भारतीय इतिहास के पन्नों में जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह को भूला दिया गया था। पिछले 75 सालों में कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन किसी ने राजा महेंद्र प्रातप सिंह को वो सम्मान नहीं दिया, जिसके वो हकदार थे। यहां तक कि जिस अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए उन्होंने भू-दान किया था, उसने भी उन्हें सम्मान नहीं दिया। लेकिन उसी अलीगढ़ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार (14 सितंबर, 2021) को राजा महेंद्र प्रताप के नाम पर यूनिवर्सिटी की नींव रखी। इसके साथ ही उन्होंने ऐतिहासिक भूल को सुधारते हुए ‘जाटलैंड के नायक’ को उनका गौरव वापस दिलाने का काम किया है। 2019 में ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जाट राजा के सम्मान में उनके नाम पर स्टेट यूनिवर्सिटी खोलने का भरोसा अलीगढ़ के लोगों को दिया था। इस भरोसे को कायम रखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने जाटलैंड को विश्वविद्यालय के रूप में एक बड़ी सौगात दी।
गौरतलब है कि महेंद्र प्रताप का जन्म 1 दिसंबर, 1886 को हाथरस जिले के एक जाट परिवार में हुआ था। वर्ष 1976 में महेंद्र प्रताप को सर्वसम्मति से अखिल भारतीय जाट महासभा का अध्यक्ष चुना गया। इससे पहले 29 अगस्त, 1949 को कोलकत्ता की एक विशाल सभा में उन्हें राजर्षि के सम्मान के साथ अभिवादन किया गया था। यहीं नहीं, कोलकाता में हिंदी शिक्षा परिषद में 18 सितंबर, 1960 को उन्हें विश्व रत्न सम्मान से विभूषित किया गया था।
विश्वविद्यालय से संबद्ध होंगे 395 कॉलेज
महेंद्र प्रताप सिंह एक शिक्षाविद् और समाज सुधारक थे। उनकी स्मृति और सम्मान में इस विश्वविद्यालय की नींव रखी गई है। विश्वविद्यालय अलीगढ़ की कोल तहसील के लोढ़ा और मुसईपुर करीम जरौली गांवों में 92.27 एकड़ में बनकर तैयार होगा। यह विश्वविद्यालय अलीगढ़ मंडल के 395 कॉलेजों को संबद्धता प्रदान करेगा। विश्वविद्यालय के लिए शिक्षा विभाग से 101 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं। यह विश्वविद्यालय अगले दो साल यानि 2023 तक बनकर तैयार हो जाएगा।
महान स्वतंत्रता सेनानी थे राजा महेंद्र प्रताप
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में राजा महेंद्र प्रताप का योगदान अहम रहा है। अफगानिस्तान में रहते हुए उन्होंने 1915 में भारत की अंतरिम सरकार बनाई थी। जाट राजा को पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना का सबसे बड़ा विरोधी माना जाता है। उन्होंने 1939 में महात्मा गांधी को पत्र लिखकर जिन्ना से सचेत रहने को कहा था। पत्र में जिन्ना को सांप कहा था और गांधी जी से जिन्ना पर भरोसा नहीं करने को कहा था। एक समय उन्हें नोबल शांति पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1940 में उन्होंने जापान में भारत कार्यकारी बोर्ड की स्थापना की थी।