रूस-यूक्रेन संकट के बाद एक बार फिर से संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं। संयुक्त राष्ट्र जिस तरह से यूक्रेन में जंग रोकने में नाकाम रहा है उससे इस वैश्विक संस्था की दुनियाभर में आलोचना हो रही है। यूएन चीफ चीफ एंटोनियो गुटेरेस की अपील को ठुकराते हुए रूस की सेना यूक्रेन में प्रवेश कर चुकी है। यूएन इसके पहले भी कई देशों के बीच शांति कायम रखने में नाकाम रहा है।
अमेरिका-वियतनाम युद्ध हो या ईरान-इराक युद्ध या फिर रवांडा में बड़ा नरसंहार या बोस्निया में गृह युद्ध, संयुक्त राष्ट्र प्रभावशाली भूमिका निभाने में नाकाम रहा है। संयुक्त राष्ट्र की विफलता के कारण दुनियाभर में लाखों लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन सिर्फ पांच देशों के पास वीटो पावर होने के कारण यूएन सिर्फ दिखावे की संस्था भर है। यूएन की सुरक्षा परिषद में अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन स्थाई सदस्य हैं। वीटो पावर से लैस ये देश किसी भी मामले को आगे बढ़ने से रोक देते हैं। जिस कारण संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा और शांति स्थापित करने में विफल हो जाता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 25 सितंबर, 2021 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की जोरदार पैरवी की। उन्होंने साफ कहा कि अगर यूएन सुधारों की दिशा में नहीं बढ़ा तो अपनी प्रासंगिकता खो देगा। उन्होंने कहा कि आज यूएन पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं, उसे अपनी विश्वसनीयता को बढ़ाना होगा।
महासभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “यूएन पर आज कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। इन सवाल को हमने जलवायु संकट में देखा है, कोरोना के दौरान देखा है। दुनिया के कई हिस्सों में चल रही प्रॉक्सी वॉर- आतंकवाद और अभी अफगानिस्तान के संकट ने इन सवालों को और गहरा कर दिया है। कोविड के शुरुआत के संदर्भ में और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग को लेकर, वैश्विक गवर्नेंस से जुड़ी संस्थाओं ने, दशकों के परिश्रम से बनी अपनी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाया है।”
अब यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध शुरू होने के बाद एक बार फिर से संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग जोर पकड़ने लगी है। दुनियाभर के नेताओं को प्रधानमंत्री मोदी की यूएन को दी गई ये नसीहत याद आ रही है। अगर जल्दी ही यूएन में सुधार नहीं किया गया तो यह अपनी प्रासंगिकता खो देगा।