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राहुल गांधी अपनी पार्टी में तो एकजुटता ला नहीं पा रहे, नीतीश-केजरीवाल के संग विपक्षी एकता की कर रहे खोखली कवायद, कई नेताओं ने कांग्रेस छोड़ी, अब चरम पर गहलोत-पायलट की लड़ाई

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दिल्ली में आजकल विपक्षी नेताओं का अलमस्त मजमा लगा हुआ है। मानो मंच पर से पर्दा गिरता-उठता है तो लोट-पोट होते पेट में बल पड़ जाते हैं। कांग्रेस के लंबरदार राहुल गांधी (डिस्क्वालिफाई सांसद)  कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के उसी आवास में विपक्षी एकजुटता की खोखली कवायद कर रहे हैं, जिसमें खंड-खंड हुई कांग्रेस का पर्दा राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने गिराया हुआ है। पायलट अपनी ही पार्टी से करप्शन के मामले में दो-दो हाथ कर रहे हैं और उधर राहुल गांधी और मल्लिकार्जन खरगे अपने घर की लड़ाई को छोड़कर दूसरों से दो-दो हाथ मिलाने को आतुर हैं। कांग्रेस आलाकमान और राहुल गांधी के इसी लापरवाह रवैये के कारण कई कद्दावर नेता कांग्रेस से किनारा कर चुके हैं। इसके बावजूद मुसद्दीलाल हसीन सपनों में है कि 2024 में विपक्षी एकता कुछ गुल खिला सकती है। बिहार से आए सीएम चचा और भ्रष्ट मंत्रियों के सरदार दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल मिलकर विपक्षी एकता के दिवास्वप्न दिखाने में लगे हैं। उधर ममता दीदी तो बंगाल में अपनी अलग ही ढपली बजाने में बिजी हैं।कांग्रेस समेत विपक्षी दलों में 2024 की घबराहट से चल रही गजब की नौटंकी
कांग्रेस समेत विपक्षी दलों में 2024 की घबराहट में अभी से गजब की नौटंकी चल रही है। कभी बारी-बारी तो कभी एक साथ विपक्षी दलों के नेता मिलने-बैठने लगे हैं। भले ही यह नक्कारखाने में तूती के समान साबित हो, लेकिन दिखावे के लिए ही सही, लगे तो कि देश में विपक्षी दलों की एकजुटता का चौतरफा नगाड़ा पीटा जा रहा है। एकजुटता के ऐसे प्रयास के बावजूद अधिकतर दलों का परस्पर टकराव जग-जाहिर है। दिलचस्प तमाशा तो यह भी है कि राज्य की सत्ता में जो एक-दूसरे को फूटी आंख भी नहीं सुहाते। जिनके समर्थक परस्पर कट्टर दुश्मनी लिए घूमते रहते हैं, वे राष्ट्रीय स्तर पर एकजुटता की मुहिम के झंडाबरदार बन रहे हैं। बिहार-लखनऊ समेत अन्य राज्यों की राजधानियों से दिल्ली तक की दूरी नाप रहे हैं। ताकि किसी तरह 2024 में फेस-सेविंग हो जाए।राज्यों में बदल-बदलकर दोस्त-दुश्मन के खेल में व्यस्त हैं विपक्षी दल
भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों की हालत क्या है, जरा उसकी बानगी भी देख लीजिए… समाजवादी पार्टी की उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ी दुश्मन बीजेपी तो है ही, कांग्रेस को भी वह छोटा दुश्मन नहीं मानती। केरल के सीएम पिनाराई विजयन को तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव का साथ सुहाता है तो सीपीआईएम के ही सीताराम येचुरी को तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन अधिक करीब लगते हैं। बंगाल में ममता बनर्जी की कांग्रेस से तनातनी भी किसी से छिपी नहीं है। वामपंथी दलों में माले को नीतीश पसंद हैं। सबकी अपनी-अपनी पसंद के नेता और दल हैं तो अपनी-अपनी पसंद के दुश्मन भी। तभी पीएम नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों कहा था कि जनता ऐसे दलों की झूठी लड़ाई और मौकापरस्त दोस्ती को पहचान चुकी है। ये दल एक राज्य में एक-दूसरे के खिलाफ लड़ते हैं तो दूसरे राज्य में बेशर्मी से हाथ में हाथ डालकर जनता को ऐसे मामू बनाते हैं…लेकिन ये पब्लिक है बाबू, ये सब जानती है।मतलबपरस्त नीतीश कुमार मौका ताड़कर पाला बदलने में पहले ही माहिर
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के घर पर राहुल गांधी से मुलाकात की। इसके बाद नीतीश और राहुल ने मीडिया से बातचीत में कहा कि कि हमारी विपक्षी एकता पर बात हुई है। ज्यादा से ज्यादा पार्टियों को एक साथ लाने की कोशिश है। हमारी सकारात्मक बातचीत हुई है। राहुल गांधी ने कहा कि नीतीश जी की पहल बहुत अच्छी है। अपोजिशन को एक करने के लिए ऐतिहासिक कदम उठाया गया है। देश पर आक्रमण के खिलाफ लड़ेंगे। मतलबपरस्त नीतीश कुमार मौका ताड़कर पाला बदलने में पहले ही माहिर हैं। वे अब विपक्षी एकता के साथ कांग्रेस को साथ लेकर चलने की बात कह रहे हैं। कुछ विपक्षी पार्टियां उनके इस प्रस्ताव के खिलाफ हैं।

जेडीयू के तीसरे नंबर पर आने के बाद भी सीएम बनने के लिए की थी नौटंकी
सीएम नीतीश के स्वभाव से तो सभी परिचित हैं, पर उनको समझना किसी के बूते की बात नहीं। हालांकि संकेतों से कुछ बातें जरूर जाहिर हो जाती हैं। याद करें, बिहार विधानसभा चुनाव में जब नीतीश की पार्टी को एनडीए के साथ रहते महज 43 सीटें आईं तो वे कोप भवन में बैठ गए थे। बीजेपी की ओर से इस आश्वस्ति के बावजूद कि सीएम के रूप में नीतीश के नाम की पहले घोषणा हो चुकी है तो दूसरे को सीएम बनाने का सवाल ही नहीं उठता। एक तो विधानसभा में जेडीयू तीसरे नंबर का दल था, उस पर भी नीतीश का मुंह फुलाना तब किसी की समझ में नहीं आया था। तब आश्चर्य इस बात से हुआ था कि सीएम बनने के लिए कभी आरजेडी तो कभी बीजेपी के साथ सटने-हटने का उपक्रम करने नाटक करते रहे। दो साल भी पूरे नहीं हुए थे कि उन्होंने सीएम की कुर्सी के लिए सात दलों के महागठबंधन से हाथ मिला लिया।विपक्षी दलों में पीएम फेस को लेकर एक अनार, सौ बीमार वाली कहावत
अगले साल आम चुनाव से पहले हो रही इस मुलाकात के बाद कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार यूपीए के संयोजक बनाए जा सकते हैं। क्योंकि नीतीश कुमार पर ही विपक्षी दलों को कांग्रेस की अगुआई के लिए राजी करने की जिम्मेदारी है। जहां तक PM पद की दावेदारी की बात है, नीतीश पहले ही कह चुके हैं कि वह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं हैं और 2024 लोकसभा चुनाव के बाद ही नेता चुना जाएगा। बड़ा सवाल यह भी है कि जब नीतीश कुमार बार-बार प्रधानमंत्री के चेहरा के रूप में अपनी दावेदारी से इनकार करते रहे हैं। तो फिर वे विपक्ष को एकजुट करने के लिए इतने बेचैन क्यों हैं। दरअसल, असल बात यह है कि विपक्षी दलों में पीएम फेस को लेकर एक अनार, सौ बीमार वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। नीतीश ही नहीं, केजरीवाल, ममता बनर्जी, स्टालिन, राहुल गांधी सभी ख्वाहिश तो पाले हैं, लेकिन अपने मुंह से कहकर जगहंसाई से डर भी रहे हैं।

विपक्ष की एकता पर ममता बनर्जी की अपनी ढपली और अलग राग
विपक्षी एकजुटता को लेकर ममता बनर्जी का रुख भी कभी हां, कभी न वाला ही रहा है। पिछले माह ही जब लोकसभा चुनाव 2024 के लिए विपक्षी पार्टियां एकजुट होने की मुहिम चला रही थीं। वहीं, तृणमूल कांग्रेस ने विपक्षी एकजुटता की इस मुहिम से खुद को अलग कर लिया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया है। किसी भी राजनीतिक दल के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। टीएमसी का गठबंधन जनता के साथ होगा। ममता का बयान तब आया है जब तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन के जन्मदिन पर मंच से विपक्षी एकजुटता के कसीदे पढ़े जा रहे थे। मंच से कांग्रेस प्रेसिडेंट मल्लिकार्जुन खड़गे ने सभी विपक्षी पार्टियों से एक साथ आने की अपील की। दरअसल, बंगाल की सीएम ने त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के नतीजों के संदर्भ में कहा कि जो लोग CPI(M) और कांग्रेस को वोट दे रहे हैं, असल में वो भाजपा को ही वोट दे रहे हैं। बता दें कि टीएमसी को त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली है।

खरगे के आवास पर एक और विपक्षी एकजुटता की बात, दूसरी ओर पार्टी में घमासान
दिल्ली में विपक्षी एकजुटता के लेकर हुई नौटंकी में एक ओर दिलचस्प बात हुई। दरअसल, एकजुटता की बातें उन्हीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के आवास पर और राहुल गांधी के सामने हुईं, जो खुद अपनी पार्टी को एकजुट नहीं रख पा रहे हैं। खरगे के बंगले पर ही अपनी सरकार के खिलाफ अनशन करके पूर्व डिप्टी सीएम पहुंचे हुए हैं। नाराज सचिन पायलट के अनशन को लेकर कांग्रेस की अंदरूनी सियासत तेज हो गई है। इस प्रकरण में दिल्ली में बैठकों का दौर जारी है। कांग्रेस प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा और प्रभारी महासचिव के सी वेणुगोपाल ने राहुल गांधी को पूरे मामले में फीडबैक दिया है। राहुल गांधी ने दोनों नेताओं को अपना व्यू बता दिया है। हालांकि राहुल ने पायलट को लेकर क्या कहा है, कांग्रेस ने इसका खुलासा नहीं किया है। राहुल गांधी से बैठक के बाद दोनों नेता कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ दो दौर की मीटिंग कर चुके हैं। तीसरी बार बैठक फिर होनी है। खड़गे के घर से निकलते वक्त मीडिया ने मीटिंग के बारे में प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा से बात की तो उन्होंने कहा कि मैं वापस आ रहा हूं, फिर बताऊंगा। लेकिन रंधावा ने पायलट मामले पर चुप्पी साधे रखी और इतना ही कहा कि राजस्थान को पंजाब नहीं बनने दूंगा।

गहलोत वर्सेज पायलट का सियासी संग्राम अब चरम पर पहुंचा, कांग्रेस फंसी
दरअसल, गहलोत के सीएम बनने के साथ से ही शुरू हुआ सियासी संग्राम अब चरम पर पहुंच गया है। पायलट समर्थकों का कहना है कि आलाकमान उन्हें कई बार सीएम बनाने का वादा कर चुका है, लेकिन गहलोत के दबाव में हर बार मुकर जाता है। दूसरी ओर सीएम अशोक गहलोत भी कई बार कह चुके हैं कि अपनी ही सरकार गिराने की साजिश करने वाले गद्दार को विधायक किसी सूरत में सीएम बर्दाश्त नहीं करेंगे। सचिन पायलट के अनशन को कांग्रेस ने पहले ही पार्टी विरोधी बता दिया था। पार्टी विरोधी गतिविधि करने पर एक्शन लेने का काम पार्टी का है। लेकिन यदि पाटलट पर एक्शन होता है, तो 25 सितंबर को अनुशासनहीनता करने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेताओं पर भी एक्शन करना होगा। इसी के चलते पायलट के अनशन पर कार्रवाई में कांग्रेस खुद ही फंस गई है। इस बीच सचिन पायलट अनशन खत्म करने के बाद से दिल्ली में हैं। पायलट ने एआईसीसी मुख्यालय से दूरी बना रखी है। पायलट के नजदीकी नेता सुलह चाहते थे, लेकिन अब समीकरण बदल गए हैं।

राहुल गांधी से नाराजगी के चलते कांग्रेस को मिले तीन बड़ा झटके

गांधी परिवार के करीबियों का पार्टी छोड़ना जारी है। खुद को देश का भावी प्रधानमंत्री मानने वाले राहुल गांधी के रवैये के कारण कांग्रेस में असंतोष का माहौल है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बाद तो पार्टी नेताओं में नाराजगी और बढ़ गई है। नेता पार्टी छोड़ कर जा रहे हैं और सोनिया गांधी के बेटे राहुल गांधी पार्टी को जोड़े रखने में नाकाम साबित हो रहे हैं। पिछले तीन दिनों में ही पार्टी को तीन बड़ा झटका लगा है। सोनिया गांधी के करीबी सीनियर लीडर एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी, आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम किरण रेड्डी के बाद भारत के पहले गवर्नर जनरल सी राजगोपालाचारी के परपोते सीआर केसवन भी बीजेपी में शामिल हो गए हैं। हाल के वर्षो में राहुल गांधी के कारण पार्टी के कई दिग्गज नेता कांग्रेस छोड़ने के लिए मजबूर हुए हैं।राहुल गांधी की अगुआई में सिमट रही कांग्रेस

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के बेटे राहुल गांधी के कारण कांग्रेस का जनाधार लगातार कम होता जा रहा है। जहां बीजेपी ने कई राज्यों में अपनी पकड़ मजबूत की है, वहीं कांग्रेस अपनी सरकार तक गंवा रही है। 2014 के बाद से पिछले 9 सालों में कांग्रेस के विधायकों की संख्या 24 प्रतिशत से घटकर 16 प्रतिशत रह गई है। पांच राज्यों में तो पार्टी का कोई विधायक ही नहीं है। नौ राज्यों में 10 से कम विधायक हैं। पार्टी अब सिर्फ ले-देकर तीन राज्यों- राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश में अपने दम पर सरकार में है। जबकि तीन राज्यों- बिहार, झारखंड और तमिलनाडु में गठबंधन सरकार में शामिल है।

12 पूर्व मुख्यमंत्री छोड़ चुके हैं कांग्रेस
राहुल गांधी के कारण कांग्रेस के कई बड़े नेता पार्टी छोड़ रहे हैं। सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कार्यशैली से नाराज होकर कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं की लंबी कतार है। हालात इतने बदतर हैं कि पिछले नौ साल में 12 पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेस छोड़ चुके हैं।

आइए डालते हैं एक नजर-

किरण कुमार रेड्डी
पूर्व मुख्यमंत्री
अविभाजित आंध्र प्रदेश के आखिरी मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी भी कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए हैं। रेड्डी ने हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को पत्र लिखकर अपना इस्तीफा दे दिया था। किरण कुमार रेड्डी ने कहा कि कांग्रेस लोगों तक नहीं पहुंच पा रही है और आलाकमान के गलत फैसलों की वजह से पार्टी राज्य दर राज्य टूट रही है। यह एक राज्य की बात नहीं लगभग सभी राज्यों का यही हाल है। पार्टी आलाकमान पर निशाना साधने उन्होंने कहा कि वह यही सोचते हैं कि मैं ही सही हूं और देश की जनता सहित बाकी सब गलत हैं। इसी विचारधारा कि वजह से मैंने पार्टी छोड़ने का फैसला लिया है। उनके लिए एक पुरानी कहानी है कि मेरा राजा बहुत बुद्धिमान है वह अपने आप नहीं सोचता और न ही किसी का सुझाव मानता है। आप सबको पता चल गया होगा कि मैं क्या कहना चाहता हूं।

गुलाम नबी आजाद
पूर्व मुख्यमंत्री
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और गांधी परिवार के नजदीकी रहे गुलाम नबी आजाद ने अगस्त, 2022 में पार्टी की प्राथमिक सदस्यता और सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। सोनिया गांधी को भेजे अपने इस्तीफे में गुलाम नबी आजाद ने राहुल गांधी के खिलाफ जमकर नाराजगी जाहिर की। उन्होंने कहा कि कांग्रेस में लिए जाने वाले फैसले जनहित और देशहित के लिए नहीं होते, बल्कि कुछ लोगों के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए होते हैं। जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस से किनारा कर अपनी नई पार्टी बना ली है। गुलाम नबी आजाद ने इस्तीफे के दौरान आरोप लगाया कि पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी बेहद अपरिपक्व नेता हैं और बहुत ही बचकाने व्यवहार करते हैं। आजाद ने यह भी आरोप लगाया कि अब सोनिया गांधी नाममात्र की ही नेता रह गई हैं, क्योंकि पार्टी के सारे फैसले राहुल गांधी के ‘सिक्योरिटी गार्ड और निजी सहायक’ करते हैं।  

कैप्टन अमरिंदर सिंह
पूर्व मुख्यमंत्री
पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस छोड़ने के साथ सोनिया गांधी को भेजे सात पन्नों के इस्तीफे में सोनिया, राहुल और प्रियंका वाड्रा को खूब खरी-खोटी सुनाई। उन्होंने कहा कि सोनिया ने बंद आंखों के उनके अपमान का तमाशा देखा है। हालातों के लिए सीधे-सीधे राहुल-प्रियंका को दोषी ठहराया है। साथ ही कहा है कि उम्मीद करता हूं कि भविष्य में कांग्रेस में कोई अन्य नेता उस अपमान का शिकार नहीं होगा, जो मुझे झेलना पड़ा। कांग्रेस छोड़ने के लिए सोनिया गांधी को भेजे इस्तीफे में अमरिंदर ने कहा है कि नवजोत सिद्धू उम्र का लिहाज किए बिना उनको बेइज्जत करते रहे। राहुल-प्रियंका और हरीश रावत उसको शह देते रहे और ऐसे समय में आप (सोनिया गांधी) सब कुछ जानते-बूझते हुए भी आंखें मूंदे बैठी रहीं।

एसएम कृष्णा
पूर्व मुख्यमंत्री
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एसएम कृष्णा ने भी कांग्रेस के छोड़ने के बाद राहुल गांधी पर जमकर निशाना साधा। बीजेपी में शामिल हुए कृष्णा ने कहा है कि राहुल की पार्ट टाइम राजनीति की राह से कांग्रेस की सियासी वापसी नहीं होगी। राहुल की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस को अपना राजनीतिक स्थान फिर से हासिल करना है तो उसे गांधी परिवार के वंशवादी नेतृत्व का मोह छोड़ना होगा।

नारायण दत्त तिवारी
पूर्व मुख्यमंत्री
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे एनडी तिवारी भी साल 2017 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए थे। कांग्रेस छोड़ते वक्त उन्होंने आरोप लगाया था कि पार्टी आलाकमान को जमीनी वास्तविकता का कोई पता नहीं है।

गिरधर गमांग
पूर्व मुख्यमंत्री
ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री गिरिधर गमांग ने भी साल 2015 में पार्टी पर निर्णायक फैसला ना लेने का आरोप लगाते हुए कांग्रेस छोड़ दिया था। मुख्यमंत्री रहते गिरिधर गमांग के ही एक वोट से साल 1999 में केंद्र की 13 दिन पुरानी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार गिर गई थी।

नारायण राणे
पूर्व मुख्यमंत्री
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे भी कांग्रेस से नाता तोड़ चुके हैं। उन्होंने पार्टी छोड़ने के साथ विधान परिषद की सदस्यता से भी इस्तीफा देते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस आलाकमान ने उनके किया वादा नहीं निभाया। कांग्रेस को अलविदा करते हुए राणे ने कहा था, ‘मैंने 12 साल पहले जब शिव सेना छोड़कर कांग्रेस का दामन थामा था, तब सोनिया गांधी और उनके राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ने मुझे मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था। मैडम (सोनिया गांधी) ने ते मुझसे दो बार कहा था कि मुझे सीएम बनाया जाएगा, लेकिन वे दोनों इससे मुकर गए।’ राणे ने कहा कि कांग्रेस के कर्ता-धर्ता पार्टी को आगे ले जाने के इच्छुक नहीं हैं। इससे पहले वे शिव सेना में थे और 1999 में छह महीने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे। अभी नरेन्द्र मोदी सरकार में मंत्री हैं।

लुईजिन्हो फ्लेरियो
पूर्व मुख्यमंत्री
गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री लुईजिन्हो फलेरियो ने सोनिया गांधी को दिए अपने त्यागपत्र में लिखा कि “वर्तमान स्थिति को देखते हुए पार्टी का कोई भविष्य नजर नहीं आ रहा है।” मैंने पार्टी को जोड़ने का पूरा प्रयास किया, लेकिन हाईकमान की नजरअंदाजी हर बार भारी पड़ी है। हालात यह हैं कि कांग्रेस अब अपने संस्थापकों के हर आदर्श और सिद्धांत के विपरीत काम कर रही है।

विजय बहुगुणा
पूर्व मुख्यमंत्री
2012 से 2014 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे विजय बहुगुणा की बहन उत्तर प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष रही थीं। इनके पिता हेमवतीनंदन बहुगुणा का परिवार दशकों से कांग्रेस में था। 2013 की बाढ़ आपदा में राहत कार्यों में अनियमितता को लेकर उनके नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठे थे। मुख्यमंत्री का पद चला गया और दो साल बाद दोनों भाई बहन कांग्रेस छोड़ 2016 में बीजेपी में शामिल हो गए।

शंकर सिंह बाघेला
पूर्व मुख्यमंत्री
गुजरात के मुख्यमंत्री रहे शंकर सिंह बाघेला 2017 में कांग्रेस का साथ छोड़कर बाहर निकल गए। वाघेला ने भी कांग्रेस छोड़ते समय राहुल गांधी पर पार्टी हित में फैसला ना लेने का आरोप लगाया था।

अजित जोगी
पूर्व मुख्यमंत्री
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रहे अजित जोगी ने साल 2016 में कांग्रेस से इस्तीफा देकर अपनी पार्टी बना ली थी। कांग्रेस छोड़ते हुए उन्होंने आरोप लगाया था कि पार्टी अब गांधी-नेहरू की विचारधारा से भटक गई है।

जगदंबिका पाल
पूर्व मुख्यमंत्री
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे जगदम्बिका पाल ने साल 2014 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए। उत्तर प्रदेश कांग्रेस के सीनियर लीडर रहे जगदंबिका पाल आरोप लगाया था कि पार्टी के बड़े नेता उन्हें अपमानित कर रहे हैं।

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले ही कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के एक के बाद एक पार्टी के पदों से इस्तीफा देने और पार्टी छोड़ने से अब यह साफ होता जा रहा है कि जल्द ही भारत कांग्रेस मुक्त हो जाएगी। आइए देखते हैं 2024 से पहले ही कांग्रेस का किला किस तरह ढह रहा है…

हाल के वर्षों में कांग्रेस पार्टी छोड़ने वाले दिग्गज-

सी आर केसवन
देश के पहले गवर्नर जनरल और पूर्व कांग्रेस नेता सी राजगोपालाचारी के परपोते सीआर केसवन 8 अप्रैल को बीजेपी में शामिल हो गए। उन्होंने एक महीने पहले ही कांग्रेस से इस्तीफा दिया था। कांग्रेस छोड़ते समय उन्होंने कहा था कि वह पार्टी में जारी राजनीति से खुश नहीं हैं। पार्टी में जिस तरह की राजनीति हो रही है, उससे मैं सहज नहीं हूं। उन्होंने कहा था कि पिछले 22 साल से कांग्रेस का हिस्सा हूं, लेकिन समय के साथ मुझे महसूस हुआ कि कांग्रेस में दृष्टिकोण न रचनात्मक था और न ठोस। जिन मूल्यों के लिए मैंने काम किया, वे बदल गए हैं। बीजेपी में शामिल होने पर केशवन ने कहा कि मैं उस दिशा में काम करूंगा कि भारत 2047 तक विश्वगुरू बन जाए। मेरा वही योगदान रहेगा जो रामसेतु बनने में गिलहरी ने दिया था।

अनिल एंटनी
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी भी पार्टी छोड़ 6 अप्रैल, 2023 को बीजेपी में शामिल हो गए है। केरल कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम के पूर्व संयोजक अनिल एंटनी ने कहा कि मैंने कांग्रेस से अपने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। मुझ पर एक ट्वीट को वापस लेने के लिए असहिष्णुता के साथ दबाव बनाया जा रहा था। वह भी उनकी तरफ से जो फ्रीडम ऑफ स्पीच के लिए खड़े होने की बात करते हैं। मैंने मना कर दिया। प्रेम का प्रचार करने वाले फेसबुक पर मेरे खिलाफ अपशब्द का इस्तेमाल कर रहे थे। अनिल एंटनी ने गुजरात दंगों और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर विवाद के बाद जनवरी 2023 में कांग्रेस छोड़ दी थी।

कपिल सिब्बल
कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले नेताओं में सबसे बड़ा नाम पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल का है। बीते काफी समय से उनके रिश्ते कांग्रेस आलाकमान के साथ अच्छे नहीं चल रहे थे। कपिल सिब्बल ने उदयपुर में कांग्रेस के चिंतिन शिवर में बैठक के बाद कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाए थे। सिब्बल कांग्रेस पार्टी में व्यापक सुधारों पर जोर देने वाले विद्रोही ग्रुप “जी -23” के एक प्रमुख सदस्य थे। सिब्बल काफी समय से ना केवल कांग्रेस, बल्कि राहुल गांधी पर भी निशाना साधते रहे हैं।

सुनील जाखड़
पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रमुख सुनील जाखड़ ने पार्टी से इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थाम लिया। सुनील जाखड़ को कांग्रेस नेतृत्व ने पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की आलोचना करने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया था। जाखड़ ने एक तीखे संदेश में कहा कि कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को दोस्तों और दुश्मनों की पहचान करने की आवश्यता है।

आरपीएन सिंह
राहुल गांधी की कोर टीम में शामिल उत्तर प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता आरपीएन सिंह यानी रतनजीत प्रताप नारायण सिंह बीजेपी में शामिल हो गए हैं। बीजेपी में शामिल होने के बाद पूर्व केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री आरपीएन सिंह ने कहा कि यह मेरे लिए एक नई शुरुआत है। इसके लिए मैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व और मार्गदर्शन में राष्ट्र निर्माण में अपने योगदान के लिए तत्पर हूं। कुशीनगर के सैंथवार के शाही परिवार से आने वाले आरपीएन सिंह पूर्वांचल में एक बड़ा चेहरा माने जाते हैं। आरपीएन सिंह कांग्रेस के सबसे भरोसेमंद और अनुभवी नेताओं में से एक थे और उनके बीजेपी का दामन थाम लेने से राहुल गांधी को बड़ा झटका लगा है। उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि, वह 32 साल से कांग्रेस में थे लेकिन पार्टी अब वो नहीं रही जो पहले हुआ करती थी।

ज्योतिरादित्य सिंधिया
कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं में अब तक सबसे ज्यादा सुर्खियां ज्योतिरादित्य सिंधिया को मिली। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय ही मुख्यमंत्री पद को लेकर शुरू हुई टकराहट आखिरकार सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने पर जाकर खत्म हुई। राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना। सिंधिया राहुल गांधी के बेहद करीबी थे और कांग्रेस के भविष्य के रूप में भी देखे जा रहे थे। सिंधिया कांग्रेस की अनदेखी के कारण बीजेपी में शामिल हो गए हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ राज्य के कई अन्य विधायक और युवा नेता भी बीजेपी का दामन थाम चुके हैं। इससे राज्य में कांग्रेस काफी कमजोर हो गई है।

जितिन प्रसाद
राहुल गांधी की कोर कमेटी में शामिल जितिन प्रसाद ने 9 जून, 2021 को कांग्रेस को जोरदार झटका दिया और बीजेपी में शामिल हो गए। यूपी में बड़े ब्राह्मण चेहरों में शामिल जितिन प्रसाद अब योगी सरकार में मंत्री हैं। मनमोहन सरकार में मंत्री रहे जितिन प्रसाद उत्तर प्रदेश के मामलों में सलाह न लिए जाने से नाराज थे।

सतपाल महाराज
उत्तराखंड में बीजेपी सरकार में मंत्री सतपाल महाराज ने साल 2014 में कांग्रेस को अलविदा कह दिया था। सतपाल महाराज ने भी पार्टी छोड़ते वक्त राहुल गांधी पर मनमानी करने का आरोप लगाया था। राहुल गांधी पर पार्टी नेताओं से ना मिलने का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा था कि उनकी राजनीति एसी कमरे से चलती है।

खुशबू सुंदर
अभिनेत्री से राजनेता बनीं खुशबू सुंदर ने हाल ही में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे पत्र में खुशबू ने आरोप लगाया कि पार्टी में ऊपर बैठे जिन लोगों का जमीनी स्तर पर कोई जुड़ाव नहीं है और वे तानाशाही कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मेरी तरह जो लोग काम करना चाहते हैं उन्हें दबाया जा रहा है। अपने पत्र में खुशबू सुंदर ने लिखा कि कांग्रेस के 2014 लोकसभा चुनाव हार जाने के बावजूद उन्होंने पार्टी ज्वाइन की थी, लेकिन यहां काम करने वाले लोगों की अनदेखी की जाती है।

हेमंत बिस्वा शर्मा
असम के लोकप्रिय नेता हेमंत बिस्वा शर्मा को भी मजबूर होकर पार्टी से निकलना पड़ा। यहां के बुजुर्ग कांग्रेसी नेता तरुण गोगोई के साथ मतभेदों के कारण उन्हों हाशिए पर डाल दिया गया था। बाद में गोगोई से मतभेद होने पर पार्टी छोड़ दी। राहुल गांधी से मिलने का समय मांगा था पर तब राहुल गांधी कथित रूप से कुत्ते को खिलाने में व्यस्त थे। इन्होंने पार्टी छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए। 2001 से 2015 तक कांग्रेस के विधायक हेमंत बिस्वा शर्मा 2016 में बीजेपी में आ गए। राज्य में कांग्रेस को हराने में इनका अहम योगदान रहा है। अभी असम के मुख्यमंत्री हैं।

अशोक चौधरी
बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और विधानपार्षद अशोक चौधरी ने 3 अन्य पार्षदों के साथ 2018 में कांग्रेस छोड़ दिया. बिहार में कांग्रेस के लिए यह बहुत बड़ा झटका था. इस्तीफा देते हुए उन्होंने राहुल गांधी के नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाया था. चौधरी ने कहा था कि कांग्रेस हाईकमान बिहार में लालू यादव का पिछलग्गू बने रहना चाहती है. प्रभारी हाईकमान को गुमराह करते हैं और फिर कुछ भी फैसला हो जाता है.

संजय झा
इसके पहले कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय झा ने एक न्यूज वेबसाइट को दिए इंटरव्यू और लेख के जरिए कांग्रेस की कार्यशैली पर सवाल खड़ा किया था। पार्टी की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से कांग्रेस प्रवक्ता पद से हटा दिया गया। टाइम्स ऑफ इंडिया के अपने लेख और द प्रिंट को दिए इंटरव्यू में उन्होंने यह भी कहा था कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव है। संजय झा ने दावा किया कि पार्टी के पास एक आंतरिक मजबूत तंत्र नहीं है। उन्होंने लिखा है कि पार्टी के अंदर सदस्यों की बात नहीं सुनी जाती है। अपने लेख में झा ने यह भी कहा कि पार्टी सरकार के विफल होने पर लोगों को शासन का कोई वैकल्पिक विवरण प्रस्तुत नहीं कर सकती।

प्रियंका चतुर्वेदी
कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी से मथुरा में कुछ नेताओं ने अभद्रता की थी। अभद्रता करने वालों को पहले पार्टी ने निकाला और फिर पार्टी में शामिल भी कर लिया। प्रियंका इससे नाराज थीं। जिसके बाद उन्होंने 2019 में कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। आखिर में वे शिवसेना में शामिल हो गईं।

वाईएस जगन मोहन रेड्डी
वाईएस जगन मोहन रेड्डी वर्तमान में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। इनके पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी दो बार राज्य के सीएम रह चुके हैं। 2009 में वाईएस राजशेखर रेड्डी की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु के बाद लोगों ने जगन मोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाने की मांग की लेकिन पार्टी आलाकमान ने इसे ठुकरा दिया। आखिर में पार्टी से नाराज होकर इन्होंने 2010 में अलग पार्टी बना ली और आज राज्य में इनकी सरकार है।

सुष्मिता देव
गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाली सुष्मिता देव कांग्रेस की महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्ष थीं। उन्होंने 2021 में पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। बाद में अगस्त 2021 में वह ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गईं। अभी टीएमसी से राज्यसभा सांसद हैं। कांग्रेसी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके संतोष मोहन देव की बेटी सुष्मिता असम चुनाव के समय से ही कांग्रेस नेतृत्व से नाराज चल रही थी।

अशोक तंवर
हरियाणा में कांग्रेस के बड़े और युवा चेहरों में शुमार दिग्गज नेता अशोक तंवर भी 23 नवंबर, 2021 को पार्टी छोड़ टीएमसी में शामिल हो गए। राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले अशोक तंवर जाने से हरियाणा में कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा।

अदिति सिंह
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली से विधायक अदिति सिंह ने पार्टी का हाथ छोड़ बड़ा झटका दिया। अदिति को राहुल-प्रियंका का करीब माना जाता था। लेकिन अदिति कांग्रेस के कार्यकलाप और पार्टी की नीतियों से नाराज चल रही थीं।

कर्ण सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह
नेतृत्व संकट से जूझ रही कांग्रेस को एक और झटका लगा है। जम्मू कश्मीर के कद्दावर कांग्रेस नेता कर्ण सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी है। उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि, जम्मू-कश्मीर से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर उनके विचार पार्टी के साथ नहीं मिलते हैं। उन्होंने पार्टी पर जमीनी वास्तविकताओं से अनजान रहने का भी आरोप लगाया।

हार्दिक पटेल
गुजरात के नेता हार्दिक पटेल ने पार्टी में दरकिनार किए जाने से नाराज होकर कांग्रेस छोड़ दी थी। हार्दिक ने अपने त्यागपत्र में राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि जब वे उनसे मिले तो शीर्ष नेता मोबाइल फोन पर व्यस्त थे। उन्होंने यह भी कहा कि गुजरात कांग्रेस पार्टी के मुद्दों की तुलना में नेताओं के लिए “चिकन सैंडविच” की व्यवस्था करने में अधिक रुचि रखती है।

अल्पेश ठाकोर
गुजरात में कांग्रेस के युवा-तेजतर्रार नेता अल्पेश ठाकोर पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। पार्टी छोड़ते वक्त अल्पेश ठाकोर ने भी राहुल गांधी पर मनमर्जी से फैसला लेने का आरोप लगाया था। उन्होंने ये भी आरोप लगाया था कि पार्टी को हकीकत से कोई लेनादेना नहीं है।

अश्वनी कुमार
पूर्व कानून मंत्री अश्वनी कुमार ने इस साल की शुरुआत में फरवरी में कांग्रेस से अपना चार दशक पुराना रिश्ता खत्म कर लिया। उन्होंने सोनिया गांधी को लिखे अपने त्यागपत्र में कहा कि यह कदम,”मेरी गरिमा के अनुरूप है।” उन्होंने एक टीवी इंटरव्यू में कहा कि वह निकट भविष्य में कांग्रेस को पतन की ओर जाते हुए देख रहे हैं।

जयंती नटराजन
पूर्व केंद्रीय मंत्री जयंती नटराजन ने 30 जनवरी 2015 को कांग्रेस पार्टी का साथ छो़ड़ा था। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप थे। हालांकि उन्होंने पार्टी छोड़ते वक्त राहुल गांधी और अन्य वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं पर बलि का बकरा बनाने का आरोप लगाया था। नटराजन का परिवार कांग्रेस के साथ 1960 के दशक से जुड़ा हुआ था। उनके नाना एम भक्तवत्सलम तमिलनाडु में कांग्रेस के आखिरी मुख्यमंत्री थे।

जीके वासन
यूपीए सरकार में मंत्री रह चुके जीके वासन ने नवंबर 2014 में पार्टी छोड़ी थी। उनके पिता जीके मुपनार बड़े कांग्रेसी नेता रहे। वासन ने आरोप लगाया था कि कांग्रेस पार्टी में तमिलनाडु इकाई को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता। पार्टी छोड़ने के कुछ ही दिनों बाद उन्होंने देसिया तमिल मनीला कांग्रेस की स्थापना की।

टॉम वडक्कन
तकरीबन 20 सालों तक सोनिया गांधी के खास रहने के बाद टॉम वडक्कन ने पार्टी छोड़ दी थी। उन्होंने बालाकोट एयर स्ट्राइक के समय में पार्टी के स्टैंड का विरोध किया था। बाद में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन कर ली।

रंजीत देशमुख
महाराष्ट्र कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रंजीत देशमुख ने संगठन पर आरोप लगाकर कांग्रेस छोड़ दी थी। वो महाराष्ट्र की विलासराव देशमुख सरकार में मंत्री भी रहे थे। हालांकि बाद में खराब स्वास्थ्य की वजह से रंजीत सक्रिय राजनीति से अलग हो गए।

चौधरी बीरेंदर सिंह
हरियाणा कांग्रेस के ताकतवर नेता रहे चौधरी बीरेंदर सिंह ने 2014 में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी। कहते हैं कि उन्होंने पार्टी राज्य के तत्कालीन सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा के विरोध में छोड़ी थी। फिर उन्होंने 2014 का लोकसभा चुनाव बीजेपी के टिकट पर हरियाणा से जीता और फिर केंद्रीय मंत्री बने।

रीता बहुगुणा जोशी
उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष रहीं रीता बहुगुणा जोशी ने साल 2016 में कांग्रेस छोड़ी थी। बाद में वो बीजेपी के टिकट पर लखनऊ से विधायक बनीं। उनके पिता हेमवती नंदन बहुगुणा कांग्रेस के दिग्गज नेता और यूपी के मुख्यमंत्री रहे।

 

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