लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर भाषण देने के दौरान राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गले पड़ गए, फिर अपनी सीट पर पहुंचकर दोनों हाथों को भींचते हुए गुस्से में चिल्लाते हुए कहा कि वह प्यार और दया की राजनीति में विश्वास करते हैं। यह किस प्रकार के प्यार और करुणा के राजनीति का ऐलान राहुल गांधी ने किया जिसकी घोषणा में ही गुस्से और घृणा का भाव है। प्यार की बात करते समय नफरत और दुश्मनी का भाव होता है क्या!
प्रधानमंत्री मोदी से नफरत – देश की जनता 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पूर्ण बहुमत से सत्ता में ले आयी, पर राहुल गांधी और कांग्रेस को यह हार आज तक गले के नीचे नहीं उतरी है। पिछले चार साल में राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी पर नफरत के बाण चलाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा है। जैसे- जैसे कांग्रेस की राज्यों के विधानसभा चुनावों में हार की संख्या बढ़ती गई वैसे- वैसे राहुल गांधी नफरत के बाण तीखे करते गये। सोनिया गांधी ने कभी प्रधानमंत्री को मौत का सौदागर, तो राहुल गांधी ने सेना का दलाल कहा। कांग्रेस के अन्य नेता तो सोनिया और राहुल से चार कदम आगे ही निकल गये, रणदीप सुरजेवाला ने औरंगजेब कहा तो मणिशंकर अय्यर ने नीच आदमी कह डाला। कांग्रेसी नेताओं के नफरत के बाणों की एक लंबी फेहरिस्त है।
देश की विश्व में बढ़ रही साख से नफरत -पिछले चार साल में प्रधानमंत्री मोदी ने विश्व मंच पर भारत की साख को शक्ति और ओज दिया है। इस सामर्थ्य का ही नतीजा निकला की भारत विश्व के हर आर्थिक समूह का सम्मानित सदस्य है और सामरिक गुटों में एक अहम भूमिका है। विश्व के सभी देश और नेताओं का कहना है कि भारत, प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में निर्णायक और समग्र दृष्टि के साथ विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी की सशक्त निर्णायक की छवि से राहुल गांधी को नफरत है, वह हमेशा प्रधानमंत्री मोदी के विदेशी नेताओं से मुलाकातों पर अनर्गल बातों के तीर चलाते रहते हैं। राहुल गांधी ने अमेरिका और सिंगापुर की अपनी विदेश यात्राओं के दौरान भारत की खराब छवि पेश करके प्रधानमंत्री मोदी से अपनी नफरत का बदला निकालते रहते हैं।
राहुल गांधी का देश की एकता से नफरत – राहुल गांधी प्यार के राजनीति की बात करते हैं लेकिन राजनीति के मैदान मे वह देश को धर्मों और जातियों में बांट कर देखते हैं। उनकी राजनीति में नकारात्मक राजनीतिक प्रतिस्पर्धा हैं जहां चुनाव जीतने के लिए मुसलमानों की टोपी पहनने और हिन्दूओ के लिए जनेऊ धारण करने का प्रचार करते हैं, उन्हें विकास की राजनीति से धर्म और जाति के परे जाकर राजनीति करने का हुनर नहीं आता है। वे नफरत और दंगो पर राजनीतिक रोटियां सेंकते हैं।, क्योंकि यह उनके लिए आसान है। राहुल गांधी की राजनीति का मकसद है कि सत्ता को जैसे तैसे अपने कब्जे में लाया जाए, भले ही इसके लिए देश और समाज की एकता को नफरत की आग से जलाना पड़े।
प्यार और करुणा के राजनीति की बात तो राहुल गांधी कर लेते हैं लेकिन उनके व्यवहार में नफरत और गुस्से का भाव रहता है। उनकी राजनीति एक ऐसे विभाजित व्यक्ति की राजनीति है जो सोचता कुछ है और करता कुछ और है। राहुल गांधी जैसे व्यक्तित्व को मनोविज्ञान में Non-integrated personality कहते है, जिसकी कथनी और करनी में अंतर होता है।