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Rahul के वोट चोरी के झूठ पर तमाचा, अब CEC ज्ञानेश कुमार IIDEA के अध्यक्ष बन 35 देशों के लोकतंत्र को मजबूत करेंगे

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भारतीय राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप कोई नई बात नहीं, लेकिन कभी-कभी समय ऐसे जवाब देता है, जो किसी भी बयान से अधिक प्रभावशाली, किसी भी प्रेस कॉन्फ्रेंस से अधिक मुखर और किसी भी राजनीतिक रैली से अधिक निर्णायक होता है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) ज्ञानेश कुमार के बारे में यही कहा जा सकता है। महीनों तक राहुल गांधी और उनके साथी नेताओं ने उन पर “वोट चोरी”, “लोकतंत्र लूटने” और “चुनाव आयोग के दुरुपयोग” तक के आरोप लगाए। लेकिन आज वही ज्ञानेश कुमार IIDEA यानि इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस जैसे 35 देशों के प्रतिष्ठित वैश्विक मंच का नेतृत्व करने जा रहे हैं। यह केवल किसी व्यक्ति की उपलब्धि नहीं, बल्कि उन आरोपों की करारी हार है, जिन्हें बिना सबूत के बार-बार दोहराकर लोकतंत्र की छवि को धूमिल करने की कोशिश हुई। राहुल गांधी चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार पर निरंतर वोट चोरी का आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन अब CEC ज्ञानेश कुमार को IIDEA की अध्यक्षता देने राहुल गांधी के वोट चोरी के आरोपों पर करारा तमाचा लगा है।

राहुल गांधी की ‘वोट चोरी’ राजनीति: आरोप ज्यादा, प्रमाण शून्य
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और इंडी गठबंधन के कई नेताओं के राजनीतिक आरोप पिछले कुछ वर्षों में एक ही लाइन के इर्द-गिर्द घूमते रहे हैं। अपनी हार पर हार को छिपाने के लिए वे कभी चुनाव आयोग पर आरोप लगाते हैं तो कभी ईवीएम को दोषी ठहराते हैं। कभी कहते हैं “वोट भाजपा को जबरन ट्रांसफर हो जाते हैं”, तो कभी “चुनाव आयोग सरकार का कठपुतली है”, का आरोप जड़ते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी वोट चोरी और “CEC लोकतंत्र लूट रहे हैं” के मनगढ़ंत आरोप लगाते रहे हैं। ये आरोप कांग्रेस की टूल किट सैल के लिए सोशल मीडिया पर हैशटैग बनते हैं और कांग्रेस की रैली में भीड़ को उत्तेजित कर सकते हैं। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि आरोप लगाने वालों ने कभी अदालत में कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया। ना ही चुनाव आयोग के किसी टेक्निकल परीक्षण में हिस्सा लिया और ना ही कोई स्वतंत्र जांच की मांग पर आगे बढ़े।

भारत को पहली बार इंटरनेशनल आइडिया की अध्यक्षता का गौरव मिला
राहुल गांधी ने भी हर चुनाव के बाद यही पुराना ग्रामोफोन चलाया— “हमारी हार की वजह EVM है।” लेकिन जब कभी कांग्रेस जीत जाती है, तो यही EVM अचानक “ईमानदार मशीन” बन जाती थी। राजनीतिक सुविधानुसार लोकतंत्र को अच्छा या बुरा कहना एक पुरानी रणनीति है, पर इस बार इतिहास ने पलटकर निर्णायक और जोरदार जवाब दिया है। भारत को पहली बार अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र और चुनाव सहायता संस्थान (इंटरनेशनल आइडिया) की अध्यक्षता के लिए आमंत्रित किया गया है। भारत की ओर से, मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) ज्ञानेश कुमार ने स्वीडन के स्टॉकहोम में इंटरनेशनल आइडिया की अध्यक्षता ग्रहण की। भारत की अध्यक्षता के अवसर पर सीईसी ज्ञानेश कुमार ने कहा कि पूरी दुनिया भारत में स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनावों के सफल संचालन को जानती और स्वीकार करती है। उन्होंने आगे कहा कि यह भारत के सभी नागरिकों और चुनाव कार्यकर्ताओं के लिए अत्यंत गौरव का क्षण है।

ज्ञानेश की वैश्विक ताजपोशी से राहुल के आरोपों पर शर्मनाक तमाचा
दरअसल, 1995 में स्थापित इंटरनेशनल आइडिया एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसके वर्तमान सदस्य 37 देश हैं। इसमें पर्यवेक्षक के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान भी शामिल हैं। अंतर्राष्ट्रीय आईडीईए को 2003 से संयुक्त राष्ट्र महासभा में पर्यवेक्षक का दर्जा भी प्राप्त है। भारत अंतर्राष्ट्रीय आईडीईए का संस्थापक सदस्य है और उसने शासन प्रक्रियाओं में सक्रिय रूप से भाग लिया है तथा चुनावी अनुसंधान, क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सहयोग किया है। इसकी अध्यक्षता के लिए ज्ञानेश कुमार की वैश्विक ताजपोशी और राहुल गांधी के लगातार के आरोपों पर शर्मनाक तमाचा है। 35 देशों के इस महत्वपूर्ण संगठन ने जिस व्यक्ति पर राहुल गांधी ने सबसे अधिक अविश्वास जताया, उसी को दुनिया ने लोकतंत्र का प्रहरी मानते हुए वैश्विक नेतृत्व सौंप दिया है। यह नियुक्ति राहुल गांधी के आरोपों का सबसे करारा जवाब है।

देश की इस गौरवशाली संवैधानिक संस्था को बदनाम करने की साजिश
IIDEA ने ज्ञानेश कुमार को अपनी अध्यक्षता सौंप दी है तो यह शीशे की तरह साफ हो गया है कि दुनिया को राहुल गांधी की बातों में कोई सच्चाई नहीं दिखी है। उनके आरोप अब एक राजनीतिक शोर से ज्यादा कुछ नजर नहीं आते। दरअसल, IIDEA वैश्विक लोकतांत्रिक मानकों का निर्माता संगठन है। यहां ढुलमुल नेतृत्व नहीं, बल्कि पारदर्शिता और साख की जरूरत होती है। 35 देशों का विश्वास ज्ञानेश कुमार पर जताना यह दर्शाता है कि भारत के चुनाव आयोग की विश्वसनीयता निर्विवाद है। बड़ा सवाल यही है कि जब दुनिया भारतीय चुनाव आयोग को लोकतंत्र का आदर्श मानती है, तब राहुल गांधी अपने देश की इस गौरवशाली संवैधानिक संस्था को बदनाम करने पर क्यों तुले रहते हैं?

कांग्रेस की राजनीति, जीत पर EVM पवित्र और हार मिले तो दोषी
कांग्रेस की चुनावी राजनीति की सबसे बड़ी त्रासदी यही है कि वह अपनी हार का कारण संगठन में नहीं खोजती। जहां जीत मिल जाए, वहां EVM पवित्र; जहां हार लगे, वहीं EVM “चोर मशीन” बन जाती है। कर्नाटक, हिमाचल, तेलंगाना में जीत मिली तो सब कुछ ठीक। लेकिन जहां जनता ने कांग्रेस को नकार दिया, वहां चुनाव आयोग से लेकर EVM तक सबको अपराधी करार दे दिया गया। यह दोहरा रवैया जनता भी समझती है और अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी समझा दिया है। राहुल गांधी कहते हैं कि वह लोकतंत्र बचा रहे हैं। लेकिन असल में वे लोकतंत्र पर ही अविश्वास जता रहे हैं। संस्थाओं पर सवाल उठाना आसान है, मगर उसे साबित करना कठिन है। राहुल गांधी ने यही किया है कि लोकतंत्र बचाने का नाटक करते हुए भारतीय लोकतंत्र की छवि को धूमिल करने की कोशिश करते रहना।

भारत की संस्थाओं पर दुनिया का भरोसा और विपक्ष की असफलता
दरअसल, राहुल गांधी की राजनीति अपने चुनिंदा सलाहकारों के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है। उनका चरित्र यही है कि वे किसी भी संस्थान पर बिना तथ्य के हमला कर देते हैं। ना संवैधानिक दायरे की समझ, ना विश्वसनीयता की चिंता। जब दुनिया भारत को चुनाव प्रक्रिया का “गोल्ड स्टैंडर्ड” कह रही है, तब विपक्ष उसे कमजोर बताए जाने की नौटंकी कर रहा है। भारत का चुनाव आयोग पहले भी विश्वसनीय था, आज और भी अधिक सम्मानित हो गया है। लेकिन कांग्रेस की समस्या यह है कि उसे भाजपा से अधिक परेशानी भारत की मजबूत संस्थाओं से है। क्योंकि ये संस्थाएँ उस कथा को झूठ साबित कर देती हैं, जिसकी राजनीति राहुल गांधी करते हैं। राहुल गांधी के लिए यह एक कड़ा संदेश है—देश की जनता और दुनिया, दोनों ही अब तथ्यों से संचालित राजनीति चाहते हैं, उन्हें फेक आरोपों की राजनीति पसंद नहीं है।

क्या है International IDEA
International Institute for Democracy and Electoral Assistance (International IDEA) एक अंतर-सरकारी संगठन है।
1995 में स्थापित यह संगठन दुनिया भर में लोकतांत्रिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं को समर्थन और मजबूती देता है।
यह टिकाऊ, प्रभावी और वैध लोकतंत्रों के विकास के लिए कार्य करता है।
इसके क्षेत्रीय कार्यालय यूरोप, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन, एशिया और प्रशांत, अफ्रीका, पश्चिम एशिया, उत्तरी अमेरिका में हैं।
International IDEA का मुख्यालय स्ट्रॉम्सबोर्ग, स्टॉकहोम, स्वीडन में है।
International IDEA संयुक्त राष्ट्र का एक आधिकारिक पर्यवेक्षक है।

International IDEA का मिशन क्या है
नीति-प्रासंगिक ज्ञान, क्षमता विकास, वकालत और संवादों का आयोजन करना
मानवाधिकार का ख्याल करते हुए दुनिया में स्थायी लोकतंत्र को बढ़ावा देना और रक्षा करना।
देशों को लोकतांत्रिक संस्थाओं के विकास हेतु क्षमता निर्माण में सहायता प्रदान करना।
नीति-निर्माताओं, शिक्षाविदों और व्यवहारिकों के बीच एक मंच प्रदान करना।
अनुसंधान और क्षेत्रीय अनुभव का संश्लेषण करना, और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को बेहतर बनाने के लिए व्यावहारिक उपकरण विकसित करना।
चुनाव प्रबंधन में जवाबदेही, पारदर्शिता और दक्षता को बढ़ावा देना।
स्थानीय नागरिकों द्वारा स्थानीय लोकतंत्र के मूल्यांकन, निगरानी और प्रचार को सुगम बनाना।

International IDEA क्या करता है
दुनिया भर के चुनावी प्रक्रियाओं का समर्थन करना।
इसका कानून लोकतांत्रिक चुनावी प्रक्रियाओं को बेहतर बनाने और उन्हें मजबूत बनाने के संस्थान के प्रयासों को एक अधिदेश प्रदान करते हैं।
टिकाऊ और विश्वसनीय स्थानीय चुनावी प्रक्रियाओं की रूपरेखा, स्थापना और मजबूती है मकसद।
वैश्विक तुलनात्मक ज्ञान, गैर-निर्देशात्मक विश्लेषण और नीतिगत सुझाव तैयार करके, संस्थान लक्षित दर्शकों की ज़रूरतों को पूरा करता है।
इनमें चुनावी प्रबंधन निकाय और चुनावी व्यवसायी, विधायी और न्यायिक निकाय, शिक्षाविद, नागरिक समाज, चुनाव पर्यवेक्षक, विकास एजेंसियां और लोकतंत्र सहायता संगठन शामिल हैं।
संविधान निर्माण में मददगार बनना। राजनीतिक भागीदारी और प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना। इसके अलावा, लोकतंत्र का आकलन भी करता है। यह वैश्विक लोकतंत्र स्थिति रिपोर्ट भी जारी करता है।

InternationalIDEA में कितने सदस्य देश हैं
InternationalIDEA के संस्थापक सदस्य देश ऑस्ट्रेलिया, बारबाडोस, बेल्जियम, चिली, कोस्टा रिका, डेनमार्क, फिनलैंड, भारत, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन और स्वीडन रहे हैं। 2024 तक इसमें 35 सदस्य देश शामिल हो चुके थे। जापान और अमेरिका को आधिकारिक पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है।

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