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राफेल डील की जानकारी चीन और पाकिस्तान को देना चाहते हैं राहुल गांधी!

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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 20  जुलाई को अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान केंद्रीय रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण पर राफेल डील पर  जानकारी छिपाने का आरोप लगाया। हालांकि रक्षा मंत्री ने तत्काल ही तथ्यों के आधार पर आरोपों का प्रतिकार किया। इसके बाद फ्रांस की सरकार ने भी राहुल गांधी द्वारा बोले जा रहे झूठ का यह कहकर पर्दाफाश कर दिया कि रक्षा समझौते की जानकारी सार्वजनिक  नहीं करने का करार मनमोहन सिंह सरकार के समय 2008 में ही हुआ था। इसके बाद 2016 में इसी करार को कन्टीन्यू किया गया। जाहिर है कि राहुल गांधी एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष होते हुए भी देश को गुमराह कर रहे हैं। हालांकि सवाल उठ रहा है कि आखिर राहुल गांधी इस जानकारी को सार्वजनिक किए जाने का दवाब क्यों बना रहे हैं। क्या यह कोई षडयंत्र है?

सवाल यह भी कि क्या राहुल गांधी मोदी सरकार से रक्षा सौदे की जानकारी हासिल कर उसे पाकिस्तान और चीन तक पहुंचाना चाहते हैं?

दरअसल यह सवाल इसलिए मौजूं है क्योंकि उन्हीं की सरकार ने साल 2007 में सीपीएम के नेता सीताराम येचुरी और भगीरथ मांझी द्वारा अलग-अलग तारीख पर रक्षा सौदे के मामले में मांगी गई जानकारी देने से मना कर दिया था।

तत्कालीन रक्षामंत्री एक एंटनी ने लिखित जवाब देते हुए कहा था कि देश हित में जुड़े होने के कारण रक्षा सौदे की जानकारी सदन के पटल पर नहीं रखी जा सकती है।

  • 9 मई 2007 को भागीरथ मांझी ने तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी से रक्षा सौदे का मांगा था विवरण
  • 22 अगस्त 2007 को सीताराम येचुरी ने इजराइल से मिसाइल सौदे की मांगी थी विस्तृत जानकारी
  • तत्कालीन रक्षा मंत्री एंटनी ने देश की सुरक्षा का हवाला देकर दोनों को विवरण देने से कर दिया था मना

गौरतलब है कि सबसे पहले 2007 में नौ मई को भगीरथ मांझी ने संसद में रक्षामंत्री एके एंटनी से लिखित रूप में जवाब मांगा था कि क्या मनमोहन सरकार ने रक्षा मामले से जुड़ी कच्ची सामग्री समेत अन्य जरूरी चीजों का आयात किया है? अगर हां तो कौन सी चीजें आयात की गई हैं और किन देशों से की गई हैं? भागीरथ मांझी ने यह भी पूछा था कि जिन चीजों का आयात हुआ है उसकी कीमत क्या है? जो चीजें आयात की गई हैं क्या उसका निर्माण हम अपने देश में कर सकते थे या नहीं?

मांझी के सवालों का जवाब देते हुए तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने अपने जवाब में जिन देशों से चीजें आयात हुई थी उन देशों का नाम तो बताया लेकिन उन चीजों से जुड़ी अन्य विस्तृत विवरण देने से मना कर दिया था। उन्होंने लिखित जवाब दिया था जिसमें लिखा हुआ है कि देश की सुरक्षा के हितों को देखते हुए यह जानकारी संसद के पटल पर नहीं रखी जा सकती है।

दूसरा उदाहरण भी यूपीए सरकार का ही है। सरकार को समर्थन दे रही पार्टी सीपीएम के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी ने 22 अगस्त को तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटनी से प्रश्न किया था कि क्या यह तथ्य सच है कि सरकार इजरायल से अलग-अलग स्तर की मिसाइलें खरीद रही हैं? अगर ऐसा है तो फिर इसके लिए कितने बजट मंजूर हुए हैं तथा इस संदर्भ में कितना खर्च किया जा रहा है उसका विवरण दिया जाए। उन्होंने पूछा था कि क्या इजरायल से जो मिसाइलें खरीदी जा रही हैं उससे हमारे देसी मिसाइल सिस्टम पर प्रभाव नहीं पड़ेगा? अगर नहीं पड़ेगा तो उसका पूरा विस्तृत विवरण दिया जाए।

एके एंटनी ने येचुरी के प्रश्नों का लिखित जवाब दिया था। उन्होंने कहा था कि मिसाइल समेत रक्षा से जुड़ी चीजों का देसी स्तर पर अलग-अलग जगहों पर प्रबंध किया जा रहा है। लेकिन इसके साथ ही इजरायल समेत अन्य देशों से भी इसके लिए व्यवस्था होती रही है। अपने सैन्य बलों को आधुनिक बनाने तथा किसी भी अनहोनी से निपटने के लिए तत्पर रखने के लिए रक्षा मामले का विभाग को किसी भी स्थिति में हर क्षण किसी अनहोनी से निपटने में सक्षम बनाने के लिए लिए रक्षा प्रबंध एक निरंतर प्रक्रिया है। लेकिन इस संदर्भ में जुड़े विस्तृत विवरण सदन के पटल पर नहीं रखे जा सकते हैं क्योंकि यह देश की सुरक्षा से जुड़ा मामला है।

स्पष्ट है कि ये यूपीए सरकार का वक्तव्य है। अब सवाल उठता है कि एक जैसे मामलों में ही राहुल गांधी डबल स्टैंड क्यों रखते हैं।

अब सवाल उठता है कि जब सोनिया गांधी नियंत्रित यूपीए सरकार के रक्षा मंत्री एके एंटनी ने देश की सुरक्षा के हित को ध्यान में रखकर विस्तृत जानकारी देने से मना कर दिया तो, फिर राहुल गांधी आखिर रफेल डील की पूरी जानकारी हांसिल करने को इतने आतुर क्यों हैं?

आखिर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की चीनी राजदूत से गुपचुप बैठक और पाकिस्तान में जाकर उनके नेताओं द्वारा मोदी सरकार को गिराने की अपील करने की बातों को देश पहले से ही जानता है।

सवाल ये कि क्यों वे अपनी ही सरकार के समझौते का मान नहीं रख पाए? क्या इससे उनकी मंशा पर सवाल नहीं खड़ा होता है? क्या ये सच नहीं है कि उनकी इस हरकत से दुश्मन देशों को लाभ पहुंच सकता है? खासकर तब जब उनका और उनकी पार्टी का हर बयान पाकिस्तान को फायदा पहुंचाने वाला साबित हो रहा हो?

मणिशंकर अय्यर, गुलाम नबी आजाद, सैफुद्दीन सोज, सलमान खुर्शीद जैसे कांग्रेसी नेताओं ने अपने बयान से हमेशा पाकिस्तान केा फायदा पहुंचाया है! खुद राहुल गांधी डोकलाम विवाद के समय गुपचुप तरीके से चीनी दूतावास में बैठक करते पकड़े गए हैं। ऐसे में कांग्रेस को स्पष्ट करना चाहिए कि वह सत्ता खोने के बाद देश से खिलवाड़ तो नहीं कर रही है?

हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि अगस्ता वेस्टलैंड चॉपर घोटाला मामले मे गिरफ्तारी की तलवार सोनिया गांधी पर लटक रही है, इसलिए ही मुद्दे को भटकाने के लिए एक साजिश की जा रही है। 

बहरहाल आइये आपको दिखाते हैं राफेल डील पर राहुल गांधी द्वारा फैलाए जा रहे झूठ और सच्चाई।

आरोप नंबर 1-  ज्यादा कीमत पर खरीदे गए विमान
फ्रांस की कंपनी से हुए सौदे के अनुसार 7.87 बिलियन यूरो यानी 59 हजार करोड़ की लागत से 36 राफेल विमान खरीदे जाएंगे। जबकि पुरानी डील की कीमत करीब 1.20 लाख हजार करोड़ रूपये थी। दरअसल सच्चाई यह है कि फ्रांस इस सौदे की कीमत करीब 65 हजार करोड़ चाहता था, लेकिन तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के प्रयासों से सौदे की कीमत कम हो गई। अब ये सौदा 59 हजार करोड़ में तय हुआ यानी यूपीए सरकार के द्वारा तय की गई कीमत की तुलना में करीब 57 अरब 61 करोड़ रुपये बचाये जा सके।

आरोप नंबर 2- बिचौलियों की भूमिका पर सवाल
इस डील के पीछे प्रधानमंत्री की अपनी कोशिशें भी कम नहीं रही हैं। पीएमओ ने लगातार बातचीत के हर दौर पर नजर बनाए रखा और समुचित सुझाव भी दिए गए। प्रधानमंत्री मोदी और फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने डेसॉल्ट (Dassault) एविएशन द्वारा बताई गई शर्तों से बेहतर शर्तों की आपूर्ति के लिए अंतर-सरकारी समझौते यानी एक देश की सरकार से दूसरे देश की सरकार के साथ हुए समझौते को अंतिम रूप दिया गया। इस समझौते से जहां कीमतें कम करने में सफलता मिली वहीं बिचौलियों के लिए कोई मौका नहीं रह गया।

आरोप नंबर 3- एफडीआई में पक्षपात किया गया
राफेल विमान सौदे के बदले देश में निवेश की सीमा भी बढ़ाई गई। इसका मतलब यह है कि फ्रांस में निर्मित होने वाले विमानों का यह सौदा मेक इन इंडिया अभियान को भी गति देगा। रिलायंस डिफेंस लिमिटेड के अनुसार 24 जून 2016 को सरकार द्वारा रक्षा क्षेत्र में जारी की गई नई नीति के तहत डिफेंस सेक्‍टर में बिना पूर्व अनुमति के 49 प्रतिशत एफडीआई को मंजूरी दी गई। अब संयुक्‍त उद्यम कंपनी का गठन करने के लिए केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल या सीसीएस की अनुमति की जरूरत नहीं है।

आरोप नंबर 4- मेक इन इंडिया को नजरअंदाज किया
3 अक्टूबर, 2016 को राफेल लड़ाकू विमान बनाने वाली कंपनी डेसॉल्ट ने रिलायंस के साथ संयुक्त रणनीतिक उपक्रम स्थापित करने का ऐलान किया। यह उपक्रम विमान सौदे के तहत ‘ऑफसेट’ अनुबंध को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप के बाद फ्रांस 50 प्रतिशत ऑफसेट उपबंध के लिए सहमत हो गया था। यानी अब इसमें 50 प्रतिशत ‘ऑफसेट’ का प्रावधान भी रखा गया। इसका अर्थ यह हुआ कि छोटी बड़ी भारतीय कंपनियों के लिए कम से कम तीन अरब यूरो का कारोबार और ‘ऑफसेट’ के जरिये सैकड़ों रोजगार सृजित किए जा सकेंगे। 

आरोप नंबर 5- इन्फ्लेशन का लाभ नहीं मिलेगा
2016 में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और भारतीय वायु सेना दल ने फ्रेंच अधिकारियों से डील को मौजूदा बाजार भाव पर लाने के लिए एक के बाद एक कई दौर की बातचीत की, जिसके साथ अधिकतम 3.5 प्रतिशत का इन्फ्लेशन तय किया गया। अगर यूरोपीय बाजारों में इन्फ्लेशन इससे कम रहेगा तो इसका लाभ भी भारत को मिलेगा। जबकि यूपीए के दौर में इन्फ्लेशन की शर्त 3.9 प्रतिशत निर्धारित हुई थी। इस डील के तहत फ्रेंच कंपनी डेसॉल्ट को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि फ्लीट का 75 प्रतिशत हर हाल में ऑपरेशनल रहे।

आरोप नंबर 6- वारंटी को लेकर डील में कन्फ्यूजन
यूरोफाइटर (एईडीएस) और राफेल के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा के बाद, राफेल ने सबसे कम बोली लगा कर यह सौदा जीता। ‘रेडी टू फ्लाई’ राफेल डील के तहत इसके लिए 5 साल की वारंटी पर भी हस्ताक्षर किए गए हैं। इसके साथ ही वारंटी को बढ़ाने के प्रावधान भी रखे गए हैं। इतना ही नहीं अगर 36 महीने में राफेल विमान को देने में देरी हुई तो कंपनी पर पेनल्टी भी लगेगी।

आरोप नंबर 7- अनुभवहीन कंपनी को दिया काम
कांग्रेस का आरोप है कि फ्रांस की कंपनी डेसॉल्ट एविएशन ने भारतीय पाटर्नर रिलायंस डिफेंस को गलत तरीके से चुना है और उसे इस क्षेत्र का अनुभव नहीं  है, लेकिन यह जान लेना आवश्यक है कि रिलायंस डिफेंस एंड इंजीनियरिंग लि. (आरडीईएल) पहले से दो नौसैनिक गश्ती जहाज बना रहा है और कंपनी को रक्षा मंत्रालय से करार के तहत भारतीय तटरक्षक बल के लिए 14 तेज रफ्तार गश्ती पोतों के निर्माण और डिजाइनिंग का ठेका पहले से मिला है। इसलिए इसे अनुभवहीन कंपनी कहना बिल्कुल गलत है।

आरोप नंबर 8- HAL को मिलना था निर्माण ठेका
रिलायंस एरोस्पेस और डेसॉल्ट ने एक संयुक्त उद्यम पर हस्ताक्षर किया और भारत में युद्ध विमानों को निर्माण करने का निर्णय लिया। चूंकि एफडीआई के तहत कंपनियों को यह आजादी है कि वह किसके साथ अधिक सहज है इसको लेकर सवाल नहीं उठाए जा सकते। इस प्रक्रिया में पूरी पारदर्शिता बरती गई है और किसी भी प्रकार से देशहित से समझौता नहीं किया गया है। रिलायंस और डेसॉल्ट का ये संयुक्त उद्यम पहले चरण में विमान के स्पेयर पार्ट्स बनाएगा और द्वितीय चरण में डेसॉल्ट एयरक्राफ्ट का निर्माण शुरू करेगा।

आरोप नंबर 9- भारत के रक्षा मानक के अनुरूप नहीं
ये लड़ाकू विमान नवीनतम मिसाइल और शस्त्र प्रणालियों से लैस हैं और इनमें भारत के हिसाब से परिवर्तन किये गए हैं। ये लड़ाकू विमान मिलने के बाद भारतीय वायुसेना को अपने धुर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के मुकाबले अधिक ‘‘ताकत’’ मिलेगी। राफेल के साथ ही भारत ऐसे हथियारों से लैस हो जायेगा जिसका एशिया महाद्वीप में कोई सानी नहीं। राफेल के साथ मेटीओर मिसाइल्स जो हवा से हवा में 150 किमी तक मार कर सकती हैं। राफेल मीका मिसाइल से भी लैस है जिसकी रेंज हवा से हवा में 79 किमी है। स्काल्प मिसाइल भी राफेल के साथ है जो क्रूज मिसाइल की श्रृंखला में आती है और इसका रेंज 300 किमी है। इस डील के बाद चीन हो या पाकिस्तान भारत की हवाई ताकत के जद में आ जाएंगे और भारत के सामने कमतर ही महसूस करेंगे।

आरोप नंबर 10- टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं कर रहा फ्रांस
यह झूठ बड़े जोर-शोर से फैलाया जा रहा है कि इसमें टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की बात नहीं है, लेकिन सच्चाई यह है कि रिलायंस के साथ जॉइंट वेंचर के माध्यम से डेसॉल्ट कंपनी भारत में टेक्नोलॉजी ट्रांसफर कर रहा है।  रिलायंस और डसॉल्ट का ये संयुक्त उद्यम पहले चरण में विमान के स्पेयर पार्ट्स बनाएगा और द्वितीय चरण में दसों एयरक्राफ्ट का निर्माण शुरू करेगा।

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