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सिर्फ नाम में INDIA, जमीन पर बिखराव: Rahul Gandhi के नेतृत्व और ‘वोट चोरी’ से इसलिए कतरा रहे हैं सहयोगी दल

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कांग्रेस सांसद और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा लगातार उठाया जा रहा ‘वोट चोरी’ का मुद्दा अब उनके लिए ही बोझ बनता जा रहा है। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का स्पष्ट रूप से यह कहना कि “वोट चोरी मुद्दे का INDIA गठबंधन से कोई लेना-देना नहीं”, सीधे-सीधे राहुल गांधी को अलग-थलग करता है। यह बयान बताता है कि राहुल गांधी का नैरेटिव ना तो गठबंधन की साझा रणनीति है और न ही सहयोगी दलों की प्राथमिकता। बिहार में करारी हार, उमर अब्दुल्ला की दूरी, महाराष्ट्र के निकाय चुनाव में कांग्रेस की अनिश्चित भूमिका और ममता बनर्जी की चुप्पी ये सभी संकेत एक ही दिशा में इशारा करते हैं कि INDIA गठबंधन ना केवल कमजोर हो रहा है, बल्कि राहुल गांधी उसके केंद्र से धीरे-धीरे बाहर धकेले जा रहे हैं। जब किसी गठबंधन के प्रमुख चेहरे ही सार्वजनिक रूप से दूरी बना लें तो नेतृत्व की विश्वसनीयता स्वतः कमजोर हो जाती है। यही हाल रहे तो पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव से पहले ही यह गठबंधन केवल चुनावी अंकगणित तक सिमट जाएगा।

INDIA गठबंधन पर उमर का साफ संदेश,‘वोट चोरी’ मुद्दा नहीं
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस द्वारा उठाए जा रहे ‘वोट चोरी’ के मुद्दे से खुद को अलग कर लिया है। उन्होंने साफ-साफ शब्दों में कहा कि विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA का वोट चोरी अभियान से कोई लेना देना नहीं है। क्योंकि गठबंधन में कभी भी इस मुद्दे पर कोई आम सहमति नहीं बनी है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का यह विस्फोटक बयान ऐसे समय में आया है, जबकि एक दिन पहले ही कांग्रेस ने दिल्ली में ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ रैली निकाली थी। जब उमर अब्दुल्ला से कांग्रेस के ‘वोट चोरी’ और कथित चुनावी अनियमितताओं के आरोपों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “INDIA गठबंधन का इससे कोई लेना-देना नहीं है। हर राजनीतिक दल को अपना एजेंडा तय करने की आजादी है। कांग्रेस ने ‘वोट चोरी’ और एसआईआर (मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण) को अपना मुख्य मुद्दा बनाया है, लेकिन हम इसके पक्ष में नहीं है।

सीएम उमर अब्दुल्ला के बयान से इंडिया गठबंधन के अंदर खलबली
नेशनल कॉन्फ्रेंस INDIA गठबंधन की एक अहम घटक पार्टी है। लोकसभा में विपक्षी सांसदों की संख्या के लिहाज से कांग्रेस इस गठबंधन की अहम पार्टी है। इसके बावजूद उमर अब्दुल्ला का यह बयान साफ संकेत देता है कि INDIA गठबंधन के भीतर सभी दल हर मुद्दे पर एक जैसी रणनीति नहीं अपना रहे हैं। कांग्रेस का दावा है कि उसने ‘वोट चोरी’ के खिलाफ देशभर में अभियान चलाया है और विपक्षी दल उसके साथ हैं। लेकिन उमर की स्वीकारोक्ति ने कांग्रेस और राहुल गांधी के वोट चोरी कैंपेन की पोल खोलकर रख दी है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के इस बयान से इंडिया गठबंधन के अंदर खलबली मच गई है। गठबंधन के सहयोगी दल ही आमने-सामने आ गए हैं। इंडिया गठबंधन में शामिल पार्टी आरजेडी नेता मनोज झा इस मुद्दे पर उमर के खिलाफ बयानबाजी पर उतर आए हैं। यह अलग बात है कि बिहार में आरजेडी को हराने में कांग्रेस की भी अहम भूमिका रही थी। मनोज झा ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया में कहा है कि नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला बार-बार विवादों में घिर रहे हैं, और हमें जवाब देना पड़ रहा है।’ झा को कहना पड़ा कि ‘जब हम वोटिंग में धांधली और चुनाव आयोग की बात करते हैं, तो सभी दलों को एक साथ आना चाहिए। क्योंकि यह मुद्दा सभी के लिए बहुत अहम हो जाता है।

बिहार की हार राहुल गांधी के नेतृत्व की स्वीकार्यता पर उठता सवाल
बिहार में कांग्रेस की करारी पराजय ने सिर्फ एक राज्य की सियासत नहीं बदली, बल्कि INDIA गठबंधन के भविष्य पर ही बड़ा प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। यह हार संगठनात्मक कमजोरी से कहीं अधिक राहुल गांधी के नेतृत्व की स्वीकार्यता पर उठता सवाल है। जिस कांग्रेस को गठबंधन का वैचारिक स्तंभ बताया जा रहा था, वही बिहार में न तो भरोसा जगा सकी और न ही निर्णायक भूमिका निभा पाई। नतीजा यह हुआ कि हार के बाद राहुल गांधी पार्टी के भीतर और गठबंधन के बाहर, दोनों जगह घिरते चले गए।

राहुल गांधी का ‘वोट चोरी’ एकाकी नैरेटिव, बिखरने लगे दल
INDIA गठबंधन को भाजपा के खिलाफ एक विकल्प के रूप में पेश किया गया था, लेकिन जमीनी हकीकत इससे उलट दिखाई दे रही है। यह गठबंधन साझा कार्यक्रम से ज्यादा साझा मजबूरी का परिणाम बनता जा रहा है। हर दल अपनी क्षेत्रीय राजनीति में उलझा है और राष्ट्रीय नेतृत्व को लेकर कोई स्पष्ट सहमति नहीं दिखती। राहुल गांधी को स्वाभाविक नेता मानने की धारणा अब केवल कांग्रेस तक सीमित रह गई है। उमर अब्दुल्ला का बयान केवल जम्मू-कश्मीर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उत्तर भारत की उस सोच को दर्शाता है, जहां राहुल गांधी की राजनीति को अब निर्णायक नहीं माना जा रहा है। नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसे दल, जो कभी कांग्रेस के स्वाभाविक सहयोगी रहे हैं, अब अपने हितों को पहले रख रहे हैं। यह स्पष्ट संकेत है कि INDIA गठबंधन के भीतर नेतृत्व का केंद्र बिखर चुका है।

BMC चुनाव, ठाकरे भाई और कांग्रेस की हाशिए की भूमिका
महाराष्ट्र की राजनीति में आने वाले BMC चुनाव INDIA गठबंधन की कमजोरी को और उजागर कर रहे हैं। शिवसेना (उद्धव गुट) के नेता संजय राउत का यह कहना कि “कांग्रेस BMC चुनाव में हमारे साथ होगी या नहीं, इस पर संदेह है।” राउत का बयान गठबंधन की जमीनी हकीकत बयान कर देता है। मुंबई जैसे देश के सबसे बड़े नगर निगम में अगर गठबंधन दल साथ नहीं उतर पाते, तो राष्ट्रीय स्तर पर एकजुटता का दावा खोखला प्रतीत होता है। संजय राउत का यह संकेत कि इस हफ्ते ठाकरे भाइयों की ओर से BMC चुनाव को लेकर औपचारिक घोषणा हो सकती है, कांग्रेस के लिए और भी असहज स्थिति पैदा करता है। यदि ठाकरे गुट कांग्रेस के बिना ही आगे बढ़ता है, तो यह साफ हो जाएगा कि क्षेत्रीय दल अब कांग्रेस को अनिवार्य सहयोगी नहीं मानते। यह वही कांग्रेस है जो खुद को विपक्ष की धुरी बताती रही है।

ममता बनर्जी ने कभी राहुल के नेतृत्व को खुलकर स्वीकार किया
INDIA गठबंधन को कमजोर करने वाले सबसे अहम कारकों में ममता बनर्जी की भूमिका भी है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने ना तो राहुल गांधी के नेतृत्व को खुलकर स्वीकार किया और ना ही कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ाने में रुचि दिखाई है। कई मौकों पर ममता बनर्जी ने संकेत दिए हैं कि कांग्रेस की कमजोरी भाजपा से लड़ाई को कठिन बनाती है। यहां तक कि ममता बनर्जी ने इंडिया गठबंधन का नेतृत्व राहुल गांधी से छीनकर उन्हें देने के भी संकेत दिए। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले इसका राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने भी ममता बनर्जी का समर्थन किया था। ममता बनर्जी की यह चुप्पी और दूरी राहुल गांधी के लिए एक बड़ा राजनीतिक संदेश है कि पश्चिम बंगाल के चुनाव में उनकी क्या भूमिका रहने वाली है।

क्षेत्रीय क्षत्रप अब राहुल के मुद्दे स्वीकार करने के मूड में नहीं
INDIA गठबंधन की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसमें शामिल अधिकांश दल अपने-अपने राज्यों में मजबूत हैं, लेकिन किसी केंद्रीय नेतृत्व को स्वीकार करने के मूड में नहीं हैं। राहुल गांधी की राजनीतिक शैली, उनका आंदोलनकारी रवैया और बार-बार संस्थाओं पर सवाल उठाना, क्षेत्रीय दलों को असहज करता है। वे अपने राज्यों में प्रशासन और चुनावी गणित को प्राथमिकता देते हैं, ना कि कांग्रेस के नैरेटिव का समर्थन करते हैं। राहुल गांधी की परेशानी केवल गठबंधन तक सीमित नहीं है, बल्कि कांग्रेस के भीतर भी संगठनात्मक कमजोरी खुलकर सामने आ रही है। बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों में कांग्रेस का आधार लगातार सिमट रहा है। ऐसे में गठबंधन के सहयोगी यह सवाल पूछने लगे हैं कि जो पार्टी अपने दम पर चुनाव नहीं जीत पा रही, वह पूरे विपक्ष का नेतृत्व कैसे करेगी।

भाजपा के लिए राजनीतिक अवसर, विपक्ष के लिए चेतावनी
पीएम मोदी ने हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव से पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि चुनाव के बाद INDIA गठबंधन टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा। ऐसी ही संभावना अब बनती दिख रही है। दरअसल, राहुल गांधी का नेतृत्व अब भी विरासत की राजनीति के सहारे खड़ा नजर आता है। गठबंधन के कई दल यह मानते हैं कि आज की राजनीति में केवल नाम पर्याप्त नहीं, बल्कि चुनावी सफलता और प्रशासनिक क्षमता भी जरूरी है। यही कारण है कि राहुल गांधी को न तो सर्वसम्मत नेता माना जा रहा है और न ही INDIA गठबंधन का चेहरा। इंडी गठबंधन के सहयोगी राज्यों में एक-दूसरे के खिलाफ ही चुनाव लड़ रहे हैं। आम आदमी पार्टी ने अलग राह पकड़ ली है। इंडिया गठबंधन की यह अंदरूनी खींचतान भाजपा के लिए राजनीतिक अवसर बनती जा रही है। जब विपक्ष खुद तय नहीं कर पा रहा कि उसका नेता कौन है और उसका एजेंडा क्या है, तब सत्तारूढ़ दल को आक्रामक होने का मौका मिलना स्वाभाविक है। राहुल गांधी का कमजोर पड़ता प्रभाव भाजपा के प्रभाव को और धार देता है।

 

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