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प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति को एक और कामयाबी, अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के बाद अब UN ने 21 दिसंबर को घोषित किया विश्व ध्यान दिवस

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत की कूटनीति को एक और बड़ी कामयाबी मिली है। संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA- यूएनजीए) में भारत के एक सह-प्रायोजित प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया है। इस प्रस्ताव के पास होने के साथ ही अब दुनिया भर में 21 दिसंबर को विश्व ध्यान दिवस के रूप में मनाया जाएगा। शुक्रवार 6 दिसंबर को सभी देशों ने इसे स्वीकारते हुए एक तरफ से इसके पक्ष में वोटिंग की। भारत के साथ लिकटेंस्टीन, श्रीलंका, नेपाल, मैक्सिको और अंडोरा ने 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा में ‘विश्व ध्यान दिवस’ प्रस्ताव को पारित करने में अहम भूमिका निभाई।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पर्वतनेनी हरीश ने इसकी जानकारी देते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा कि समग्र कल्याण और आंतरिक परिवर्तन का दिन! मुझे खुशी है कि भारत ने कोर समूह के अन्य देशों के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र महासभा में 21 दिसंबर को विश्व ध्यान दिवस के रूप में घोषित करने के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से अपनाए जाने की प्रक्रिया का मार्गदर्शन किया। उन्होंने आगे लिखा कि समग्र मानव कल्याण में भारत का नेतृत्व हमारे सभ्यतागत सिद्धांत-वसुधैव कुटुम्बकम पर आधारित है कि पूरा विश्व एक परिवार है।

फोटो सोशल मीडिया

भारत के स्थायी प्रतिनिधि हरीश ने लिखा कि 21 दिसंबर शीतकालीन संक्रांति का दिन है, जो भारतीय परंपरा के अनुसार ‘‘उत्तरायण’’ की शुरुआत होता है जो विशेष रूप से आंतरिक चिंतन और ध्यान के लिए एक शुभ समय की शुरुआत होती है। यह अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के ठीक छह महीने बाद आता है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस 21 जून को मनाया जाता है, जो ग्रीष्म संक्रांति का दिन है। भारत ने 2014 में 21 जून को अंतरराट्रीय योग दिवस घोषित करने में अग्रणी भूमिका निभाई थी। एक दशक में यह एक वैश्विक आंदोलन बन गया है, जिसके कारण दुनिया भर में आम लोग योग का अभ्यास कर रहे हैं और इसे अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बना रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत की साख और धाक दुनियाभर में मजबूत हुई है। भारत एक विश्व शक्ति बनकर उभर रहा है। यह भारत के वैश्विक स्तर पर बढ़ते कद और ‘सॉफ्ट पॉवर’ का प्रमाण है।

पीएम मोदी ने भारत को बनाया ‘सॉफ्ट पॉवर’ 
मई 2014 में देश की बागडोर संभालने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने देश की सांस्कृतिक ताकत को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने और भारत को ‘सॉफ्ट पॉवर’ बनाने के लिए लगातार काम किया है। उनके प्रयास का परिणाम है कि 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मानने की घोषणा हुई और उसे लगातार वैश्विक मान्यता मिलती जा रही है। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के बाद अब विश्व ध्यान दिवस प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति की कई उत्कृष्ट सफलताओं में से है। आज दुनिया के कोने-कोने में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। लोग बड़े जोश के साथ योग के कार्यक्रम में हिस्सा लेकर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी की कोशिशों का नतीजा है कि योग को दुनिया के अधिकतर देशों का भरपूर समर्थन मिल रहा है।

प्रधानमंत्री पद संभालने के कुछ समय बाद, सितंबर 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के अपने पहले संबोधन में ही अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव को पूरे आत्मविश्वास के साथ रखा था। संयुक्त राष्ट्र महासभा को हिंदी में संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “अपनी जीवनशैली को बदलकर और चेतना पैदा करके, यह जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी हमारी मदद कर सकता है।” उन्होंने सदस्य देशों से अपील की कि वे “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” की उनकी मांग का समर्थन करें।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को मंजूरी दिलाना कोई आसान काम नहीं था। 1980 से यूएनजीए के नियमों के अनुसार ऐसे प्रस्तावों को केवल तभी पारित किया जाता है जब सभी देशों का बहुमत उसे मिला हो। साथ ही वो सारे देशों की प्राथमिकता से संबंधित हों और वैश्विक समस्याओं को हल करने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के विकास में योगदान दे। तो सच में ये एक कठिन काम था।

प्रधानमंत्री मोदी के कूटनीतिक प्रयासों ने मुश्किल काम को भी मुमकिन बना दिया। चीन के प्रारंभिक समर्थन के बाद, अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी और जापान ने काफी मदद की। मिस्र, नाइजीरिया, सेनेगल, तुर्की, इराक, ईरान और इंडोनेशिया सहित कई देशों के साथ साथ इस्लामी सहयोग समूह (ओआईसी) के 56 में से 48 देशों का समर्थन मिला।

ब्राजील, मेक्सिको, कोलंबिया, अर्जेंटीना के साथ-साथ अफ्रीका, एशिया-प्रशांत और कैरीबियाई में बड़े भारतीय डायस्पोरा वाले देश, सभी ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। अफगानिस्तान, भूटान और म्यांमार, श्रीलंका और नेपाल ने बड़े उत्साह से साथ दिया।

आखिरकार, प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रस्तावित किए जाने के सिर्फ 75 दिन बाद ही भारत को एक बड़ी जीत मिली। 11 दिसंबर, 2014 को यूएनजीए ने 193 देशों में से 177 के समर्थन के साथ इस प्रस्ताव को पास किया। इसमें सबसे बड़ी बात ये थी कि प्रस्ताव के विरोध में एक भी वोट नहीं पड़ा। span>

पहली बार 21 जून, 2015 को विश्व योग दिवस को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में बहुत उत्साह के साथ मनाया गया। यह विशेष रूप से भारत के लिए एक खास दिन था। इसका कारण यह है कि प्राचीन काल में योग का जन्म भारत में हुआ था और इस स्तर पर इसे मान्यता प्राप्त होने के कारण यह हमारे लिए गर्व का विषय था। देश में बड़े पैमाने पर इसे मनाया गया। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस ने सभी भारतीयों को गर्व का एहसास कराया। आज दुनिया के 200 देशों में करोड़ों लोग योग कर रहे हैं। योग दुनिया भर में भारत के राजदूत की तरह काम कर रहा है

आइए एक नजर डालते हैं कि किस तरह प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति से विश्व पटल पर बढ़ी भारत की धाक…

ग्लोबल लीडर बने प्रधानमंत्री मोदी
एक दौर वह भी था जब भारत विश्व की महाशक्तियों के भरोसे रहता था। आज भारत बोलता है तो दुनिया सुनती है। दरअसल दुनिया में इस समय किसी नेता की सबसे ज्यादा पूछ है तो वह प्रधानमंत्री मोदी हैं। प्रधानमंत्री मोदी की शख्सियत और व्यक्तित्व की पूरी दुनिया कायल है। प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले 10 सालों में जिस तरह से भारत की छवि को पूरी दुनिया में पेश किया है, उसने दुनिया भर के नेताओं को प्रधानमंत्री मोदी का मुरीद बना दिया है। आज पूरी दुनिया प्रधानमंत्री मोदी के दमदार व्यक्तित्व और शानदार प्रतिनिधित्व का कायल है। घरेलू राजनीति में वे जितने लोकप्रिय हैं वैसे ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक अमिट छाप छोड़ चुके हैं। आलम यह है कि विश्व के तमाम राजनेता उन्हें एक ग्लोबल लीडर मानते हैं।

ICJ में भारत का झंडा बुलंद
संयुक्त राष्ट्र में भारत को बड़ी जीत तब मिली जब दलवीर भंडारी लगातार दूसरी बार अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ऑफ जस्टिस में जज बन गए। दलवीर भंडारी का मुकाबला ब्रिटेन के क्रिस्टोफर ग्रीनवुड से था, लेकिन आखिरी दौर में अपनी हार देखते हुए उन्हें नाम वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। दरअसल शुरुआती ग्यारह राउंड में दलवीर भंडारी संयुक्त राष्ट्र महासभा की वोटिंग में ग्रीनवुड पर भारी बढ़त बनाए हुए थे, लेकिन सुरक्षा परिषद में ग्रीनवुड आगे हो जाते थे। यूएन महासभा में दलवीर भंडारी को 183 वोट मिले, जबकि उन्हें सुरक्षा परिषद के सभी 15 वोट मिले। गौर करें तो यह जीत भंडारी की नहीं बल्कि भारत के उस बढ़े कद की है जो प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में बढ़ा है। कभी दुनिया पर राज करने वाला ब्रिटेन आज भारत के सामने बौना साबित हो रहा है।

भारत ने जीता अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन का चुनाव
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का दबदबा लगातर बढ़ता जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत को एक और कामयाबी मिली। भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन का चुनाव जीत लिया। कुल 10 सदस्यों वाले इस संगठन का भारत 1959 से सदस्य है। जो चुनाव हुआ वह अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन की एक काउंसिल के लिए हुआ। यहां वह काउंसिल कैटेगरी बी की है जिसके लिए पहली बार चुनाव हुआ। IMO यूएन की ऐसी एजेंसी है जो नौवहन के बचाव और सुरक्षा पर नजर रखती हैं। यह एजेंसी जहाजों द्वारा फैलाए जाने वाले प्रदूषण पर भी नजर रखती है। भारत और जर्मनी के साथ ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, कनाडा, स्पेन, ब्राजील, स्वीडन, नीदरलैंड और यूएई इसके सदस्य हैं।

जलवायु परिवर्तन पर विश्व को दिया ‘पंचामृत’ का फॉर्मूला
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ब्रिटेन के ग्लासगो में आयोजित कॉप-26 शिखर सम्मेलन में विश्व को लाइफ यानि Lifestyle For Environment का मंत्र दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने इसके साथ ही विश्व को पंचामृत का फॉर्मूला भी दिया। उन्होंने कहा, ‘क्लाइमेट चेंज पर इस वैश्विक मंथन के बीच, मैं भारत की ओर से, इस चुनौती से निपटने के लिए पांच अमृत तत्व रखना चाहता हूं, पंचामृत की सौगात देना चाहता हूं।”
पहला- भारत, 2030 तक अपनी Non-Fossil Energy Capacity को 500 गीगावाट तक पहुंचाएगा।
दूसरा- भारत, 2030 तक अपनी 50 प्रतिशत energy requirements, renewable energy से पूरी करेगा।
तीसरा- भारत अब से लेकर 2030 तक के कुल प्रोजेक्टेड कार्बन एमिशन में एक बिलियन टन की कमी करेगा।
चौथा- 2030 तक भारत, अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन इंटेन्सिटी को 45 प्रतिशत से भी कम करेगा।
और पांचवां- वर्ष 2070 तक भारत, नेट जीरो का लक्ष्य हासिल करेगा। ये पंचामृत, क्लाइमेट एक्शन में भारत का एक अभूतपूर्व योगदान होंगे।

जलवायु परिवर्तन पर प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व पर भरोसा
जलवायु परिवर्तन पर काम करने के लिए भारत वैश्विक नेतृत्व को प्रेरित कर रहा है क्योंकि भारत ने अपनी ऊर्जा जरूरत का 40% हिस्सा 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य तय किया था, उसे नौ साल पहले ही हासिल कर लिया। भारत ने ऊर्जा के लिए कोयले से सौर की तरफ रूख करने के लिए ठोस प्रयास किए हैं। सौर और पवन ऊर्जा में भारी निवेश से बिजली की कीमतें भी कम हुई हैं। इसके अतिरिक्त मोदी सरकार यह साहस भी दिखाया है जब अमेरिका ने खुद को पेरिस समझौते से अलग किया तो दुनिया की नजर भारत पर ठहर गई। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत विश्व मंच पर अपनी ताकतवर उपस्थिति दर्ज करा दी है। प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर ही इंटरनेशनल सोलर एलायंस (ISA) का गठन हुआ।

प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर बना ‘अंतरराष्ट्रीय सौर संगठन’
दुनिया ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने के लिए चिंता जता रही थी, लेकिन भारत ने बड़ी पहल की और वैश्विक स्तर पर अमेरिका और फ्रांस के साथ इसके लिए इनोवेशन की तरफ कदम बढ़ाया गया। 26 जनवरी, 2016 को गुरुग्राम में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने ‘इंटरनेशनल सोलर अलायंस’ (आईएसए) के अंतरिम सचिवालय का उद्घाटन किया तो एक ‘नये अध्याय’ की शुरुआत हुई। दरअसल ‘अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन’ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा की गई पहल का परिणाम है और इसकी घोषणा भारत और फ्रांस द्वारा 30 नवंबर 2015 को पेरिस में की गई थी। आईएसए के गठन का लक्ष्य सौर संसाधन समृद्ध देशों में सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना और इसे बढ़ावा देना है। अब तक इस मंच से दुनिया के 86 से अधिक देश जुड़ चुके हैं।

जाहिर है प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत दुनिया की एक अहम शक्ति बनकर उभरा है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत का अहम स्थान है, तो सामरिक क्षेत्र में भी भारत ने अपनी हनक का अहसास कराया है। सामाजिक समस्याओं को सुलझाने में भारत ने जहां अपनी जिम्मेदारी निभाई है, वहीं पर्यावरण संतुलन जैसे मुद्दे पर भी भारत की पहल सराहनीय रही है। आतंकवाद के मुद्दे पर भारत के रुख ने जहां देश-दुनिया को सोचने को मजबूर किया है, वहीं विश्व शांति की ओर भारत के प्रयासों को दुनिया के देशों ने मान्यता दी है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत का दुनिया में जो स्थान बन गया है वह निश्चित ही भारत के बढ़ते प्रभुत्व को बयां करता है। विदेश नीति के तौर पर उनकी उपलब्धियां आंकी जाए तो पीएम मोदी के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का दबदबा लगातार बढ़ रहा है।

पीएम मोदी की पहल पर विश्व मना रहा अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष
वर्ष 2023 को सम्पूर्ण विश्व भारत के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में मना रहा है। संयुक्त राष्ट्र महासभा की ओर से पारित यह प्रस्ताव भारत की ओर से ही रखा गया था। भोजन में मोटे अनाज का सेवन स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण और आयुर्वेद के सिद्धांतों के अनुकूल होने के साथ-साथ भारत की सांस्कृतिक विरासत का भी अभिन्न अंग है। मोटे अनाज या कदन्न (millet) में ज्वार, बाजरा, रागी, कंगनी, कुटकी, कोदो, सावां आदि शामिल हैं। अप्रैल 2016 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भूख को मिटाने और दुनिया भर में कुपोषण के सभी प्रकारों की रोकथाम की आवश्यकता को मान्यता देते हुए 2016 से 2025 तक ‘पोषण पर संयुक्त राष्ट्र कार्रवाई दशक’ की घोषणा की थी। मोटा अनाज दुनिया से भूख मिटाने और कुपोषण दूर करने में भी सहायक बनेगा।

भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का स्वर्णिम दौर
प्रधानमंत्री मोदी के केंद्र की सत्ता में 2014 में आने के बाद भारतीय विदेश नीति में अभूतपूर्व परिवर्तन प्रारंभ हुआ। पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत में ऊर्जावान कूटनीति एवं शक्तिशाली निर्णयों की शुरुआत हुई। यह स्वर्णिम दौर भारत के लिए क्रांतिकारी परिवर्तन का प्रारंभिक दौर है। आज भारत ने अपनी ‘साफ्ट स्टेट’ की पहचान को छोड़कर एक मजबूत एवं स्पष्ट हितों वाले देश के रूप में पहचान स्थापित कर ली है। यही वजह है कि भारत की मुखर विदेश नीति ने सबका ध्यान आकर्षित किया है। प्रधानमंत्री और भारत के दूसरे उच्चाधिकारी लगातार यह कहते आए हैं कि इस भू-राजनीतिक संकट में हम वही करेंगे, जो राष्ट्रहित में होगा। यही वजह है कि भारत पश्चिमी देशों के रूस पर लगाए आर्थिक प्रतिबंधों से दूर रहा। यह सही फैसला था क्योंकि यूरोप ने भी रूस से तेल और गैस खरीदना बंद नहीं किया और इसे आर्थिक प्रतिबंधों से अलग रखा।

वर्ल्ड लीडर्स में पहले पायदान पर पीएम मोदी
प्रधानमंत्री मोदी ने जी20 के सफल आयोजन से पहले रूस-यूक्रेन युद्ध और कोरोना संकट के दौरान जिस प्रकार से देश की सवा सौ करोड़ से ज्यादा जनता की रक्षा करते हुए पूरी दुनिया के लिए मदद के हाथ बढ़ाए हैं, उससे वे लगातार दुनिया का सबसे लोकप्रिय और शीर्ष नेता बने हुए हैं। अमेरिकी रिसर्च एजेंसी मॉर्निग कंसल्ट के लगातार कई सर्वे में प्रधानमंत्री मोदी दुनिया के सबसे लोकप्रिय और शीर्ष नेता बने हुए हैं। 

अमेरिका और रूस से एक साथ दोस्ती
अमेरिका और रूस की अदावत सभी जानते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की के कूटनीतिक कौशल के कारण आज दोनों ही देश भारत के साथ खड़े दिखते हैं। ब्रिक्स सम्मेलन में जिस तरह से रुस ने भारत का साथ देते हुए चीन की हेकड़ी गुम कर दी वह काबिले तारीफ है। ठीक इसी तरह पाकिस्तान परस्त रहे अमेरिका को भारत की तरफ ले आना भी बड़ी बात है। आज अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को आतंकवादी देश घोषित करने का खतरा मंडरा रहा है। अमेरिका ने भारत से दोस्ती की खातिर आज पाकिस्तान को हर मंच पर अकेला छोड़ दिया है।

‘कट्टर तिकड़ी’ को एक साथ साध गए पीएम मोदी
विदेश नीति के तौर पर प्रधानमंत्री मोदी की उपलब्धियां आंकी जाए तो इस बात से अंदाजा लग जाएगा कि किस तरह उन्होंने इजरायल और फिलीस्तीन जैसे आपस में दुश्मन देशों के बीच संतुलन स्थापित किया। विशेष यह कि प्रधानमंत्री ने बारी-बारी दोनों ही देशों का दौरा किया और भारत की विदेश नीति के अपने स्टैंड पर कायम रहे। दोनों ही देशों ने भारत के बारे में सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने जब 10 फरवरी,2018 को फिलीस्तीन का दौरा किया तो ऐसा अद्भुत नजारा दिखा जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। जॉर्डन के हेलिकॉप्टर पर सवार प्रधानमंत्री मोदी फिलीस्तीन के आसमान में उड़ रहे थे और उन्हें सुरक्षा प्रदान कर रही थी इजरायल की वायुसेना। विश्व राजनीति के लिए ऐसा अनोखा काम कोई और नही हो सकता है।

जी-20 के सफल आयोजन से पीएम मोदी ने रच डाला इतिहास
दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित दो दिवसीय जी-20 शिखर सम्मेलन सफलतापूर्वक संपन्न हो गया है। भारत मंडपम में 9 और 10 सितंबर, 2023 को शिखर सम्मेलन की बैठक में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन,ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक,फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों,इटली की पीएम जॉर्जिया मेलोनी समेत दुनिया भर के बड़े-बड़े नेताओं ने हिस्सा लिया। इन नेताओं की मौजूदगी में भारतीय नेतृत्व का कमाल, बेमिसाल कूटनीति, लाजवाब मेजबानी और भारतीयता की छाप देखने मिली। इसे देखकर हर भारतवासी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। जब पूरी दुनिया रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर दो हिस्सों में बंटी हो और आशंकाएं व्यक्त की जा रही हों कि सम्मेलन के आखिरी दिन तक संयुक्त घोषणा पत्र पर आम सहमित शायद ही बन सके। ऐसे समय में भारत ने सम्मेलन के पहले ही दिन ‘नई दिल्ली घोषणा पत्र’ पर आम सहमति बनाकर उसकी स्वीकृति की औपचारिक घोषण कर दी। इससे पूरा विश्व दंग रह गया। कूटनीति के जानकार भी हैरान थे। इस तरह प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम ने अपनी कूटनीतिक जीत का डंका पूरी दुनिया में बजा दिया।

ब्रिटेन ने पहली बार किया यूएनएससी में स्थायी सदस्यता का समर्थन
ब्रिटेन सरकार ने 13 मार्च, 2023 को संसद में पेश रक्षा और विदेश नीति समीक्षा रिपोर्ट ‘इंटीग्रेटेड रिव्यू रिफ्रेश 2023’ (IR 2023) में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में भारत को स्थायी सदस्यता देने और यूएनएससी में सुधारों की वकालत की है। यह ब्रिटेन सरकार की ओर से भारत को सुरक्षा परिषद में स्थान देने का समर्थन करने की पहली बड़ी प्रतिबद्धता है। ‘इंटीग्रेटेड रिव्यू रिफ्रेश 2023 में कहा गया है कि ब्रिटेन सरकार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधार का समर्थन करेगी और ब्राजील, भारत, जापान और जर्मनी का स्थायी सदस्यों के रूप में स्वागत करेगी। इसमें भारत को प्रमुख प्राथमिकता वाले देश के रूप में रेखांकित किया गया है। विदेशी मामलों के लिए ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के प्रवक्ता ने बताया कि ऐसा पहली बार हुआ है, जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को लेकर हमने ब्रिटेन की नीति संबंधी दस्तावेज में बात की है। हमने पहली बार संसद के समक्ष यह बात रखी है कि हम यूएनएससी सुधारों का समर्थन करेंगे। यह ब्रिटेन के रुख में एक बदलाव है। रिपोर्ट में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापक रणनीतिक साझेदारी, 2030 रोडमैप का क्रियान्वयन, भारत की जी-20 अध्यक्षता का समर्थन, मुक्त व्यापार बातचीत, रक्षा और सुरक्षा साझेदारी को मजबूत करने, प्रौद्योगिकी पर सहयोग और हिंद-प्रशांत को लेकर समुद्री सुरक्षा को लेकर प्रतिबद्ध जाहिर की गई है।

सुरक्षा परिषद में भारत की सदस्यता को कई देशों का समर्थन
प्रधानमंत्री मोदी ने सत्ता संभालते ही कई देशों की यात्राएं की हैं। इन यात्राओं में वे तीन प्रमुख एजेंडों के साथ आगे बढ़ रहे थे। अलग-अलग देशों के साथ संबंधों में सुधार, निवेश आमंत्रित करने और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में भारत की स्थायी सीट के लिए समर्थन जीतना उनका प्रमुख उद्देश्य था। दरअसल भारतीय इतिहास में कोई और प्रधानमंत्री नहीं जिन्होंने सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए इतनी मेहनत की है। ब्रिटेन के इस समर्थन के साथ ही उन्होंने अमेरिका, जर्मनी, रूस, फ्रांस, तुर्की और जापान जैसे देशों के राजदूत और नेताओं को अपने पक्ष में लाकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के लिए लगभग सभी देशों का समर्थन हासिल कर लिया। यह समर्थन इस अंतरराष्ट्रीय मंच की स्थिति के लिए भारत की पात्रता दिखाने के उनके प्रयासों का प्रत्यक्ष परिणाम था।

8वीं बार सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य बना भारत
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में विश्व के हर प्रभावशाली मंच पर भारत की दमदार उपस्थिति दिखाई दे रही है। भारत को 17 जून,2020 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) का 8वीं बार अस्थाई सदस्य चुना गया। 4 जनवरी, 2021 का दिन भारत के लिए गर्व भरा रहा। इस दिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के गलियारे में तिरंगा फहराया गया। इसी के साथ भारत संयुक्त राष्ट्र के इस शक्तिशाली निकाय में दो वर्षों के लिए अस्थायी सदस्य के तौर पर अपना कार्यकाल भी शुरू कर दिया। भारतीय ध्वज के साथ चार अन्य अस्थायी सदस्यों का राष्ट्रीय ध्वज भी फहराया गया, जिसमें नॉर्वे, केन्या, आयरलैंड और मैक्सिको शामिल हैं। सुरक्षा परिषद में मौजूदगी से किसी भी देश की यूएन प्रणाली में दखल और दबदबे का दायरा बढ़ जाता है। ऐसे में 8 साल बाद भारत की सुरक्षा परिषद में दो साल के लिए पहुंचना खासा अहम है। 

इमरान खान ने की पीएम मोदी और भारत की विदेश नीति की तारीफ
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने कई अवसरों पर पीएम मोदी की प्रशंसा की है। इमरान खान ने कहा कि भारत की विदेश नीति स्वतंत्र है। रूस से तेल खरीदने के भारत के फैसले के बारे में बोलते हुए, खान ने कहा, ‘मुझे भारत का उदाहरण लेना चाहिए, जो हमारे साथ-साथ आजाद हुआ था। अब इसकी विदेश नीति को देखें। यह एक स्वतंत्र और स्पष्ट विदेश नीति है। भारत अपने निर्णयों के पक्ष में डट कर खड़ा रहता है कि अपने नागरिकों के हित में रूस से तेल खरीदेंगे।’ पीएम मोदी की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि यूक्रेन युद्ध के बीच पश्चिम के दबाव के बावजूद मोदी सरकार के अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरूप रूसी तेल की खरीद की सराहना करते हुए इमरान खान ने कहा कि भारत और अमेरिका क्वाड सहयोगी हैं। इसके बावजूद भारत ने अपने नागरिकों के हित में रूस से तेल खरीदने का फैसला किया। इमरान खान ने कई बार भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की है। इससे पहले नवंबर में इमरान खान ने मोदी सरकार की प्रशंसा करते हुए कहा था कि भारत ने अमेरिका के साथ गरिमापूर्ण संबंधों का भरपूर लाभ उठाया है।

जब दुनिया के नेता मौन थे, तब मोदी ने तालिबान को विश्व शांति के लिए बड़ा खतरा बताया
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाईडेन ने सत्ता संभालने के कुछ समय बाद ही अफगानिस्तान से अपनी सेना वापस बुलाने का निर्णय लिया, उसके बाद जब अगानिस्तान में तालिबान ने अपनी सरकार बना ली और अपना कानून लागू कर दिया तब विश्व का कोई भी देश तालिबान के खिलाफ एक शब्द भी बोलने कि हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। उस समय केवल प्रधानमंत्री मोदी ने ही तालिबान को विश्व शांति के लिए बड़ा खतरा बताते हुए अपना पक्ष रखा था। तब उस समय दुनिया भर के जो नेता मौन थे उन्हें आज इस बात का एहसास हो गया है कि तालिबान में कोई बदलाव नहीं आया है और वह अब भी खूंखार बना हुआ है। अफगानिस्तान में लड़कियों का जीवन बर्बाद हो चुका है और उनकी शिक्षा व बाहर काम करने जैसे सपनों पर ग्रहण लग चुका है।

तालिबान पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव में पीएम मोदी के विचारों को विशेष महत्व
दुनिया को जब तालिबान की हकीकत का पता चला तो संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव पारित किया गया। इस प्रस्ताव में प्रधानमंत्री मोदी के विचारों को विशेष महत्व दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने तालिबान पर अफगान महिलाओं तथा लड़कियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए यह प्रस्ताव पारित किया। इसमें तालिबान पर एक प्रतिनिधि सरकार स्थापित करने में नाकाम रहने तथा देश को गंभीर आर्थिक, मानवीय और सामाजिक स्थिति में डालने का आरोप लगाया गया। प्रस्ताव में 15 महीने पहले अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता पर काबिज होने के बाद से देश में निरंतर हिंसा और अल कायदा तथा इस्लामिक स्टेट जैसे आतंकवादी समूहों के साथ ही विदेशी आतंकवादी लड़ाकों का भी उल्लेख किया गया है। 193 सदस्यीय सभा में 116 मतों से यह प्रस्ताव पारित हुआ। रूस, चीन, बेलारूस, बुरूंडी, उत्तर कोरिया, इथियोपिया, गिनी, निकारागुआ, पाकिस्तान और जिम्बाब्वे सहित 10 देश प्रस्ताव से दूर रहे। सुरक्षा परिषद की तुलना में महासभा के प्रस्ताव कानूनी रूप से बाध्य नहीं हैं लेकिन वे दुनिया की राय को दर्शाते हैं। सभा में यह प्रस्ताव जर्मन राजदूत की ओर से रखा गया था।

विश्व शांति के लिए अंतरराष्ट्रीय कमीशन में पीएम मोदी के नाम का सुझाव
कोरोना काल के बाद 2022 में मेक्सिको के राष्ट्रपति आंद्रियास मैनुएल लोपेज ओब्राडोर ने विश्व शांति के लिए एक अंतरराष्ट्रीय कमीशन बनाने की बात की और सुझाव दिया कि इस कमीशन में भारत के प्रधानमंत्री मोदी को शामिल किया जाए। युद्ध जैसी कार्रवाइयों को समाप्त करने का आह्वान करते हुए मेक्सिको के राष्ट्रपति ने चीन, रूस और अमेरिका से शांति का रास्ता खोजने की अपील की। उन्होंने कहा कि वैश्विक शक्तियों के टकराव ने विश्व आर्थिक संकट को जन्म दिया है, उन्होंने मुद्रास्फीति में वृद्धि की है और भोजन की कमी हुई और अधिक गरीबी पैदा की। और सबसे बुरी बात यह है कि टकराव के कारण इतने सारे इंसानों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। ओब्रेडोर ने कहा कि प्रस्तावित युद्धविराम ताइवान, इजराइल और फिलिस्तीन के मामले में समझौतों तक पहुंचने में मदद करेगा और अधिक टकराव को बढ़ावा देने वाला नहीं होगा। ओब्राडोर ने यह उम्मीद जताई कि प्रधानमंत्री मोदी इस इलाके में शांति कायम करने में मददगार साबित होंगे।

कोरोना के खिलाफ जंग में मिली वैश्विक सराहना
प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना से जंग में पूरी दुनिया को रास्ता दिखाया है। विश्व के तमाम संगठनों ने कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में निर्णयकारी नेतृत्व निभाने वाले प्रधानमंत्री मोदी को दुनिया के लिए प्रेरणास्रोत बताया है। कई दिग्गज अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के सर्वे में भी प्रधानमंत्री मोदी की वाहवाही की गई है। मशहूर अमेरिकी पत्रकार थॉमस फ्रायडमैन ने भी माना कि मोदी सरकार ने कोरोना वायरस को परास्त करने में बेहतरीन काम किया है। इससे विश्व स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ भारत का सम्मान बढ़ा है। वैश्विक कोरोना संकट के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने ना सिर्फ देश के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए संकटमोचक बन गए हैं। प्रधानमंत्री मोदी के निर्देश पर दुनिया के तमाम देशों में कोरोना वायरस से लड़ने के लिए मदद भेजी जा रही है। वैक्सीन के साथ कई देशों को मोदी सरकार ने दवाएं और चिकित्सीय उपकरण भेजे हैं।

‘वैक्सीन मैत्री’ के तहत 98 देशों को वैक्सीन की आपूर्ति
कोरोना महामारी से बचाव के लिए सबसे जरूरी वैक्सीन के साथ दवा की आपूर्ति को लेकर भारत अभी दुनिया का सबसे अग्रणी देश बन गया है। भारत ने अपने ‘वैक्सीन मैत्री’ कार्यक्रम के जरिए 98 देशों को 200 मिलियन कोविड वैक्सीन की डोज सप्लाई की है। इसकी तारीफ कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों और शासनाध्यक्षों ने की। 55 से अधिक देशों को भारत ने दवा की आपूर्ति की। इसमें अमेरिका, ब्रिटेन जैसे शक्तिशाली देशों से लेकर गुआना, डोमिनिक रिपब्लिक, बुर्कीनो फासो जैसे गरीब देश भी हैं, जिन्हें भारत ने अनुदान के तौर पर दवाओं की आपूर्ति की। भारत ने मालदीव, मॉरीशस, सेशेल्स, मेडागास्कर और कोमोरोस और अन्य पड़ोसी देशों को खाद्य सामग्री और दवाएं भेजकर मदद की। 

विदेशी दौरों में द्विपक्षीय संबंधों को दिया नया आयाम
प्रधानमंत्री मोदी दुनिया की महाशक्तियों के प्रमुखों समेत अपने पड़ोसी देशों के राष्ट्राध्यक्षों से मुलाकात में द्विपक्षीय संबंधों को नया आयाम देने के साथ ही वह भारत की नीतियों को प्रमुखता से बताने में सफल रहे हैं। इससे दुनिया के तमाम देशों के साथ भारत के संबंध प्रगाढ़ हुए हैं और देश का सिर सम्मान से ऊंचा उठा और अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है।

क्वाड सम्मेलन में बाइडेन ने की पीएम मोदी की तारीफ
प्रधानमंत्री मोदी 23 मई,2022 को दो दिवसीय क्वाड शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने जापान की राजधानी टोक्यो पहुंचे। इस दौरान भारतीय समुदाय ने प्रधानमंत्री मोदी का भव्य स्वागत किया। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सम्मेलन के दौरान कोरोना महामारी से लोकतांत्रिक तरीके से निपटने में प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका की जमकर प्रशंसा की, वहीं चीन पर विफलता का आरोप लगाया। यह सम्मेलन भारत की दृष्टि से काफी सफल रहा। अमेरिका ने भारत के साथ सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया। हिंद महासागर क्षेत्र में क्वाड का सहयोग भारत को एक रणनीतिक बढ़त प्रदान करेगा। इसका उपयोग भारत इस क्षेत्र की शांति के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीन की आक्रामकता को नियंत्रित करने के लिए कर सकेगा। गौरतलब है कि नवंबर 2017 में हिंद-प्रशांत क्षेत्र को चीन के प्रभाव से मुक्त रखने हेतु नई रणनीति बनाने के लिये ‘क्वाड’ समूह की स्थापना की गई थी।  

अमेरिका ने दिया रणनीतिक सहयोगी देश का दर्जा
प्रधानमंत्री मोदी के दमदार नेतृत्व के कारण ही अमेरिका ने भारत को रणनीतिक सहयोगी देश का दर्जा दिया है। इसका मतलब यह हुआ कि भारत के साथ कारोबारी रिश्तों को नाटो (नार्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) के सदस्य देशों के साथ कारोबार के तर्ज पर ही वरीयता दी जाएगी। इस फैसले के बाद भारत को अब अमेरिका से उच्चतम रक्षा तकनीक लाइसेंसिंग प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ेगा। अमरीका ने भारत को एसटीए-वन दर्जे वाले देशों में शामिल करने की घोषणा की। यह निर्यात नियंत्रण व्यवस्था में भारत की स्थिति में बहुत ही महत्वपूर्ण बदलाव है। इस दर्जे के बाद भारत को अमेरिका से अत्याधुनिक रक्षा तकनीक हासिल करने में छूट मिलेगी। इससे भारत को अमरीका के निकटतम सहयोगियों और भागीदारों की तरह अमरीका से अधिक उन्नत और संवेदनशील प्रौद्योगिकी उत्‍पादों को खरीदने की अनुमति होगी। भारत सूची में एकमात्र दक्षिण एशियाई देश है।

सफल कूटनीति से विश्व में भारत का दबदबा
पिछले कुछ समय से चीन परेशान था कि भारत अमेरिका का पिछलग्गू बन गया है। लेकिन अब चीन को विश्वास हो गया है कि भारत किसी भी देश के करीब हो सकता है, उसका पिछलग्गू नहीं है। भारत की सफल कूटनीति के कारण पूरे विश्व में भारत की एक अलग पहचान बनती जा रही है, जिसके कारण चीन जैसे शत्रु देश भी अब भारत से संबंध बेहतर करने के लिए लालायित है। मोदी सरकार ने साबित कर दिया है कि सफल कूटनीति से विश्व में दबदबा कायम किया जा सकता है। 

Asean देशों को चीन के ‘चंगुल’ से छुड़ाया
26 जनवरी, 2018 को नई दिल्ली के राजपथ पर विश्व ने एक और अनोखा दृश्य तब देखा जब आसियान देशों के 10 राष्ट्राध्यक्ष भारत की जमीन पर एक साथ दिखे। थाइलैंड, वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलिपींस, सिंगापुर, म्यांमार, कंबोडिया, लाओस और ब्रुनेई आसियान के नेताओं ने भारत को अपनी इस इच्छा से अवगत कराया कि रणनीतिक तौर पर अहम भारत-प्रशांत क्षेत्र में ज्यादा मुखर भूमिका निभाए। साफ है कि आसियान देशों के नेताओं का पीएम मोदी पर भरोसा व्यक्त किया जाना विश्व राजनीति में भारत के दबदबे को दिखा रहा है।

इस्लामिक देशों के साथ भारत के संबंधों में आई मजबूती
सऊदी अरब से लेकर यूएई सहित तमाम इस्लामिक देशों ने भारत के प्रधानमंत्री मोदी को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित भी किया। इसके अलावा इस्लामिक देशों के साथ भारत के संबंध भी मजबूत हुए हैं, जिसका नतीजा है कि कश्मीर मसले पर दुनिया भर के देशों ने भारत का साथ दिया। पाकिस्तान इस्लामिक राष्ट्रों से अपने सबंधों के बल पर भारत को आंख दिखाता था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने ईरान, यूएई और सऊदी अरब के साथ भारत के सामरिक रिश्तों को मजबूत किया। इन देशों के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के रिश्तों को एक नया आयाम दिया। यूएई ने भारत के अपराधियों को प्रत्यर्पण करने में पूरी मुस्तैदी दिखाई। इस तरह भारत ने पाकिस्तान को अलग कर दिया है। पाकिस्तान के मित्र राष्ट्रों के साथ दोस्ती करके प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान की आतंकवादी नीति के नैतिक बल को ही खत्म कर दिया है।

आतंकवाद पर दुनिया ने स्वीकारा पीएम मोदी का आह्वान
आतंकवाद अच्छा या बुरा नहीं होता, आतंकवाद तो बस आतंकवाद होता है। अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत की यही बात पहले अनसुनी रह जाती थी, लेकिन अब भारत की बातों को दुनिया मानने लगी है और एक सुर में आतंक की निंदा कर रही है। आतंक के खिलाफ आज अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस, नार्वे, कनाडा, ईरान जैसे देश हमारे साथ खड़े हैं। पाकिस्तान को छोड़कर सार्क के सभी सदस्य देश अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव और नेपाल हमारे साथ हैं। जी-20 हो या हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन, ब्रिक्स हो या सार्क समिट सभी ने हमारे साथ आतंकवाद को मानवता का दुश्मन बताते हुए दुनिया को इसके खिलाफ एक होने का आह्वान किया है।

प्रधानमंत्री मोदी की नीति से पस्त हुआ पाकिस्तान
मोदी सरकार की स्पष्ट और दूरदर्शी विदेशनीति के प्रभाव से पाकिस्तान विश्व बिरादरी में अलग-थलग पड़ गया है। प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति में ऐसा घिरा है कि उसे विश्व पटल पर भारत के खिलाफ अपने साथ खड़ा होने वाला कोई एक सहयोगी देश नहीं मिल रहा। चीन तक भारत के खिलाफ उसका साथ देने को तैयार नहीं है। हाल में ही जब चीन ने पाकिस्तान की उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें पाकिस्तान ने भारत पर ओबीओआर को नुकसान पहुंचाने के लिए भारत की साजिश की बात कही थी। दूसरी ओर अमेरिका की अफगान नीति से उसे बाहर किया जा चुका है और वह पाकिस्तान से सहयोग में भी लगातार कटौती कर रहा है। पाक को आतंकवाद का गढ़ कहते हुए अफगानिस्तान और बांग्लादेश भी अब पाकिस्तान का साथ पूरी तरह से छोड़ चुके हैं।

सर्जिकल स्ट्राइक पर भारत को दुनिया का साथ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत का दुनिया में जो स्थान बन गया है वह निश्चित ही भारत के बढ़ते प्रभुत्व को बयां करता है। फरवरी 2019 में पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के बालाकोट में हवाई हमला और जम्मू-कश्मीर के उरी में 18 सितंबर, 2016 को हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने 29 सितम्बर 2016 को सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों और लॉन्चपैड को तबाह किया तो विश्व समुदाय भारत के साथ खड़ा रहा। इस के साथ ही पहली बड़ी सफलता 28 सितंबर को तब मिली जब पाकिस्तान में होने वाले सार्क सम्मेलन के बहिष्कार की घोषणा के तुरंत बाद तीन अन्य देशों (बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान) ने उसका समर्थन करते हुए सम्मेलन में ना जाने की बात कही। वहीं नेपाल ने सम्मेलन की जगह बदलने का प्रस्ताव दिया और पाकिस्तान के आंतकवाद के कारण सार्क सम्मेलन न हो सका। इसके अलावा चीन ने भी पाक के द्वारा कश्मीर में अंतराष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग पर इसे द्विपक्षीय मामला कहकर कन्नी काट ली।

लद्दाख और डोकलाम में चीन ने देखी भारत की धमक
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारतीय सेना ने लद्दाख और डोकलाम में चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया। गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के मारे जाने की संख्या को लेकर जमकर आलोचना का सामना करना पड़ा। अमेरिका के प्रतिष्ठित थिंक-टैंक हडसन इंस्टिट्यूट के सेंटर ऑन चाइनीज स्ट्रैटजी के डायरेक्टर माइकल पिल्स्बरी नो कहा कि चीन की बढ़ती ताकत के समक्ष मोदी अकेले खड़े हैं। दरअसल ये टिप्पणी उन्होंने ‘वन बेल्ट, वन रोड’ परियोजना को ध्यान में रखते हुए कही थी। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी और उनकी टीम चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के इस महत्वाकांक्षी प्रॉजेक्ट के खिलाफ मुखर रही है। दरअसल अमेरिकी थिंक टैंक का मानना बिल्कुल सही है, क्योंकि भारत ने चीन को डोकलाम विवाद में भी अपनी दृढ़ता का परिचय करा दिया है और चीन को अपनी सेना को वापस बुलाने पर मजबूर होना पड़ा। चीन ने भारत को युद्ध की भी धमकी दी लेकिन पीएम मोदी की नीतियों से चीन अकेला हो गया और पश्चिमी देशों ने उसे संयम बरतने की सलाह दी। अमेरिका, फ्रांस, जापान, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत के साथ खड़े रहे।

अंतरिक्ष कूटनीति से सार्क को दी नई दिशा
प्रधानमंत्री मोदी की उम्दा कूटनीति की मिसाल है दक्षिण एशिया संचार उपग्रह। इसकी पेशकश उन्होंने 2014 में काठमांडू में हुए सार्क सम्मेलन में की थी। यह उपग्रह सार्क देशों को भारत का तोहफा है। सार्क के आठ सदस्य देशों में से सात यानी भारत, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और मालदीव इस परियोजना का हिस्सा बने जबकि पाकिस्तान ने अपने को इससे यह कहकर अलग कर लिया कि इसकी उसे जरूरत नहीं है वह अंतरिक्ष तकनीक में सक्षम है। 5 मई 2017 के सफल प्रक्षेपण के बाद इन देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने जिस तरह खुशी का इजहार करते हुए भारत का शुक्रिया अदा किया उससे उपग्रह से जुड़ी कूटनीतिक कामयाबी का संकेत मिल जाता है। लेकिन पाकिस्तान ने अपने अलग-थलग पड़ने का दोष भारत पर यह कहते हुए मढ़ दिया कि भारत परियोजना को साझा तौर पर आगे बढ़ाने को राजी नहीं था।

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