रूस और यूक्रेन की लड़ाई भले ही सतही तौर पर दो देशों के बीच लड़ी जा रही हो, लेकिन इसमें मोदी सरकार की विदेश नीति की भी अग्निपरीक्षा हो रही है। इस परीक्षा में मोदी सरकार अब तक अव्वल रही है। भारत को सबसे बड़ी कूटनीतिक सफलता उस समय मिली, जब प्रधानमंत्री मोदी की अपील पर भारतीय छात्रों को युद्धग्रस्त यूक्रेन से सुरक्षित निकालने के लिए रूस छह घंटे के लिए युद्ध रोकने के लिए तैयार हो गया। मोदी सरकार अब तक 18 हजार से अधिक भारतीयों को यूक्रेन से निकालने में कामयाब रही है। इसके अलावा रूस-यूक्रेन युद्ध में तटस्थ विदेश नीति से विपक्ष को भी संतुष्ट करने में सफल रही है।
विदेश नीति तो ऐसी ही होनी चाहिए- शशि थरूर
विदेश मंत्रालय ने रूस-यूक्रेन युद्ध से पैदा हुए संकट पर गुरुवार (03 मार्च, 2022) को संसदीय सलाहकार समिति की बैठक बुलाई। इसमें छह राजनीतिक दलों के नौ सांसदों ने हिस्सा लिया। इन सभी ने एक-से-बढ़कर एक सवाल भी दागे जिनका विदेश मंत्रालय ने विस्तृत जवाब दिया। विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने संसदीय समिति को निकासी प्रक्रिया और वर्तमान स्थिति के बारे में सूचित किया। इससे शशि थरूर इतने संतुष्ट हुए कि उन्होंने विदेश मंत्री की तारीफों के पुल बांध दिए। उन्होंने यहां तक कह दिया कि विदेश नीति तो ऐसी ही होनी चाहिए।
Excellent meeting of the Consultative Committee on External Affairs this morning on #Ukraine. My thanks to @DrSJaishankar & his colleagues for a comprehensive briefing & candid responses to our questions &concerns. This is the spirit in which foreign policy should be run. pic.twitter.com/Y3T3UIrm9z
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) March 3, 2022
मुश्किल हालात में छात्रों की सुरक्षित निकासी की तारीफ
यूएनएससी और यूएनजीए में रूस के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पर मतदान से दूर रहने की भारत की नीति का कांग्रेस सांसदों ने समर्थन किया। यूक्रेन में फंसे छात्रों की निकासी से जुड़ी चिंताओं और स्वाभाविक सवालों के अलावा विपक्षी नेताओं ने भी विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों की सराहना की। विपक्षी सांसदों ने माना कि युद्ध की वजह से यूक्रेन में आदर्श स्थिति नहीं है। राहुल गांधी समेत सभी सांसदों ने मुश्किलों के बावजूद छात्रों की सुरक्षित स्वदेश वापसी के लिए विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के दिन-रात किए जा रहे प्रयासों की सराहना की।
राष्ट्रीय हित के मुद्दे पर खत्म हुई मतभेदों की दीवार
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि बैठक में भारतीयों को यूक्रेन से लाने के प्रयासों को लेकर मजबूत और सर्वसम्मत समर्थन का स्पष्ट संदेश मिला। विदेश मंत्री ने इसके लिए सभी नेताओं को धन्यवाद देते हुए कहा कि डायलाग और डिप्लोमेसी की अहमियत पर राष्ट्रीय आम सहमति है। विदेश मंत्रालय की संसदीय सलाहकार समिति की बैठक में सत्ता पक्ष और विपक्षी नेताओं के इस मुद्दे पर निकले एक सुर ने एक बार फिर साफ कर दिया कि वैश्विक कूटनीति के मुश्किल दौर में राजनीतिक मतभेदों की दीवार भारत के राष्ट्रीय हितों के आड़े नहीं आती है।
मोदी सरकार के लिए राष्ट्रीय हित सर्वोपरि
विदेश नीति की सबसे अहम कसौटी राष्ट्रीय हित को ही माना जाता है। इस कसौटी पर मोदी सरकार खरी उतरी है। मोदी सरकार राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए तटस्थता की नीति का पालन कर रही है। क्योंकि सरकार अपनी रक्षा और भू-राजनीतिक जरूरतों के कारण रूस के खिलाफ जाने का जोखिम नहीं उठा सकती। भारत के लिए रूस के साथ संबंधों और उससे मिले सहयोग के दशकों के इतिहास की अनदेखी करना कठिन है। रूस ने अतीत में कश्मीर मुद्दे पर UNSC के प्रस्तावों को भारत के पक्ष में वीटो किया था। इस समय भारत के अमेरिका और रूस, दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं। अपने राष्ट्रीय हितों को देखते हुए क्वाड जैसे मंचों पर अमेरिका के साथ है तो दूसरी तरफ चीन के दबदबे वाले शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन और आसियान के साथ भी जुड़ा हुआ है। रूस भी शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन का अहम सदस्य है।
शांति और बातचीत से विवाद को सुलझाने की सलाह
भारत ने युद्ध जल्द खत्म करने की अपील की है। वह शांतिपूर्ण तरीके से इस मसले का समाधान निकालने का हिमायती है। यूक्रेन पर हमले के बाद रूस की निंदा करते हुए अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तीन प्रस्ताव आए। तीनों में भारत ने ग़ैर हाज़िर रहना ही वाजिब समझा। साथ ही हर बार बातचीत से हल निकालने का रास्ता सुझाया। प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के राष्ट्रपति से दो बार बात की है तो दूसरी तरफ़ क्वॉड की बैठक में गुरुवार को हिस्सा भी लिया। प्रधानमंत्री मोदी ने ये बात फिर दोहराई कि सभी संबंधित पक्षों को बातचीत और कूटनीति का रास्ता अख़्तियार करना चाहिए।