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तीस्ता सीतलवाड़ के लिए रात में खुल गया सुप्रीम कोर्ट, आम नागरिकों के लिए इतनी तत्परता से अदालत के द्वार कब खुलेंगे?

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गुजरात दंगे से जुड़े झूठे सबूत देने के मामले में गुजरात हाई कोर्ट ने 1 जुलाई 2023 को तथाकथित सोशल एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ की नियमित जमानत खारिज कर दी और तुरंत उन्हें सरेंडर करने के लिए कहा। हाई कोर्ट के इस फैसले को चुनौती देने वाली सीतलवाड़ की याचिका 1 जुलाई 2023 को ही सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई और उस पर उसी दिन सुनवाई भी शुरू हो गई। जस्टिस अभय ओका और प्रशांत मिश्रा की बेंच विशेष रूप से इस सुनवाई के लिए बैठी। तीस्ता सीतलवाड़ को अंतरिम राहत देने को लेकर दोनों जजों ने अलग-अलग राय व्यक्त की थी। जस्टिस ओका सीतलवाड़ को राहत देना चाहते थे लेकिन जस्टिस मिश्रा ने असहमति जताई। उन्होंने कहा कि जमानत देने के सवाल पर हमारे बीच असहमति है। इसलिए हम चीफ जस्टिस से इस मामले को बड़ी पीठ को सौंपने का अनुरोध करते हैं। इसके बाद उसी दिन मामले की सुनवाई के लिए तीन जजों की बेंच का गठन कर दिया गया। पीठ में जस्टिस बीआर गवई, एएस बोपन्ना और दीपांकर दत्ता ने तीस्ता सीतलवाड़ की याचिका पर रात 9.15 बजे सुनवाई शुरू की और उन्हें यह कहते हुए जमानत दे दी गई कि एक हफ्ते के लिए जमानत देने से कोई आसमान नहीं टूट पड़ेगा। यानि एक व्यक्ति के लिए छुट्टी के दिन सुप्रीम कोर्ट दो बार बैठा। उम्मीद की जानी चाहिए अब आम लोगों के लिए भी सुप्रीम कोर्ट इसी तत्पतरता से काम करेगा।

तीस्ता सीतलवाड़ के लिए छुट्टी के दिन दो बार बैठा सुप्रीम कोर्ट
तीस्ता सीतलवाड़ मामले में रात के 9 बजे तक चली सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही। दोपहर के 1 बजे गुजरात उच्च न्यायालय ने बेल हटाते हुए आत्मसमर्पण करने का फ़ैसला सुनाती है। शाम 6 बजे सर्वोच्च न्यायालय के दो जजों की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए बड़े बेंच के पास मामले को भेज देती है। रात्रि 9 बजे सर्वोच्च न्यायालय के 3 जजों की पूर्ण पीठ ने मामले की सुनवाई की। याद रहे शाम चार बजे के बाद सर्वोच्च न्यायालय नहीं चलता, आजकल न्यायालय का अवकाश चल रहा है, सत्यापित मामलों को छोड़ किसी मामले की सुनवाई नहीं करता, शनिवार और रविवार को कोई सुनवाई नहीं करता। इसी तरह मुंबई बम ब्लास्ट के आतंकवादी याकूब मेमन के लिए भी सुप्रीम कोर्ट रात को 2 बजे खुला था।

मनीष कश्यप मामले में अदालत की यही दरियादिली नहीं दिखती
तीस्ता सीतलवाड़ के लिए छुट्टी के दिन सुप्रीम कोर्ट खुल गया और उन्हें जमानत मिल गई। लेकिन समस्या तब होती है जब कोई मनीष कश्यप या अर्णब गोस्वामी का मामला होता है तो उन्होंने अदालत की इसी दरियादिली का लाभ नहीं मिल पाता। सुप्रीम कोर्ट मनीष कश्यप के मामले में सुनवाई से इनकार कर देता है और उन्हें वापस हाई कोर्ट जाने की सलाह देता है। लेकिन तीस्ता सीतलवाड़ के मामले में ऐसा नहीं होता। मनीष कश्यप मामले में इन जजों के ज्ञान ऐसे नहीं निकलते कि यदि सात दिन की रिलीफ दे देंगे तो क्या पहाड़ टूट पड़ेगा! इससे लगता है कि न्यायपालिका न तो संविधान के हिसाब से चलती है, न वो अपने ही आदेशों और अवलोकनों के आधार पर चलती है, न भारतीय दंड विधान के अनुसार। न्यायपालिका वकीलों के स्टेटस, याचिकाकर्ता की विचारधारा और उसकी पहचान को आधार बना कर चलती है। अगर यह सत्य है तो ब्रिटिश काल से चली आ रही इस न्यायिक प्रक्रिया को बदलने की जरूरत है।

तीस्ता जैसों के असली आका कितने ताकतवर होंगे?
9/11 के बाद पूरी दुनिया में इस्लामोफोबिया तेजी से फैल रहा था। 4 महीने बाद ही गोधरा किया गया। उन्हें पता था प्रतिक्रिया होगी। 4 महीने बाद ही पूरी दुनिया में वो विक्टिम बन गए। तीस्ता वगैरह सिर्फ पैदल सिपाही (फुट सोलजर्स) हैं। सोचिए जब वो आज भी इतने ताकतवर हैं कि सुप्रीम कोर्ट छुट्टी के दिन स्पेशल हियरिंग उनके लिए करे तो तीस्ता जैसों के असली आका कितने ताकतवर होंगे।

आम नागरिक के लिए ऐसी सुनवाई कभी संभव हो पाएगी?
अब यहीं पर यह सवाल उठता है कि जब तीस्ता सीतलवाड़ केस के लिए सुप्रीम कोर्ट देर रात तक सुनवाई कर सकता है तो क्या आम नागरिक के लिए ऐसी सुनवाई कभी संभव हो पाएगी? बिहार का एक नौजवान होनहार लड़का जो बिहार के लिए आवाज उठाता था उसके लिए सुप्रीम कोर्ट के पास आजतक सुनवाई का समय नहीं मिल पा रहा है ऐसा क्यों? सुप्रीम कोर्ट ने मनीष कश्यप की बेल की याचिका बार बार टाली लेकिन गोधरा दंगों में बड़े अधिकारियों को फंसाने वाली तीस्ता सीतलवाड़ को बेल दे दी है। इस घटना को देखकर कश्मीर फाइल्स का डायलॉग याद आ गया कि सरकार किसी की भी हो सिस्टम तो उनका ही है।

आम नागरिकों के लिए न्यायालयों के द्वार क्यों नहीं खुलते?
आम आदमी के केस की तारीख़ में तो 10 साल तक लग जाता है। तारीख पर तारीख मिलती है किन्तु मुंबई बम ब्लास्ट के खूंखार आतंकी याकूब मेमन के लिए सुप्रीम कोर्ट रात को 2 बजे खोला जाता है। तीस्ता के लिए रात को 9 बजे सुप्रीम कोर्ट खोला गया। जब सुप्रीम कोर्ट की छुट्टियां चल रही हैं तो इतनी क्या जल्दी थी? क्या रात में किसी तरह की आफत आने वाली थी? क्या भारत के सभी नागरिकों के लिए इतनी तत्परता से माननीय न्यायालयों के द्वार खुलते हैं।

देश के गद्दारों से हमदर्दी किसको है ?
एक सवाल यह भी उठता है कि देश के गद्दारों से हमदर्दी किसको है? जिनको आतंकवादी इशरत जहां में ‘बेटी’ नजर आती है। आतंकवादी हाफ़िज़ सईद में ‘साहब’ नजर आता है। आतंकवादी ओसामा लादेन में ‘जी’ नजर आता है। ज़ाकिर नाइक में ‘शांति का मसीहा’ नजर आता है। बुरहान वानी मे ‘भटका हुआ नौजवान’ और भारत के सेना के अध्यक्ष में ‘सड़क छाप गुंडा’ नजर आता है।

सुप्रीम कोर्ट रात में खुले, विशेष सुनवाई भी की है। लेकिन इनमें अधिकतर मामले किस तरह के हैं, इसे देख कर आप भी अंदाजा लगा सकते हैं कि यह पूर्वाग्रह से ग्रसित रहा है-

29 जुलाई, 2015
याकूब मेमन की फांसी मामले में आधी रात में बैठी थी सुप्रीम कोर्ट की बैंच
1993 के मुंबई सीरियल धमाके के दोषी याकूब मेमन की याचिका को जब राष्ट्रपति की ओर से खारिज कर दिया गया था, तब 30 जुलाई 2015 की आधी रात को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खुला था। उस वक्‍त वकील प्रशांत भूषण सहित कई अन्य वकीलों ने देर रात को इस फांसी को टालने के लिए अपील की गई थी। उस वक्‍त ये सुनवाई जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई में तीन जजों की एक बेंच ने की थी। रात के तीन बजे ये मामला सुना गया। 30 जुलाई 2015 की रात को 3.20 पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हुई थी, जो कि सुबह 4.57 तक चली थी। जिरह के बाद इस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इसके बाद याकूब मेमन को फांसी दे दी गई थी।

17 मई 2018
कर्नाटक में भाजपा को सरकार बनाने से रोकने के लिए आधी रात को सुनवाई
कर्नाटक के राजनीतिक विवाद को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट में आधी रात को सुनवाई हुई थी। ये मामला उस वक्‍त शुरू हुआ जब 2018 में कर्नाटक के राज्यपाल ने आधी रात को भाजपा को सरकार बनाने का अवसर दिया था। उस वक्‍त इसके खिलाफ कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। ये सुनवाई 17 मई 2018 की रात करीब 2 बजे शुरू हुई और सुबह करीब 5 बजे तक चली थी। हालांकि यहां पर कांग्रेस को निराशा ही हाथ लगी थी और सुप्रीम कोर्ट ने बीएस येदियुरप्पा की शपथ पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।

7 सितंबर 2014
निठारी कांड के आरोपी सुरेंद्र कोली के लिए रविवार को खुला न्यायालय
साल था 2014 और दिन था 7 सितंबर रविवार, मेरठ के सेंट्रल जेल से एक खबर निकलती है कि निठारी कांड के आरोपी सुरेंद्र कोली को सोमवार को फांसी दी जा रही है। क्योंकि रविवार का दिन था इसलिए कोर्ट बंद थे। इसको लेकर नामचीन वकील इंदिरा जयसिंह रात को ही उस वक्त के सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा से मिलने का वक्त मांगती हैं। चीफ जस्टिस इंदिरा जयसिंह को मीटिंग का वक्त देते हैं जिसके बाद रात करीब 11:45 पर एक सीनियर चीफ जस्टिस एचएल दत्तू के घर स्पेशल अदालत लगती है। अदालत के खत्म होते होते…मेरठ सेंट्रल जेल को खबर दी जाती है कि कोली की फांसी 7 दिन के लिए रोक दो।

इंदिरा जयसिंह ने निर्भया की मां से की बलात्कारियों को माफ करने की अपील
वकील इंदिरा जयसिंह की कांग्रेस से नजदीकी रही है और वह किस विचारधारा की पोषक है उसे इस बात से समझा जा सकता है कि निर्भया केस में तो वह बलात्कारियों के पक्ष में जा खड़ी हुई और निर्भया की मां से अपील की थी कि उन्हें सोनिया गांधी से सीख लेते हुए दोषियों को माफ कर देना चाहिए।

तीस्ता सीतलवाड़ के जीवन से जुड़े कुछ अहम तथ्य-

तीस्ता सीतलवाड़ की सिस्टम में इतनी पहुंच क्यों है?
तीस्ता सीतलवाड़ की सिस्टम में इतनी पहुंच क्यों है? क्यों कांग्रेसी सिस्टम द्वारा संचालित न्यायपालिका इसका समर्थन क्यों करती है। इसकी याचिका सुप्रीम कोर्ट पहुंचते ही क्यों लाल कालीन बिछ जाती है। क्यों सारे नियम कानून ताक पर रखकर छुट्टी के दिन भी इसके लिए मी लार्ड कोर्ट खोल देते हैं और यही नहीं बल्कि बेंच पर बेंच बनाकर जमानत दे देते हैं? इसके लिए चलना होगा जलियांवाला बाग। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में सिख और हिन्दू जुटे थे वैशाखी पर्व मनाने। यह कोई अंग्रेजी शासन के विरोध में सभा नहीं थी। लेकिन तत्कालीन एसपी फिरोजपुर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने बिना सूचना दिए गोली चलवा दी। इस बर्बर हत्याकांड में दो हजार से अधिक लोग मारे गए थे। इस हत्याकांड की जांच करने के 16 अक्टूबर 1919 को हंटर कमीशन गठित किया गया था। इस कमीशन के तीन सदस्यों में से एक था तीस्ता सीतलवाड़ का परदादा चिमनलाल हरिभाई सीतलवाड़।

तीस्ता सीतलवाड़ के परदादा ने जनरल डायर को दी थी क्लीन चिट
जलियांवाला बाग मामले में तीस्ता सीतलवाड़ के परदादा चिमनलाल हरिभाई सीतलवाड़ ने जनरल रेजीनॉल्ड डायर को क्लीन चिट देते हुए कहा था कि डायर की कोई ग़लती नहीं थी।

तीस्ता के दादा को नेहरू ने बनाया भारत का प्रथम एटार्नी जनरल
तीस्ता सीतलवाड़ के दादा और चिमनलाल हरिभाई के पुत्र मोतीलाल चिमनलाल सीतलवाड़ बड़े वकील हुआ करते थे जो जवाहरलाल नेहरू के बड़े कृपा पात्र थे। नेहरू ने इन्हें भारत का प्रथम एटार्नी जनरल बना दिया। इनका कार्यकाल 28 जनवरी 1952 से 13 मार्च 1961 तक रहा। तीस्ता सीतलवाड़ के पिता अतुल भाई मोतीलाल सीतलवाड़ जाने माने वकील और कांग्रेस पार्टी के समर्थक थे।

तीस्ता ने मुस्लिम पत्रकार जावेद से विवाह किया
तीस्ता सीतलवाड़ ने एक मुस्लिम पत्रकार जावेद से विवाह किया जिसने जनता को धोखा देने के लिए नाम के पीछे ‘आनंद’ जोड़ लिया और अपने आप को जावेद आनंद कहता है। दोनों के एक लड़की जिब्राना और लड़का अयान है। दोनों पति पत्नी मिलकर एनजीओ चलाते हैं जिसमें करोड़ों रुपये की विदेशी फंडिंग आती है।

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