क्या पश्चिम बंगाल में रहने वाले सभी लोग मुसलमान हैं?
क्या पश्चिम बंगाल में हिन्दू नहीं रहते?
क्या पश्चिम बंगाल इस्लामिक राज्य है?
क्या पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं को त्यौहार मनाने का अधिकार नहीं है?
क्या पश्चिम बंगाल में धर्म आधारित शासन है?
क्या पश्चिम बंगाल में भारतीय संविधान का राज खत्म हो गया है?
क्या यहां कट्टरपंथियों का राज है?
आपसे अगर इस तरह के सवाल पूछे जाए तो आप कहेंगे… क्या मजाक है? ये कोई सवाल है? लेकिन ये सवाल पश्चिम बंगाल सरकार के नए-नए फैसले से उठ रहा है।
सवाल इसलिए क्योंकि केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो ने पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार के लगातार हिन्दू विरोधी फैसले को लेकर सवाल उठाया है। ममता बनर्जी सरकार का नया फैसला मुस्लिमपरस्ती का नया मापदंड लेकर आया है। ममता बनर्जी सरकार का एक के बाद एक निर्णय मुसलमानों को संरक्षण और हिन्दुओं को तिरस्कार करने और उनकी भावनाओं को आहत करने का काम कर रहा है।
ममता बनर्जी की सरकार ने एक नया आदेश जारी करके प्रदेश में चलने वाले सभी 2480 पुस्तकालयों में नबी दिवस और ईद मनाना अनिवार्य कर दिया। इतना ही नहीं इसे मनाने के लिए सरकारी खजाने से फंड देने की भी व्यवस्था की गई है।
NabiDibas & Eid made mandatory in 2480 Govt Libraries of WB•BUT NO Saraswati Pujo•Only cultural program allowed#Shame pic.twitter.com/eEgQEeNsWL
— Babul Supriyo (@SuPriyoBabul) February 18, 2017
ये वही ममता बनर्जी सरकार है जो सरस्वती पूजा करने का अनुमति नहीं देती है। इसके लिए सरकारी खजाने से फंड देने की बात तो दूर है। ये वही ममता बनर्जी सरकार है जिसने दशहरा मनाने की अनुमति नहीं दी। हाईकोर्ट के आदेश के बाद पश्चिम बंगाल में लोग दशहरा मना पाए थे।
पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी की सरकार से सवाल-जवाब करके पूछना बहुत जरूरी है कि क्या वह केवल मुसलमानों की मुख्यमंत्री हैं? ममता बनर्जी को इसका जवाब देना होगा। क्योंकि यह राज्य और देश की अस्मिता का सवाल है।
– दीपक राजा