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मोदी राज में क्षेत्रीय भाषाओं को मिला रहा बढ़ावा, राज्यसभा में 5वीं भाषा के रूप में उभरी संस्कृत

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संस्कृत और क्षेत्रीय भाषाओं के प्रति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लगाव किसी से छिपा नहीं है। जहां प्रधानमंत्री मोदी अपने भाषणों और ट्वीट्स में अक्सर संस्कृत श्लोक का इस्तेमाल करते हैं, वहीं देश के जिस इलाके में जाते हैं वहां पर भाषण की शुरुआत स्थानीय भाषा में करते हैं। प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के प्रयासों का नतीजा है कि विलुप्त हो रही संस्कृत भाषा को संजीवनी मिली है और यह राज्यसभा में 5वीं भाषा के रूप में उभरी है।

2019-20 के दौरान राज्यसभा की कार्यवाही में 19 सदस्यों ने संस्कृत भाषा में अपने विचार रखे। वहीं 2018-20 के दौरान 22 में से 10 भाषाओं में विचार रखे गए। अगस्त 2017 में राज्यसभा का अध्यक्ष बनने पर उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने सदन के सदस्यों को अपनी मातृभाषा में अपने विचार रखने के लिए प्रस्ताव पारित किया। इसके बाद से राज्यसभा में क्षेत्रीय भाषा में सदस्यों ने अपने विचार रखने शुरू किए।

2018-20 के दौरान राज्यसभा की कार्यवाही में क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग कई गुणा बढ़ा है। इस अवधि के दौरान डोगरी, कश्मीरी, कोंकणी और संथाली का उपयोग भी सदन में पहली बार किया गया। इसके अलावा छह अन्य भाषाएं असमिया, बोडो, गुजराती, मैथली, मणिपुरी और नेपाली भाषा का उपयोग भी लंबे समय के बाद सदन में किया गया।

वर्ष 2020 में राज्यसभा में 49 हस्तक्षेप क्षेत्रीय भाषाओं में हुए। इस तरह 33 बैठकों के दौरान क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग में 512 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2013-17 के दौरान हुईं 329 सभाओं में सदस्यों ने 96 बार केवल 10 क्षेत्रीय भाषाओं में बात की, जो बहस तक सीमित रही। 2018-20 के दौरान 163 बैठकों में क्षेत्रीय भाषाओं का उपयोग 135 बार किया गया, जिसमें 66 हस्तक्षेप बहस में, 62 शून्य काल में और 7 विशेष उल्लेख शामिल रहे।जहां तक संस्कृत की बात है, तो 2019 से 2020 के दौरान 12 हस्तक्षेप इस भाषा में किए गए।

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