और उनके उत्पादों को ‘ब्रांड’ के रूप में पहचान मिलेगी।

अष्टलक्ष्मी दर्शन: ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की जीवंत तस्वीर
विकास सिर्फ सड़कों और फैक्ट्रियों से नहीं आता, बल्कि लोगों के जुड़ाव से भी आता है। इमोशनल बॉन्डिंग को मजबूत करने के लिए 1 नवंबर 2025 को ‘अष्टलक्ष्मी दर्शन-यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम’ शुरू किया गया। इसके तहत देश के 28 राज्यों के 1,280 छात्र पूर्वोत्तर की संस्कृति को समझने के लिए 14 दिनों की यात्रा पर हैं। गोवा और उत्तराखंड के छात्रों के पहले बैच ने जब अरुणाचल की यूनिवर्सिटी का दौरा किया, तो प्रधानमंत्री के ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के सपने को नई ऊर्जा मिली।

विकसित भारत का गेटवे
साल 2025 के आंकड़े और जमीनी बदलाव यह साबित करते हैं कि पूर्वोत्तर अब भारत का एक कोना नहीं, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए भारत का ‘प्रवेश द्वार’ (Gateway) बन चुका है। बुनियादी ढांचे से लेकर डिजिटल कनेक्टिविटी और सांस्कृतिक गौरव तक, पूर्वोत्तर अब एक ऐसी उड़ान के लिए तैयार है जो 2047 के ‘विकसित भारत’ के संकल्प को पूरा करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।





