वर्ष 2013 में जब सुप्रीम कोर्ट में सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट पर बहस चल रही थी तब कांग्रेस पार्टी ने अपनी असल सोच को जगजाहिर किया था। पार्टी ने एक शपथ पत्र के आधार पर भगवान श्रीराम के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया था। इस शपथ पत्र में कांग्रेस की ओर से कहा गया था कि भगवान श्रीराम कभी पैदा ही नहीं हुए थे, यह केवल कोरी कल्पना ही है। कांग्रेस की इसी सोच की वजह से 2007 में UPA सरकार सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट पास करने के चक्कर में थी। लेकिन, भाजपा इसका विरोध कर रही थी। क्योंकि, इस परियोजना के तहत बड़े जहाजों के परिवहन के लिए नया रास्ता बनाया जाना था, जो रामसेतु से होकर गुजरता। इसके लिए रामसेतु को तोड़ा जाना था। लेकिन, राम सेतु को बचाने के लिए भाजपा ने सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट का विरोध किया और फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। 2014 में जब पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने सत्ता संभाली तो सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि राष्ट्रीय हित में यह तय किया गया है कि राम सेतु को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा। सरकार सेतु समुद्रम परियोजना के लिए वैकल्पिक रास्ता तलाश रही है। बाद में कोर्ट के दखल के बाद यह कार्रवाई रुक गई थी। तब से राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई के लिए लंबित है।
12 interesting scientific and Dharmic facts to know about Ram Setu !
1. The studies of Oceanography suggests that the bridge is 7000 years old. pic.twitter.com/s3ZhzbRl04
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1. राम सेतु के बारे में जानने के लिए 12 रोचक वैज्ञानिक और धार्मिक तथ्य समुद्र विज्ञान के अध्ययन में सामने आए हैं। इस अध्ययन से पता चलता है कि राम सेतु 7000 साल पुराना है।
2. The carbon dating of beaches near Dhanushkodi & Mannar Island sync with the date of Ramayan pic.twitter.com/P50sKfaGIC
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2. धनुषकोटि और मन्नार द्वीप के पास समुद्र तटों की कार्बन डेटिंग अध्ययन में यह बात सामने आई है कि राम सेतु के निर्माण का समय रामायण की तारीख से मेल खाती है। एक समय धनुषकोटि बड़ा नगर था और रामेश्वरम एक छोटा सा गांव था। उस समय यहां से श्रीलंका के लिए नौकायें चलती थी और किसी प्रकार पासपोर्ट की जरूरत नहीं होती थी। धनुषकोटि जैसे समृद्ध शहर के लिए 22 दिसंबर 1964 की रात दुर्भाग्य लेकर आई जब एक भयानक समुद्री तूफान में यह नगर पूर्णतः बर्बाद हो गया। रामायण कालीन धनुषकोटि का धार्मिक एवं पौराणिक महत्व है। आसपास अनेक स्थल भगवान राम से सम्बंधित प्रसंगों के दर्शनीय हैं। राम ने विभीषण को यहां शरण दी थी तथा लंका विजय के बाद विभीषण के अनुरोध पर राम ने धनुष तोड़ने का अनुरोध मान कर धनुष का एक सिरा तोड़ दिया। तब ही से इसका नाम धनुषकोटि पड़ गया। यह स्थान रामेश्वरम से करीब 19 किमी दूर है। श्रीलंका समुद्र द्वारा यहां से 18 किमी दूर बताई जाती है।
3. The bridge was passable on foot up to the 15th century until storms deepened the channel. Some records suggest that Ram Setu was completely above sea level till 1480 when it was broken by a cyclone. pic.twitter.com/eYeRknEIbc
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3. 15वीं शताब्दी तक इस सेतु से पैदल ही जाया जा सकता था। उस समय तक समुद्री तूफानों ने चैनल को गहरा नहीं किया था। कुछ रिकॉर्ड बताते हैं कि राम सेतु 1480 तक पूरी तरह से समुद्र तल से ऊपर था। उसके बाद एक चक्रवात से यह टूट गया था।
4. The bridge is 50 km long and separates the Gulf of Mannar from the Palk Strait. pic.twitter.com/Xl0U4JTWzi
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4. राम सेतु 50 किलोमीटर लंबा है और मन्नार की खाड़ी को पॉक जलडमरूमध्य (Palk Strait) से अलग करता है।
5. 5.Ram Setu is also named Adam's Bridge, Nala Setu, and Setu Banda. pic.twitter.com/bCUKDlr7HO
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5. राम सेतु को एडम्स ब्रिज, नाला सेतु और सेतु बांदा भी कहा जाता है। आधुनिक प्राद्यौगिकी और विज्ञान के साथ जहां एक पुल को बनाने में महीनों और कई बार तो साल लग जाते हैं, लेकिन उस वक्त राम सेतु महज 5 दिन में बनकर तैयार हो गया था। सेतु की लंबाई करीब 100 योजन है। पुराने समय में योजन दूरी नापने का पैमाना होता था।
6. Ram Setu is taken as an archaeological and historical evidence of Ramayana. pic.twitter.com/DThCSLGq7x
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6. राम सेतु को रामायण के पुरातात्विक और ऐतिहासिक साक्ष्य के रूप में लिया जाता है।
7. The bridge was first mentioned in Valmiki's Ramayana pic.twitter.com/QJwsyXRtUf
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7. वाल्मीकि रामायण में सबसे पहले इस सेतु का उल्लेख किया गया था। वाल्मीकि रामायण में कई प्रमाण हैं कि सेतु बनाने में उच्च तकनीक का प्रयोग किया गया था। कुछ वानर बड़े-बड़े पर्वतों को यंत्रों के द्वारा समुद्रतट तक ले आए थे। कुछ वानर सौ योजन लंबा सूत पकड़े हुए थे। अर्थात सेतु का निर्माण सूत से एक सीध में हो रहा था। (वाल्मीकि रामायण-6/22/62)
8. When Prabhu Shri Ram reached the end of Bharat bhoomi he prayed to Samudra dev for a solution to cross to Lanka pic.twitter.com/nNok27ce5J
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8. जब प्रभु श्री राम भारत भूमि के छोर पर पहुंचे तो उन्होंने समुद्र देव से लंका पार जाने का उपाय करने की प्रार्थना की।
9. Samudra dev, after Shri Ram lost his calm, mentioned that two vanars aka Nal and Neel from his sena have a boon where if they throw a stone into water the stones would never sink. pic.twitter.com/QFx8spES7r
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9. श्रीराम द्वारा समुद्र देवता की पूजा आरंभ की गई। लेकिन जब कई दिनों के बाद भी समुद्र देवता प्रकट नहीं हुए तब क्रोध में आकर श्रीराम ने समुद्र को सुखा देने के उद्देश्य से अपना धनुष-बाण उठा लिया। उनके इस कदम से समुद्र के प्राण सूखने लगे। तभी भयभीत होकर समुद्र देवता प्रकट हुए और बोले, “श्रीराम! आप अपनी वानर सेना की मदद से मेरे ऊपर पत्थरों का एक पुल बनाएं। मैं इन सभी पत्थरों का वजन सम्भाल लूंगा। आपकी सेना में नल एवं नील नामक दो वानर हैं, जो सर्वश्रेष्ठ हैं।“ समुद्र देव ने कहा कि उनकी सेना के दो वानर नल और नील को वरदान है कि अगर वे पत्थर को पानी में फेंकेंगे तो पत्थर कभी नहीं डूबेंगे।
10. Upon hearing this, the entire sena started writing Prabhu Ram’s name on heavy stones while Nal and Neel threw them into the water to create a bridge pic.twitter.com/O6Nh6IHzJW
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10. यह सुनकर पूरी सेना ने भारी पत्थरों पर प्रभु राम का नाम लिखना शुरू कर दिया, जबकि नल और नील ने पुल बनाने के लिए उन्हें पानी में फेंकना शुरू कर दिया। वैज्ञानिकों का मानना है कि नल तथा नील शायद जानते थे कि कौन सा पत्थर किस प्रकार से रखने से पानी में डूबेगा नहीं तथा दूसरे पत्थरों का सहारा भी बनेगा। दरअसल नल और नील भगवान विश्वकर्मा के पुत्र थे, जिन्हें उस वक्त के निर्माण कार्यों की बारीकियों के बारे में भली-भांति ज्ञान था। उन्होंने पूरी वानर सेना के साथ मिलकर इस पुल का निर्माण किया। रामायण में बताया गया है कि बचपन से ही नल और नील दोनों बहुत शरारती थे। ये दोनों इतने नटखट थे कि ऋषियों का सामान समुद्र में फेंक दिया करते थे। वस्तु डूब जाने के कारण ऋषियों को परेशानी होती थी। फिर ऋषियों ने इन्हें शाप दिया तुम्हारा फेंका सामान जल में डूबेगा नहीं। उनका यह शाप सेतु निर्माण के वक्त लाभदायी साबित हुआ। इसलिए नल और नील जो पत्थर फेंकते थे, वे डूबते नहीं थे।
11. NASA images and prescence of floating stones in the area are compelling pointers to the historical existence of Ram Setu bridge pic.twitter.com/rZpopuqPbJ
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11. नासा के चित्र और उस क्षेत्र में तैरते पत्थरों की उपस्थिति राम सेतु के ऐतिहासिक अस्तित्व के ठोस संकेत देते हैं। अमेरिका के साइंस चैनल ने तथ्यों के साथ ये दावा किया है कि भारत और श्रीलंका के बीच मौजूद रामसेतु- प्राकृतिक नहीं बल्कि मानव निर्मित है यानी इसे किसी इंसान ने बनाया था. अमेरिका के वैज्ञानिकों को इस बात के प्रमाण मिले हैं कि रामसेतु के पत्थर करीब 7000 साल पुराने हैं।
12. At this beautiful place one could gaze upon the chain of reefs, sandbanks and the islets that almost connect Sri Lanka with Bharat. pic.twitter.com/n4Z2V7Dq5D
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12. इस खूबसूरत जगह पर आप चट्टानों की श्रृंखला, सैंडबैंक और टापुओं को देख सकते हैं जो लगभग श्रीलंका को भारत से जोड़ते हैं। इतिहासकार और पुरातत्वविदों के मुताबिक- इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कोरल और सिलिका पत्थर जब गरम होता है तो उसमें हवा कैद हो जाती है जिससे वो हल्का हो जाता है और तैरने लगता है। ऐसे पत्थर को चुनकर ये पुल बनाया गया। इतिहासकारों की मानें तो साल 1480 में आए एक तूफान में ये पुल काफी टूट गया। उससे पहले तक भारत और श्रीलंका के बीच लोग पैदल और वाहन के जरिए इस पुल का इस्तेमाल करते रहे थे।
Here is an interesting video about Ram Setu : The true symbol of Love pic.twitter.com/R2o3EQDg86
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यहां राम सेतु के बारे में एक दिलचस्प वीडियो है: प्रेम का सच्चा प्रतीक
कांग्रेस ने कभी रामसेतु को बताया था काल्पनिक
बात 2007 की है। तब उस समय की UPA सरकार सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट पास करने के चक्कर में थी। लेकिन, भाजपा इसका विरोध कर रही थी। क्योंकि, इस परियोजना के तहत बड़े जहाजों के परिवहन के लिए नया रास्ता बनाया जाना था, जो रामसेतु से होकर गुजरता। इसके लिए रामसेतु को तोड़ना पड़ता। लेकिन, रामसेतु की पुरानी मान्यताओं के कारण भाजपा ने सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट का विरोध किया और फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।
कांग्रेस का हलफनामाः सुपर पावर से बना होगा राम सेतु
2008 में यूपीए सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल कर रामसेतु को काल्पनिक करार देते हुए कहा, “वहां कोई पुल नहीं है। ये स्ट्रक्चर किसी इंसान ने नहीं बनाया। यह किसी सुपर पावर से बना होगा और फिर खुद ही नष्ट हो गया। इसी वजह से सदियों तक इसके बारे में कोई बात नहीं हुई। न कोई सुबूत है।” कांग्रेस द्वारा दाखिल किए गए इस हलफनामे का खूब विरोध हुआ था, जिसके बाद कांग्रेस ने इसे वापस लिया और कहा कि वह सभी धर्मों का सम्मान करती है।
क्या था सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट
कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-1 सरकार ने 2005 में सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट का ऐलान किया था। इसका प्रस्ताव डीएमके ने रखा था, गठबंधन की सरकार में डीएमके के पास जहाजरानी मंत्रालय था। सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल प्रोजेक्ट के तहत बड़े जहाजों के परिवहन के लिए करीब 83 किलोमीटर लंबा नया रास्ता बनना था, जिसके लिए समुंद्र में कम गहराई वाले हिस्से की खुदाई करनी थी। यह खुदाई रामसेतु की जगह पर भी होनी थी।
रामायण की वजह से राम का अस्तित्वः कांग्रेस
कॉन्ग्रेस पार्टी और उसके नेताओं ने कई बार भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल खड़े कर के करोड़ों हिंदुओं की भावनाओं को आहत करने का काम किया है। इसी क्रम में, कांग्रेस नेता केतकर ने राम मंदिर भूमिपूजन को लेकर हो रही एक चर्चा के दौरान न केवल श्री राम के ऐतिहासिक अस्तित्व को नकारा बल्कि यह भी कहा कि हिंदू देवी-देवता साहित्य की रचना है। कांग्रेस नेता ने कहा, “रामायण की वजह से राम का अस्तित्व है। हालांकि, इस निष्कर्ष पर पहुंचना अभी बाकी है कि राम इतिहास या साहित्य की रचना है या नहीं। वाल्मीकि ने एक महान महाकाव्य लिखा था और इसका प्रभाव भारत और विदेशों दोनों में महसूस किया गया था। लेकिन, मुझे नहीं पता कि वह इतिहास में मौजूद है या नहीं।”
राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग
राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर संरक्षण देने की मांग पर जल्द सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट सहमत हो गया है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने याचिकाकर्ता सुब्रमण्यम स्वामी को आश्वासन दिया कि मामला विस्तार से सुना जाएगा। कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए के शासनकाल में शुरू की गई सेतु समुद्रम परियोजना के तहत जहाजों के लिए रास्ता बनाने के लिए राम सेतु को तोड़ा जाना था। बाद में कोर्ट के दखल के बाद यह कार्रवाई रुक गई थी। तब से राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई लंबित है।
क्या है राम सेतु?
तमिलनाडु के रामेश्वरम और श्रीलंका के मन्नार के बीच आपस में जुड़ी लाइमस्टोन की एक श्रृंखला है। भूगर्भशास्त्री मानते हैं कि पहले यह श्रृंखला समुद्र से पूरी तरह ऊपर थी। इससे श्रीलंका तक चल कर जाया जा सकता था। हिंदू धर्म में इसे भगवान राम की सेना द्वारा बनाया गया सेतु माना जाता है। दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी इसके मानव निर्मित होने की मान्यता है। ईसाई और पश्चिमी लोग इसे एडम्स ब्रिज कहने लगे।
राम सेतु में खास पत्थरों का किया गया था उपयोग
सालों के शोध के बाद वैज्ञानिकों ने रामसेतु पुल में इस्तेमाल हुए पत्थरों का वजूद खोज निकाला है। विज्ञान का मानना है कि रामसेतु पुल को बनाने के लिए जिन पत्थरों का इस्तेमाल हुआ था वे कुछ खास प्रकार के पत्थर हैं, जिन्हें ‘प्यूमाइस स्टोन’ कहा जाता है। दरअसल यह पत्थर ज्वालामुखी के लावा से उत्पन्न होते हैं। जब लावा की गर्मी वातावरण की कम गर्म हवा या फिर पानी से मिलती है तो वे खुद को कुछ कणों में बदल देती है। कई बार यह कण एक बड़े पत्थर को निर्मित करते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि जब ज्वालामुखी का गर्म लावा वातावरण की ठंडी हवा से मिलता है तो हवा का संतुलन बिगड़ जाता है। यह प्रक्रिया एक ऐसे पत्थर को जन्म देती है जिसमें कई सारे छिद्र होते हैं। छिद्रों की वजह से यह पत्थर एक स्पॉंजी यानी कि खंखरा आकार ले लेता है जिस कारण इनका वजन भी सामान्य पत्थरों से काफी कम होता है। इस खास पत्थर के छिद्रों में हवा भरी रहती है। यही कारण है कि यह पत्थर पानी में जल्दी डूबता नहीं है क्योंकि हवा इसे ऊपर ही रखती है। लेकिन कुछ समय के बाद जब धीरे-धीरे इन छिद्रों में हवा के स्थान पर पानी भर जाता है तो इनका वजन बढ़ जाता है और यह पानी में डूबने लगते हैं। यही कारण है कि रामसेतु पुल के पत्थर कुछ समय बाद समुद्र में डूब गए और उसके भूभाग पर पहुंच गए। नैशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस, नासा जो कि विश्व की सबसे विख्यात वैज्ञानिक संस्था में से एक है उसके द्वारा सैटलाइट की मदद से रामसेतु पुल को खोज निकाला गया।
सूर्य सिद्दांत के अनुसार, रामसेतु की लंबाई 1 हजार किलोमीटर से ज्यादा थी
विद्वान कहते हैं, ‘अगर सूर्य सिद्दांत के अनुसार 1 योजन को 8 मील की दूरी माना जाए तो करीब 1200 किलोमीटर होगा। 1200 किलोमीटर को 400 कोस कहा जाता है”। इस प्रकार, आज की गणना करें तो रामसेतु की लंबाई 1000 किमी से भी ज्यादा थी। हालांकि, भारत-श्रीलंका के मध्य अब जो सेतुनुमा आकृति है… वह करीब 48 किलोमीटर लंबी ही रह गई है।