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PM Modi की रणनीति ने 8 माह में राहुल गांधी को जमीन दिखाई, पांच राज्यों में Congress सिर्फ 23 प्रतिशत सीटों के साथ फैलियर हुई साबित

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस को परजीवी की उपाधि दी है। यह एक बार फिर सही साबित हो रही है। दूसरे दलों के कंधों पर सवार होकर कांग्रेस ने जैसे-तैसे लोकसभा में अपनी कुछ सीटें बढ़ा लीं थीं, लेकिन इसके बाद उसकी पोल खुल गई है। पिछले आठ महीने में हुए पांच राज्यों के चुनाव में राहुल गांधी की सियासत और कांग्रेस दोनों बुरी तरह से फ्लॉप साबित हुए हैं। एक के बाद एक कांग्रेस को असफलता का ही मुंह देखना पड़ा है। पीएम मोदी के विजन और दूरदर्शी रणनीति ने कांग्रेस से वो मोमेंटम भी छीन लिया है, जो लोकसभा के बाद थोड़ा-सा बना था। कांग्रेस के बदतर हालातों का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले आठ माह में पांच राज्यों के चुनाव में उसे पासिंग मार्क्स तक नहीं मिल पाए हैं। आंकड़ों में बात करें तो 5 राज्यों के पिछले विधानसभा चुनाव में कुल सीटों की संख्या 624 है। इनमें से देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस आधी से भी कम यानि 328 सीटों पर ही चुनाव लड़ने का साहस जुटा पाई। चुनावों में हांफती-गिरती कांग्रेस को इनमें से सिर्फ 75 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। उसकी जीत का स्ट्राइक रेट महज 23 प्रतिशत रहा। अगर एग्जाम के रिपोर्ट कार्ड की भाषा में कहें तो कांग्रेस का रिजल्ट ‘FAIL’ आया है। इसके साथ ही कांग्रेस के युवराज बुरी तरह फैलियर साबित हुए हैं।

2024 में कांग्रेस की बढ़त की वजह- क्षेत्रीय दलों का साथ
• दक्षिण के जिन राज्यों में 37 सीटें मिली हैं, वहां कांग्रेस का क्षेत्रीय दलों से गठबंधन था। ऐसे ही UP में भी समाजवादी पार्टी से गठबंधन की वजह से ही उसका खाता खुल सका है।
• दक्षिण के जिन राज्यों में उसका जहां क्षेत्रीय दलों से गठबंधन नहीं हुआ, वहां उसे कोई सफलता नहीं मिली। ओडिशा इसका जीवंत उदाहरण है।
• लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने समझ लिया था कि वो भाजपा को अपने दम पर नहीं हरा सकती। इसलिए INDIA ब्लॉक बनाया गया। तमाम उठापटक के बावजूद जनता के बीच एकजुटता का पॉजिटिव मैसेज दिया। इससे सारे एंटी-BJP वोट एकजुट हो गए।
• इसके अलावा कांग्रेस ने गलत नैरेटिव बनाए। आरक्षण और संविधान जैसे फेक मुद्दे उठाए। कांग्रेस ने BJP के ‘अबकी बार, 400 पार’ के नारे को ऐसे पेश किया कि अगर BJP इतनी सीटें जीती, तो वह संविधान बदल देगी।

लोकसभा चुनाव के बाद BJP ने कांग्रेस को ऐसा किया बुरी तरह परास्त
लोकसभा चुनाव के बाद 5 राज्यों हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली में चुनाव हुए। इनमें से 3 राज्यों में BJP ने बंपर जीत के साथ सरकार बनाई। बाकी 2 राज्यों में जबरदस्त टक्कर देते हुए मुख्य विपक्षी पार्टी बनी। इस जीत का सबसे बड़ा आधार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बने। दरअसल, PM मोदी आज भी अपने दम पर BJP के हर प्रत्याशी को वोट दिला देते हैं। BJP संगठन की सोच से ज्यादा वोट उसे मिलते हैं। ये मोदी के करिश्माई नेतृत्व का ही नतीजा है।

पीएम मोदी के विजन से निकली भाजपा की ये चार स्ट्रैटजी
1. लोकल और छोटी जातियों को साधा: BJP ने जातीय समीकरण साधने के लिए बड़ी जातियों को छोड़ छोटी-छोटी जातियों पर फोकस किया। हरियाणा में BJP ने ‘जाट वर्सेज नॉन-जाट’ फॉर्मूला अपनाया। वहीं महाराष्ट्र में मराठा के बजाय माली, धनगर, तेली, कुनबी, वंजारी जैसी छोटी जातियों को साधा।
2. नारीशक्ति पर फोकस: BJP ने महिलाओं को एक वोटबैंक के तौर पर समझा। इसके लिए मध्यप्रदेश का उदाहरण सबसे सटीक है। मध्यप्रदेश की तर्ज पर महाराष्ट्र में महिलाओं के लिए कैश ट्रांसफर स्कीम लॉन्च की। हरियाणा और दिल्ली में इसका वादा किया। दोनों ही राज्यों में बीजेपी को बंपर जीत मिली।
3. आरएसएस का पूरा साथ मिला: लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा चुनाव में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पूरी ताकत के साथ जमीन पर उतरा। BJP ने यहां 48 सीटों पर जीत हासिल कर हैट्रिक मारी। महाराष्ट्र में भी BJP के लिए वोट मांगने के लिए संघ जमीन पर उतरा। दिल्ली में भी संघ ने करीब 50 हजार छोटी बैठकें कीं।
4. मोदी के साथ लोकल लीडर्स भी उतरे: करीब एक दशक से BJP हर चुनाव PM मोदी के चेहरे पर लड़ रही है। इन पांचों राज्यों में भी बीजेपी पीएम मोदी के फेस पर लड़ी और कोई सीएम कैंडीडेट घोषित नहीं किया। बीजेपी ने स्थानीय नेताओं को जरूर आगे बढ़ाया। हरियाणा में नायब सिंह सैनी, अनिल विज, महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस, नितिन गडकरी, चंद्रशेखर बावनकुले, विनोद तावड़े, दिल्ली में प्रवेश वर्मा, विजेंद्र गुप्ता, वीरेंद्र सचदेवा समेत कई नेताओं ने चुनाव में जनसभाएं कीं।

हरियाणाः राहुल संगठन खड़ा न कर पाए, ओवरकॉन्फिडेंस में हारी कांग्रेस
• हरियाणा में बीजेपी को अपनी आक्रामक और धारदार रणनीति के साथ ही कांग्रेस की अधकचरी सोच और आपसी गुटबाजी का भी खूब फायदा मिला और जनता ने इसे प्रचंड बहुमत का जनादेश दिया।
• हरियाणा में कांग्रेस मोटे तौर पर 2 गुटों में बंटी थी- पहला गुट भूपेंद्र सिंह हुड्डा का और दूसरा SRK। SRK में रणदीप सुरजेवाला, कुमारी सैलजा और किरण चौधरी हैं। गुटबाजी से नाराज किरण कांग्रेस छोड़ BJP में चली गईं।
• चुनाव की शुरुआत से ही दोनों खेमों के बीच की खींचतान साफ दिख रही थी। हुड्डा गुट ने ‘हरियाणा मांगे हिसाब’ अभियान शुरू किया, तो कुमारी सैलजा ने ‘कांग्रेस संदेश यात्रा’ का ऐलान किया।
• राहुल गांधी करीब 12 साल से यहां कांग्रेस का संगठन खड़ा नहीं कर पाए हैं। जून 2023 में राहुल गांधी के करीबी सिपहसालार दीपक बाबरिया हरियाणा कांग्रेस के प्रभारी बने, लेकिन बाबरिया न तो संगठन बना पाए और न ही गुटबाजी रोक पाए। टिकट वितरण के बाद उनकी तबीयत बिगड़ गई और वो इलाज कराने चले गए।
• इस खेमेबाजी के बावजूद कांग्रेस जीत को लेकर इतना ओवर-कॉन्फिडेंट थी कि रिजल्ट से एक दिन पहले दीपेंद्र हुड्डा के घर पर मीटिंग हुई, जहां वो नेताओं को मंत्रालय बांट रहे थे।जम्मू-कश्मीरः राहुल गांधी की रैलियों का कोई फायदा नहीं मिला
• कांग्रेस ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ चुनाव लड़ा। सीट-शेयरिंग फॉर्मूला तय हुआ, कांग्रेस को 32 सीटें मिलीं, लेकिन केवल 6 सीटें ही जीत पाई। इनमें से 4 मुस्लिम बहुल और 2 हिंदू बहुल सीटें हैं।
• राहुल गांधी ने अपनी रैलियों में स्टेटहुड का दर्जा दिलाने की तो बात कही, लेकिन पानी, सड़क, बिजली, अन्य सुविधाओं जैसे लोकल मुद्दे नहीं उठाए। वे PM मोदी, BJP और RSS पर आरोप लगाते रहे।
• जम्मू-कश्मीर में पूरी लड़ाई ‘नेशनल कॉन्फ्रेंस वर्सेज BJP’ की थी। कांग्रेस केवल एक सहयोगी पार्टी बनकर रह गई थी
• कांग्रेस के बड़े नेता जम्मू रीजन में बुरी तरह हार गए। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने रैली की, लेकिन उसका फायदा नहीं मिला। यहां लोकल मुद्दे चलते हैं। कांग्रेस लीडर्स ये बात समझ नहीं पाए।

महाराष्ट्रः INDI अलायंस में आपसी खींचतान से नुकसान हुआ
• लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने महाराष्ट्र की 17 सीटों पर चुनाव लड़ा और 13 सीटें जीतीं। यानी यहां कांग्रेस का मोमेंटम नजर आया, लेकिन विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी की रणनीति के आगे ये ध्वस्त हो गया।
• जिस वक्त BJP ने करीब 100 कैंडिडेट की लिस्ट जारी कर दी थी, तब कांग्रेस के नेतृत्व वाले महाविकास अघाड़ी में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तक नहीं तय हुआ था।
• दरअसल, कांग्रेस 110-120 सीटें मांग रही थी। वहीं उद्धव ठाकरे CM फेस बनना चाहते थे, लेकिन शरद पवार को ये नागवार था। यानी अलायंस के बीच खींचतान थी।
• शिवसेना (शिंदे) के नेता संजय राउत के मुताबिक कांग्रेस का ओवर-कॉन्फिडेंस हरियाणा में हार के लिए जिम्मेदार है। कांग्रेस केवल उन क्षेत्रों में सहयोगियों पर निर्भर रहती है, जहां वह कमजोर है, लेकिन मजबूत क्षेत्रों में उन्हें नजरअंदाज कर देती है।

झारखंडः कोई बड़ा नेता नहीं, सब कुछ JMM के सहारे
• झारखंड मुक्ति मोर्चा यानी JMM की कमान में INDIA ब्लॉक ने चुनाव लड़ा। यहां कांग्रेस का कोई मजबूत और बड़ा नेता नहीं है। पूरे चुनाव की कमान JMM के हाथों में रही। JMM के कार्यकारी अध्यक्ष और CM हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने पूरे प्रचार का जिम्मा उठाया। दोनों ने करीब 100-100 सभाएं कीं।
• पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि झारखंड में चुनाव जिताने में हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना की मेहनत ज्यादा रही, कांग्रेस सिर्फ एक साइड किक बनकर रह गई।
• INDIA ब्लॉक में JMM को बनाए रखने के लिए कांग्रेस को हेमंत सोरेन की बात माननी पड़ी। अगर कांग्रेस नहीं मानती तो उसे ही नुकसान उठाना पड़ता, जैसा हरियाणा में हुआ।

दिल्लीः मतलबी यारियों में कांग्रेस-AAP भिड़े, मोदी की गारंटी ने बिगाड़ा खेल
• दिल्ली में कांग्रेस 5-10 सीटें चाहती थी, लेकिन 1 दिसंबर को केजरीवाल ने साफ कर दिया कि वह गठबंधन नहीं करेंगे। इससे कांग्रेस को झटका लगा और अकेले चुनाव लड़ना पड़ा। दोनों एक-दूसरे के खिलाफ आक्रामक हो गए।
• उस वक्त कांग्रेस दिल्ली में AAP के कुशासन के खिलाफ पदयात्रा निकाल रही थी। कांग्रेस नेता अजय माकन केजरीवाल को ‘देशद्रोही और फर्जी’ कह चुके थे।
• जब राहुल ने केजरीवाल के खिलाफ बयान दिए तो केजरीवाल ने पलटवार किया, ‘आज राहुल गांधी ने मुझे खूब गालियां दीं, लेकिन मैं उनके बयानों पर टिप्पणी नहीं करूंगा। उनकी लड़ाई कांग्रेस को बचाने की है, मेरी देश को।’
• कांग्रेस ने कई सीटों पर AAP के कद्दावर नेताओं के सामने अपने मजबूत नेता उतारे। इन सब के बावजूद कांग्रेस को नाकामी हाथ लगी। एक भी सीट नहीं जीत पाई और 67 सीटों पर जमानत जब्त हो गई।कांग्रेस ने बड़ा मौका गंवाया, आगे की राजनीति पर असर पड़ेगा
लोकसभा चुनाव में INDIA ब्लॉक की अगुआई कांग्रेस कर रही थी। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि INDIA ब्लॉक की क्षेत्रीय पार्टियां अब सवाल उठाने लगी हैं कि कांग्रेस इस गठबंधन की अगुआई क्यों कर रही है, जबकि वह ग्राउंड पर वोट हासिल नहीं कर पा रही। हाल में हुए चुनावों में यह देखा गया कि BJP का सामना क्षेत्रीय पार्टियां कर रही हैं, जबकि कांग्रेस उनके सामने प्रमुख पार्टी थी। इससे क्षेत्रीय पार्टियों का कांग्रेस के प्रति गुस्सा बढ़ रहा है। लोकसभा चुनाव के बाद इंडिया ब्लॉक के खेमे में जो ऊर्जा आई थी, वह इस दिल्ली चुनाव के परिणामों के बाद गायब हो गई है। विपक्ष के बिखरने का खतरा अब और बढ़ गया है। दरअसल, अभी कांग्रेस शॉर्ट टर्म पॉलिटिक्स कर रही है। उसके पास लॉन्ग टर्म पॉलिटिक्स का कोई प्लान नहीं है। राहुल गांधी स्टेट लीडरशिप से दूर हो चुके हैं। प्रियंका वाड्रा भी कुछ खास नहीं कर रही हैं। साल के आखिर में होने वाले बिहार चुनाव में कांग्रेस, RJD के रहमोकरम पर रहने वाली है। कांग्रेस में जल्दी बदलाव नहीं हुए तो दिल्ली जैसे नतीजे आएंगे।कांग्रेस के लिए एसेट नहीं, लायबिलिटी बन गए हैं राहुल गांधी
इलेक्शन एनालिस्ट अमिताभ तिवारी मानते हैं कि अगर कांग्रेस लोकसभा चुनाव का सही तरीके से एनालिसिस करती तो उसे अपनी जमीनी हकीकत पता चल जाती। वे कहते हैं-लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने अपने बूते कुछ हासिल नहीं किया। कांग्रेस को रीजनल पार्टियों की बदौलत ही 99 सीटें मिलीं। दिल्ली में कांग्रेस की जो गत हुई है उसके बाद INDIA ब्लॉक का टूटना तय है। किसी भी परिवार में सबसे ज्यादा इज्जत उसी की होती है, जो कमाता है और परिवार को पालता है। ऐसा ही कुछ हाल INDIA ब्लॉक का है। कांग्रेस और इंडिया ब्लॉक के लिए राहुल गांधी एसेट नहीं बल्कि लायबिलिटी हैं। लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने समझ लिया था कि वो भाजपा को अपनी दम पर नहीं हरा सकती। इसलिए INDIA ब्लॉक बनाया, लेकिन राहुल के काम करने के तरीकों से INDIA ब्लॉक की रीजनल पार्टियां खुद को असहज महसूस कर रही हैं।अब राहुल गांधी के नेतृत्व के खिलाफ इंडी गठबंधन में भी विरोध के स्वर

विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा होने के दम भरने वाले राहुल गांधी के दिन क्या अब लदने वाले हैं? क्या इंडिया गठबंधन का चेहरा राहुल गांधी के बजाए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बनने जा रही हैं? इन सवालों का जवाब चाहे जो हो, लेकिन ये अब शीशे की तरह साफ हो गया है कि इंडी ब्लॉक के अंदर राहुल गांधी को लेकर खटपट का समंदर लहरा रहा है। इंडिया गठबंधन के ज्यादातर खिलाड़ी कैप्टन बदलने के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस की मांग है कि ममता बनर्जी को इंडिया गठबंधन का कैप्टन बनाया जाए। ममता बनर्जी की दावेदारी के बाद इंडिया गठबंधन पूरी तरह खेमों में बंटा हुआ नजर आ रहा है। वैसे यदि दिमाग पर थोड़ा-सा जोर डालें तो याद आएगा कि पीएम मोदी ने तो लोकसभा चुनाव से पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि इंडी गठबंधन के दल सिर्फ चुनावी स्वार्थ के लिए जुड़े हैं। चुनाव होने के बाद गठबंधन के दल आपस में टकराने लग जाएंगे। वही अब हो रहा है। केजरीवाल ने दिल्ली में कांग्रेस से अलग राह पकड़ ली है। उधर पांच दलों के सीएम ममता बनर्जी के पक्ष में उठ खड़े होने से इसी संभावना को बल मिल रहा है और राहुल गांधी के पांव देश की सियासत में कमजोर होने लगे हैं।इंडिया गठबंधन का ‘कप्तान’ बदलने का वक्त आ गया
दरअसल, हरियाणा के बाद महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी चौतरफा मुसीबतों में घिरे नजर आ रहे हैं। एक ओर राहुल गांधी पर अमेरिकी उद्योगपति जॊर्ज सोरोस के साथ कनेक्शन का बड़ा खुलासा हुआ है, तो दूसरी ओर इंडिया ब्लॊक के अंदर से ही राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर बगावत जैसे हालात पैदा हो गए हैं। राहुल गांधी की कथित ब्रिटिश नागरिकता को लेकर जांच पहले से ही चल रही है। इंडिया ब्लॊक की पांच प्रमुख पार्टियों ने गठबंधन की कमान बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सौंपने का समर्थन कर कांग्रेस खासकर, राहुल गांधी के लिए ऐसी मुसीबत खड़ी कर दी है, जिससे पार पाना मुश्किल होगा। ममता बनर्जी और उनकी पार्टी ने राहुल गांधी के खिलाफ खुल्लम-खुल्ला मोर्चा खोल दिया है। दावा यही है कि अब इंडिया गठबंधन का कप्तान बदलने का वक्त आ गया है। राहुल गांधी की कैप्टेंसी में इंडिया गठबंधन के लिए लगातार मजबूत हो रही भाजपा को हराना असंभव होगा।

पांच प्रमुख दलों ने राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर उठाए सवाल
लोकसभा चुनाव में टीम एनडीए का स्कोर कार्ड 293 रहा, जो स्पष्ट बहुमत से कहीं ज्यादा है। एनडीए के कप्तान नरेन्द्र मोदी ने अपनी टीम को शानदार जीत दिलाई। वहीं, टीम इंडिया गठबंधन का स्कोर 235 ही रहा। लगातार तीसरी हार के बाद अब विपक्षी टीम की कैप्टेंसी को लेकर नई जंग छिड़ गई है। टीएमसी की मांग है कि हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस का स्कोर कार्ड ऐसा है कि अब टीम इंडिया का कप्तान बदलना होगा। मतलब टीम इंडिया में कैप्टन की कुर्सी को लेकर अंदरूनी झगड़ा शुरू हो गया है। हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस की बुरी हार के बाद पांच प्रमुख दल राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठा चुके हैं। नवंबर में हरियाणा और दिसंबर में महाराष्ट्र के चुनाव में कांग्रेस की बुरी करारी हार होते ही ममता बनर्जी कैंप से राहुल गांधी के नेतृत्व को चुनौती देने में तनिक भी देरी नहीं की है।

चुनाव हार रहे राहुल गांधी इंडी गठबंधन को आगे कैसे ले जा सकते हैं
टीएमसी के सांसद कीर्ति आजाद ने पिछले सप्ताह ही यह बयान दिया था कि अब इंडिया ब्लॊक की कमान बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सौंप दी जानी चाहिए। क्योंकि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस खुद बुरी तरह हार का सामना कर रही है। ऐसे में वह इंडिया गठबंधन को आगे लेकर कैसे जा सकती है। अपने सांसद के इस बयान पर पहली प्रतिक्रिया ममता बनर्जी ने ही दी। उन्होंने साफ तौर पर कह दिया कि सभी दल राजी हों तो वे ‘इंडिया’ की कमान संभालने को तैयार हैं। इसके बाद तो ममता बनर्जी को समर्थन की झड़ी सी लग गई। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव, एनसीपी चीफ शरद पवार, शिवसेना (उद्धव) और अब लालू यादव ने भी मांग कर दी कि इंडिया ब्लॊक की कमान ममता बनर्जी को सौंप दी जानी चाहिए।

करारी हार के बाद भी कांग्रेस का अहंकार नहीं टूटा
इंडिया गठबंधन में शामिल पार्टियां इसलिए कई कारणों से कांग्रेस और राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठा रही है और ममता का समर्थन कर रही है। इनका कहना है कि कांग्रेस आज सभी दलों को साथ लेकर चलने में सक्षम नहीं। दूसरा दो राज्यों में मिली करारी हार के बाद भी कांग्रेस और राहुल गांधी का अहंकार टूटा नहीं है। इसलिए वह जमीनी वास्तविकता से पूरी तरह अनजान हैं। ममता बनर्जी किसी भी तरह अपना गढ़ बचा पा रही हैं, इसलिए वह इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करने में सक्षम हैं। हालांकि, यह अलग बात है कि भाजपा भले ही पश्चिम बंगाल में ना जीत पाई हो, लेकिन पिछले दस साल से देश पर राज कर रही है। ऐसे में सिर्फ एक राज्य की सत्ता संभालने वाली ममता बनर्जी, लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बने नरेन्द्र मोदी को कैसे चुनौती दे सकती हैं?

गठबंधन के घटक दल राहुल को नेता मानने को तैयार नहीं
इंडिया गठबंधन में चल रही उठापटक के बीच कांग्रेस और राहुल गांधी की ओर से चुप्पी साध ली गई है। राहुल गांधी और उनकी पार्टी संसद के सत्र में गौतम अडानी का अपना वही पुराना मुद्दा उठा रहे हैं। इस मुद्दे पर टीएमसी और समाजवादी पार्टी का उसे समर्थन ना मिलने से समझा जा सकता है कि इंडिया के कई प्रमुख घटक दल राहुल गांधी को अपना नेता मानने को तैयार नहीं हैं। इंडिया ब्लॊक के प्रमुख घटक दल राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने भी ममता बनर्जी को इंडिया का नेतृत्व सौंपने की मांग कर एक प्रकार से कांग्रेस का साथ छोड़ दिया है। पटना में पत्रकारों ने जब लालू यादव से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बयान के संबंध में पूछा तो उन्होंने कहा, “इंडिया गठबंधन का नेतृत्व ममता बनर्जी को दे देना चाहिए, हम सहमत हैं।” कांग्रेस की आपत्ति से जुड़े सवाल पर लालू ने कहा, “कांग्रेस के आपत्ति जताने से कुछ नहीं होगा। ममता बनर्जी को नेतृत्व दे देना चाहिए।”

ममता का नाम आगे करने के बयानों से सियासी पारा चढ़ा
भले ही कहने को कांग्रेस की ओर से इंडिया ब्लॊक की कमान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे संभाल रहे हैं, लेकिन सहयोगी दल मानते हैं कि इंडिया की कमान अप्रत्यक्ष रूप से राहुल गांधी के हाथों में ही है। मल्लिकार्जुन तो कठपुतली मात्र हैं। कांग्रेस की ओर से मुख्य चेहरा राहुल गांधी ही हैं। ऐसे में इंडी गठबंधन के सहयोगी दलों का निशाना सीधे-सीधे राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर ही है। सहयोगी दलों ने एक प्रकार से राहुल गांधी के प्रति बगावत कर उनके प्रति अविश्वास व्यक्त कर दिया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को विपक्षी दलों के गठबंधन का नेतृत्व देने के लेकर कई दलों के बयान के बाद सियासी पारा चढ़ गया है। अब सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष के नेता इस बयानबाजी में शामिल हो गए हैं। इंडी गठबंधन के नेतृत्व पर लालू-शरद-उद्धव आदि नेताओं का साथ मिलने ममता बनर्जी फूली नहीं समा रही हैं। लालू यादव, शरद पवार से लेकर संजय राउत ने भी ममता बनर्जी को प्रमुख भूमिका देने की बात कही है। इस बीच ममता बनर्जी ने इंडिया ब्लॉक के नेतृत्व में बदलाव की चर्चाओं पर अपनी पहली प्रतिक्रिया दी है, उन्होंने इस पद के लिए उनका समर्थन करने वाले विपक्षी नेताओं को धन्यवाद दिया है। वाईएसआर कांग्रेस पार्टी ने भी ममता बनर्जी को गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए सबसे बेहतर उम्मीदवार बताया।

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