एसआईआर ने राज्यों की राजनीति को जिस तरह बदला है, वह केवल एक चुनावी मुद्दा नहीं रह गया है; यह पहचान, सुरक्षा और शासन की विश्वसनीयता से जुड़ा भावनात्मक प्रश्न बन चुका है। एक ओर इसी पृष्ठभूमि में यह सच्चाई भी सामने आने लगी है कि एसआईआर के डर से घुसपैठिए पश्चिम बंगाल छोड़कर भागने लगे हैं। दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने भी घुसपैठियों पर गंभीर सवाल उठाए हैं। अदालत ने रोहिंग्याओं की भारत में कानूनी हैसियत पर सवालिया निशान लगाते हुए पूछा कि क्या ‘घुसपैठियों का लाल कालीन बिछाकर स्वागत’ किया जाए, जबकि देश के अपने लाखों गरीब नागरिक हैं। चीफ जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जयमाल्या बागची की बेंच मानवाधिकार कार्यकर्ता रीता मांचंदा की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि मई महीने में दिल्ली पुलिस ने कुछ रोहिंग्याओं को पकड़ा था और अब उनके ठिकाने का कोई पता नहीं है।

सुरंग खोदकर या तार काटकर घुसने वालों को सुविधाएं क्यो?
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने तल्ख लहजे में कहा, ‘अगर उनके पास भारत में रहने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है और वे घुसपैठिए हैं तो क्या हम लाल कालीन बिछाकर उनका स्वागत करें कि आइए, हम आपको सारी सुविधाएं देंगे? पहले आप अवैध तरीके से सीमा पार करते हैं। सुरंग खोदकर या तार काटकर भारत में घुसते हैं। फिर कहते हैं कि अब मैं आ गया हूं, तो अब भारत के कानून मेरे ऊपर लागू हों, मुझे खाना दो, रहने की जगह दो, मेरे बच्चों को पढ़ाई दो। क्या हम कानून को इस हद तक लचीला बना दें?’

घुसपैठियों को छोड़ने की बात होगी तो लॉजिस्टिक दिक्कतें आएंगी
चीफ जस्टिस ने देश के गरीब नागरिकों का हवाला देते हुए कहा, ‘हमारे देश में अपने लाखों गरीब लोग हैं। वे नागरिक हैं। उन्हें सुविधाएं और लाभ मिलने का पहला अधिकार है। पहले उन पर ध्यान देने की आवश्यकता है। ये सच है कि अवैध घुसपैठिए भी हों तो उन्हें थर्ड डिग्री टॉर्चर नहीं करना चाहिए, लेकिन आप हैबियस कॉर्पस मांग रहे हो कि उन्हें वापस लाओ।’ बेंच ने कहा कि अगर वापस लाकर दोबारा छोड़ने की बात होगी तो लॉजिस्टिक दिक्कतें आएंगी। याचिकाकर्ता की तरफ से पेश वकील ने 2020 के एक पुराने आदेश का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि रोहिंग्या को सिर्फ कानूनी प्रक्रिया के तहत ही डिपोर्ट किया जाए।
सर्वोच्च अदालत ने रोहिंग्याओं को लेकर सवालिया निशान लगाए
केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह याचिका प्रभावित व्यक्ति ने नहीं, बल्कि किसी तीसरे पक्ष ने दाखिल की है, इसलिए याचिकाकर्ता का कोई हक नहीं बनता। कोर्ट ने रोहिंग्या से जुड़े सारे मामलों को 3 हिस्सों में बांट दिया है और प्रत्येक बुधवार को इस पर अलग-अलग सुनवाई होगी। कोर्ट ने मुख्य सवाल उठाए…
1. क्या रोहिंग्या शरणार्थी (रिफ्यूजी) हैं या अवैध घुसपैठिए?
2. अगर शरणार्थी हैं तो उन्हें क्या अधिकार और सुविधाएं मिलनी चाहिए?
3. अगर अवैध घुसपैठिए हैं तो केंद्र और राज्यों का उन्हें डिपोर्ट करना सही है या नहीं?
4. क्या उन्हें अनिश्चित काल तक हिरासत में रखा जा सकता है या जमानत पर छोड़ा जाए?
5. जो कैंपों में रह रहे हैं, उन्हें पीने का पानी, शौचालय, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं मिलनी चाहिए या नहीं?

देश में रोहिंग्या को कानूनों के तहत डिपोर्ट करना ही होगा
कोर्ट ने पहले भी कई बार साफ कहा है कि संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी UNHCR का कार्ड भारत के कानून में कोई वैध दस्तावेज नहीं माना जाता। बीते 16 मई को सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे कुछ याचिकाकर्ताओं को फटकार लगाई थी, जिन्होंने दावा किया था कि 43 रोहिंग्याओं, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं, को म्यांमार डिपोर्ट करने के लिए अंडमान सागर में छोड़ दिया गया था। कोर्ट ने कहा था, ‘जब देश मुश्किल समय से गुजर रहा है, तो आप हवा-हवाई बातें लेकर आ रहे हैं।’ 8 मई को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर देश में रोहिंग्या भारतीय कानूनों के तहत विदेशी पाए जाते हैं, तो उन्हें डिपोर्ट करना होगा। इस मामले की अगली सुनवाई अब 16 दिसंबर को होगी।
तेज रिवर्स माइग्रेशन से कठघरे में ममता बनर्जी की सरकार
दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में एसआईआर के मुद्दे पर भी घुसपैठियों का मुद्दा सुर्खियों में है। एक ओर भाजपा का कहना है कि घुसपैठी बांग्लादेशी नागरिकों का पलायन उनके दावे को सच साबित कर रहा है, तो तृणमूल कांग्रेस का पलायन पर बचाव उसे कठघरे में खड़ा कर रहा है। दरअसल, पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले एसआईआर की वजह से बड़ी संख्या में बांग्लादेशी नागरिक अपने देश लौट रहे हैं। भारत-बांग्लादेश की हकीमपुर सीमा पर जमे बांग्लादेशियों में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो 10-15 साल पहले दलालों की मदद से भारत में घुस आए थे। या यह भी कह सकते हैं कि इनको तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले नेताओं का भी समर्थन प्राप्त था। यही वजह है कि इन्होंने अपने रहने के लिए अस्थायी झुग्गियां बना लीं। फिर दलालों की मदद से आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र भी बनवा लिए। इसके बाद तो कई घुसपैठिए स्थायी आवास बनाकर रहने लगे। अब जब दो दशक बाद भारत में एसआईआर शुरू हुआ तो बांग्लादेशी नागरिकों ने यहां से पलायन करना शुरू कर दिया। इस रिवर्स माइग्रेशन ने बंगाल में घुसपैठ के विमर्श को धार दे दी है।

नवंबर की शुरुआत से ही लौटने लगे बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासी
पश्चिम बंगाल के हकीमपुर में अंतरराष्ट्रीय सीमा से बांग्लादेशी अवैध प्रवासियों के अपने देश लौटने के मामले में राजनीतिक वाकयुद्ध तेज हो गया है। मतदाता सूची को सुधारने के लिए शुरू किये गये अभियान और घुसपैठ पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आक्रामक रुख अख्तियार किया है। क्योंकि एसआईआर शुरू होने के कुछ ही दिन बाद प्रवासी बांग्लादेशियों के स्वदेश लौटने का सिलसिला शुरू हो गया था। सीमावर्ती जिलों में घुसपैठियों के टोले के टोले की स्वदेश वापसी की तस्वीरें मीडिया में आने लगीं। शुरू में इसे बहुत अधिक तवज्जों नहीं दी गयी, लेकिन अब यह राजनीतिक विमर्श बन गया है, जिसने सीमा चौकी को एक ‘वैचारिक युद्धक्षेत्र’ में बदल दिया है। उत्तर 24 परगना जिले के बनगांव में भारत-बांग्लादेश सीमा पर, स्थानीय लोगों और सुरक्षाकर्मियों ने बताया कि पश्चिम बंगाल में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के शुरू होने के बाद नवंबर की शुरुआत से ही बिना दस्तावेज वाले बांग्लादेशियों के वापस लौटने की कोशिशों में वृद्धि हुई है।

मनोवैज्ञानिक दबाव से हर दिन सैकड़ों लोग वापस लौट रहे बांग्लादेश
बीएसएफ के अधिकारियों के मुताबिक एसआईआर के चलते लगभग 150-200 लोग हर दिन बांग्लादेश लौट रहे हैं। कई बार यह संख्या दोगुनी भी हो जाती है। 30 नवंबर 2025 तक लगभग आठ-दस हजार लोग सीमा पार कर चुके हैं। दिसंबर माह में स्वदेश वापसी में और तेजी आने वाली है। बंगाल और बांग्लादेश की सीमा दशकों से संवेदनशील रही है। यहां अवैध आव्रजन कोई नया संकट नहीं, बल्कि ऐसी समस्या है जिसने धीरे-धीरे जनसंख्या संतुलन, रोजगार, स्थानीय राजनीति और कानून-व्यवस्था को प्रभावित किया है। अब एसआईआर के नाम पर छिड़ी राष्ट्रीय बहस ने एक ऐसा मनोवैज्ञानिक दबाव पैदा कर दिया है कि सीमावर्ती इलाकों में हलचल साफ देखी जा सकती है। स्थानीय सूत्र बताते हैं कि कई अवैध प्रवासी अपने ठिकानों से गायब हो रहे हैं, और कुछ समूह बांग्लादेश की ओर लौटने की कोशिश में निरंतर लगे हुए हैं।

जीरो लाइन की ओर बढ़ते लोग अवैध घुसपैठ की पुष्टि कर रहे – भाजपा
भाजपा का कहना है कि अपने छोटे-छोटे बैग और बच्चों को थामे जीरो लाइन की ओर बढ़ते लोगों की तस्वीरें पश्चिम बंगाल में अवैध घुसपैठ के उसके दावे को पुख्ता करती हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य ने कहा कि उनकी पार्टी यही तो कह रही है। एसआईआर ने घुसपैठियों को हिलाकर रख दिया है। आखिरकार सच्चाई सामने आ रही है। वे इसलिए जा रहे हैं, क्योंकि उन्हें पकड़े जाने का डर है। भाजपा का कहना है कि अवैध रूप से बसे बांग्लादेशियों ने चुनावी जनसांख्यिकी को बदला है। अब एसआईआर ने रिवर्स माइग्रेशन को तेजी दी है। भाजपा का मानना है कि ये दृश्य उसके इस दावे को पुष्ट करते हैं कि ‘अवैध रूप से बसे बांग्लादेशियों’ ने दशकों से पश्चिम बंगाल की चुनावी जनसांख्यिकी को बदल दिया है। भाजपा प्रवक्ता कीया घोष ने कहा कि बांग्लादेशियों का वापस जाना उनके दावे को किसी संदेह के परे साबित करता है। उन्होंने कहा कि मतदाता सूची से हजारों नामों का हटना भी भाजपा की बात को साबित करता है।

तुष्टिकरण की राजनीति करने वाला ममता बनर्जी का खेमा बहुत बैचेन
इसके राजनीतिक निहितार्थ बहुत गहरे हैं। क्योंकि ऐसा मानना है कि तुष्टिकरण की नीति के चलते स्थानीय सरकार ने इन्हें प्रश्रय दिया हुआ था। इसीलिए सबसे ज्यादा बेचैनी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के राजनीतिक खेमे में देखी जा रही है। ममता सरकार की राजनीति एक लंबे समय से विशिष्ट समुदायों के समर्थन पर टिकी रही है, और विपक्ष का आरोप है कि तृणमूल कांग्रेस ने “तुष्टिकरण” की नीति को शासन का स्थायी सूत्र बना दिया। यही कारण है कि जैसे ही घुसपैठ का सवाल राष्ट्रीय विमर्श में उभरा, तृणमूल कांग्रेस के भीतर असहजता बढ़ने लगी। ममता बनर्जी का एसआईआर के खिलाफ तीखा रुख इस बात का संकेत है कि यह मुद्दा उनके पारंपरिक वोट बैंक को अस्थिर कर सकता है। बंगाल की सामाजिक संरचना में अवैध प्रवासियों का प्रश्न हमेशा से संवेदनशील रहा है, लेकिन इस बार कथा बदल चुकी है। अब यह केवल सुरक्षा या पहचान का सवाल नहीं, बल्कि सीधा राजनीतिक अस्तित्व का सवाल बन गया है।

बिहार में भाजपा की जीत की हवा बदले बंगाल में भी जमीनी समीकरण
यह भी सच है कि पड़ौसी राज्य बिहार में भाजपा-एनडीए की प्रचंड जीत ने इस बहस में एक नई परत जोड़ दी है। वहां के चुनाव परिणामों ने यह साफ कर दिया कि नागरिकता, सीमा सुरक्षा और जनसांख्यिकीय संतुलन जैसे मुद्दे अब केवल भाषणों में नहीं रह गए। ये सीधे मतदान को प्रभावित कर रहे हैं। रिजल्ट को प्रभावित कर रहे हैं। बिहार में भाजपा की सफलता और एसआईआर के प्रति सकारात्मक रुझान ने बंगाल में भाजपा को नई ऊर्जा दी है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि बिहार की हवा ने बंगाल में भी जमीन के समीकरण बदलने शुरू कर दिए हैं। भाजपा अब घुसपैठ और एसआईआर को एक केंद्रीय मुद्दे के रूप में पेश कर रही है, और तृणमूल कांग्रेस इस सच्चाई को रोक पाने में फिलहाल कमजोर दिख रही है।

ममता की स्थिति इधर गिरे को कुआ, उधर गिरे तो खाई जैसी
दरअसल, ममता बनर्जी की सरकार पहले ही कई स्तरों पर दबाव झेल रही है। सत्ता-विरोधी भावनाएं स्वाभाविक रूप से बढ़ रही थीं, ऊपर से भ्रष्टाचार के आरोप, कट-मनी संस्कृति, शिक्षक भर्ती घोटाले और प्रशासनिक विफलताएं लगातार तृणमूल कांग्रेस की छवि को चोट पहुंचा रही हैं। और अब एसआईआर तथा घुसपैठ का मुद्दा इस दबाव को और तीखा कर रहा है। तृणमूल कांग्रेस की सबसे बड़ी दुविधा यह है कि यदि वह अवैध घुसपैठियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाती है, तो उसका पारंपरिक वोट खिसक सकता है। और यदि विरोध करती है, तो भाजपा इस मुद्दे को और तेजी से भुनाएगी। तृणमूल कांग्रेस की स्थिति कुआ और खाई वाली हो गई है। यही कारण है कि ममता सरकार की प्रतिक्रिया कभी आक्रामक, कभी बचाव का रूप ले रही है। लेकिन इस सबसे उनकी राजनीतिक असुरक्षा को साफ तौर पर उजागर हो रही है।









